स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी भूमिका

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आहुति देने वाले 80% से अधिक व्यक्ति आर्य समाजी ही थे। अब हमारा यह कर्तव्य बन जाता है कि इन आर्यवीरों की कुर्बानियों से बची बनी इस भारत भूमि की तन मन धन से रक्षा करें।

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी के वाक्य कि ‘कोई कितना ही करे परन्तु जितना स्वदेशी राज्य उत्तम व सर्वोपरि होता है उतना विदेशी राज्य नहीं’ के बाद से ही भारतीय जनमानस के सोये दिलों में स्वदेशी राज्य की कल्पना व अभिलाषा जागृत हुई। या हम यह कहें कि भारत में स्वदेशी राज्य, स्वराज्य का प्रथम मंत्र फूंकने वाले राष्ट्र-पितामह स्वामी दयानंद ही थे तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
विदेशी राज्य का विरोध व स्वदेशी राज्य की श्रेष्ठता की चर्चा उन्होंने केवल सत्यार्थ प्रकाश में ही नहीं की अपितु अपनी ’आर्याभिविनय’ और ‘संस्कृत वाक्य प्रबोध’ जैसी पुस्तकों में भी की। स्वामी दयानंद के पूर्व स्वदेश व स्वराज्य की चर्चा भारत के किसी मनीषी के ग्रंथ में नहीं मिलती। वह पहले मनीषी थे जिन्होंने ‘विदेशियों का राज्य पूर्ण सुखदायक नहीं, स्वदेशीय राज्य सर्वोपरि होता है’ आदि संदेशों को प्रस्तुत कर देश की आजादी की नींव रखी थी।
स्वामी दयानंद की विचारधारा से प्रभावित होकर आर्य समाज ने देश में स्वतंत्रता की एक अद्भुत क्रांति ला दी। स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय, शहीद भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, मदनलाल ढींगरा, उधम सिंह आदि अनेक क्रांतिकारी आर्य समाज रूपी क्रांतिकारी भूमि की ही उपज थे। सशस्त्र क्रांति एवं महात्मा गांधी के सत्याग्रह दोनों ही मोर्चों पर अर्थात गरम दल व नरम दल दोनों दलों में आर्य समाज के ही लोगों की भरमार थी। आर्य समाज के प्रभाव से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर स्वदेशी आंदोलन आरंभ हुआ।
स्वामी जी के शिष्य पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा ने विदेशों में रह कर इस भारत की स्वतंत्रता की वेदी पर आहुति देने के लिए अनेक क्रांतिकारियों को तैयार किया। क्रांतिकारियों के गुरु पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा ही थे जिन्होंने इंग्लैण्ड में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की थी, जहां अनेक क्रांतिकारी जाकर रहा करते थे। वीर सावरकर जी व अन्य प्रमुख क्रांतिकारी भी इण्डिया हाउस में ही रहते थे। आर्य समाजी प्रचारक फिजी, मारीशस, गयाना, ट्रिनिडाड, दक्षिण अफ्रीका में भी हिंदुओं को संगठित करने के उद्देश्य से वहां पहुंच रहे थे। आर्य समाज की इस लम्बी फ़ौज से जुड़े कल्याण मार्ग के पथिक स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की और इन्ही गुरुकुलों में राष्ट्रभक्ति की शिक्षा पाकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी बम-रूपी विद्यार्थी तैयार किए जाते थे। अखिल भारत हिन्दू शुद्धि सभा के वे अध्यक्ष थे। उन्होंने शुद्धि आंदोलन चला कर 20 लाख के लगभग विधर्मियों को पुनः वैदिक धर्म में दीक्षित किया और सब को राष्ट्र के लिए आहूत होने की प्रेरणा दी। आर्य समाजी भाई परमानंद महान क्रांतिकारी थे। वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे। रास बिहारी बोस इंडियन नेशनल आर्मी, जो बाद में आजाद हिन्द फ़ौज’ कहलाई उसे जोड़ रहे थे। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल उत्कृष्ट साहित्यकार, कवि एवं महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की थी। बिस्मिल के प्रभाव से उनका पूरा समूह ही आर्य समाज के विचारों से प्रभावित हुआ। अपने क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेच कर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिए किया। उनका जन्म 11 जून 1897 को हुआ और 11 वर्ष की आयु से उन्होंने लिखना प्रारंभ किया। उनके जीवन काल में 11 पुस्तकें प्रकाशित हुईं और ब्रिटिश सरकार ने काकोरी हत्याकांड के आरोप में 11 नम्बर बैरक में बंदी बना कर रखा। पर उसके दिल में सदा एक ही अरमान था-
‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।’
इसी सूची में भगत सिंह के दादा जी अजीत सिंह का नाम भी आता है। भगत सिंह कहा था कि मेरे दादा जी ने जनेऊ के समय मुझे देश को भी समर्पित कर दिया था। भगत सिंह जलियांवाला कांड को देख कर अत्यंत भावुक हुए और उनका खून खौल पड़ा। उन्होंने नौजवान भारत सभा बनाई और चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव और राजगुरु से मिल कर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला सैंडर्स को गोली मार कर लिया।
ठाकुर रोशन सिंह एवं राजेन्द्र लाहिड़ी दोनों को आर्य समाज से ही बलिदान होने की प्रेरणा मिली और काकोरी काण्ड में फ़ांसी हुई थी।
लाला लाजपत राय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष और महान नेता, वक्ता, क्रांतिकारियो के प्रेरणास्रोत थे। साइमन कमीशन का विरोध करने के कारण उनकी शहादत हुई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। बलराज मधोक ने प्रजा परिषद पार्टी बनाई थी जिसे कालांतर जनसंघ में विलय किया गया। इस प्रकार आर्य वीरों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने राष्ट्र-यज्ञ में स्वयं की आहुति दी।
स्वाधीनता इतिहास के लेखकों ने भी राष्ट्रवादी दयानंदी फौज़ की शहादतों को सहर्ष स्वीकार किया। ’कांग्रेस का इतिहास’ के लेखक डॉ. पट्टाभिराम सीतारमैया ने इन्ही बलिदानों को देख कर अपने लेख में लिखा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आहुति देने वाले 80% से अधिक व्यक्ति आर्य समाजी ही थे।
अब हमारा यह कर्तव्य बन जाता है कि इन आर्यवीरों की कुर्बानियों से बची बनी इस भारत भूमि की तन मन धन से रक्षा करें। यही उन हुतात्माओं के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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