भारत-राष्ट्र का नवनिर्माण

वेद को खोने-भुलाने से यह देश भी भूल गया- हमें ही विजयी होना है और विशुद्ध होना है। पराजित अनायास पापरिहत नहीं हो सकता। विजयी होने के लिए उच्च चरित्र का होना आवश्यक है। भारत राष्ट्र के निर्माण के लिए यह बहुत जरूरी है।

आर्य समाज के जीवन के डेढ़ सौ साल पूरे होने को अभी कुछ ही समय बाकी है। इतनी अवधि में इसने क्या किया इसकी तुलना ब्रह्मसमाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, प्रार्थना समाज आदि से नहीं की जा सकती। क्योंकि इनमें से किसी ने भारत-राष्ट्र के ज्ञान-विश्वकोष (वेद), भारत राष्ट्र के अक्षय ज्ञान-निधि की रक्षा और उसके प्रचार का बीड़ा नहीं उठाया था। ये संस्थाएं भारत-भूमि के प्रति भक्ति और निष्ठा को उत्पन्न करने और बढ़ाने के लिए स्थापित नहीं हुई थीं। आर्य समाज ने क्या भारत को विश्व-व्यापी साम्राज्य स्थापित करने की शक्ति दी? महर्षि दयानंद ने आर्य समाज को विरासत में यह कार्य सौंपा है। ऋषि ने लिखा हैः-

सृष्टि से लेकर पांच सहस्र वर्षों से पूर्व समय पर्यन्त आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती, अर्थात् भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था। अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात् छोटे-छोटे राजा रहते थे। स्वायंभुव राजा से लेकर पाण्डव पर्यन्त आर्यों का चक्रवर्ती राज्य रहा।
मराठा इतिहास के लेखक एल. फिंस्टन ने लिखा है। दूसरे बाजीराव पेशवा की पराजय और मराठा राज्य की समाप्ति के साथ 1818 में भारत की आबादी लगभग 18 करोड़ थी और इसमें मुस्लिम केवल 1 करोड़ थे। ब्रिटिश शासन ने पहली जनगणना 1881 में कराई। इस साल पंजाब में (पंजाब सीमा प्रांत और बलोचिस्तान को मिलाकर पंजाब प्रांत था। पंजाब से सीमाप्रांत 1905 में लार्ड कर्जन ने अलग किया।) हिन्दू बहुसंख्यक थे। मुस्लिम और सिख अल्पसंख्यक थे क्योंकि उस समय तक हिन्दू ने हार नहीं मानी थी। विजय प्राप्ति के लिए सतत संघर्ष कर रहा था। आर्य समाज की स्थापना 1875 में हो चुकी थी। परन्तु आर्य समाज की स्थापना ने और भारत को विजयी राष्ट्र बनाने के लिए सतत संघर्ष करने की प्रेरणा नहीं दी क्योंकि आर्य समाज के प्रचार कार्य का- भारत को एक विजयी राष्ट्र बनाना एक भाग नहीं रहा।

वेद को खोने-भुलाने से यह देश भी भूल गया- हमें ही विजयी होना है और विशुद्ध होना है। पराजित अनायास पापरिहत नहीं हो सकता। विजयी होने के लिए उच्च चरित्र का होना आवश्यक है। क्या आज यह देश ‘भारत’ के नाम से दुनिया के किसी कोने में जाना जाता है? क्या विश्वामित्र-रक्षित भारत भूमि की स्तुति, वंदना और अर्चना होती है? क्या भारत-भक्ति का उन्मूलन पिछले दो सौ साल से और विशेषतः 15 अगस्त, 1947 से नहीं किया जा रहा है।

क्या 15 अगस्त, 1947 प्रसन्नता और मुक्ति का दिवस है? ठीक है। ब्रिटिश शासन गया। यह उसकी जगह आया एंग्लोइस्लाम रूसी शासन। अंग्रेजों की बाधित शिक्षा आज भी क्यों जा रही है? ब्रिटिशों का बनाया दण्ड विधान क्यों चल रहा है? संस्कृत की बाधित शिक्षा क्यों नहीं जारी की गई? (हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में है, केरल में भी है।) लोहें की कीली महरोली में सैकड़ों वर्षों से खड़ी है। फिर भी बोकारो और भिलाई रूसियों के अंग बने हुए हैं। 14 सरकारी बैंकों में 4000 कम्युनिस्ट कार्ड होल्डर रोटी रोजी पा रहे हैं और शासन सूत्र हिलाते हैं।

तिब्बत की स्वाधीनता का बलिदान कर दिया गया। 11000 वर्ग मील से लेकर 40,000 वर्ग मील भूमि चीन को भेंट कर दी गई। बांग्लादेश एक नया मुस्लिम राष्ट्र बन गया। यह है भारत-अभक्ति का परिणाम।

यहां एक विचारणीय प्रश्न उठता है – सिंधु नदी के समानान्तर बहने वाली नदी सरस्वती ने अपना मार्ग कब बदला और क्यों बदला? त्रिवेणी संगम कब बना? यह परिवर्तन जितना प्राचीन माना जाएगा उतना ही प्राचीन भारत राष्ट्र का जीवन माना जाएगा। भारत राष्ट्र विश्व का सर्वाधिक प्राचीन राष्ट्र है। क्या यह अभिमान गौरव उत्पन्न किए बगैर भारत राष्ट्र विश्वविजयी राष्ट्र हो सकेगा? भारत विश्वविजयी राष्ट्र हो, यह महान् कार्य वेदभक्त आर्य समाज के सिवाय क्या कोई और कर सकता है?

क्या मार्च, 1919 से पहले किसी ने कल्पना की थी कि दिल्ली के जामा मस्जिद से अमर आर्य समाज संन्यासी को प्रवचन करने का निमंत्रण दिया जाएगा। वह महान् भारत-भक्त आर्य संन्यासी जामा मस्जिद से हिन्दू मुस्लिम प्रत्येक भारतीय को वेद-मंत्र सुनाता है और इसको सुनने के लिए जामा मस्जिद के सामने के मैदान में जितनी मुस्लिम जनता एकत्र हुई थी उतनी फिर 1947 तक नहीं जमा हुई। क्या यह कल्पनातीत दृश्य नहीं है। इसी समय लेनिन ने रूस में कम्युनिज्म की पताका लहराई क्योंकि लेनिन विश्वविजय हेतु कृतसंकल्प था। यदि आर्य संन्यासी भी विजय की महती आकांक्षा से युक्त होकर और आगे बढ़ता तो क्या भारत राष्ट्र के शत्रु आज महान् भारत को बौना बताते व नपुंसक बना पाते। क्या इस भूल का परिमार्जन आर्य समाज को न करना चाहिए? निस्संदेह संख्या में बल है। परंतु वास्तविक शक्ति संकल्पलक्ष्य की एकता और योग्य भारत-भक्त द़ृढ निश्चयी नेता की संगठन-शक्ति और नेतृत्व में है।
आर्य समाज विखंडित भारत को संयुक्त करने का द़ृढ़ संकल्प करें। वेद की शक्ति और प्रभाव का यह जीता जागता प्रदर्शन होगा और संपूर्ण विश्व पुनः भारत के चरणों में होगा।

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