बाहुबली भारतीय सिनेमा में नई क्रांति

ऐसे समय में जबकि देश में राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली का इतना हिट होना एक और संकेत भी देता है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पर लिखा ‘मनमोहन की जगह मोदी, अखिलेश की जगह योगी और अब दबंग की जगह बाहुबली, देश बदल रहा है।’
हम में से शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसे बालीवुड और हालीवुड की फ़िल्में देखना न पसंद हो, मगर यदि आपको उनकी शूटिंग के पीछे की वास्तविक तस्वीर दिखा दी जाए तो आपका विश्वास उन फिल्मों पर से हट जाएगा। क्योंकि जो आप देखते हैं, असल में वैसा होता नहीं है। आजकल फिल्मों में एक खास तरह के स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे सीजीआई कहा जाता है। इस इफेक्ट के चलते ही फिल्म निर्माताओं के लिए कुछ भी दिखा पाना संभव हो पाया है। अब जो आपको ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ और ‘क्रॉनिकल्स ऑफ नार्निया’ के शेर खान से मोहब्बत हो गई है, तो यह लेख खास आपके लिए ही है। इसमें हमने उन सारे स्पेशल इफेक्ट्स की थ्योरी को आपके सामने खोल कर दिखलाने की कोशिश की है। हम आपको हालीवुड सहित बालीवुड की बाहुबली के स्पेशल इफेक्ट के बारे में बताएंगे जिसमें बाहुबली को अलग तरह से दिखाने के लिए हालीवुड की तर्ज पर पर उतारा गया।
बाहुबली भारतीय सिने इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई है। यह देसी फैंटेसी से भरपूर एक भव्य फिल्म है जो अपनी प्रस्तुतीकरण, बेहतरीन टेक्नोलॉजी, विजुअल इफेक्ट्स और सिनेमाई कल्पनाशीलता से दर्शकों को विस्मित करती है। एस.एस. राजामौली के निर्देशन में बनी यह फिल्म भारत की सब से ज्यादा कमाने वाली फिल्म बन चुकी है। बाहुबली के दूसरे हिस्से की कमाई का ऑल वर्ल्ड कलेक्शन १७२५ करोड़ रुपये के पार पहुंच चुका है। बाहुबली एक ऐसी अखिल भारतीय फिल्म बन गई है जिसको लेकर पूरे भारत में एक समान दीवानगी देखी गई लेकिन इसी के साथ ही बाहुबली हिंदुत्व को पर्दे पर जिंदा करने वाली एक ऐसी फिल्म भी है जिसने प्राचीन भारत के गौरव को दुनिया के सामने रखा है।
इस बहुप्रतीक्षित फिल्म ने पूरी दुनिया को यह सोचने पर मजबूर किया कि भारतीय सिनेमा में भी इस तरह की फिल्म बनाई जा रही है जो १००-२०० नहीं बल्कि हजार करोड़ की कमाई कर हालीवुड की फिल्मों को टक्कर दे रही है। भारत की सब से सुपरहिट मूवी ‘बाहुबली दी कंक्लुजन’ के आने के बाद सिनेमा जगत में एक नई क्रांति का आविष्कार हुआ। फिल्म की दमदार स्क्रिप्ट, पात्रों का बेहतरीन अभिनय और सबसे बढ़ कर अंतरराष्ट्रीय मानक के विजुअल इफेक्ट एक नई ऊंचाई प्रदान करते हैं।
इस फिल्म की प्रशंसा करते हुए तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री एवं वर्तमान उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा था कि फिल्म भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक ले गई है। उन्होंने खुले मंच से बाहुबली की तारीफ में कसीदे पढ़े। ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब किसी फिल्म की तारीफ कोई बड़ा नेता करे। उन्होंने यह फिल्म देखी और इसकी तुलना हॉलीवुड की फिल्म ‘द टेन कमांडेंट्स’ से की। उप राष्ट्रपति ने कहा था कि, ‘इसमें शानदार विजुअल के प्रयोग हैं। जो हॉलीवुड की फिल्म ‘बेन हूर’ और ‘टेन कमांडेंट्स’ जैसा अनुभव देते हैं।’ तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री ने कहा, ‘मैं फिल्म के कैनवास, निर्देशक राजामौली के साहस, चरित्र, प्रोडक्शन की गुणवत्ता से आश्चर्यचकित हूं और इस तरह की वैश्विक गुणवत्ता वाली फिल्म बनाने में भावना और तकनीकी के मिश्रण की प्रशंसा करता हूं।’ साथ ही उन्होंने कहा कि, ‘फिल्म भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को पूरी तरह नई ऊंचाइयों पर ले गई है और इसका तेलुगु जैसी क्षेत्रीय भाषा की टीम से होना और प्रशंसनीय है। उन्होंने राजामौली से मुलाकात के बाद कहा था कि राजमौली ने साबित किया है कि उनमें हॉलीवुड के निर्देशकों से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता है।
भव्य सेट फिल्म को और भव्यता प्रदान करते हैं। युद्धों के दृश्य काफी प्रभावी बन पड़े हैं। हालीवुड ऐक्शन डायरेक्टर पीटर हिन की मेहनत फिल्म में प्रभास के ऐक्शन में बखूबी नजर आती है। निर्देशक राजामौली इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने भारतीय फिल्मों को एक नया स्तर प्रदान किया। यह नॉर्थ या साउथ नहीं समूचे हिंदुस्तान की अब तक कि सब से बड़ी फिल्म है। बाहुबली-२ की पहले ही दिन की कमाई १२१ करोड़ रुपये है, कमाई का यह आकंड़ा ही बॉलीवुड की कई बड़ी फिल्मों की पूरी कमाई से भी ज्यादा है। वैसे भी अब तक बॉलीवुड की ५३ फिल्में ही १०० करोड़ से ज्यादा का आकंड़ा पार कर सकी हैं। वैसे तो बॉलीवुड में बनने वाली फिल्में ही मुख्य रूप से भारत की आधी आबादी देखती है, मगर बाहुबली के प्रति जिस प्रकार की दीवानगी पूरे भारत में देखी जा रही है वैसा इससे पहले केवल रजनीकांत की कबाली के लिए ही देखा गया था।
यदि वर्तमान वैश्विक सिनेमा की बात करें तो डेनियल एस्पिनोसा की ’लाइफ’, साइंस फिक्शन हॉरर फिल्म है, और हालीवुड में इस जॉनर की फिल्में कई दशकों से बनती आ रही हैं। बालीवुड में इस तरह की फिल्में बनाने का प्रचलन नहीं है। शायद क्रिश इस जॉनर की सफल फिल्म रही है। यदि कारणों को देखें तो इसमें हालीवुड के अब तक के सर्वश्रेष्ठ स्पेशल इफेक्ट्स और सामाजिक दृष्टिकोण हैं। पाश्चात्य सभ्यता ने पृथ्वी के कोने-कोने की खोज करने के बाद पिछली सदी के छठे दशक में चंद्रमा पर मनुष्य को पहुंचा दिया। इसी कारण ‘स्टार ट्रैक’ और ‘स्पेस ओडिसी’ जैसी फिल्में बनीं। भारत में कुछ वर्षों पहले तक सोच और चेतना प्यार, रोटी, कपड़ा और मकान जैसे विषयों पर पूरी तरह केंद्रित थी और इसका प्रभाव हमारी फिल्मों पर दिखता है। हां, अब हम चंद्रयान और एकसाथ कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का विश्व रिकॉर्ड बनाने के बाद स्पेस केंद्रित विषयों पर लिखेंगे और फिल्म बनाएंगे। आखिर, स्पेस पर विश्वसनीय साइंस फिक्शन या साइ-फाइ फिल्म बनाने के लिए वीएफएक्स टेक्नोलॉजी (जिसका इस्तेमाल रा-वन में हुआ) को अपनाना होगा और अभी यह भारत में मुश्किल है। आखिरकार, जितने पैसों में ग्रैविटी जैसी फिल्म बनी उतने में तो भारत ने चंद्रयान को चंद्रमा की सतह पर उतार दिया।
वैसे हालीवुड और बालीवुड में एक जैसे दिग्गज कारोबारी हैं और इसीलिए वे एक ही तरह से ऑपरेट करते हैं। हम अगर रईस देखें तो कहेंगे कि कुछ नहीं है क्योंकि इस फिल्म ने दीवार, दयावान और सरकार जैसी फिल्मों की कथा-पटकथा का सम्मिश्रण किया और वही कहानी दर्शकों को परोस दी। अगर हम ‘लाइफ’ को गौर से देखें तो यह फिल्म भी रिड्ले स्कॉट की १९७८ में आई ‘एलियन’ और इसकी कई सीक्वल्स और कुछ और फिल्में जैसे ‘ग्रैविटी’, ‘स्पीसीज’ और ‘द मार्टियंस’ की कथाओं-पटकथाओं को नए रूप में सम्मिश्रित करके दर्शकों को रिझाने की कोशिश है। इससे पता चलता है कि हालीवुड और बालीवुड, दोनों बाक्स आफिस पर हिट फिल्मों के फार्मूलों को बार-बार भुनाते हैं।
‘लाइफ’ फिल्म में भी कुछ नया नहीं है- एलियन फिल्म की तरह एक नया जीव नरभक्षक होकर अंतरिक्ष यात्रियों को ही बारी-बारी से खाने लगता है। ‘लाइफ’ में भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के वैज्ञानिक मंगल ग्रह के एककोशकीय जीव को सटीक तापमान पर जीवित करके खुश होते हैं। बाद में वही जीव जिंदा रहने के लिए एक-एक करके चार अंतरिक्ष यात्रियों को बड़ी बेरहमी से खत्म कर देता है। यह संदर्भ सभी को अपील करता है। कभी-कभी भलाई कितनी उल्टी पड़ जाती है, यह उसकी मिसाल है।
पूरी फिल्म उस मांगलिक जीव से अंतरिक्ष यात्रियों के जूझने की कहानी है और अंत में छह में से सिर्फ एक जीवित पृथ्वी पर पहुंचता है। साथ में वह जीव भी है। अगर फिल्म सफल रही तो आप एक या कई सीक्वल देखेंगे पर मुझे लगता नहीं कि ऐसा होगा। क्यों? वजह यह कि फिल्म पुरानी कहानी और फिल्मक्राफ्ट का मिश्रण है। जुरासिक पार्क की तरह एक फॉसिलाइज्ड जीव का आदमी द्वारा जीवित करना। एलियन फिल्मों के संकलन से ज्यादातर प्लॉटलाइन लेना। ग्रैविटी फिल्म की तरह अंतरिक्ष को उसी खूबसूरती से दर्शाया है, खासकर आइएसएस का अंतरिक्ष के मलबे से टकराना और पूरे साउंड इफेक्ट के साथ चूर-चूर हो जाना (जबकि स्पेस में कोई आवाज नहीं होती जैसे कि एलियन का मशहूर डायलॉग था कि स्पेस में कोई आपकी चीख नहीं सुन सकता) या फिर रोबोटिक आर्म से स्पेसशिप के बाहर जाकर उसे ठीक करना।
अंतरिक्ष के जीव प्यारे अतिथि ही नहीं भक्षक भी हो सकते हैं, जैसा कि एलियन फिल्मों में हैं। फिल्म की टेक्नोलॉजिकल कार्यकुशलता भी ग्रैविटी, द मार्टियंस और इंटरस्टेलर कुछ वर्ष पहले दिखी है। ज्यादातर भारतीयों को इस तरह की साइ-फाइ हॉरर फिल्म पसंद नहीं आती, उन्हें तो ’ईटी’, ‘एनकाउंटर्स ऑफ थर्ड काइंड’ पसंद आती है और इस तरह की कहानी को उन्होंने ‘क्रिश’ और ‘पीके’ जैसी फिल्मों में इस्तेमाल किया है। फिल्म में मनुष्यता, विश्वास, आशा, जीवन संरक्षण और पृथ्वी के प्रति लगाव पहले जैसी ही है॥फिल्म को भयानक ‘ऑक्टोपस’ की शक्ल में दिखाना कुछ नया नहीं है।
पश्चिमी दुनिया में अंतरिक्ष के जीवों की खोज वर्षों से जारी है। अमेरिका में एक बड़ा प्रोग्राम सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल लाइफ (सेटी) कई दशकों से चल रहा है। इस खोज से प्रभावित कई फिल्में बनी हैं जैसे ‘स्पेस ओडिसी’, ‘कॉन्टैक्ट’, ‘सोलैरिस’, ‘इंटरस्टेलर’ और पिछले साल ‘द मार्टियंस’। यह प्रयास जारी रहेगा। और यह भी है कि पहले टेक्नोलॉजी इतनी अच्छी नहीं थी कि स्पेस के विस्तार, शून्यता और सन्नाटे को विश्वसनीय ढंग से फिल्माया जा सके। एक वजह यह भी है कि इंसान हमेशा किसी ऐसी जगह पर अकेले फंसने से डरता है, जहां कोई मदद न मिल सके, न ही किसी मदद की उम्मीद हो, यह इंसान की अंतरचेतना का अभिन्न अंग है। भारत में अंतरिक्ष की खोज अभी गंभीर रूप से शुरू हुई है जबकि पश्चिम में यह आधी सदी से जारी है। इन्सान पृथ्वी पर खुद को सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानता है और उसने पृथ्वी समेत खुद को और दूसरे जीवों को हर कीमत पर बचाने का जिम्मा ओढ़ रखा है। हालांकि यह बात न तो सही है न ही जरूरी क्योंकि जीवन विराट है और मनुष्य उसमें एक करोड़ योनियों का सिर्फ साधारण रूप है। लेकिन क्या कीजिएगा, फिल्म इंसान बनाते हैं और उसमें खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने का अधिकार उसी का है।
ऐसे समय में जबकि देश में राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली का इतना हिट होना एक और संकेत भी देता है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पर लिखा ‘मनमोहन की जगह मोदी, अखिलेश की जगह योगी और अब दबंग की जगह बाहुबली, देश बदल रहा है।’
बाहुबली को लेकर सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात इसके रचयिताओं का आत्मविश्वास है। रामायण और महाभारत की फ्यूजननुमा कहानी जिसे पहले भी अलग- अलग रूपों में असंख्य बार दोहराया जा चुका है, भारी-भरकम बजट और रीजनल सिनेमा के कलाकार। उस पर भी फिल्म को दो हिस्सों में बनाने का निर्णय। इसकी कहानी रामायण और महाभारत से प्रेरित है जिसे तकनीक, एनिमेशन और भव्यता के साथ परदे पर पेश किया गया है। इस कहानी में वह सब कुछ है जिसे हम भारतीय सुनने केे आदी रहे हैं। यहां राज सिंहासन की लड़ाई, साजिशें, छलकपट, वफादारी, युद्ध, हत्याएं, बहादुरी, कायरता, वायदे, जातीय श्रेष्ठता सब कुछ है। राजामौली अपनी इस फिल्म से हमारी पीढ़ियों की कल्पनाओं को अपने सिनेमाई ताकत से मानो जमीन पर उतार देते हैं।
तेलुगू सिनेमा अर्थात् ‘टॉलीवुड’ की फिल्म की अंतरराष्ट्रीय स्तर की दीवानगी बालीवुड के सूरमाओं के लिए यकीनन आंखें खोल देने वाली होगी। रामगोपाल वर्मा ने तो कहा भी है कि ‘भारतीय सिनेमा की चर्चा होगी तो बाहुबली के पहले और बाहुबली के बाद का जिक्र होगा।’ ऐसे में सवाल उठता है कि इस फिल्म में ऐसा क्या है जो भारतीय जनमानस की चेतना को छूता है और एक साथ पूरे भारत की पसंद बन जाता है? बारीकी से देखा जाए तो इस फिल्म में पुराने सामंतवादी विचारों और मूल्यों को महिमामंडित किया गया है और राजतंत्र, जातिवाद, पुरुष-प्रधान सोच व राजसी हिंसा का भव्य प्रदर्शन किया गया है। यह फिल्म क्षत्रिय गौरव का रोब दिखाती है और कटप्पा की सामंती वफ़ादारी को एक आदर्श के तौर पर पेश करती है जो अपनी जातिगत गुलामी के लिए अभिशप्त है।
२०१५ में जब ‘बाहुबली भाग एक’ आई थी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ द्वारा ’बाहुबली से खलबली’ नाम से एक कवर स्टोरी प्रकाशित की गई थी। ‘भारतीय सिनेमा का नया अध्याय’ नाम से लिखे गए इसी अंक के संपादकीय में कहा गया था कि ‘बाहुबली वास्तव में ‘हिन्दू’ फिल्म है। इसे सिर्फ फिल्म की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। यह तो भारतीय प्रतीकों, मिथकों, किंवदंतियों के रहस्य लोक की यात्रा है।’ इस साल ‘बाहुबली भाग दो’ आने के बाद ‘पांचजन्य’ में एक बार फिर ‘मिथक बना इतिहास’ नाम से कवर स्टोरी प्रकाशित की गई है जिसमें बाहुबली-२ को भारतीय सनातन परंपराओं और धार्मिक-आध्यात्मिक शिक्षाओं से ओतप्रोत एक ऐसा महाकाव्य बताया गया है जो कि सिनेमा की सीमा से बाहर की कोई चीज है और जो संपूर्ण विश्व को संबोधित करती है।
फिल्म समीक्षक एना वेट्टीकाड ने जब अपने रिव्यू में बाहुबली-२ की आलोचना की तो सोशल मीडिया पर उन्हें बुरी तरह से ट्रोल किया गया। इसको लेकर एना वेट्टीकाड ने जो चिंता जताई है उस पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, उन्होंने लिखा है कि ‘सोशल मीडिया पर मेरे खिलाफ जो कहा गया वह समाज में आ रहे बदलाव का संकेत है।’ फिल्मों और फिल्मी सितारों को लेकर फैन्स में एक तरह का जुनून रहता है और समीक्षक जब उनके पसंदीदा सितारों की फिल्मों पर सवाल खड़े करते हैं तो वे नाराज होते और गाली-गलौज़ भी करते हैं लेकिन बाहुबली के समर्थकों के ट्रोल्स का बर्ताव इससे भी आगे का है।’ यहां मामला एक सितारे या फिल्म का नहीं बल्कि इसके द्वारा अपनी प्राचीन और मध्यकालीन समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव का है।
इस फिल्म ने उस मिथक को गलत साबित कर दिया है कि फिल्मों को हिट कराने के लिए अंतरंग दृश्यों अथवा खान अभिनेता का होना आवश्यक है। बालीवुड पर राज्य करने वाले खान अभिनेताओं के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। यह फिल्म उन कलाकारों को भी चुनौती देती है जो अपने दम पर फिल्म हिट कराने का दंभ भरते हैं।

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