मुस्लिमों में भी राष्ट्रभक्ति की उफनती लहरें हैं – इन्द्रेश कुमार

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जरिए सुधारवाद का एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ है। मुल्ला-मौलवियों द्वारा फैलाई गई गलतफहमियों को दूर करने से लेकर तुलसी, गोरक्षा और राम मंदिर पर भी मु. रा. मंच के सलाहकार तथा मार्गदर्शक मा. श्री इन्द्रेश कुमारजी ने बेबाक खुलासा किया। प्रस्तुत है उनके साथ हुई प्रदीर्घ बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-
वैश्विक आतंकवाद के कारण लोगों के मन में मुसलमानों के प्रति जो नफरत और भय की भावना है वह देश की एकता व सार्वभौमिकता के लिए कितनी खतरनाक है?
पिछले कई वर्षों से विश्व के अनेक क्षेत्रों में हिंसा के कई रूप उभर आए हैं। इनमें एक आतंकवाद है जो मुसलमानों से मजहब के रूप में जुड़ा है। दूसरा नक्सलवाद या माओवाद है जो मुख्यतया कम्युनिस्ट फिलासफी से ज़ुडा है। कहीं न नहीं उसे दुनिया की साम्यवादी ताकतों से संरक्षण मिलता है। एक अलगाववाद है जिसका रास्ता आतंकवाद और माओवाद से जुड़ा है। इसके पीछे चर्च के रूप में भी कुछ ताकतें हैं। ये नाम इसलिए लिए जाते हैं क्योंकि किसी भी आतंकवादी ने किसी मस्जिद या दरगाह पर कभी भी हमला नहीं किया। माओवादियों और नक्सलियों ने किसी माओवादी इंस्टीट्यूशन व चर्च पर हमला नहीं किया। पंजाब, नार्थ ईस्ट या दक्षिण का अलगाववाद हो, इनमें भी ज्यादातर लोग वही मरे जो सनातन परंपराओं से जुड़े हुए रहे। ऐसा नहीं है कि ईसाई, कामरेड या मुस्लिम नहीं मरे पर यह संख्या नगण्य ही रही। चौथी हिंसा वह है, जो जाति अथवा धर्म के नाम पर होती है। इन सबने विकास को रोका हुआ है और विनाश को पैदा किया है। समाज को जोड़ने के स्थान पर बांटा है। समाज में भय का स्वाभाविक उत्पादन किया है। भयग्रस्त समाज न शांति से रह सकता है और न भाईचारे से रह सकता है और न ही विकास कर सकता है। इसलिए इससे देश की एकता और अखंडता पर खतरा आना स्वाभाविक है। सम्पूर्ण विश्व इस हिंसा की गिरफ्त में है पर भारत में इन चारों हिंसाओं नेे समय-समय पर अपना क्रूर रूप दिखाया है। यह समझने और समझाने की आवश्यकता है कि Gun is never a solution but dialogue has given solutions. Gun never gives development. Gun always gives disturbance and destroy. हिंसा समाज के भाईचारे को समाप्त कर भयग्रस्त करती है। इसलिए इस पर सोचना भी चाहिए और प्रयत्न भी करना चाहिए कि इन पर अंकुश लग सके। इस हिंसा के लिए विदेशों से पैसा आता है। इसके समर्थक राष्ट्र-हितैषी नहीं कहे जा सकते। बुद्धिजीवी व जनसामान्य वर्ग को यह समझ में आता है कि इतने वर्षों की हिंसा से आखिर मिला क्या? मैंने रायपुर, रांची, काठमांडू, मुजफ्फरपुर, असम और हैदराबाद की हिंसाओं को लेकर कहा कि, आपको पचास सालों का मूल्यांकन करना चाहिए कि आपने क्या खोया और क्या पाया। लोगों को जीवन मिला या मौत मिली। इससे शिक्षा बढ़ी या अशिक्षा आई, रोजगार बढ़ा या बेरोजगारी आई, विकास हुआ या विनाश हुआ, जैसे तमाम प्रश्न हैं। हमने सभी धर्मों, जातियों व दलों के लोगों से सम्पर्क किया। यह सम्पूर्ण भारत की पीड़ा और उसका संकट है। इसलिए लोग अपने धर्म, दल, जाति आदि से ऊपर उठ कर इस पर ध्यान दें तो इसका हल निकाल कर देश को इससे मुक्त किया जा सकता है।
क्या मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की ओर से कुछ ऐसा ही रास्ता निकालने भी कोशिश की जा रही है?
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने आतंकवाद की कठोर निंदा की है। एक मूवमेंट के तौर पर यह २४ दिसंबर २००२ को शुरु हुआ। देश का अच्छा सोचने वाले सारे लोग इससे जुड़े। इस्लाम में शिया मत के, सुन्नियों में वहाबी मत के तथा कई दरगाहों के प्रमुख भी आए थे। उसमें मौलाना वहीदुद्दीन और सुदर्शन जी के भाषण प्रमुख थे। मुरली मनोहर जोशी थे तथा संघ के कई बड़े पदाधिकारी थे। साथ ही सिख मत और जैन मत के भी प्रभावी लोग मौजूद थे। उसमें १४-१५ राज्यों के लोग उपस्थित थे। इसमें अरब की गुलामी नहीं है बल्कि अपने-अपने वतन से मोहब्बत का संदेश भी है। इस्लाम में हिंसा व कट्टरता की बजाय अहिंसा, अमन, शांति व भाईचारे की बात है। इस चुनौती को स्वीकार कर परिवर्तन लाना चाहिए। जैसे सनातन परंपरा में कभी बलि प्रथा, दहेज, बाल विवाह, स्त्री अशिक्षा जैसी कुरीतियां थीं। इनके खिलाफ आवाज उठी तो सनातन धर्म समाप्त नहीं हुआ बल्कि और मजबूत हुआ। उसका सौंदर्य बढ़ा। लोगों की निष्ठा व विश्वास बढ़ा। इसलिए मुस्लिम समुदाय को इस पर विचार करना चाहिए। आज भारत के कश्मीर से लेकर केरल तक तथा गुजरात से लेकर मणिपुर- त्रिपुरा तक लगभग सभी राज्यों में यह संगठन कार्य कर रहा है। प्रांतों में जिला इकाइयां भी गठित भी गई हैं। लगभग सवा तीन सौ जिलों में इनकी गतिविधियां हैं जिनमें लगभग २०० इकाइयां गठित की गई हैं। केंद्रीय प्रतिनिधि सभा में लगभग ६०० सदस्य हैं। आतंकवाद के प्रति इस संस्था का नजरिया है कि यह ‘जिहाद’ यानी Purification नहीं बल्कि फसाद है। २००८ के मुंबई हमले के समय इन्होंने कहा था कि आतंकवाद जड़ से खत्म होना चाहिए। इस संस्था ने मुंबई के ताज होटल तक एक तिरंगा यात्रा भी की थी। देश के लगभग हर हिस्से से हजारों मुसलमान इसमें शामिल हुए थे। इस प्रकार मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने अपनी पहचान बनाई। अभी-अभी ९ अगस्त को कांग्रेस के द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन वाले दिन राष्ट्रीय अखंडता के लिए एक कार्यक्रम किया गया। ज्ञात हो कि १९४७ तक कांग्रेस पार्टी नहीं बल्कि एक फ्रीडम मूवमेंट था इसीलिए लोग उसके साथ जुड़े थे। यदि लोग उस समय की कांग्रेस को राजनीतिक पार्टी मानते हैं तो वे भूल करते हैं। १९४७ के बाद कांग्रेस पार्टी में तब्दील हुई है। यह देश के लिए और स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण हुआ।
इसी प्रकार ९ अगस्त को मुस्लिम मंच ने कश्मीर घाटी में एक बड़ा कार्यक्रम किया। कुपवाड़ा में हुए उस सम्मेलन में कुछ मांगें रखी गईं- पहली मांग यह थी कि पाक अधिकृत कश्मीर को खाली कराया जाए। राज्य तथा केंद्र सरकार इस दिशा में पहल करें। साथ ही यह कहा गया कि पाक अधिकृत हिस्से की २४ विधान सभा तथा ६ विधान परिषद सीटें भी भरी जानी चाहिए। पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया जाना चाहिए कि वह सीमाओं पर गोलाबारी और आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाए तथा एक अच्छा और सभ्य पड़ोसी बने। साथ ही कश्मीर में गोलीबारी, पत्थरबाजी और पाकिस्तानी झंडे जैसी चीजें न इस्तेमाल की जाएं बल्कि वहां तालीम पर जोर दिया जाए।
क्या मेनस्ट्रीम मीडिया में इसकी कुछ न्यूज आई?
मेनस्ट्रीम मीडिया को ये सब बातें समझ में नहीं आतीं, अगर कोई गौरक्षक कुछ कह दें तो वह समझ में आ जाता है। सार्थक योजनाएं उसे कम समझ में आती हैं। आया कुछ अखबारों में? सोशल मीडिया में इसकी काफी चर्चा चल रही है। कुछ चैनलों ने भी इसे दिखाया है। १४ अगस्त को वहां पर सैकड़ों जगहों पर मुसलमानों ने पाकिस्तान का झंडा जला कर यह बताया कि भारत हमारा देश है। साथ ही अलगाववादी नेताओं को लम्बे समय के लिए जेल में डाला जाए ताकि उनके द्वारा फैलाई जा रही हिंसा पर लगाम कसा जा सके । पहली बार ऐसा हुआ कि पाकिस्तान के खिलाफ सैकड़ों स्थानों पर लाखोंे मुसलमान सामने आए तथा अलगाववाद की आलोचना की। मुझे लगता है कि इस मूवमेंट से कश्मीर के विषय भी बदलेंगे तथा देश के विषय भी बदलेंगे। देश भी एकता व अखंडता के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी यह एक बड़ी और व्यापक पहल है।
कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान प्रायोजित कहा जा सकता है। पर देश के अन्य भागों में मुसलमानों द्वारा जो विरोध प्रदर्शन होते हैं उसके लिए आपकी संस्था क्या कर रही है?
आजादी के ७० साल बाद भी जिस इलाके में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है, वह मिनी पाकिस्तान बोला जाता है। मुस्लिम समाज के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। आखिर मुस्लिम हमेशा कहते हैं कि हम हिंदुस्तानी थे, हिंदुस्तानी हैं तथा हिंदुस्तानी रहेंगे तो उनका मोहल्ला मिनी पाकिस्तान क्यों कहा जाता है? आपने इसका विरोध क्यों नहीं किया, एफआइआर क्यों नहीं किया। आपने इसके खिलाफ फतवा क्यों नहीं दिया कि इसे कोई भी मिनी पाकिस्तान नहीं कहेगा। मुसलमानो को बड़े पैमाने पर जगह-जगह इसका विरोध करना चाहिए कि हमारा मोहल्ला मिनी पाकिस्तान नहीं है। इसी तरह १५ अगस्त व २६ जनवरी आते हैं। गली मुहल्ले, स्कूल-कालेज में तिरंगा फहराना, जन-गण-मन का गान करना या वंदे मातरम् गाना तथा हर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को बिना किसी जातिगत भेदभाव किए श्रद्धांजलि देना। पर मदरसे इनसे दूर रहते थे। साठ-पैंसठ सालों तक देश में कांग्रेस का शासन रहा या देश के अलग-अलग हिस्सों में जितने भी तथाकथित मुस्लिम प्रेमी लोग रहे उन्होंने कभी विरोध नहीं किया। ये सब मदरसों को राष्ट्रीयता के साथ जोड़ नहीं सके। पर जैसे ही मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने एलान किया कि तिरंगा लहराएंगे, राष्ट्रगीत गांएगे और अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करेंगे; मदरसों में राष्ट्रगान का पाठ शुरू किया जाने लगा।
अब तो यह आंदोलन का रूप अख्तियार कर चुका है कि हम अरब देश के गुलाम नहीं हैं। हर मुस्लिम का अपना-अपना नेशनलिज्म है। कुरान शरीफ में नेशनलिज्म के लिए एक पंक्ति कही गई है – हुब्बल वतने निसकुल ईमान। अर्थात् जिस वतन में तू है उसकी रक्षा करना, उससे प्रेम करना और उस पर कुर्बान होना तेरा ईमान है जिससे जन्नत मिलेगी। अगर तू नहीं करता तो बेईमान है। परंतु क्योंकि इस्लाम का उदय अरब से हुआ इसलिए उसके मुख्य देवतीर्थ मक्का शरीफ और मदीना शरीफ उसी देश में हैं। और स्वयं मुहम्मद साहब कभी अरब की भूमि से बाहर गए नहीं। इसलिए उनके फालोवर्स ने इस्लाम यानी अरब, तीर्थ यानी मक्का शरीफ और मदीना शरीफ माना, साथ ही कोशिश की कि वे अपने-अपने देश का नेशनलिज्म नकार दें। परंतु समय के साथ धीरे-धीरे तुर्कीस्तान, ईरान, इराक आदि कई देशों में बदलाव हुए। पर भारत में तो यहां तक स्थिति आई कि मुहम्मद साहब के नाम पर ईद आ गई; जबकि वहां पर जन्मदिन मनाने की परंपरा थी। ईद का जन्मदाता भारत का मुसलमान है। दरगाह के साथ भी ऐसा ही है। कट्टरपंथियों ने आरोप लगाया कि यह इस्लाम का सनातनीकरण व भारतीयकरण है। इसलिए कट्टरपंथी वहाबी इसे कुफ्र मानते हैं। वे दरगाह जाना पसंद नहीं करते।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का आंदोलन धीरे-धीरे राष्ट्रव्यापी होता जाएगा। प्रांरभिक चरण का पहला कदम १४ अगस्त को रखा गया। भारतीय, वैश्विक या इस्लामिक इतिहास में पहली बार भारत के मुस्लमानों ने पाकिस्तान का विरोध किया। पहली बार खुल कर एंटी-पाकिस्तान मूवमेंट शुरू हो रहा है; जबकि अभी तक प्रो- पाकिस्तान एलीमेंट देखने को मिल रहा है। पिछले दिनों पाकिस्तान के साथ मैच के दौरान भी ऐसा ही हुआ। पर इतना जरूर था कि आज से ४० साल पहले जितना एलीमेंट था, उसमें जरूर कभी आई है। धीरे-धीरे यह परिवर्तन होगा। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच राष्ट्रवाद और सुधारवाद को स्थापित करेगा।
मुस्लिमों की आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रवाद की ओर पूरी तरह आकृष्ट करने के लिए क्या कर रहे हैं?
केवल भारत ही नहीं, बल्कि मैं बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुसलमानों से भी कहता हूं कि १९४७ से पहले आप भारतीय थे। किसी की भी आइडेंटिटी, कास्ट, रिलीजन या पार्टी से तय नहीं होती बल्कि उसकी नेशनलिटी से तय होती है। राष्ट्र के साथ ही लोगों की आइडेंटिटी बदल जाती है। इसलिए जो लोग कहते हैं कि इस्लाम में नेशनलिज्म के लिए कोई जगह नहीं है वे लोग खुदा के प्रति भी बेईमान हैं। ईरान का आदमी मुसलमान नहीं बल्कि ईरानी कहा जाता है। पाकिस्तान का आदमी भी मुसलमान की बजाय पाकिस्तानी कहलाता है। अगर अरब ने हिंदू शब्द दिया तो इसलिए क्योंकि वे लोग इस जगह को हिंदू कहते थे। इसलिए इनको यह बात समझनी चाहिए और धीरे-धीरे समझ में आ जाएगी। लेकिन थोड़ा कठिन है क्योंकि इनमें कट्टरता बहुत है।
क्या कार्य करते समय इस तरह की कट्टरता भी कुछ घटनाएं आपके सामने भी आई हैं?
शुरुआत से ही कश्मीर के मुसलमानों की कट्टरता के खिलाफ मैं खुल कर बोलता था इसलिए तीन बार आतंकवादियों ने मेरा अपहरण करने की कोशिश की। एक बार कश्मीर घाटी में, जबकि दो बार जम्मू क्षेत्र में। पर वे सफल नहीं हो पाए। अगर सफल हो जाते तो हम आज यहां नहीं होते। जब हमने देशभर के मुसलमानों के साथ सम्पर्क शुरू किया तो कांग्रेसी सरकारों ने इसे भगवा आतंकी कहना शुरू किया। जबकि आप यह समझ लीजिए कि किसी हिंदू या भगवा रंग को आतंकी कहना सूर्य को गाली देने के बराबर है। परंतु उन्होंने सोचा कि शायद वे उसमें सफल हो जाएंगे। फिर भी हम हजारों-लाखों मुसलमानों को राष्ट्रवाद के ध्वज तले लाए। बाकी मुसलमानों ने मेरे खिलाफ कोई हिंसा नहीं की बल्कि उन्होंने सरकारों की मंशा को रिजेक्ट किया। जब सीबीआई मुझे पूछताछ के लिए बुलाया और मैं ६ घंटे तक उनके साथ रहा तो विश्व और भारत के इतिहास की एकमात्र अनोखी घटना हुई कि सीबीआई आफिस के बाहर सैकड़ों हिंदू और मुसलमान अपने-अपने मतानुसार प्रार्थना करे रहे थे। और हमें साम्प्रदायिक कहा जाता है। उसमें उस समय की भारत सरकार लिप्त थी और वे दल लिप्त थे जिन्हें मुसलमान वोट देते हैं। और हम वे थे जिनसे मुसलमान नफरत करता है। lesson for every secular. साथ ही बहुत सारे मुस्लिम संगठन संघ के खिलाफ मोर्चा भी निकाल रहे थे कि तमाम मुस्लिम दरगाहों की हिंसक घटनाओं के पीछे संघ था। पर वे सभी कट्टरपंथी ताकतें असफल हुईं। इनकी कट्टरता भी बड़ी अजीब तरह की है। जैसे कि औवेसी कहता है कि हमें २५ मिनट दे दिए जाएं तो हम पूरे हिंदुओं को समाप्त कर देंगे। एक पालिटिकल हस्ती द्वारा दहशतगर्दी की बात करना इस्लाम के नियमों के विरुद्ध है। On the name of BHARAT भी यह एक धब्बा है। इनके अगुआ उकसाने व भड़काने की कोशिश करते हैं। इसका ताजा उदाहरण हामिद अंसारी हैं। १० वर्षों तक उपराष्ट्रपति पद पर रहने पर वे मॉडल ऑफ सेक्युलरिज्म थे पर उतरते ही वे मॉडल ऍाफ फैनेटिसिज्म हो गए। पहले वे १२६ करोड़ भारतीयों में से एक थे। पर पद से उतरते ही उन्होंने अपने आपको १७-१८ करोड़ में समेट लिया। पहले वे सब दलों के लिए समान थे पर उतरते ही केवल कांग्रेसी हो गए। उनके अनुसार भारत में आज केवल मुसलमान असुरक्षित हैं। मजेदार बात है कि उनके समर्थन में न तो कोई दल आया न कोई संस्थान। कोई भी व्यक्ति उनके पक्ष में नहीं आया क्योंकि उनका भाषण पूर्णतया असत्य से भरा था। साथ ही वे आमिर खान की स्थिति देख चुके थे। ऐेसे कट्टरपंथी जेहादी लोगों को लगता है कि भारत रहने लायक जगह नहीं है, असुरक्षित है। तो वे बताएं कि दुनिया का कौन सा देश है जो मुसलमानों के लिए भारत से ज्यादा सुरक्षित है? वे वहां चले जाएं। साथ ही अन्य मुसलमान जिन्हें लगता है कि वे यहां असुरक्षित हैं, वे भी चले जाएं। उनसे हमारी कोई शत्रुता नहीं है। वे जहां चाहें जा सकते हैं ताकि वे उस जगह पर अपना जीवन शांति व सुरक्षा में बिताएं। परंतु करोड़ों मुसलमानों ने बता दिया कि ये कट्टरपंथी गलत हैं। इसलिए उन्हें समझना चाहिए कि इस देश का मुसलमान उनके विरोध में एकजुट हो रहा है। आज इस्लाम पंथियों के सामने यह बात बड़ी हो गई हैं कि उन्हें हिंसा व कट्टरता चाहिए या भाईचारा, प्रेम, सौहार्द और शांति। उनको शिक्षा चाहिए या अशिक्षा और जहालत की जिंदगी। रोल मॉडल अब्दुल कलाम हैं, हमीद किदवई हैं, मोहम्मद बिन छागला हैं, अशफाक उल्ला हैं, बेगम हजरत महल हैं और शिवाजी को औंरगजेब की जेल से निकालने वाला मदारी, बाबर के खिलाफ सांगा के पक्ष से लड़ने वाला हसन खां, रसखान, कबीर, जायसी चाहिए, दारा शिकोह चाहिए या फिर कट्टरपंथ, हिंसा, विदेशियत वाली बात चाहिए जिसमें गोरी, गजनी, बाबर, औरंगजेब या कुछ-कुछ ओवैसी और हामिद अंसारी भी हैं। इशरत जहां, अफजल गुरु या बुरहान वानी है। कुछ साल पहले तक रमजान में दी जाने वाली फांसी की सजा आगे सरका दी जाती थी, रमजान यानी कोई हिंसा नहीं, कोई द्वेष नहीं। पर कश्मीर में रमजान के महीने में मस्जिद में कत्लेआम किया गया। उन्होंने रमजान को भी शर्मसार किया। उसी समय एक आतंकवादी मारा गया तो लोग उसके पक्ष में खड़े हो गए। मैं साफ-साफ बताता हूं कि आप रोल मॉडल के तौर पर किसे चाहते हैं? धीरे-धीरे मुस्लिम युवा को समझ में आने लगा है।
इस्लाम की कुरीतियों के खिलाफ कोई आवाज उठाता है तो उसके खिलाफ फतवे जारी कर दिए जाते हैं। क्या दोबारा उनका बे्रेनवाश नहीं हो जाएगा?
फतवों की आज सुनता कौन है? उन्होंने ड्रेस पर फतवे दिए और आप देखिए कि भारत में मुस्लिम महिलाएं भी खुलेआम घूमती हैं। किसी ने खिलाफत करके या डांट कर रोका नहीं। मौलवियों और इमामों के फतवों का आज मुसलमानों द्वारा ही विरोध हो रहा है। उनकी स्वीकार्यता घटती चली जा रही है। कोई परवाह ही नहीं करता। उन्होंने बहुत कोशिश की ट्रिपल तलाक को स्थापित करने की कि यह इस्लामिक ट्रेडिशन है। पर वास्तव में यह इस्लामिक ट्रेडिशन नहीं है। यह तो इस्लाम की गंदगी है क्योंकि कुरान शरीफ सिम्पल तलाक के बारे में कहता है कि यह एक अपराध है। कुरान शरीफ कहता है कि यह खुदा को नापसंद है तथा इससे सदा बचो। ट्रिपल तलाक तो और बड़ा गुनाह है॥अधिक शादियां, अधिक संतान, ट्रिपल तलाक, हलाला आदि के खिलाफ महिलाओं ने बगावत की। अपनी परंपराओं में जब उन्हें न्याय नहीं मिला तो अखिरकार वे न्यायालय गईं। उनके कोर्ट में जाने के बाद देश भर में एक बड़ी बहस हुई और धीरे-धीरे कट्टरपंथियों को मानना पड़ा कि यह इस्लामिक नहीं है। शुरू में कहा कि यह शरिया में दखल है। लेकिन जब ढूंढने चले तो पता चला कि यह तो शरिया में है ही नहीं। यह मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान की रक्षा का आंदोलन था। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने हजारों सभाएं कर इसका सच्चा रूप सामने लाने का प्रयास किया जो एक अमानवीय व राक्षसी स्वरूप बन गया था। उस पर चोट भी की। सुप्रीम कोर्ट अलगाववादियों और धमकियां देने वालों के सामने नहीं झुकेगा तथा ८-९ करोड़ भारतीय मुस्लिम महिलाओं को न्याय देगा। भारतीय संविधान हर महिला को भाषा, जाति, प्रांत और धर्म से ऊपर उठ कर एक महिला मानता है। इसलिए संविधान का कमिटमेंट है, हर हाल में नारी के सम्मान को बनाए रखना। शाहबानो प्रकरण में जब मुस्लिम मौलानाओं ने न्याय नहीं दिया तो वह सुप्रीम कोर्ट गईं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि उसे कुछ रुपए प्रति महीने मेहेर के तौर पर दिए जाएं। पर उसके पति ने, जो कि एक काफी पैसे वाला व्यक्ति था, इसे इस्लामिक मुद्दा बना लिया। दुर्भाग्य की बात यह है कि जिस लोकतंत्र, संविधान का सम्मान करना चाहिए कांग्रेस ने उसकी धज्जियां उड़ाईं। उसने अपने बहुमत के बल पर न्याय प्रक्रिया का गला घोंट दिया। इतना ही नहीं, इसके द्वारा करोड़ों महिलाओं को जो न्याय व सम्मान मिल रहा था, उसे ठुकरा कर उन्हें अपमान, पीड़ा व अत्याचार के दलदल में धकेल दिया।
उसी प्रकार १९७५ में भी कांग्रेस ने लोकतंत्र का गला घोंटा और आपातकाल लगाया। उस समय उसका सबसे ज्यादा विरोध आर.एस.एस. ने किया तथा उसके हजारों लोग जेलों में ठूंस गए। उसी प्रकार महिला स्वतंत्रता व अधिकारों का गला घोंटने का कार्य राजीव गांधी की सरकार ने शाहबानो प्रकरण में किया। अब जाकर मुस्लिम महिलाओं को लगने लगा है कि उन्हें न्याय मिल जाएगा। इस मामले में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने अपनी राष्ट्रवादी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया तथा हजारों लोग इन कट्टरपंथियों के खिलाफ खड़ेे हुए। देश भर में प्रदर्शन हुए। तमाम मौलानाओं ने, जो इसे शरिया में हस्तक्षेप मानते थे, देश भर में विरोध प्रदर्शन किए तथा हस्ताक्षर अभियान चलाए पर उन्हें मुसलमानों का समर्थन मिला ही नहीं। ज्यादा संतानों के बारे में कुरान शरीफ में कहा गया है कि यह तुम्हें खुदा से दूर ले जाता है तथा जहालत व गरीबी में धकेल देता है। वहीं यह एक अमानवीय परंपरा है। इन सबसे छुटकारा मिलेगा। पहली बार मुस्लिम महिलाएं भारतीय महिलाओं के तौर पर खड़ी हुई हैं। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की कोशिश है कि जो तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं हैं उनके और उनके बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मौलाना, मस्जिद, समाज के धनाढ्य लोग तथा संस्थाए आगे आएं ताकि वे दर-दर न भटकें तथा बच्चों को सुंदर भविष्य मिले। साथ ही मेरी भारत सरकार से अपील है कि केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि हर समाज की ऐसी महिलाओं और उनके बच्चों की बेहतरी के लिए जिला स्तर पर कमेटियां बनाएं तथा उन्हें सहयोग दिया जाए। शोषित- पीड़ित १६००० महिलाओं को भगवान कृष्ण ने अपना नाम दिया तथा समाज में स्थान व वैभव दिलाया। यह भारतीय नैतिक परंपरा है। वर्तमान सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट को ऐसी महिलाओं के पुनर्वास की व्यवस्था सुचारू रूप से करनी चाहिए।
जैसा कि आपने कहा कि कुरान में राष्ट्रवाद की बात कही गई है तथा तलाक का विरोध है, तो क्या यह माना जाए कि इन्हें कुरान शरीफ का पूरा ज्ञान ही नहीं है?
मैं आपको दो-तीन उदाहकरण देता हूं। कुरान शरीफ में एक स्वर्ग के पौधे का उल्लेख है, जिसे जन्नती झाड़ या ‘रेहान’ कहते हैं। उसमें कहा गया है कि यह जन्नती झाड़ हर मुस्लिम के घर में होना चाहिए। इसीलिए भारत ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग हर देश में बच्चों और बच्चियों के नाम ‘रेहान’ व ‘रेहाना’ बहुत ज्यादा संख्या में रखे जाते हैं। आखिर यह है क्या? हम बाइबल और सैय्यद की गहाराई में भी गए तो वहां उल्लेख ‘बेसल‘ आया। पर वे बोलते समय ‘स्वीट बेसल’ कहते हैं। भारत के ग्रंथों में इसका उल्लेख तुलसी के रूप में आया। जब इसके रहस्य में गए तो सब जगह समान था। ऐसा माना जाता है भूत प्रेत जिसे कुछ लोग ऊपरी हवाएं भी कहते हैं, उनसे यह बचाता है। दूसरा यह एअर प्यूरीफायर है। तीसरा यह बहुत ज्यादा औषधीय है तथा बहुत अच्छा एंटीबायोटिक है। शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालता है। इसीलिए कहा जाता है कि सुबह-शाम इसके दर्शन करो तथा अपने-अपने ढंग से इसकी पूजा करो तो यह घर को जन्नत जैसा स्वरूप देगा। आपकी आने वली पीढ़ियां हिंसक व आतंकवादी नहीं होने पाएंगी। दुनिया भर के ज्यादातर ईसाई और मुसलमान तुलसी के विषय में जानते ही नहीं अर्थात् उन्हें कुरान शरीफ और बाइबल की पूरी जानकारी ही नहीं है। उन्हें ‘रेहान‘ के विषय में बताया ही नहीं गया वरना उनके यहां भी घर-घर में तुलसी होती। जो बात खुदा ने पैगम्बर को बताई तथा उनके एकमात्र ग्रंथ में लिखी है, कट्टरपंथियों ने उसी को नकार दिया। उसका पूरा सत्य नहीं बताया बल्कि उल्टा बता दिया। इसी प्रकार पादरियों तथा बिशपों ने भी ईसाई मत के लोगों को नहीं बताया। ईसा को जब सूली पर से उतार कर दफनाया गया तो वह जगह जो थी वह सारा वन तुलसी बन था। इसीलिए प्राणायाम तथा तुलसी के वातावरण की वजह से जीसस फिर से जिंदा हो सके। उसके बाद वे कहा चले गए, पता नहीं चला। कुछ लोग कहते हैं कि वे हिमालय से आए थे, वहीं चले गए। कुरान शरीफ में ५४ पौधों के नाम हैं। कुरान शरीफ के आधार पर दुबई में बहुत बड़ी वाटिका बन रही है। उसमें रेहान की वाटिका भी है। कहते हैं कि उसमें लगभग हर प्रकार की तुलसियां लगाई गई हैं। और उस पर लिखा है- रेहान (तुलसी, बेसिल)।
ऐसे ही गाय के बारे में भी है। जब गाय पर शोध किया तो पता चला कि पूरी दुनिया के धर्म ग्रंथों में मान्यता है कि यदि मां का दूध न मिले तो वैकल्पिक तौर पर गाय का दूध सर्वोत्तम है। ईसाई, यहूदी, इस्लाम, पारसी, बौद्ध या जैन समेत हर धर्म में यह बात मिलती है। पूरी दुनिया की ९० प्रतिशत जनसंख्या गाय के दूध पर आश्रित है। सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथ पढ़े। उनमें था कि जितने भी प्राणी मल, मूत्र इत्यादि के रूप में जो कुछ बाहर निकलते हैं उसमें कुछ न कुछ विष तत्व अवश्य होता है पर गाय के शरीर से निकलने वाली चारों चीजें सिर्फ फायदे देती हैं। कुरान में सबसे बड़ा अध्याय है -सूरा-ए-बकर। अरबी, फारसी में गाय को बकर कहते हैं। उस अध्याय में तमाम बीमारियों का उपचार दिया गया है। बीमारियों के उपचार वाले अध्याय का नाम गाय के नाम पर क्यों दिया गया है! मक्का शरीफ और मदीना शरीफ में गाय का गोश्त खरीदना तथा बेचना अपराध है। उनके रसूल ने कभी गो-मांस खाया नहीं। उनकी तो सबसे प्यारी हदीस ही है कि, ‘गाय का गोश्त बीमारी है जबकि उसका दूध, दही व घी शरीर को मजबूत बनाते हैं। साथ ही आपका वह कार्य, जिससे पड़ोसी का दिल दुखे, उसे खुदा या अल्लाह कबूल नहीं करता है। अगर आपकी नमाज से पड़ोसी को तकलीफ होती है तो वह उस दिन की इबादत को खारिज कर देता है। जो व्यक्ति गाय का दिल दुखा रहा है या लोगों का दिल दुखाता है, वह जन्नत तो जा ही नहीं सकता है। दुनिया की किसी भी मस्जिद या दरगाह में गाय भी कुर्बानी नहीं है।
ईसाइयत की ही बात करें तो जेरुशलम के राजा हेरोद की गौशाला पूरे यूरोप में सबसे बड़ी थी। उसी गौशाला में मेरी ने ईसा को जन्म दिया तथा गाय के सूखे गोबर और धास-फूस का बिछौना बना कर ईसा को लिटाया। अर्थात ईसा आए ही गौशाला में। वेटिकन सिटी हो या तमाम ईसाई फिरकों के चर्च, कहीं पर भी गाय की कुर्बानी नहीं होती है। दुनिया के किसी भी बौद्ध मंदिर में गाय की कुर्बानी नहीं की जाती। बल्कि थाईलैण्ड में गाय को अत्याचार से मुक्त कराने पर मोक्ष मिलने की परंपरा है। तो आखिर गो-वध पवित्रता और आवश्यक नियम के अंतर्गत कैसे आ गया कि मांसाहार सर्वोत्तम है! यदि पशु को मारना हमारा मानवाधिकार है तो यदि कोई पशु किसी मानव को मारता है तो हम उसे हत्यारा क्यों कहते हैं? जब अंगे्रजों ने गाय व सूअर की चर्बी इस्तेमाल की तो पूरे हिंदुस्तान के हिंदू व मुसलमान क्यों भड़के? अंग्रेजों के इतने बड़े साम्राज्य को ध्वस्त करने की मंशा के पीछे इसका ही मूल योगदान था। इससे पता लगता है कि कहीं न कहीं लोग अपने धर्म ग्रंथों से भी खिलवाड़ करते हैं। हमारे यहां नहीं है कि शाकाहार करो या मांसाहार करो। यह आदमी की गुरबत पर है। हमने उनके ग्रंथ का सत्य बताया और मानवता बताई। हमारे कार्यक्रमों में लाखों मुसलमान शिरकत करते हैं तथा संकल्प लेते हैं कि वे गोवध नहीं करेंगे बल्कि उनका पालन करेंगे। लाखों मुसलमानों और ईसाइयों के घरों में तुलसी विराजमान हो गई क्योंकि यह उनकी ‘स्वीट बेसिल’ है, रेहान है। इसका अर्थ है कि यदि अंधकार व गलत को दूर करें तथा प्रकाश व सत्य को बताएं तो कट्टरता और हिंसा खत्म की जा सकती है। लोग कहते हैं कि, ‘क्या आप जबरदस्ती करेंगे?’ हमारा कहना है कि ‘बिल्कुल नहीं। उन्हें सही समझाओ न!’ आदमी के अंदर इतना विवेक तो होना ही चाहिए कि समझें पर उसके साथ जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। परंतु सत्य को छुपा लेना पाप है। सत्य को असत्य के रूप में बताना राक्षसी कार्य है। तुलसी और गाय किसी धर्म विशेष के प्रतीक नहीं बल्कि मानव कल्याण के साधन हैं।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के साथ ज्यादा से ज्यादा मुसलमान जुड़ेंे, इस दिशा में आप की संस्था द्वारा क्या प्रयत्न किए जा रहे हैं?
इसके अंतर्गत हम वर्षभर कार्य करते रहते हैं। इसमें सबसे बड़ा कार्यक्रम है १५ अगस्त व २६ जनवरी मनाना। दूसरा प्रयास यह कर रहे हैं कि मदरसों या जहां-जहां धार्मिक शिक्षा दी जा रही है, वहां-वहां शिक्षा भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराई जाए तथा साथ ही साथ आधुनिक शिक्षा भी दी जाए ताकि धार्मिक शिक्षा से धार्मिक कर्मकांड किए जा सकें जबकि आधुनिक शिक्षा द्वारा रोजगार मिल सके। तीसरा प्रयास है कि तहजीब तथा देशप्रेम की शिक्षा दी जा सके ताकि वह निःशंक राष्ट्रवादी बने। फिर वह पाकिस्तानी झंडा नहीं उठाएगा। इसे व्यापक सफलता मिल रही है तथा लाखों लोग जुड़ रहे हैं। सबसे सुखद आश्चर्य यह है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की गतिविधियों को किसी ने भी नहीं कहा कि वे गलत है। उनको लगता है कि देखिए, एक हिंदू हमें इस्लाम के बारे में समझा रहा है और हमारी अच्छी चीजें हमें बता रहा है। सबसे बड़ी बात कि वह संघ का आदमी है।
आपके मुस्लिम कार्यकर्ताओं की बातों का ज्यादा प्रभाव पड़ता है या आपकी बातों का?
नि:संदेह उनका ज्यादा प्रभाव पड़ता है और ज्यादातर कार्य हमारे मुस्लिम स्वयंसेवक ही करते हैं। अगर वर्षभर में हमारे २००० कार्यक्रम होते है तो मैं तो मात्र ४०-५० कार्यक्रमों में ही पहुंच पाता हूं। बाकी के ९०-९५% कार्यक्रमों में मुसलमान ही जाते हैं। उन्हें भी लगता है कि हमारे बीच का आदमी है। ऐसा नहीं है इस तरह के कार्यक्रम केन्द्र में भाजपानीत सरकार आने के बाद ही हो रहे हैं बल्कि ये कार्यक्रम काफी पहले से हो रहे हैं। पहले की केंद्र सरकारों ने आर.एस.एस. को कुचलने की बहुत कोशिश की, उस समय भी हमसे मुसलमान जुड़ रहे थे। आज भी जुड़ रहे हैं। सरकारें तो बदलती रहती हैं पर इस कारण हमारे कार्य की गति नहीं बदलती है। हमने जिस समय ट्रिपल तलाक का मुद्दा उठाया उसी समय भाग्यवश उत्तर प्रदेश का चुनाव आ गया। चूंकि संघ हमेशा भाजपा के साथ रहा है इसलिए मुस्लिम महिलाएं बीजेपी के पक्ष में काफी संख्या में खुल कर आईं। पुरुष ज्यादा कट्टरपंथी होते हैं, महिलाओं के बनिस्बत। कट्टरपंथी उनसे दूसरों को गाली-गलौज़ करवाते हैं। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को बाकी दलों पर भरीसा नहीं था, इसलिए वहां भाजपा का प्रतिशत बढ़ा। प्रदेश भर के मुसलमानों में संदेश गया कि शकील और सकीना घर से एक साथ निकले। शकील गया साइकिल पर और सकीना गई कमल के फूल के पास। ऐसे तमाम मैसेज मुसलमानों के बीच बहुत तेजी से चले।
राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम समाज नेतृत्व विहीन क्यों है?
पूरा देश लोकतांत्रिक है, इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर किसी धर्म का, जाति का एक नेता नहीं है। ईसाइयों, जैनियों या बौद्धों का नेता कौन है? यहां मल्टीलीडरशिप है। सभी जातियों एवं धर्मों के साथ ऐसा ही है। कभी-कभी कोई आंदोलन वगैरह होता है तो एकाध लोग चमक जाते हैं। परंतु सबसे बड़ी बात है कि लीडरशिप इक्वलिटी का है। इसलिए यदि कोई किसी धर्म, जाति, भाषा या प्रदेश के लिए किसी खास लीडरशिप की बात करें तो वह भारत के स्ट्रक्चर मोड ऑफ डेमोक्रेसी के इतर बात कर रहा है। वन मैन लीडरशिप डेमोक्रेसी के लिए खतरनाक भी है। क्योंकि तानाशाही विनाश की तरफ ले जाती है। कोई भी लीडरशिप हो, पर वह कंस्ट्रक्टिव हो, देश को आगे बढ़ाए, लोगों को लड़वाए नहीं। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रति मुसलमानों को लगने लगा है कि ये लोग हमारे समाज की भलाई के लिए सोचते हैं इसलिए वे हमारे कार्यक्रमों से जुड़ते रहते हैं। मीडिया के अनुसार हमारे कार्यकर्ता कद्दावर नेता नही हैं पर जमीन पर वे काफी मजबूत हैं।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रचारों के सामूहिक परिणामों पर प्रकाश डालिए।
सबसे बड़ी बात, सुधारवाद का एक आंदोलन खड़ा हुआ है। मुस्लिम समाज ने कुछ प्रश्नों के उत्तर तथा कुछ समस्याओं के समाधान देने की कोशिश की है। जो कट्टरता, आंतकवाद व हिंसा की बेड़ियां हैं उनके खिलाफ कहीं न कहीं, देशप्रेम, मानवता, भाईचारे इत्यादि की भावना जगनी शुरू हुई है। धीरे-धीरे यही प्रवृत्ति ताकतवर होती चली जाएगी। इन सब चीजों के लिए हम खूब अध्ययन करते हैं। आज का मुसलमान ओवैसी, हामिद अंसारी या मौलानाओं से उतना नहीं डरता है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी अब उनके बीच मजबूत दखल रखता है। एजेंडे तय होते हैं तथा उन पर बड़ी बहस होती है। राम मंदिर को लेकर भी मुस्लिम मंच ने पहल की है। हमने सच का पता लगाने की कोशिश की। पहले पता लगा की बाबर विदेशी था। फिर पता चला कि मंगोल था। आगे पता चला कि वह आक्रांता था। यहां के लोगों को गुलाम बनाने आया था। हिंदुस्थानी मुसलमानों में और उसमें कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता था। उसने राम मंदिर को तोड़ा। मस्जिद बनाने का नियम है कि वह जमीन दान में मिली होनी चाहिए या पैसे से खरीदी होनी चाहिए। राम मंदिर की जगह उन्हें दान में नहीं मिली थी, न जमीन को उन्होंने खरीदा नहीं था। मस्जिद का नाम इंसान के नाम पर नहीं बल्कि खुदा के नाम पर रक्खा जाना चाहिए। उस मस्जिद का नाम बाबर के नाम पर रखा गया। उसके मूल में जाइए तो वह जगह किसकी है? राम की है। राम कौन है? राम ही खुदा है और खुदा ही राम है। वे कहते हैं कि सब कुछ खुदा से है। भारतीय संस्कृति कहती है कि सबकुछ राम से ही है। किसी दूसरे के पूजा स्थल को तोड़ना इस्लाम में घोर अपराध माना गया है। इस आधार पर देखें तो बाबर ने तो इस्लाम की भी धज्जियां उड़ा दीं। वह एक अच्छा मुसलमान नहीं था। वह तो एक क्रूर शासक था। उस जगह की खुदाई में भी यह स्पष्ट हो गया कि वह सनातन धर्म के मानक के हिसाब से बना हुआ धर्मस्थल है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है? इसके अलावा पता किया कि अयोध्या में और मस्जिदें हैं कि नहीं? पता चला कि वहां २२-२० मस्जिदें हैं। १९९२ के इतने बड़े आंदोलन में जब कि लाखों लोग जुटे हुए थे, लोगों ने किसी और मस्जिद को हानि नहीं पहुंचार्ई। इसलिए इस आंदोलन ‘एंटी इस्लाम एंटी मुस्लिम’ आदि कहना मूर्खता है। वहां कई मुसलमानों से पूछा कि आप या आपके बजुर्ग कभी इस मस्जिद में नमाज पढ़ने गए तो उनका जवाब था कि कभी नहीं क्योंकि यह तो कुफ्र है। उस मस्जिद में खुदा की इबादत ही नहीं की जाती थी। पहले भी कई मुसलमान अपने-अपने स्तर पर यह कह रहे थे। लेकिन खुल कर बोलने से डरते थे पर अब वे लोग भी खुल कर सामने आ रहे हैं। जिन मुस्लिम समूहों में कोटर्र् में हलफनामा दिया है कि यदि खुदाई में किसी अन्य धर्म के धर्मस्थल के प्रमाण मिलते हैं तो हम अपना दावा वापस ले लेंगे, मैं उन समूहों से अनुरोध करता हूं कि वे समूह बना कर अयोध्या पहुंचें तथा उन्हें मंदिर होने के प्रमाण दिखाए जाएं। वह पूरा मूवमेंट एक राक्षस, आक्रांता, विदेशी व अत्याचारी के क्रिया-कलाप के विरुद्ध था, न कि कि मुसलमानों के खिलाफ।

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