बोलती गुफा

जंगल में एक बूढ़ा शेर मारा-मारा फिर रहा था. बुढ़ापे के कारण उसका शरीर कमज़ोर हो चूका था और यही वजह थी कि कई दिनों से उसे खाना भी नसीब नहीं हुआ था. बुढ़ापे के कारण वह शिकार नहीं कर पाता था. कोई भी जानवर उसके हाथ नहीं आ रहा था. छोटे-छोटे जानवर भी उसे चकमा देकर भाग जाते थे. एक बार वह भटकते-भटकते बहुत थक गया तो एक जगह पर रुककर सोचने लगा कि ऐसे कैसे काम चलेगा, क्या करूं ? किधर जाऊं? कैसे अपना पेट भरूं ? इस तरह तो मैं मर जाऊंगा.

अचानक उसकी नज़र एक गुफा पर पड़ी. उसने सोचा कि इस गुफा में कोई जंगली जानवर ज़रूर रहता होगा. मैं इस गुफा के अन्दर बैठ जाता हूं, जैसे ही वह जानवर आएगा, मैं उसे खाकर अपना पेट भर लूंगा. शेर उस गुफा के अंदर जाकर बैठ गया और अपने शिकार की प्रतीक्षा करने लगा.

दरअसल, वह गुफा एक गीदड़ की थी. गीदड़ जैसे ही अपनी गुफा की तरफ बढ़ने लगा, उसने ने गुफा के करीब शेर के पंजों के निशान देखे. उसे समझते देर नहीं लगी और वो फौरन खतरा भांप गया. उसके सामने उसकी मौत थी, लेकिन सामने संकट देखकर भी उसने अपना संयम नहीं खोया बल्कि उसकी बुद्धि तेजी से काम करने लगी कि इस शत्रु से कैसे बचा जाए ?

उसके दिमाग में नई बात आ ही गई, वह गुफा के द्वार पर खड़ा होकर बोला–‘‘ओ गुफा !’’
जब अंदर से गुफा ने कोई उत्तर न दिया, तो गीदड़ एक बार फिर बोला, ‘‘सुन गुफा ! तेरी मेरी यह संधि है कि मैं बाहर से आऊंगा, तो तेरा नाम लेकर बुलाऊंगा, जिस दिन तुम मेरी बात का उत्तर नहीं दोगी मैं तुझे छोड़कर किसी दूसरी गुफा में रहने चला जाऊंगा.’’
जवाब न मिलता देख गीदड़-बार-बार अपनी बात दोहराने लगा.

अन्दर बैठे शेर ने गीदड़ की यह बात सुनी, तो वह यह समझ बैठा कि गुफा गीदड़ के आने पर बोलती होगी. शेर अपनी आवाज को मधुर बनाकर बोला, ‘‘अरे आओ गीदड़ भाई… स्वागत है!’’
‘‘अरे शेर मामा,  तुम हो? बुढ़ापे में तुम्हारी बुद्धि इतना भी नहीं सोच पा रही कि गुफाएं कभी नहीं बोलतीं… कहकर वह तेजी से पलटकर भागा. शेर ने उसे पकड़ने के लिए गुफा से बाहर तो ज़रूर आया, किंतु तब तक वह गीदड़ नौ दो ग्याह हो चुका था.

शिक्षा:  मुसीबत के समय में भी संयम नहीं खोना चाहिए और अपनी बुद्धि का दामन नहीं छोड़ना चाहिए.

 

Leave a Reply