भारतीय जीवनशैली और स्मार्ट सिटी

वर्तमान शहरों की मूलभूत व्यवस्थाएं मजबूत करना, चौड़ी सड़कें, सुरक्षित और खाली फुटपाथ, मानव सुलभ मार्गदर्शक चिह्न, उचित दूरी पर स्त्री-पुरुष शौचालय, खेल के मैदान, ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन और बेहतर सूचना प्रौद्योगिकी संजाल जैसी अनेक व्यवस्थाओं से नागरिकों की जीवन शैली को बेहतर बनाना ही स्मार्ट शहरों की परिकल्पना है। भारतीयों को चाहिए भारतीय संस्कृति और परंपरा को समा लेने वाली स्मार्ट जीवन शैली।
किसी बहुत बड़ी जनसंख्या के सामने अगर कोई बात रखनी हो, प्रेरणा देना हो, स्मरण में रखवाना हो तो कुछ प्रतीकों का निर्माण करना पड़ता है। दुनियाभर में तेजी से बढ़ते शहरीकरण को देखते हुए भारत में भी इसी प्रकार की शुरुआत की गई है। सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से भारत के कुछ वर्तमान शहरों को विकसित करने की योजना सरकार ने बनाई है। देश भर के शहर अधिक तेज, अधिक सक्षम और आर्थिक दृष्टि से संपन्न हों, इस बात को ध्यान में रख कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्मार्ट सिटी’ योजना की घोषणा की है। अधिकतर लोगों को इसका अर्थ समझ में आ सके इसी लिहाज़ से स्मार्ट शब्द का प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
प्रधान मंत्री द्वारा शहरी विकास के संदर्भ में स्मार्ट शब्द का प्रयोग किया गया है। इसीलिए इस शब्द के इर्दगिर्द एक जिज्ञासा पैदा हो गई है। देश भर के लोगों में स्मार्ट सिटी के बारे में जानने की उत्सुकता है। लेकिन इसे एक सामान्य व्याख्या में बांधना शायद मुश्किल हो। क्योंकि यह कल्पना ही समय के सापेक्ष है। वह देश, काल, परिस्थिति के हिसाब से बदलती रहती है। आज तक कई विशेषज्ञों ने अपनी तरफ से इस कल्पना को व्यक्त करने का प्रयास किया है। कुछ लोगों के अनुसार, स्मार्ट का मतलब होता है कुशल। कुछ लोगों को लगता है कि आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर कोई नई चीज बनाने का मतलब स्मार्ट होना है। कुछ लोगों के अनुसार बाहर के वातावरण के हिसाब से खुद को ढाल लेने वाली सिटी, स्मार्ट सिटी होती है, आदि।
इस संदर्भ में, भारत के वरिष्ठ और जानेमाने वास्तु विशारद श्री राहुल मेहरोत्रा द्वारा कही गई बात बिलकुल सटीक लगती है। वे कहते हैं कि सीमित समय के लिए निर्माण किया जाने वाला कुंभ मेला, स्मार्ट सिटी का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। वे यह भी कहते हैं कि टेक्नोलॉजी बैलगाड़ी में जोत कर हांकी नहीं जा सकती। कुल मिला कर, स्मार्ट सिटी एक बहुत व्यापक परिकल्पना है। अगर सद्विवेक से सम्हाली जाए तो ठीक, वरना भ्रामक भी हो सकती है। आइये, जानने की कोशिश करते हैं कि भारतीय विचारों के संदर्भ में स्मार्ट सिटी का महत्व क्या है।
शहरी व्यवस्था में अपेक्षा होती है कि अनेक सेवाओं का एकत्रित रूप से प्रभावी संचालन हो। इसमें, प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा को छोड़ दिया जाए तो देश भर के शहरों में व्यवस्थाएं आम तौर पर एक-सी होती हैं। सभी सेवाएं मानव निर्मित हैं। हर सेवा का अपना महत्व है। किसी भी शहर का भविष्य पानी के प्राकृतिक और अखंड स्रोत पर निर्भर करता है। साथ ही भूमि का प्रकार भी मायने रखता है। अगर मूलभूत सेवाएं पर्यावरण अनुकूल हों, तो शहर कई वर्षों तक टिक सकते हैं। बढ़ती जनसंख्या और शहरों के बढ़ते फैलाव के कारण तेज यातायात की आवश्यकता भी होती है। कई बार पानी के ये प्राकृतिक स्रोत कम पड़ने लगते हैं और फिर मानव निर्मित नए-नए मार्गों और सेवाओं का जन्म होता है।
स्मार्ट सिटी की परिकल्पना
सन् २००८ में आईबीएम कंपनी ने दुनियाभर की शहरी व्यवस्थाओं की खामियों को ढूंढ़ कर, दुनिया के सामने ‘स्मार्टर सिटीज’ की परिकल्पना पेश की। इसी विचार से प्रेरित होकर चीन, मध्य पूर्व और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने इस परिकल्पना पर अनुसंधान करने के लिए भरपूर धन खर्च किया। दक्षिण कोरिया ने सियोल में १५०० एकड़ दलदल क्षेत्र को सांगडो बिजनेस डिस्ट्रिक्ट में तब्दील कर दिया। यह स्मार्ट सिटी अवधारणा की सफलता का सब से बड़ा उदहारण है। दुनिया भर के देशों ने आधुनिक तकनीक की सहायता से शहरी व्यवस्थाओं को मजबूत और सक्षम बनाया। इसीलिए शहरों के आगे स्मार्ट शब्द लगाया गया है। स्मार्ट सिटी की संरचना में सूचना प्रौद्योगिकी का सब से ज्यादा महत्व है। स्मार्ट सिटी में बाकी शहरी सेवाओं को सूचना प्रौद्योगिकी आधारित बना कर, संपत्ति और बाजार के लेन-देन को सुगम बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं, दुनिया के किसी भी कोने तक उसकी जानकारी, कम से कम खर्च में पहुंचाई जा सकती है। मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखना बेहद आसान होता है जिससे व्यापारी, नागरिक और सरकार समेत सभी को आर्थिक रूप से फायदा होता है। कुल मिला कर, जब हम कोई चेक बैंक में जमा करते हैं तो रकम आने में कुछ दिन का समय लगता है, किन्तु सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से यही काम हम कुछ क्षणों में कर सकते हैं। आधुनिक तकनीक की मदद से सफलता की नई ऊंचाइयां छूने वाली दुनिया की पहली कंपनी अमेजोन है। भारत को विदेशी जीवन शैली पर आधारित स्मार्ट चेहरा नहीं चाहिए। बल्कि भारतीय विचारों पर आधारित स्मार्ट सिटीज की आवश्यकता है। भारत के वास्तु विशारदों के लिए, वर्तमान महानगरों को नई टेक्नोलॉजी पर आधारित स्मार्ट सिटीज बनाना, साथ ही भारतीय जीवन शैली पर आधारित सुविधाएं देना, सब से बड़ी चुनौती है।
देश-विदेश के स्मार्ट सिटीज का तुलनात्मक अध्ययन
आज की तारीख में सिंगापुर, बार्सिलोना, एम्स्टरडैम, लंदन, न्यूयॉर्क, टोक्यो शहर स्मार्ट माने जाते हैं। इन शहरों को आधुनिक तकनीक को अपनाने में अधिक कठिनाई नहीं हुई, क्योंकि वहां की जीवन शैली पहले से ही आधुनिक थी। भारतीय महानगरों को दुनिया की प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए नई टेक्नोलॉजी को अपनाना आवश्यक है। दूसरे देशों की तुलना में भारत के महानगरों में स्थलांतर की संख्या अधिक है। हर प्रांत में तकनीकी जानकारी, कंप्यूटर शिक्षा का स्तर, ऊर्जा, सामाजिक संरचना, प्रति व्यक्ति आय, इन सब में बहुत बड़ी विषमता है। ग्रामीण लोगों को नजदीकी शहरों में अवसर उपलब्ध कराना आवश्यक है। विकास चाहे किसी भी प्रकार का हो, सदा अपर्याप्त ही होता है। विकास का फायदा अंतिम नागरिक तक पहुंच नहीं पाता, और पहुंच भी जाए तो अधिक समय तक नहीं रहता। शहरी जीवन की यही त्रासदी है। इन परिस्थितियों में, वर्तमान महानगरों की सादगी और सहजता टिकाए रखना महत्वपूर्ण है। महिंद्रा वर्ल्ड सिटी ने जयपुर और चेन्नई के पास स्मार्ट सिटी परियोजना का काम लिया है। भारत के भावी शहर जब स्मार्ट सिटी की अवधारणा से तैयार होंगे, तभी उसके फायदे-नुकसान समझ में आएंगे। देश-विदेश के स्मार्ट शहर मानवी जीवन शैली से कितने मैत्रीपूर्ण होंगे, यह कहना मुश्किल है।
भारत के वर्तमान महानगर और उनका पुनर्विकास
आधुनिक तकनीक पूरी तरह से ऊर्जा आधारित है। भारत को सब से पहले इसी कमी को पूरा करना होगा। विकास की योजनाएं चरणबद्ध तरीके से करने के कारण या किसी और कारण से आधी-अधूरी रह जाती हैं। उनमें योजनाबद्धता नहीं होती। अतिरिक्त FSI और TDR मानदंडों के विपरीत हो तो उसे तुरंत रोक दिया जाना चाहिए, या फिर उसका उपयोग किसी नागरिक सुविधा के लिए किया जाना चाहिए। व्यापारीकरण के कारण शहरीकरण घातक हो गया है। शहर विकास नीतियों में घातक बदलावों को मंज़ूरी देने के कारण महानगरों का बहुत नुकसान हुआ है। ग्रामीण क्षेत्र में सूखा, अकाल, बिजली की कमी और बेरोजगारी के कारण भारतीय शहर महानगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। आज सभी स्तरों के नागरिकों को आकर्षित करने वाले महानगर लगभग हर राज्य में हैं। लेकिन, अनपेक्षित रूप से बड़ी संख्या में गांवों से शहरों की ओर आने वाली जनसंख्या को समाहित कर सकने वाले महानगर अब नहीं रहे हैं। यहां की नागरिक सुविधाएं पहले से रहने वाली जनसंख्या के लिए ही अपर्याप्त हैं। जिन महानगरों को लोग सब से ज्यादा पसंद कर रहे हैं वे पहले से ही खराब स्थिति में हैं। इसीलिए, ग्रामीण जनता का महानगरों की ओर पलायन रोकने का एक उपाय है कि उन्हें अपने पास के शहर में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना। भारत के महानगरों को स्मार्ट की परिभाषा के अंतर्गत लाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के साथ-साथ सीधे-सरल उपाय करना भी आवश्यक है।
स्थलांतर
बड़े शहरों की ओर स्थलांतर करने वालों में गरीब, मध्यम वर्गीय, धनाढ्य सभी वर्गों के लोग होते हैं। इन लोगों में से धनी लोग तो ऊंची रहवासी कॉलोनियों में आसानी से बस जाते हैं। वे नेताओं से, अपने धन का इस्तेमाल कर, अपने सारे काम करा लेते हैं। लेकिन आर्थिक रूप से गरीब लोग बहुत बड़ी संख्या में शहरों में आते हैं और खुली जगहों पर अपना डेरा डाल लेते हैं। महानगरों के विभिन्न राजनैतिक गुट उन्हें प्राथमिक मदद देकर अपना वोट बैंक सुनिश्चित कर लेते हैं। समय बीतने के बाद ये लोग अपने हकों की मांग करने लगते हैं और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार पनपने लगता है। लेकिन अल्पसंतोषी मध्यम वर्गीय व्यक्ति, अमीरों और गरीबों के बीच में पिस कर रह जाता है क्योंकि अनेकों कारणों से वह इन दोनों पर निर्भर है। इस विषमता को दूर करना आवश्यक है।
अनाधिकृत रहवासी इलाके
महानगरों में कई अशिक्षित समूहों का जीवन दूसरे समूहों पर निर्भर है। उनकी जीवन शैली में बदलाव आने में बहुत समय लगता है। इसलिए, महानगरों के अंतर्गत बने उपनगर, गांव की बस्तियों की तरह लगते हैं क्योंकि आर्थिक समस्या के साथ-साथ गरीबी की मानसिकता भी आती है। मुंबई में लगभग सभी उपनगरीय रेल मार्ग से सटी बस्तियां इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। मुंबई के हर उपनगर में एक छोटी धारावी बस्ती है। यह वास्तविकता शहरों का मानो अब अपरिहार्य भाग बन चुका है। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों के प्रश्न सदा से विकास के सब से जटिल प्रश्नों में से होते हैं।
अनधिकृत विक्रेता
अनधिकृत रहवासी बस्तियों में रहने वाले अनपढ़, अकुशल लोग, शहर की आधे से अधिक जगह का नियोजन स्वयं ही कर लेते हैं। इससे यातायात पर भी प्रभाव पड़ता है और शहर की सुंदरता भी नष्ट होती है। प्रशासन जितना ढीला हो, उतना ही यह समस्या जटिल बनती जाती है।
दिशाहीन पुनर्विकास
अठारहवीं शताब्दी में, अंग्रेज वास्तु-विशेषज्ञों ने पूर्णतः भारतीय शैली से ओतप्रोत इंडो सारसेनिक वास्तु-शैली से मुंबई के चेहरे को सजा दिया। यह प्राचीन विरासत आज भी मुंबई प्रशासन ने सहेज कर रखी है। लेकिन वर्तमान विकास न तो नवीनतापूर्ण है न ही नागरिक जरूरतों को पूरा करता है। ‘आम आदमी के लिए वाजिब कीमतों में घर’ जुमला अब हास्यास्पद लगने लगा है। सभी आर्थिक स्तरों के लोग जिस दिन अपना घर खरीद सकेंगे, उसी दिन सही अर्थों में घरों को वाजिब दाम वाला कहा जा सकेगा। जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए जिन मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता होती है उनकी आपूर्ति करने वाले, आधुनिक तकनीक पर आधारित भावी शहरों का निर्माण करना कठिन नहीं है। लेकिन ऐसे स्मार्ट शहरों की सभी सुविधाएं मुफ्त होंगी, इस प्रकार का एक आभासी माहौल निर्माण किया जा रहा है। इस परिस्थिति का गंभीरता से विचार करने के स्थान पर स्मार्ट सिटी के नाम से गलत परंपराएं पोषित की जा रही हैं।
स्मार्ट सिटी की अवधारणा
स्मार्ट सिटी योजना के बारे में लोगों में अब भी भ्रम की स्थिति है। इसकी जानकारी अब तक लोगों को पूरी तरह से नहीं मिली है। सामान्य नागरिकों की सहज प्रवृत्ति प्रत्यक्ष अनुभव के स्थान पर प्रतीकात्मक अनुभव को ही सच मान लेने की होती है। आम नागरिक प्रतीकात्मक रूप से दिखाए गए शहर और उस शहर के सुंदर घरों के सपनों में खो जाते हैं। सुंदरता के मानदंडों पर खरे उतरने वाले शहर भी सभी मामले में स्मार्ट होंगे यह कोई जरूरी तो नहीं है। सरकार द्वारा घोषित स्मार्ट शहरों के निर्माण का निर्णय पूरी तरह से गलत है, यह कहना तो गलत होगा; लेकिन वह अपेक्षा के अनुरूप नहीं है, यह बात तो पक्की है।
केंद्र सरकार की प्राथमिक घोषणा के अनुसार, पांच वर्षों में एक सौ नए स्मार्ट शहरों का निर्माण किया जाने वाला है। इसके लिए ९८००० करोड़ की धनराशि भी आवंटित की गई है। लेकिन यह बात मानना तो मुश्किल है कि यह कार्य इतने कम समय में पूरा नहीं हो सकेगा, इस बात का अंदाजा शासन को नहीं था। जल्द ही, नए शहरों को भूल कर, राज्यों के कुछ प्रमुख शहरों के कुछ भाग को ही स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा हुई। केंद्र, राज्य और शहर प्रशासन के बीच सामंजस्य के अभाव से भ्रम और बढ़ गया है। नागरिकों को समझना चाहिए कि ऊंची इमारतें, भव्य वातानुकूलित मॉल्स, मंहगे मोनो, मेट्रो और बुलेट ट्रेन और सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित यंत्रवत जीवन शैली के मायाजाल में रहना व्यर्थ है। वास्तव में देखा जाए तो भारतीयों को चाहिए भारतीय संस्कृति और परंपरा को समा लेने वाली स्मार्ट जीवन शैली। ऊपर लिखी गई पार्श्वभूमि से, भारतीय जीवनशैली पर आधारित भावी शहरों का वर्णन शब्दों में रखने के स्थान पर उसकी कार्य-योजना समझ लेना ज्यादा बेहतर होगा।
भारतीय जीवन शैली पर आधारित शहर
सत्रहवीं शताब्दी तक मुग़ल और हिंदू राजाओं ने निवासी राजमहल और धार्मिक स्थलों की स्थापत्य शैली से अपनी-अपनी संस्कृतियों का संरक्षण किया। अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में भी अंग्रेजों ने अनेक धार्मिक स्थल बनवाए और शहरों का विकास करते समय भी उन्होंने अधिकतर इमारतें विशुद्ध भारतीय शैली इंडोसारसेनिक में ही बनवाई। वर्तमान में महानगरों में सभी धर्मों को साथ लेकर सार्वजानिक उत्सव मनाए जा रहे हैं। उत्सव, धर्म और भावनाओं की अभिव्यक्ति के उत्कृष्ट साधन हैं और यही समाज के जागृत होने का भी लक्षण है। स्मार्ट सिटी की परिकल्पना में भारतीय संस्कृति और परंपराओं के लिए उचित स्थान होना आवश्यक है। वर्तमान व्यवस्था पर अधिक दबाव न पड़े, इसलिए उत्सव के दिनों के लिए भीड़ का प्रबंधन करा सकने वाली वैकल्पिक जगहों के लिए भी स्थान होना चाहिए। वर्तमान शहरों की मूलभूत व्यवस्थाएं मजबूत करना, चौड़ी सड़कें, सुरक्षित और खाली फुटपाथ, मानव सुलभ मार्गदर्शक चिह्न, उचित दूरी पर स्त्री-पुरुष शौचालय, खेल के मैदान, ठोस कचरे का प्रबंधन जैसी अनेक व्यवस्थाओं से नागरिकों की जीवन शैली को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। शहर साफ़ रहना तो स्मार्ट सिटी की पहली आवश्यकता है ।
नागरीकरण
कहते हैं कि विदेश के कई शहरों का ८०% नागरीकरण हो चुका है। भारत में यह आंकड़ा तीस से पैंतीस प्रतिशत है। विशेषज्ञों की राय के अनुसार २०५० तक यह आंकड़ा ५०% तक पहुंचेगा। भारत की दृष्टि से देखा जाए, तो फिलहाल जो आंकड़ा है, वही भारत के लिए सब से फायदेमंद है। शहर जितना सहज, प्राकृतिक रूप से विकसित हो उतना उस शहर का दर्जा ऊंचा माना जाता है। ग्रामीण जीवन में एक सहजता होती है जबकि शहरी जीवन में हमेशा सतर्क रहना पड़ता है। कृत्रिम जोड़तोड़ से बनाए गए आवासीय विहार, जीवन शैली को बेहतर बनाने में विफल साबित होते हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विकसित की गई मुंबई और वर्तमान की मुंबई में जो फर्क नजर आता है, वह इसी बात को साबित करता है।
प्रौद्योगिकी पर आधारित भारतीय स्मार्ट शहर
दुनिया भर के शहरों ने शहरी सुविधाओं को लेकर बड़े अनुसंधान किए और नई-नई तकनीक का उपयोग किया। लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं हुआ। सरकार के स्मार्ट सिटीज के निर्माण की घोषणा करते ही देश भर में दो सौ से भी ज्यादा स्मार्ट सिटी सलाहकार पैदा हो गए। क्या यह बात चिंताजनक नहीं लगती? ये सब अचानक कहां से आ गए? इस विषय का ज्ञान न होते हुए भी स्मार्ट सिटी की योजनाएं इन लोगों ने किस आधार पर बनाई, इसकी जांच होना आवश्यक है। स्मार्ट सिटी के विशेषज्ञ तैयार करने के बाद ही इस कार्य को शुरू करना बेहतर होगा, अन्यथा ये सारी योजना भ्रामक साबित होने में देर नहीं लगेगी। इस बात की ओर नागरिकों और सरकार को ध्यान देना चाहिए। आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने से पहले उसके फायदे-नुकसान समझ लेना आवश्यक होता है। बिना जांचे परखे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कितना घातक हो सकता है यह बात ब्लू-व्हेल गेम ने साबित कर दी है।
स्मार्ट कल्पना पर आधारित भावी शहरों का नमूना
भविष्य के स्मार्ट शहरों में इमारतें और सड़कों के साथ-साथ कंप्यूटर के नेटवर्क का भी विचार किया जाएगा। एक इमारत के लोग दूसरे स्थान के लोगों से वीडियो-कॉऩ्फ्रेंसिंग के द्वारा बात कर सकेंगे। विद्यार्थी शायद स्कूल कॉलेज न जाकर, घर पर ही शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। एक ही क्लिक पर पंखे, एसी, लाइट सब चल सकेंगे आदि। मानवी जीवन की हर घटना स्थान, समय और व्यक्ति नामक तीन सूत्रों में पिरोई होती है। आधुनिक तकनीकी युग में इन तीनों ही सूत्रों को छोड़ कर एक आभासी विश्व में ले जाने की क्षमता है।
भारतीय जीवन शैली पर आधारित भावी शहर
भारत के भावी स्मार्ट शहर, विदेशी जीवन शैली और नवीन प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं। बेहतर होगा अगर वे भारतीय जीवन शैली के अनुसार हों, साथ ही वह जीवन-अनुभवों पर आधारित हो। क्योंकि भारत के जीवनानुभव, हर प्रांत में भिन्न-भिन्न हैं। भगवान् सर्वव्यापी है इस बात पर लगभग सभी भारतीयों का विश्वास है। लेकिन भारत के भावी स्मार्ट शहर भी ईश्वर के सामान सर्वव्यापी होंगे, यह समझना गलत होगा। आने वाले कल की टेक्नोलॉजी के मामले में जागरुक होने के साथ-साथ सजग और सतर्क भी होने की आवश्यकता है। टेक्नोलॉजी से प्राप्त होने वाले परिणाम कभी-कभी अनिष्ट भी हो सकते हैं, इस बात को ध्यान में रखना आवश्यक है। मानव एक दूसरे से भावनाओं के स्थान पर यंत्रों के द्वारा जोड़ा जा रहा है। कहना गलत न होगा कि कम से कम भारत जैसे देश तो आधुनिक तकनीक का अत्यधिक उपयोग टाल सकते हैं। भावी स्मार्ट शहरों की संरचना भारतीय जीवन शैली पर आधारित बनाई जा सकती है। अगर आने वाली अत्याधुनिक तकनीक भारतीय जीवन शैली की आत्मा को ही ध्वस्त करने लगे तो इस तकनीक का इस्तेमाल सोच-समझकर करना ही बेहतर है। इसलिए, जो मार्ग हमें हमारे अंतिम ध्येय तक ले जाए, उसी मार्ग का अनुकरण करना बेहतर होगा।

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