कैसा होगा भविष्य का बैंकिंग?

भविष्य का बैंकिंग पूरी तरह बदल चुका होगा। ग्राहकों के लिए विशिष्ट बैंकिंग अनुभव, जोखिमों और नियमों दोनों का बेहतर प्रबंधन, अत्याधुनिक तकनीक की मदद से गैर-बैंकिंग असंगठित संस्थाओं से प्रतिस्पर्धा करना, यही बैंकों का भविष्य है और तभी बैंक जीवित रह सकेंगे।
हमारे बच्चे शायद किसी अलग तरह की बैंकिंग का अनुभव लेंगे। एक बात तो पक्की है कि बैंक शाखाओं का महत्व निकट भविष्य तक ही सीमित रहेगा। उसके बाद उनका महत्व बहुत हद तक कम हो जाएगा। भविष्य में बैंक शाखाएं बहुत अलग तरह की भूमिका अदा करेंगी। जैसे किसी पेचीदा मामले में सलाह देना या किसी कठिन समस्या का हल निकालने में मदद करना। वे एक अलग तरह के सलाह केंद्र की तरह काम करेंगी। दो दशक पहले आधुनिक प्रौद्योगिकी ने बैंकिंग को जड़ से हिला दिया। कोर बैंकिंग प्रणाली (CBS) से बैंकिंग में क्रांति आ गई। CBS(कोर बैंकिंग सिस्टम), पहले बही-खाता आधारित था, फिर वह उत्पाद आधारित हुआ और अब पूरी तरह से ग्राहक आधारित है । सीबीएस (CBS) इन दो दशकों में कई बार बदला। आज बैंकिंग प्रौद्योगिकी के लिए फिनटेक (Fintec) एक प्रमुख औज़ार बन चुका है। ग्राहकों की और आतंरिक, दोनों ही दृष्टि से इस प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व परिवर्तन आ रहे हैं। अगर बीते दशकों में जो हमने देखा वह क्रांति थी, तो आने वाले सालों में जो होगा उसे भूकंप ही कहना पड़ेगा। बैंकिंग उद्योग नई-नई तकनीकों जैसे आर्टिफीशल इंटेलिजेंस, बिग डेटा, बैंकिंग ऑफ़ थिंग्स, ब्लॉक चेन को अपनाने के लिए तैयार ही नहीं उत्सुक भी है। कुछ उदाहरण देखें। हेड्स ऑफ मशीन लर्निंग अब सिटी (Citi) एक बहुत बड़ी बैंक, इकाई (EY)एक कंसल्टिंग और ऑडिट संस्था, मैन जीएलजी (Man GLG) एक हेज फण्ड मैनेजर, जैसी कंपनियों में भी देखा जा सकता है । २०१९ के बाद, किसी को भी अगर चार्टर्ड फाइनेंसियल एनालिस्ट बनना हो, जो कि आर्थिक क्षेत्र की एक बहुत सम्मानजनक उपाधि है, तो उसकी परीक्षा में सफल होने के लिए उसे आर्टिफीशल इंटेलिजेंस में कुशल होना आवश्यक होगा। ये सारी नई तकनीकें विस्फोटक होंगी। ये बैंकिंग को और ग्राहक के साथ होने वाले संवाद को आमूल बदल डालेंगी।
भविष्य के बैंकिंग के बारे में मत-मतांतरों की कोई कमी नहीं है। भविष्य का बैंकिंग या बैंकिंग के भविष्य के बारे में बैंकिंग उद्योग से जुड़े लोगों में कई तरह के प्रश्न हैं जैसे कि-
* नई नई तकनीकें (जैसे मार्केट प्लेस लेंडिंग या ब्लॉक चेन), पारंपरिक बैंकिंग पद्धतियों का स्थान कैसे ले पाएंगी?
* क्या पारंपरिक बैंकिंग कंपनियां इसी तरह हावी रहेंगी या फिर इनका स्थान कोई नई फिनटेक कंपनियां ले लेंगी?
* क्या पारंपरिक बैंकिंग कंपनियां और फिनटेक कंपनियां एक दूसरे की साझेदार होंगी या एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी?
इन प्रश्नों के उत्तर मिलें या न मिलें, लेकिन एक बात तो तय है कि आज से एक दशक बाद का बैंकिंग पूरी तरह से अलग होगा।
प्रश्न यह नहीं है कि बैंकिंग उद्योग इन तेज बदलावों को स्वीकार करके आगे बढ़ पाएगा या नहीं, बल्कि यह है कि क्या इन बदलावों के चलते बैंक जीवित रह सकेंगे? पारंपरिक पद्धतियॉं, ट्रेड यूनियन की नीतियां, बैंक बोर्ड के निर्णय आदि के आपसी संघर्षों को बैंकों को तेज़ी से सुलझाना होगा। जैसा कि कहा जाता है, हमें बैंकों की नहीं बल्कि बैंकिंग की आवश्यकता है। इसी वजह से, दुनिया भर में से जो भी सस्ता, आधुनिक तकनीक पर आधारित बैंकिंग दे सकता है और ग्राहक को सब से अच्छा अनुभव दे सकता है, वह बैंकिंग बिज़नेस में आ सकेगा। सभी बैंकों को फिलहाल निम्न पांच बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करना होगाः-
१. डिजिटल ब्रैंड तैयार करना
भारत में राष्ट्रीयकृत बैंक बेहतर व्यापार कर सकें क्योंकि उनकी शाखाओं की पहुंच बहुत व्यापक थी और उन्हें सरकार का संबल प्राप्त था। इनमें सामाजिक बैंकिंग और जमाकर्ताओं का हित प्रमुख था। इसलिए खराब ग्राहक सेवा और कई खामियों के बावजूद ये बैंक जीवित रहे। इसी प्रकार, सहकारी बैंक अपनी स्थानीय पकड़ और अधिक ब्याज दर के कारण जीवित रहे। किन्तु, कुछ सहकारी बैंकों को छोड़, इनका दायरा छोटे से क्षेत्र तक ही सीमित रहा। कुछ सहकारी बैंकों ने ज़रूर अपने पंख कई राज्यों में फैलाए। सूचना प्रौद्योगिकी के आने के बाद बैंकों में एक डिजिटल क्रांति आ गई। जैसे-जैसे उद्योगों में डिजिटलीकरण बढ़ रहा है, ग्राहक को भी सभी के लिए एक जैसा मास बैंकिंग पसंद आना मुश्किल है। उन्हें उनकी जरुरत के अनुसार ढाला जा सकने वाला विशिष्ट बैंकिंग चाहिए। ठीक उसी प्रकार जैसे कि होटल और पिज्जा उद्योग में किया जाता है। ग्राहक के, बिना बैंक शाखा आए उसे उत्कृष्ट सेवा देना, अपनी ब्रैंड शक्ति को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा। डेटा के आधार पर ग्राहक के व्यक्तिगत अनुभवों को बेहतर बनाना, बैंकों के लिए सब से महत्वपूर्ण होगा। बैंकिंग उद्योग में भी ब्रैंड शक्ति इस बात पर निर्भर होगी कि उनकी साझेदारियां किन कंपनियों के साथ है। पारदर्शिता, निवेश के एकीकृत आर्थिक अवसर, तात्कालिक जानकारियां और सुझाव, बेहतर ग्राहक अनुभव, ये सारी बातें बैंकिंग के लिए निर्णायक होंगी। डिजिटलीकरण के कारण कई बैंकिंग पद्धतियां आसान और बेहतर होंगी। लेकिन उसमें जोखिम भी कम नहीं होगी। ग्राहक की मांगें और अपेक्षाएं बढ़ रही हैं और आधुनिक तकनीक से नए-नए प्रतियोगी भी आते जा रहे हैं। डिजिटल ब्रैंड शक्ति बनाने के लिए बिलकुल स्पष्ट और तेज अंतर्विभागीय समन्वय होना चाहिए। इस बात का सीधा जिम्मा बैंक बोर्ड या प्रबंध निदेशक या मुख्य कार्यकारी अधिकारी पर जाता है। इसीलिए बैंकों के आला अधिकारीयों की सूची में मुख्य डिजिटल अधिकारी पर सब से अधिक ज़िम्मेदारी होगी। उसी पर यह जिम्मेदारी होगी कि इस नए युग में वह अपने बैंक की साख बेहतर बनाए रखे।
२. बैंकिंग के विविध मार्ग
भारत में सदा से ही बैंकों में लॉबी कल्चर (यानि ग्राहक बैंक शाखाओं में आना पसंद करते थे। इसे सामजिक बैंकिंग भी कहा जाता है) रहा है। अधिक से अधिक शाखाएं होना, बैंकों के लिए गर्व का विषय होता था। …या यूं कहें कि ग्राहकों के पास बैंकिंग के लिए एक मात्र उपलब्ध मार्ग, बैंक शाखा ही था। यह स्थिति लगभग २५ वर्ष पहले थी। उसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी का युग आया। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की कार्य-पद्धति में क्रांति आ गई। इसकी शुरुआत हुई एटीएम से। उसके बाद भी कई बैंक ऐसे थे जो एटीएम भी शाखा में ही लगा कर रखते थे, और बैंकिंग समय के पश्चात् एटीएम का इस्तेमाल वर्जित था! लेकिन धीरे-धीरे ये सब बदलता गया। अब इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग की सुविधा देना बैंकों के लिए मूलभूत कार्य है। बैंक शाखाओं को अब एक आर्थिक सलाहकार केंद्र के रूप में कार्य करना ज्यादा श्रेयस्कर है, क्योंकि अपने बैंकिंग कार्यों के लिए कोई भी ग्राहक अब शाखा में नहीं आएगा। बैंक शाखाओं का इस्तेमाल भी केवल बैंक में आने वाले हर ग्राहक को कोई न कोई वित्तीय उत्पाद बेचने के लिए ही होगा। आने वाले समय में बैंकों को ज्यादा शाखाओं की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। बल्कि किराए और बाकी खर्च बचाने के लिए बैंक कई शाखाओं को बंद करना चाहेंगे। शाखा के कर्मचारियों को किसी और बेहतर कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। बैंकिंग के नए मार्ग भी बदल रहे हैं। उनके प्रति नजरिया भी बदल रहा है। नई पीढ़ी के अधिकतर ग्राहक इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करना पसंद कर रहे हैं। दुनिया भर के बैंकिंग ग्राहक इन नए मार्गों का अनुभव ले रहे हैं। सिटीबैंक का उदाहरण लें। इस बैंक की सेवाएं केवल न्यूयॉर्क राज्य तक ही सीमित होना थीं। लेकिन आधुनिक टेक्नोलॉजी के कारण, देश भर के लोग उनकी बैंकिंग सेवाएं ले सकते हैं। इस तरह की सीमाएं अब मायने नहीं रखतीं। भारत की सहकारी बैंकों की समस्या इसके विपरीत है। इन बैंकों का सारा व्यापार उनके स्थानीय होने पर निर्भर था। लेकिन अब नहीं। कोई दूर-दराज़ का ग्राहक भी, अगर इलेक्ट्रॉनिक रूप से जुड़ा हुआ हो, तो किसी भी बैंक की सेवाएं ले सकता है। इसीलिए, सहकारी बैंकों को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी और नई टेक्नोलॉजी को अपनाना होगा। केवल इंटरनेट बैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग दे देना भर काफी नहीं होगा। उन्हें ग्राहक के संपूर्ण बैंकिंग अनुभव को, बैंकिंग उद्योग के सब से बेहतरीन स्तर के अनुसार ढालना होगा। … या फिर, किसी अन्य उद्योग का सेवा अनुभव जो इससे भी बेहतर हो।
३. नई प्रतिस्पर्धा
नए नए परिवर्तन, सरकार और रिजर्व बैंक की खुली नीतियों के कारण, अब ऐसे-ऐसे स्थानों से प्रतिस्पर्धा पैदा होगी, जिसके बारे में सोचा भी नहीं गया होगा। रिजर्व बैंक ने हाल में नए बैंकिंग लाइसेंस जारी किए हैं। नए-नए बैंक, नई टेक्नोलॉजी और प्रभावी पद्धतियों के साथ बाजार में उतर रहे हैं। वे भी पारंपरिकता का कोई बोझ लिए बिना। पिछले दो दशकों में कोटक और एचडीएफसी बैंक जिस तेजी से उभर कर आगे आए हैं, वे कई दशकों पुराने बैंकों की आंखें खोल देने के लिए काफी है। नए युग में, अब विशेषज्ञ बैंकों का चलन बढ़ता जा रहा है, जैसे कि छोटी बचत का बैंक, माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं, पेमेंट बैंक आदि। बड़े बैंकों को अपने स्तर की बैंकों के साथ-साथ इन विशेषज्ञ बैंकों से भी प्रतिस्पर्धा करना है। ये नए बैंक प्रति लेन-देन कम फीस लेंगे, और स्थापित बड़ी बैंकों के साथ कीमतों की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी। अब भुगतान को ही लें। विश्व स्तर पर प्रति वर्ष लगभग २६ ट्रिलियन डॉलर के लेन-देन होते हैं, जिन पर कुछ बिलियन डॉलर की फीस लगाईं जाती है। इसके बावजूद, जो सिस्टम इन भुगतानों के लिए है वह अकार्यक्षम है, धीमा भी है और दुनिया की मांग पूर्ण करने में असमर्थ है। प्रतिस्पर्धा का परिणाम यही है कि बेहतर, प्रभावी व्यवस्थाएं, बेहतर ग्राहक अनुभव, अब सामान्य बात होगी। पारंपरिक संस्थाएं, बढ़ती डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ शायद बाजार पर अपना नियंत्रण खो देंगी। इन खामियों के कारण, सभी भुगतान चैनलों में परिवर्तन आ गया है। उदाहरण के लिए, ऑनलाइन (जैसे पेपाल), मोबाइल (जैसे एमपैसा), बिना संपर्क (एप्पल पे), पीयर टू पीयर (जैसे स्क्वायर, वेनमो आदि), सीमा पार भुगतान (रिप्पल लैब्स) और कूटमुद्रा यानि क्रिप्टोकरेंसी (जैसे बिटकॉइन) आदि के नाम लिए जा सकते हैं। भुगतान पद्धतियों के बहुत बड़े परिवर्तन शायद अभी दूर होंगे, लेकिन ब्लॉकचेन अभी से ही तेज और प्रभावी लेन-देन, कम कीमत पर करने में सक्षम है। भारत में, पेटीएम जैसे भुगतान माध्यम बड़े पैमाने पर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं और भरपूर व्यापार कर रहे हैं। भारत सरकार ने भी भुगतान के लिए अपना एप लाया है जो कि सामान्य जनता इस्तेमाल कर सकती है। जहां एक ओर हर बैंक अपने तईं इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, लेन-देन की कीमतों में भारी कमी आ गई है। इसीलिए, आने वाले दिनों में बैंकों के भुगतान उद्योग में बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
४. नई टेक्नोलॉजी
अगले दस सालों में ब्लॉक चेन टेक्नोलॉजी में होने वाले नए-नए आविष्कार रिटेल और कॉर्पोरेट दोनों ही प्रकार की बैंकिंग में क्रांति ला देंगे। एक अनुमान के अनुसार २०२५ तक भुगतान की मात्रा नाटकीय रूप से बढ़ने वाली है। इसमें महत्वपूर्ण होंगे इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things -IoT), डिजिटल भुगतान और सीधे कॉर्पोरेट भुगतान। भुगतान पद्धतियों में परिवर्तन और विकास से मात्रा तो बढ़ेगी ही, साथ ही खर्चों में भी कमी आएगी। मध्यस्थों की घटती ज़रूरत से भी खर्च कम होंगे और दुनिया भर की जानकारी में पारदर्शिता होगी। केवल प्लास्टिक क्रेडिट कार्ड को चिप बेस्ड कार्ड (EMV) बनाने में ही बैंकों को परेशानियां पेश आ रही हैं। ये परिवर्तन लाने में ही बहुत सारी पारंपरिक विधियां व्यवधान पैदा कर रही हैं। ब्लॉक चेन जैसी नई टेक्नोलॉजी को आत्मसात करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। कहना मुश्किल है कि फिलहाल, जहां बैंकिंग में पहले से ही कुछ समस्याएं हैं, वहां बैंकिंग उद्योग इस प्रकार के वृहद परिवर्तन के लिए तैयार है भी या नहीं। ऐतिहासिक रूप से, ऐसी परिस्थिति में, जब नई संस्थाएं प्रतिस्पर्धा में आती हैं तो उद्योग का कुछ भाग हासिल कर लेती हैं। फिलहाल यह स्थिति आनी शुरू हो चुकी है।
एक और नई टेक्नोलॉजी जो जल्द ही उत्पादन और सेवा क्षेत्र में छा जाने वाली है, वह है आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (¬I) और मशीन लर्निंग। एक्सचेंजों का डिजिटलीकरण होने के बाद से तो सौदे पहले से ही ऑनलाइन किए जा चुके हैं। जल्द ही अल्गोरिदमिक ट्रेडिंग से इंसानी ट्रेडिंग लगभग खत्म हो जाएगा। कम से कम शेयर (इक्विटी) और वायदा (फ्यूचर) बाजार में। मशीनों द्वारा सटीक निर्णय लेना और उसके द्वारा उद्यगों को बढ़ाना, यह आने वाले वर्षों में बहुत तेज़ी से बढ़ेगा। ये नई तकनीकें बैंकिंग की पद्धतियों को पूरी तरह से बदल देंगी। यदि बैंक इन परिवर्तनों को अपनाने में असफल रहते हैं तो उनका सारा अस्तित्त्व ही संकट में पड़ जाएगा।
५. मार्केट प्लेस लेंडिंग
टेक्नोलॉजी में परिवर्तन से बैंकिंग क्षेत्र की एक बहुत महत्वपूर्ण विधा पर बहुत गहरा असर जो होगा हे है- ऋण! क्राउड सोर्सिंग और पी टू पी बैंकिंग, ये दो ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं की भविष्य में ऋण किस प्रकार का होगा। ये सारे नए मध्यम पारंपरिक बैंकिंग के बोझ से पूरी तरह मुक्त हैं। उन पर नियामक संस्था भी बहुत अधिक नियंत्रण नहीं कर सकती। अमेरिका में कुछ ऋणदाता जैसे लेंडिंग क्लब, प्रॉस्पर, कैबेज, सोफाई इस नई टेक्नोलॉजी को अच्छी तरह से निचोड़ रहे हैं। उन्होंने पारंपरिक ऋण की सारी जटिलताएं समाप्त कर दी हैं। इसी प्रकार के रुझान अब भारत में भी देखने को मिल रहे हैं। भारत में भी अब कई स्टार्ट-अप बिजनेस आ रहे हैं। इन आशंकाओं के बावजूद, कि मार्केट लेंडिंग बैंकों के व्यापार को हानि पहुंचाएगा, पारंपरिक बैंक और मार्केट लेंडिंग कंपनियां आपस में साझेदारी अवश्य करेंगी। उदाहरण के तौर पर, सिटी द्वारा लेंडिंग क्लब के साथ साझेदारी करना। इस प्रकार की साझेदारियां, बैंकिंग उद्योग और ग्राहक दोनों के लिए फायदेमंद हैं। बैंक अपने ग्राहक के साथ संबंध को इन नए टेक्नोलॉजी उत्पादों के माध्यम से भुना सकते हैं। किन्तु, गिरती हुई ब्याज दर को देखते हुए ऋण उद्योग पहले जितना फायदेमंद होगा, इसमें संदेह है। हो सकता है कि बहुत बड़े पैमाने पर अगर यह उद्योग किया जाए, तो फायदेमंद हो।
निष्कर्ष
ऊपर उल्लिखित पांच बिंदुओं को देखते हुए, यह समझना तो आवश्यक है कि बैंकों को अपनी रणनीतियां बदलनी होंगी और २०२० के बाद होने वाले परिवर्तनों के लिए तैयार रहना होगा। इसके लिए निम्न बातें करना आवश्यक हैः-
* ग्राहक केंद्रित मॉडल को अपना कर अपने शाखा विस्तार का अनुकूलन करना।
* ग्राहकों को उत्कृष्ट बैंकिंग अनुभव देने के लिए, अपनी उद्योग पद्धतियों को आसान बनाना।
* जानकारी का पूरा फायदा उठाना और आंकड़ों को आय में बदलना।
* नई टेक्नोलॉजी को अपनाना और उसके अनुसार अपनी क्षमताएं बढ़ाना।
* सक्रियता से जोखिम और पूंजी का प्रबंधन करना।
* सही टेक्नोलॉजी को जल्द से जल्द अपनाना।
* अपनी फीस को अलग – अलग भागों में विभाजित कर, ग्राहक की सुविधानुसार उसे सेवा देना। ऋण को बेहतर तरीके से वापस लेना ताकि बैंक न केवल जीवित रह सके बल्कि ऊपर भी जा सके।
बिना रुके, हमेशा तैयार यही भविष्य के बैंकों का घोष होना चाहिए। ग्राहकों के लिए विशिष्ट बैंकिंग अनुभव, जोखिमों और नियमों दोनों का बेहतर प्रबंधन, अत्याधुनिक तकनीक की मदद से गैर-बैंकिंग असंगठित संस्थाओं से प्रतिस्पर्धा करना, यही बैंकों का भविष्य है और तभी बैंक जीवित रह सकेंगे।

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