सोशल मीडिया में जारी सियासी संघर्ष

किसी भी युद्ध में सफलता हासिल करने के लिए हर पक्ष एक स्पष्ट रणनीति के साथ मैदान में उतरता है। हालांकि इस रणनीति के भी आगे कई अंग हो सकते है। इस रणनीति में सम्मिलित हर अंग की अपनी एक खास योग्यता और क्षमता होती है। लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही भारत में इन दिनों राजनीतिक दलों के स्तर पर एक युद्ध सा छिड़ चुका है और इस युद्ध को फतह करने के लिए हर दल अपनी-अपनी रणनीति के तहत लड़ रहा है। इस युद्ध में संघर्षरत हर दल एक रणनीति के साथ अपने विरोधियों के साथ भिड़ रहा है और इसी रणनीति का एक हिस्सा है सोशल मीडिया। सोशल मीडिया पर छवियों का निर्माण किया जा रहा है, तो विरोधियों की छवि के साथ खेला भी जा रहा है। व्यक्ति, विषय और बहसें निर्मित की जा रही हैं। इस तरह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह सोशल मीडिया भी चुनावी नतीजों की दशा व दिशा निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में आ चुका है।

पिछले लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया ने अंतिम परिणाम तय करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। 2014 में, भारत में लगभग 250 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता थे। अब यह आंकड़ा बढ़कर 560 मिलियन से अधिक तक पहुंच चुका है। इसमें से 30 करोड़ (300 मिलियन) से ज्यादा लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। भारत में फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और यूट्यूब लोगों के सामान्य जीवन का हिस्सा हैं। इसके अलावा इन चुनावों में आठ करोड़ से ज्यादा युवा मतदाता ऐसे होंगे जो पहली बार किसी चुनाव में वोट डालेंगे। इनमें से अधिकतर सोशल मीडिया के किसी न किसी प्रारूप से जुड़े ही हैं। चुनावी जानकारों के अलावा कई सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ कह चुके हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस बार कम से कम पांच से सात फीसदी मतदान को प्रभावित कर सकते हैं। हर राजनीतिक दल की इतने बड़े वोट बैंक पर नजर बनी हुई है। इसलिए हर दल सोशल साइट्स पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाकर इन मतदाताओं में से अधिक से अधिक को अपने पाले में खींचने की कोशिश में जुट गया है।

सोशल मीडिया पर अपना प्रभाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने की होड़ में इन दिनों नेताओं व समर्थकों के बीच वाकयुद्ध चरम पर है। सोशल मीडिया पर खूब जुमले उछाले जा रहे हैं, उम्मीदवारों के पक्ष व विपक्ष में खूब चर्चाएं हो रही हैं। इसके जरिए हर राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए जी-जान भिड़ा रहा है। बदलते समय के साथ यह लड़ाई अब काफी पेशेवर ढंग से लड़ी जा रही है। हर दल में आज आईटी सेल और सोशल मीडिया प्रभारी जैसी अवधारणाओं को अंगीकार किया है। ये विभाग और इनसे जुड़े लोग सोशल मीडिया पर संबंधित दल की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए कटेंट को प्रचारित-प्रसारित करने का कार्य कर रहे हैं।

इस पूरी प्रक्रिया में कहीं सार्थक विमर्श खड़े हो रहे हैं, संवाद के नए सेतु जुड़ रहे हैं, तो वहीं असंयमित और अमर्यादित भाषा अभिव्यक्ति के पूरे प्रकरण को दूषित बना रही है। चुनावों से पहले लड़ी जा रही इस लड़ाई में अपने विरोधियों पर बढ़त बनाने के चक्कर में हर दल के समर्थक व नेता दोनों ही सीमाएं लांघ जा रहे हैं। चुनाव आयोग और सक्रिय बड़े नेताओं की नसीहत के बावजूद इन बिगड़ैल तत्वों के व्यवहार में कोई सकारात्मक सुधार देखने को नहीं मिल रहा। सोशल मीडिया पर जारी इस सोशल मीडियाई संघर्ष का यदि विश्लेषण करें, तो लगभग हर दल का नेता, कार्यकर्ता और समर्थक इसका हिस्सा बनने को आतुर है। इस युद्ध से उड़े गुबार से कहीं न कहीं पूरा सोशल मीडिया धूमिल हुआ नजर आ रहा है। ऐसी स्थिति कहीं न कहीं इस मंच की विश्वसनीयता के संकट का खतरा पैदा करती हुई प्रतीत हो रही है।

हालांकि इस तरह की स्थिति पैदा होने को लेकर चुनाव आयोग भी कहीं न कहीं पहले से ही आशंकित था और संभवतः इसी कारण इसने कई सुधारात्मक कदम भी उठाए। इस कड़ी में सबसे पहले लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने इस बार सोशल मीडिया पर भी आचार संहिता लागू होने की बात कही। उन्होंने कहा कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को इस दौरान किसी भी राजनीतिक पार्टियों के विज्ञापन पोस्ट करने से पहले जानकारी देनी होगी। आज्ञा दिए जाने के बाद ही वे ऐसा कर पाएंगे। गूगल और फेसबुक को इलेक्शन कमीशन ने ऐसे विज्ञापनदाताओं की पहचान करने के लिए कहा है।

इसके अलावा फेक न्यूज और हेट स्पीच को नियंत्रित करने के लिए सोशल मीडिया साइट्स को अधिकारी नियुक्त करने के लिए कहा गया है। चुनाव आयोग ने आम जनता और पार्टियों के लिए कुछ ऐप्स और डिजिटल पोर्टल्स की भी जानकारी दी है। इसी तैयारी का एक हिस्सा है मोबाइल ऐप सी-विजिल। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बरकरार रखने में जनता की भागीदारी को भी ध्यान में रखते हुए, पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल ऐप सी-विजिल का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके जरिए कोई भी नागरिक निर्वाचन नियमों के उल्लंघन की शिकायत कर सकता है। खास बात यह है कि शिकायत मिलने के बाद संबंधित प्राधिकारी को 100 मिनट के भीतर कार्रवाई करनी पड़ेगी। इससे पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस ऐप का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा चुका है।

लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों सहित विभिन्न पक्षकारों की ओर से सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया कंपनियों की अहम बैठक भी बुलाई थी। इसमें विभिन्न कंपनियों ने चुनाव के दौरान खुद के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आदर्श आचार संहिता लागू करने का भरोसा दिया है। इससे आयोग द्वारा स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लिए राजनीतिक दलों पर लागू होने वाली चुनाव आचार संहिता का पालन सुनिश्चित हो सकेगा। आयोग द्वारा जारी बयान के अनुसार अरोड़ा, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चंद्रा की मौजूदगी में सम्पन्न बैठक में फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, गूगल और शेयरचेट सहित अन्य सोशल मीडिया कंपनियों, इंटरनेट और मोबाइल कंपनियों के संगठन (आईएएमएआई) के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।

इसी बैठक में सोशल मीडिया के दुरुपयोग की शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिये व्यवस्था करने, राजनीतिक विज्ञापनों की पूर्व प्रमाणन प्रक्रिया का पारदर्शी तरीके से पालन और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 के उल्लंघन की सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी दिये जाने सहित अन्य मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया। इसके अलावा लोकसभा चुनावों को मैनिपुलेशन से बचाने के लिए चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी तैयारी कर ली है। इस संदर्भ में मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि मीडिया में पेड न्यूज और फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने के लिये राज्य एवं जिला स्तर पर मीडिया निगरानी समितियों की भी मदद ली जाएगी। इसके साथ ही साथ उम्मीदवारों को अपने सोशल मीडिया अकांउट की जानकारी आयोग को देनी होगी।

चुनावी प्रक्रिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक बड़ी पहल फेसबुक ने की है। सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने फर्जी एकाउंट और स्पैम के खिलाफ खिलाफ कार्रवाई के तहत कांग्रेस पार्टी के आईटी सेल (सूचना प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ) से जुड़े कुल 687 पेज और एकाउंट हटा दिए हैं। फेसबुक ने कहा कि इन पेज और एकाउंट को ‘फर्जी खबर’ चलाने के लिए नहीं, बल्कि ‘स्पैम’ संदेशों के प्रसार और इनके माध्यम से आपस में तालमेल के साथ ‘प्रमाणहीन व्यवहार’ करने के कारण हटाया गया है। इसके अलावा कंपनी ने पाकिस्तान में शुरू किए गए 103 पेज, समूह और एकाउंट्स को फेसबुक और इंस्टाग्राम के मंच से हटाया है। इनमें से अधिकतर को उसकी स्वचालित प्रणाली ने पहचान करके हटा दिया। ये सभी पेज भारत में ‘आपसी तालमेल से प्रमाणहीन व्यवहार करते पाए गए’ और ये सभी कांग्रेस के आईटी सेल से जुड़े व्यक्तियों के खाते हैं। फेसबुक ने कहा कि उसने 15 पेजों, समूहों और खातों को भी हटाया है, जो सरकार और भाजपा के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कथित गलत सामग्री पोस्ट करते थे। उम्मीद है कि जरूरत पड़ने पर भविष्य में फेसबुक समेत दूसरी तमाम कंपनियां भी इस तरह के कदम उठाएंगी, ताकि लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व यानी चुनाव को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से आयोजित किया जा सके।

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