महाशक्तियों का शतरंज

उत्तर कोरिया की मगरूरी वास्तव में चीन की मगरूरी है। अमेरिका तथा चीन के बीच शतरंज का एक खेल उत्तर कोरिया को प्यादा बनाकर खेला जा रहा है। उसी प्रकार चीन व भारत के बीच शतरंज का मोहरा चीन ने पाकिस्तान को बनाया है।
राष्ट्रतंत्र का एक अकाट्य सिद्धांत है, यदि आप गलत जड़ों को पानी देंगे तो आपको अच्छे फल कहां से व कैसे मिलेंगे? आज कुछ राष्ट्र ऐसे हैं जो पूरे विश्व के लिए समस्या बन गए हैं। इनमें चीन, उत्तर कोरिया तथा पाकिस्तान प्रमुख हैं। पूरे विश्व में अराजकता, असुरक्षा तथा अव्यवस्था का वातावरण बन गया है। यहां तक कि विश्व समुदाय, संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका भी इन राष्ट्रों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं। इसके क्या कारण हैं? यह समस्या कैसे निर्मित हुई? इसके क्या परिणाम पूरे विश्व पर हो सकते हैं? इन महत्वपूर्ण प्रश्नों का यहां विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।
लगभग ७०० वर्षों के विदेशी शासन के बाद १९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही पाकिस्तान का जन्म हुआ तथा पिछले ७० वर्षों से पाकिस्तान का कर्क रोग बढ़ता ही जा रहा है। जन्म से ही पाकिस्तान भारत को अपना एकमात्र
शत्रु मानता है। शासकीय, सामाजिक, धार्मिक, सामुदायिक तथा मनोवैज्ञानिक तौर पर पाकिस्तान पूरे विश्व को यही बताता है कि सिर्फ भारत ही पाकिस्तान का एकमात्र शत्रु है। यहां तक कि पाकिस्तान के शासकों ने, पाकिस्तान के सेना प्रमुखों ने अधिकृत रूप से घोषणा की है कि पाकिस्तान के परमाणु बम का प्रयोग केवल भारत के विरुद्ध ही किया जाएगा। पाकिस्तान भारत का अस्तित्व ही समाप्त करना चाहता है। भारत को तबाह करना चाहता है। पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध सब प्रकार की कार्रवाई करने के लिए चीन का संरक्षण, प्रोत्साहन, युद्ध सहायता, युद्ध सामग्री, आर्थिक सहायता पूरी तरह प्राप्त है। चीन की सहायता, प्रोत्साहन तथा संरक्षण के बिना पाकिस्तान का राजनैतिक, आर्थिक तथा सामरिक अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। चीन पाकिस्तान का आधार स्तंभ है, संरक्षक है।
दूसरी ओर उत्तर कोरिया पाकिस्तान की ही तरह चीन के संरक्षण में अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया को तबाह करने की धमकी देता रहता है, तथा स्वयं की रक्षा के बहाने परमाणु बम बना चुका है। और, अब अपने मिसाइलों के माध्यम से परमाणु बमों को अमेरिका तक पहुंचाने का अथक प्रयास कर रहा है। अमेरिका के सैनिक अड्डे, जापान तथा दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया के निशाने पर हैं। उत्तर कोरिया के पारिवारिक तानाशाह किम जोंग ने हाल ही में स्पष्ट धमकी दी है कि परमाणु अस्त्र के द्वारा अमेरिका को ध्वस्त किया जा सकेगा। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प बार-बार कह रहे हैं कि उत्तर कोरिया को सबक सिखाना ही पड़ेगा तथा उत्तर कोरिया की आण्विक तथा सामरिक शक्ति को नष्ट करना ही होगा। इस प्रकार की युद्ध की मंशा तथा धमकियों के कारण विश्व शांति, सुरक्षा व्यवस्था सब खतरे में पड़ सकते हैं। कब क्या हो जाएगा इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। यह सब क्यों व कैसे हुआ? परिस्थिति इतनी खराब क्यों हो गई है?
जापान के सम्राट ने १९१० में कोरिया पर कब्जा किया। उसके पश्चात् १९४५ में कोरिया का विभाजन दो भागों में हुआ ( १९४५ में ही भारत का विभाजन भी लगभग निश्चित हो गया था)। कोरिया का उत्तरी भाग सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र में चला गया। दक्षिणी भाग अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में आ गया। आज यही भाग उत्तर कोरिया तथा दक्षिण कोरिया राष्ट्रों के नाम से जाने जाते हैं।
उत्तर कोरिया तथा दक्षिण कोरिया को एकत्रित करने की चर्चा तथा प्रयास द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् १९४८ में किए गए परंतु वे प्रयत्न सफल नहीं हो पाए। भारत को स्वतंत्रता १९४७ में मिली तथा चीन १९४९ में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। केवल दो साल की अवधि में ही उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर सैन्य आक्रमण किया। पाकिस्तान ने भी स्वतंत्रता प्राप्ति के एक वर्ष के भीतर ही भारत पर कश्मीर में आक्रमण किया। वह समस्या आज भी बनी हुई है। उत्तर कोरिया द्वारा आक्रमण करने पर अमेरिका दक्षिण कोरिया को सहायता तथा संरक्षण देने के लिए मैदान में उतरा। अमेरिका की सेना ने दक्षिण कोरिया की मदद की व संरक्षण किया। उसके पश्चात् दोनों में शस्त्र संधि हुई। इस युद्ध विराम तथा संधि का पालन करने हेतु राष्ट्रसंघ ने भारतीय सेना की भी सहायता ली।
प्रारंभ में उत्तर कोरिया का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ; परंतु वह पूरी तरह सोवियत संघ पर निर्भर रहा (जिस तरह पाकिस्तान भी आर्थिक तथा युद्ध सहायता के लिए अमेरिका तथा चीन पर निर्भर रहा)। कुछ प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से उत्तर कोरिया के विकास में अनेक बाधाएं आईं। आर्थिक व्यवस्था चरमराई। उत्तर कोरिया का राष्ट्रतंत्र वास्तव में सोवियत संघ तथा अमेरिका का राष्ट्रतंत्र था। उत्तर कोरिया की सत्ता पारिवारिक सत्ता बन गई तथा केवल एक ही घराने की तानाशाही तथा बपौती, पारिवारिक सम्पत्ति बन गई। यही हाल भारत में भी हुआ। लोकतंत्र की आड़ में परिवार तंत्र पनपता रहा। सत्ता एक घराने तक ही सीमित रह गई। शीत युद्ध का प्रभाव भारत, पाकिस्तान की तरह उत्तर व दक्षिण कोरिया पर भी पड़ा। पाकिस्तान की तरह ही, जो भारत को हर प्रकार से अस्थिर करने का प्रयत्न करता रहा है, उत्तर कोरिया भी दक्षिण कोरिया को हर प्रकार से तबाह करने का प्रयत्न करता रहा है और करता रहेगा।
उत्तर कोरिया की मर्जी के विरुद्ध अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में अपना सैन्य अड्डा बनाया है। अर्थात् अब यह सैन्य व्यवस्था चीन का भी ध्यान रखेगी। उत्तर कोरिया की सीमा चीन तथा रूस के साथ लगी है। इसी कारण चीन तथा रूस दक्षिण कोरिया में तैनात है अमेरिकी सेना की उपस्थिति से प्रसन्न नहीं हैं। इसी कारण चीन ने उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया तथा अमेरिका के विरुद्ध तैयार किया है तथा अब परमाणु अस्त्र भी दिए हैं। जापान की रक्षा के लिए अमेरिका तथा जापान में संधि है इसीलिए उत्तर कोरिया तथा चीन जापान को अपना शत्रु मानते हैं तथा जापान का अस्तित्व समाप्त करना चाहते हैं। इन तमाम समीकरणों का प्रभाव विश्व सुरक्षा पर पड़ रहा है। आज दक्षिण कोरिया आर्थिक तथा औद्योगिक दृष्टि से सम्पन्न राष्ट्र है जबकि उत्तर कोरिया को चीन के टुकड़ों तथा चीन की आर्थिक सहायता पर निर्भर रहना पड़ रहा है। उत्तर कोरिया की मगरूरी वास्तव में चीन की मगरूरी है। अमेरिका तथा चीन के बीच शतरंज का एक खेल उत्तर कोरिया को प्यादा बनाकर खेला जा रहा है। उसी प्रकार चीन व भारत के बीच शतरंज का मोहरा चीन ने पाकिस्तान को बनाया है।
पिछले अनेक दशकों से उत्तर कोरिया परमाणु बम बनाने में लगा हुआ है। १९९० के काल में अमेरिका को झांसा देकर परमाणु तंत्रज्ञान का प्रयोग किया था। उत्तर कोरिया के पास यह ज्ञान कहां से आया? यह सब चीन की ही देन थी। २००६ में पहली बार उत्तर कोरिया ने परमाणु बम का परीक्षण किया। अमेरिका ने २००९ तक उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण तथा परमाणु शक्ति प्रदर्शन की प्रबल इच्छा पर अंकुश लगाने का प्रयत्न किया। परंतु कुछ कारणवश उत्तर कोरिया तथा अमेरिका के संबंधों में तनाव आने के कारण उत्तर कोरिया ने पुनः परमाणु अस्त्र बनाना शुरू कर दिया। अब उत्तर कोरिया ने अनेक प्रकार की अलग-अलग क्षमता तथा दूरी तक पहुंचने वाली मिसाइलें बनाना भी शुरू कर दिया। अब उत्तर कोरिया यह दावा कर रहा है कि उसके पास ९ हजार किलोमीटर तक मारक क्षमता वाली अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलें हैं।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी राष्ट्र के लिए केवल परमाणु बम बना लेना ही पर्याप्त नहीं होता है। परमाणु अस्त्र को गंतव्य स्थान तक मारक क्षमता के साथ पहुंचाना तथा विस्फोट करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए मिसाइल तंत्रज्ञान तथा परमाणु तंत्रज्ञान दोनों एक दूसरे के परिपूरक हैं। द्वितीय महायुद्ध में जब अमेरिका ने जापान में हिरोशिमा तथा नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिराए तब हवाई जहाज का प्रयोग किया था। अपने गंतव्य स्थान तक अणुबम डालने के दूसरे विकल्प या माध्यम उपलब्ध नहीं थे। आज शत्रु के ठिकानों पर परमाणु अस्त्रों से हमला करने के अनेक माध्यम हैं। हवाई जहाज, युद्धक हवाई जहाज, मिसाइल के माध्यम से, समुद्री जहाज-सबमरीन से समुद्र से जमीन तक मिसाइल के माध्यम से परमाणु अस्त्र डाले जा सकते हैं। यही कारण है कि उत्तर कोरिया परमाणु शक्ति का प्रदर्शन तो करता ही है उसके साथ ही साथ हजारों किलोमीटर दूर तक पहुंचने वाली मिसाइलों का भी परीक्षण तथा प्रदर्शन कर रहा है और इसी के साथ चीन के इशारे पर अमेरिका को पूरी तरह से ध्वस्त करने की चेतावनी तथा धमकी देता रहता है। इसी कारण अमेरिका का चिंतित होना स्वाभाविक है। ठीक यही बात पाकिस्तान भी भारत के विरुद्ध करता है। आज पाकिस्तान के पास भी हवाई जहाज, मिसाइल, समुद्री मार्ग से भारत पर परमाणु अस्त्रों से हमला करने की क्षमता है, और बार-बार भारत को यह चेतावनी तथा धमकी देता रहता ह्ै कि पाकिस्तान के पास भी परमाणु अस्त्र हैं तथा वह भारत को ध्वस्त करने की क्षमता रखता है। भारतीय सेनाओं की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान ने अब सीमित युद्ध क्षेत्र में, सीमित सीमा तथा सीमित क्षेत्र में तबाही करने वाले टेक्निकल परमाणु अस्त्र भी बना लिए हैं। वे भारत के लिए अत्यंत घातक हो सकते हैं।
उत्तर कोरिया टेक्निकल अण्वास्त्र अमेरिकी हितों के खिलाफ, अमेरिका की सेना के खिलाफ दक्षिण कोरिया तथा जापानी क्षेत्रों तक कर सकता है। उत्तर तथा दक्षिण कोरिया की सीमा एक दूसरे से लगी हुई हैं। ठीक उसी प्रकार भारत पाकिस्तान की सीमा तथा नियंत्रण रेखा एक दूसरे के साथ लगी हुई है। दोनों देशों के औद्योगिक क्षेत्र, आर्थिक क्षेत्र, बड़े-बड़े शहर जैसे लाहोर-सियालकोट आदि भारतीय सीमा से लगे हए हैं। सुरक्षा तथा सामरिक दृष्टि से इन सब वास्तविकताओं का गहन अध्ययन तथा विश्लेषण करना आवश्यक होता है कि शत्रु कहां, कब, क्या कर सकता है। युद्ध शास्त्र का अध्ययन तथा विश्लेषण करते समय ज्ञानरूपी रथ के चार पहिये- ‘क्या’, ’कहां’, ‘कब’, ‘क्योें’ तथा उस रथ का एक सारथी ‘कैसे’ पर पूरा-पूरा ध्यान देना आवश्यक है। इसे हम ‘आने वाले आक्रमण का अपेक्षित अध्ययन तथा विश्लेषण करना’ तथा इसी के साथ ‘अध्ययन तथा विश्लेषण के आधार पर अनुमान लगाना’ कहते हैं ताकि उस विपत्ति का सामना करने के लिए सभी विभाग पहले से ही तैयार हों। यदि ऐसा होता है, हम आश्चर्यचकित नहीं होते हैं बल्कि विपत्ति का सामना करने के लिए सचेत तथा तैयार होते हैं। जिस प्रकार भारत का मौसम विभाग अध्ययन के आधार पर बारिश, अतिवृष्टि या कम वृष्टि का अंदाज लगाता है-भविष्यवाणी करता है, पूर्व सूचना देता है ताकि किसान, कृषि विभाग शासनतंत्र तैयार रहे। ठीक उसी प्रकार सुरक्षा तथा संरक्षण क्षेत्र में भी अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर भविष्यवाणी की जा सकती है। हमारा दुर्भाग्य है कि भारतीय राजनैतिक तथा शासकीय व्यवस्था में अपेक्षित तथा भविष्य की कल्पना का अध्ययन नहीं किया जाता है। यह एक अत्यंत कटु, अप्रिय, अविश्वसनीय वास्तविकता है।
आज विश्व में धर्म, समुदाय, कट्टरवाद, आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए धर्म के आधार पर बुद्धि भ्रष्ट करके, मानसिकता तैयार करके आत्मघाती हमलों की विचारधारा तथा परिपाटी चल रही है। आए दिन पूरे विश्व में कहीं न कहीं आत्मघाती हमले हो रहे हैं। ये आत्मघाती हमले करवाता कौन है? प्रशिक्षण, साधन, आदि कौन देता है? हमला कब, कहां, कैसे करना है यह योजना कौन बनाता है? आदेश कौन देता है? निर्देश व नियंत्रण कौन करता है? आत्मघाती विचारधारा को ध्यान में रखते हुए अब मनुष्य स्वयं परमाणु अस्त्र का वाहक बन सकता है। हम इस वास्तविकता की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। इसी वास्तविता को ध्यान में रखकर मैंने २००४ में एक लेख लिखा था, ‘बाय वन गेट वन फ्री, अ ब्रीफकेस साइज न्यूक्लियर बम’ यह लेख आउटलुक पत्रिका में प्रकाशित हुआ तथा आज भी गूगल पर उपलब्ध है। भारत में किसी ने उसकी परवाह नहीं की परंतु अमेरिका ने इसे बहुत महत्व दिया तथा यह जानने का प्रयत्न किया कि यह कैसे, कहां, कब, क्यों संभव होगा। इस प्रकार का हमला मुंबई, दिल्ली में संभव हो सकता है यह मेरा अध्ययन तथा विश्लेषण कहता है।
२००७ में तत्कालीन महाराष्ट्र शासन, उपमुख्यमंत्री एवं गृह मंत्री को मैंने स्वत: आगाह किया था कि मुंबई में समुद्री मार्ग से आतंकवादी हमला कब, कहां, किस समय, कैसे हो सकता है। तब मेरा मजाक उड़ाया गया। जब यह हमला २००८ में हो गया तब मुझे मंत्रालय में बुलाया गया। मैंने किसी प्रकार की चर्चा करने से मना कर दिया। हमारी पूरी शक्ति तथा ध्यान चुनाव के समय किए जाने वाले सर्वे तथा एक्जिट पोल तक ही सीमित रहता है कि किस राजनैतिक दल को कितने मत मिलेंगे तथा सरकार किस पक्ष की बनेगी। भारत की सुरक्षा तथा संरक्षण की चिंता किसे है? शासकीय अधिकारियों को भी नहीं। सारी जिम्मेदारी सिर्फ सेना पर छोड़ दी जाती है, यह गलत है। इसमें शीघ्र सुधार करने की आवश्यकता है।
२००३ में दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया सेे संबध सुधारने का प्रयत्न किया परंतु उत्तर कोरिया ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। यही बात पाकिस्तान के साथ है। भारत जब पहल करता है तो पाकिस्तान हमारे ऊपर आतंकवादी या सैन्य आक्रमण करके हमें उत्तर देता है। लाहौर बस यात्रा का उत्तर हमें कारगिल युद्ध के रूप में मिला। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सकारात्मक प्रयास का उत्तर हमें पठानकोट तथा ऊरी में आतंकवादी हमलों के द्वारा मिला। २००१ में अमेरिकी के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने दक्षिण कोरिया की पहल को सफल नहीं होने दिया। अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रयत्नों के बावजूद भी दक्षिण कोरिया व उत्तर कोरिया के द्विपक्षीय सम्बंध नहीं सुधर पाए।
२०१२ में किम जोंग तानाशाह के रूप में उत्तर कोरिया में सत्ताधीश बने। उन्होंने उत्तर कोरिया को अण्वास्त्र से सज्जित राष्ट्र बनाने का निश्चय किया। २००१ में ९/११ में अमेरिका पर आतंकवादी हमले के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने एक ‘राक्षसों की समिति’ का बयान किया। इस समिति में लीबिया, इराक, ईरान तथा उत्तर कोरिया का नाम था। किम जोंग को यह पूर्ण विश्वास हो गया कि यदि उत्तर कोरिया को अण्वास्त्र से सज्ज तथा संरक्षित नहीं किया गया तो उत्तर कोरिया का भी वही हाल होगा जो लीबिया, मिश्र्र तथा इराक का हुआ। किम जोंग का अंत भी कर्नल गद्दाफी तथा सद्दाम हुसैन की तरह ही होगा। इसी कारण वह अण्वास्त्र तथा प्रक्षेपास्त्र बनाने को उत्साहित तथा प्रेरित हुए और अब उत्तर कोरिया अण्वास्त्र से सज्ज दानव बन गया है। उर्दू में एक अत्यंत उपयुक्त शेर है-
बहुत ऐसा भी देखा है तारीख की घड़ियों में,
लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई।
यह एक अत्यंत कटु तथा दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि अफगानिस्तान पर हमले के बाद यदि राष्ट्रपति बुश ने ‘राक्षसों की समिति’ में उत्तर कोरिया का समावेश न किया होता तो सम्भवत: उत्तर कोरिया का ध्यान परमाणु बम तथा अण्वास्त्रों की तरफ, प्रक्षेपास्त्र की तरफ नहीं जाता। अब विश्व को विशेषत: अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया को इस वास्तविकता से हमेशा खतरा बना रहेगा। इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा यह निश्चित है। पिछले कुछ वर्षों से चीन, उत्तर कोरिया का अस्तित्व बचाने का प्रयत्न कर रहा है। उत्तर कोरिया पर नियंत्रण तथा लगाम लगाने वाला एकमात्र राष्ट्र चीन ही है। रूस का ज्यादा प्रभाव चीन पर नहीं है। चीन को भी उत्तर कोरिया से खतरा बढ़ रहा है। कोयला व इतर खनिज पदार्थों के लिए चीन को उत्तर कोरिया पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि उत्तर कोरिया की आंतरिक परिस्थिति खराब हुई तथा अमेरिका ने किसी प्रकार की कार्रवाई की तो उत्तर कोरिया से विस्थापित लोग चीन में ही शरणार्थी बनकर आएंगे। यह वास्तविकता भी चीन अच्छी तरह जानता है।
चीन राष्ट्रसंघ में सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है तथा उसे वीटो पावर का विशेष अधिकार है। इसीके आधार पर चीन आज तक पाकिस्तान तथा उत्तर कोरिया का हर प्रकार से बचाव राष्ट्रसंघ में करता आ रहा है तथा करता रहेगा। चीन के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। अब समय आ गया है कि विश्व समुदाय यह फैसला करें कि चीन सरीखे देश को, जो दो दानवों (पाकिस्तान तथा उत्तरी कोरिया) की रक्षा तथा सवर्ंधन कर रहा है, क्या राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य वीटो अधिकार के साथ रहना चाहिए? चीन की जगह इंडोनेशिया सरीखे राष्ट्र को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाना चाहिए।
विश्व समुदाय को यह भी निर्धारित करना होगा कि कोेई भी सशक्त राष्ट्र, सम्पन्न राष्ट्र छोटे राष्ट्रों को डराए या धमकाए नहीं अन्यथा छोटे-छोटे राष्ट्रों को अपने सरंक्षण के लिए तथा अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अण्वास्त्रों का कवच धारण करने की तीव्र इच्छा होगी। इराक पर अमेरिका के आक्रमण के तुरंत बाद मलेशिया में हुए पड़ोसी देशोें के सम्मेलन में मलेशिया के तत्कालीन प्रधान मंत्री म्हात्रे मोहम्मद का २६ सितम्बर २००३ का उद्घाटन भाषण ध्यान से पढ़ना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि आज के युग में छोटे-छोटे राष्ट्रों को अपनी रक्षा तथा सुरक्षा के आयामों तथा विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना होगा। उत्तर कोरिया में अण्वास्त्र कवच की आवश्यकता तथा तीव्र इच्छा क्यों जागृत हुई? अब यह वास्तविकता विश्व के लिए चुनौती बन गई है।

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