
हडप्पा से लेकर मिश्र तक फैली प्राचीन सभ्यताओं के जो पुरातात्विक अवशेष मिले हैं उन सभी में दफनाए गए शवों के सिर बिना किसी अपवाद के उत्तर तथा पांव दक्षिण की ओर की अवस्था में प्राप्त हुए हैं. मृत्यु के ठीक पहले तथा मृत्यु के उपरांत व्यक्कि का सिर उत्तर दिशा की ओर रखने की भारतीय परंपरा में छिपी वैज्ञानिकता को आधुनिक विज्ञान ने भी नमन किया है. वास्तु शास्त्र जीवितावस्था में सिर उत्तर की ओर करके सोने का निषेध करता है. दक्षिण भारत में वास्तुशास्त्र के गुढ रहस्य कुछ कहावतों के रूप में आज भी प्रचलित है- जैसे ’कहे भले ही सारा गांव, दक्षिण में न रखो पांव.
प्राचीनकाल से ही हमारे देश में दादी मां समझाती रहती है कि उत्तर की ओर सिर करके सोने से बुरे सपने आते हैं. बैगंलोर के वैज्ञानिकों तथा चैन्नई के वी.एच.एस.स्वास्थ्य अनुसंधान केन्द्र ने संयुक्त रूप से तीन वर्ष के शोध के पश्चात दादी मां की सलाह को विज्ञान की कसौटी पर खरा पाया है. दरअसल मानव शरीर स्वंय चुम्बक की तरह कार्य करता है. हमारा सिर चुम्बक के उत्तरी ध्रुव की तरह और दक्षिण धुव्र की भांति व्यवहार करते हैं. जब हम पृथ्वी के उत्तरी धुव्र (उत्तर दिशा) की ओर सिर करके सोते है तो दो समान ध्रुवों के आमने-सामने होने से उनमें विकर्षण पैदा होता है, जिससे मनुष्यों और जानवरों के मस्तिष्क में विद्युत प्रवाह के कारण उत्पन्न होने वाले परिवर्तन एवं भू-विद्युत चुम्बकीय शक्ति शरीरों के अवयवों की कार्य प्रणाली को दुष्प्रभावित करती है तथा ह्नदय से दूर अवयवों को रक्त संचार कम हो जाता है. फलतः अनिद्रा, सिरदर्द, चिडचिडापन, बुरे स्वप्न हमें परेशान करते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसंधान का नया विषय यह है कि सिरहाने की दिशा बदलने से जोड़ों का दर्द, वायु प्रकोप आदि बीमारियों की भयावहता में कमी की जा सकती है? आधुनिक विज्ञान भी मानने लगा है कि जिसे हम मृत्यु कहते हैं उसके कुछ घंटों बाद तक भी वास्तव में शरीर पूर्णतया मरता नहीं है. नेत्रदान के लिए नेत्र मृत्यु के छह घंटे बाद तक लिये जा सकते हैं. यहां तक की क्षीण स्वर में मृतक को कुछ घंटों तक सुनाई भी देता रहता है, ऐसा आधुनिक विज्ञान मानने लगा है.
हमारें यहां भी मृत्यु उपरांत मृतक के कान में उसकी अंतिम इच्छा पूर्ण करने उसके निमित्त दान पुण्य करने जैसी बातें कहने तथा भजन-कीर्तन करने की परपंरा रही है. हमारे बुजुर्ग आज भी बीमार के शरीर के कतिपय लक्षणों को देखकर मृत्यु की निकटता को भांप लेते हैं तथा बीमार का सिर उत्तर की ओर करके उसे आंगन के मध्य में लिटा देते हैं. मृत्यु के ठीक पहले तथा मृत्यु उपरांत शरीर का सिर उत्तर दिशा में इसलिए कर दिया जाता है ताकि क्षीण हो चुकी ऊर्जा वाले शरीर की आंतरिक प्रणाली शीघ्रता से पूर्ण निष्क्रिय होकर शरीर को वास्तविक मृत्यु प्रदान कर दे जिससे शरीर कम से कम कष्ट पाये.
जीवितावस्था में बडी उम्र के लोगों के सिर दक्षिण की ओर करके सोना चाहिए. ऐसा करने से गहरी नींद आएगी और कामकाज संबंधी तथा अन्य चिन्ताओ से गहन निद्रा के कारण राहत मिलेगी व शरीर स्वस्थ रहेगा. बच्चों का सिर यदि सोते समय पूर्व दिशा की ओर रखा जाए तो उनकी ग्राह्य क्षमता (ग्रास्पिंग पावर) में वृद्धि होगी तथा उनकी सीखने और याद करने की शक्ति में बढोतरी होगी. अपरिहार्य स्थिति में यथा मात्रा के दौरान सिर पश्चिम की ओर रखा जा सकता है जबकि उत्तर की ओर सिरहाना करके भूलकर भी नहीं सोना चाहिए. एक बात और यदि बीमार व्यक्ति का सिरहाना दक्षिण की ओर कर दिया जाए तो उसे स्वास्थ्य लाभ में सहायता मिलेगी.