पूरब से आतीभाजपा क्रांति

पूरे देश के लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो भाजपा के नेतृत्व में एनडीए के विजय की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा को उत्तर में हो रहे घाटे को इस बार पूरब पूरा करते दिखाई दे रहा है।

लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो देशभर में चार दृश्य उभरते दिखाई दे रहे हैं। एक- असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, पूर्वोत्तर की सप्तलक्ष्मियों, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा में भाजपा ताकतवर है। दूसरा- जम्मू-कश्मीर, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक में उसकी कांग्रेस से स्पर्धा है। तीसरा- उत्तर प्रदेश, सीमांध्र, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा में क्षेत्रीय दल बलवती हैं। इन तीनों दृश्यों से चौथा दृश्य उभर रहा है कि मणिपुर, त्रिपुरा, असम से होते हुए भाजपा क्रांति प.बंगाल तक पहुंच चुकी है और उत्तर में भाजपा को हो रहा घाटा शायद इससे पूरा हो जाए।

सुविधा की दृष्टि से देश को कई विभागों में बांटकर चुनाव विश्लेषण किया जा रहा है। ये विभाग मैंने सुविधा के लिए बनाए हैं, जो हैं- पूर्वोत्तर, पूर्वी भारत, मध्य भारत, पश्चिम भारत, दक्षिण भारत और उत्तर भारत। 5 केंद्रशासित प्रदेशों को निकटवर्ती भाग के साथ जोड़ दिया गया है।

पूर्वोत्तर

असम समेत पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में मतदान के तीनों चरण पूरे हो चुके हैं। यहां कुल 25 लोकसभा सीटें हैं। ये हैं- असम 14, त्रिपुरा 2, मणिपुर 2, मेघालय 2, मिजोरम 1, सिक्किम 1, अरुणाचल 2, तथा नगालैण्ड 1। इनमें से 2014 में भाजपा के खाते में कुल 8 व उनके सहयोगी दलों- नगा नेशनल फ्रंट, मेघालय नेशनल पार्टी और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट- को प्रत्येक को एक-एक सीट मिली थी। इस तरह एनडीए के पास कुल 11 सीटें थीं। कांग्रेस 8, माकपा 2 व अन्य के पास 4 सीटें थीं। इस बार कांग्रेस थकी सी जान पड़ती है, जबकि भाजपा का प्रभाव कुछ अधिक दिखाई देने के संकेत हैं। हो सकता है, पिछली बार की अपेक्षा कुछ अधिक सीटें उसकी झोली में अधिक पड़े।

पूर्वोत्तर के राज्य छोटी-छोटी अस्मिताओं के टापू हैं। वहां राजनीति इसके बिना चलती नहीं है। अतः भाजपा ने इन क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों के साथ गठबंधन किया है। फिर भी कुछ लोग सहमत ही नहीं होते और आपस में ही मारकाट होती है। पूर्वोत्तर की चार-पांच सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा और उनके सहयोगी दल ही आपस में भिड़े हैं। मेघालय की दो सीटों में से एक तुरा सीट पर, नगालैण्ड व मिजोरम की एक-एक सीट तथा त्रिपुरा की दोनों सीटों पर ऐसी लड़ाइयां हैं। कांग्रेस ‘एकला चालो’ जैसी स्थिति में है। माकपा केवल त्रिपुरा में खम ठोक रही है। बाकी चिल्लर पार्टियां हैं, एकाध-दो सीटें पा भी गईं तो हमेशा की तरह वे सत्ता के साथ चली जाएंगी। वैसे भी पूरा क्षेत्र इस समय भाजपा या उनके सहयोगी दलों के कब्जे में हैं।

पूर्वोत्तर के राज्यों को जिन दो मुद्दों ने झकझोर दिया है वे हैं- राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन विधेयक।

बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने के लिए देश के असली नागरिक कौन हैं, यह तय करना होगा। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से यह पंजीकरण चल रहा है। आरोप है कि इसमें 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। दूसरा मुद्दा नागरिकता संशोधन विधेयक का है। इस विधेयक में विदेशों से आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। यह विधेयक लोकसभा ने पारित कर दिया है, लेकिन राज्यसभा में अभी प्रलम्बित है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में इसी मुद्दे पर अधिक सक्रियता है। छोटे राज्यों का आरोप है कि नए लोग आने से उनका जनसंख्या अनुपात बदल जाएगा और हिंदू प्रभावी हो जाएंगे।

आइये, अब इन राज्यों पर संक्षिप्त नजर डालते हैं। पहले असम से। असम में कुल 14 सीटें हैं। इनमें से 7 फिलहाल भाजपा के पास हैं, जबकि 3-3 कांग्रेस व एआईयूडीएफ (मुस्लिम प्रभावित) के पास व 1 अन्य के पास है। एआईयूडीएफ से भाजपा व कांग्रेस दोनों ने दूरी बनाए रखी है। राज्य में फिलहाल भाजपा सत्ता में है। असम गण परिषद के साथ उसका समझौता है। बीच में नागरिकता संशोधन विधेयक पर हुई असम गण परिषद की नाराजी दूर हो चुकी है। इससे हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होगा और भाजपा फायदे में रहेगी।

अरुणाचल में दो सीटें हैं। भाजपा व कांग्रेस के पास एक-एक सीट है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू अरुणाचल पश्चिम से फिर मैदान में हैं। अरुणाचल पूर्व की सीट 2004 में पहली बार भाजपा ने जीती थी। इसलिए वहां संभावना बनी हुई है। इस बार भाजपा के तपिर गाओ का कांग्रेस के निर्नांग परिंग के साथ कांटे का मुकाबला है। यहां दोनों सीटों की गुंजाईश बनती दिख रही है।

सिक्किम में इकलौती सीट है। वहां तिकोना संघर्ष है। मुख्यमंत्री पवन चामलिंग की पार्टी सिक्किम डेमाक्रेटिक फ्रंट ताकतवर है। विपक्षी पार्टी है सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा। तीसरी पार्टी फुटबॉल खिलाड़ी वायचुंग भूतिया ने बनाई है- नाम है ‘हमरो सिक्किम’। भाजपा ने यहां सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चे से गठबंधन के प्रयास किए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।

मेघालय में 2 सीटें हैं- शिलांग और तुरा। वहां कांग्रेस व नेशनल प्रोग्रेसिव पार्टी दो प्रमुख दल हैं। फिलहाल एनपीपी सत्तारूढ़ है। एनपीपी के नेतृत्व में बने मेघालय डेमाक्रेटिक गठबंधन में भाजपा सहयोगी दल है। वहां भाजपा दोनों सीटें लड़ रही हैं। वहां एनआरसी व गोहत्या बंदी भाजपा के विरुद्ध जाने वाले मुद्दे हैं।

मिजोरम में एक ही सीट है। फिलहाल कांग्रेस के पास है। यह धर्मांतरित ईसाई बहुल इलाका है। निरुपम चकमा वहां पहली बार भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लड़ रहे हैं। नगालैण्ड भी इसी तरह धर्मांतरित ईसाई बहुल सीट है। वहां नगा पीपुल्स फ्रंट मुख्य पार्टी थी, जिससे टूटकर नई नेशनलिस्ट डेमाक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी  बनी और भाजपा के सहयोग से राज्य में सत्ता पर काबिज हो गई।

मणिपुर में दो सीटें हैं। कांग्रेस और भाजपा तुल्यबल स्थिति में है। कांग्रेस से कम सीटें पाने के बावजूद भाजपा ने अन्य छोटे दलों को साथ लेकर वहां सरकार बनाई है। यह हिंदू बहुल इलाका है और इसका भाजपा को लाभ मिल सकता है।

सबसे रोचक मुकाबले त्रिपुरा में हैं। माकपा व भाजपा के बीच तगड़ा मुकाबला है। लोकसभा की दो सीटों के लिए चुतुष्कोणीय मुकाबले हैं। भाजपा व उसकी सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। उनके बीच इसे दोस्ताना संघर्ष कहा जाता है। उनके मुकाबले कांग्रेस व माकपा के प्रत्याशी हैं। इन मुकाबलों का विश्लेषण करने के लिए स्वतंत्र लेख की जरूरत होगी।

पूर्वी भारत

पूर्वोत्तर से पूरब याने पूर्वी भारत की ओर चलें तो यहां भाजपा के अश्वमेध का घोड़ा कुछ अधिक दौड़ता नजर आ रहा है। पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल (42), बिहार (40), झारखंड (14), ओडिशा (21) और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह (1) को शामिल करते हैं। कोष्टक के आंकड़ें कुल सीटों के हैं। इस तरह इन चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में कुल 118 सीटें हुईं।

पश्चिम बंगाल में चाची (चाची 420 फिल्म को याद न करें) को भतीजे ने संकट में डाल दिया है। चाची याने हमेशा आंखें तरारने वाली ममता बैनर्जी और भतीजा याने चाची की सत्ता से लाभ उठाने वाला अभिषेक बैनर्जी।

भतीजावाद के साथ कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति और मुस्लिमों का अति तुष्टीकरण, घुसपैठियों को पनाह देने से पनपा असंतोष ममता को नीचे के पायदान पर खिंच सकता है। हिंदुत्व की जड़ें तेजी से फैल रही हैं। हवा का रुख भांपकर ममता और कांग्रेस दोनों ने हिंदुओं को पुचकारना शुरू किया है। इस तरह राज्य में भाजपा के नेतृत्व में कट्टर हिंदुत्व और ममता-कांग्रेस का ‘नर्म हिंदुत्व’ का झगड़ा है। इसमें माकपा के कहीं रहने का प्रश्न ही नहीं है। इस कारण भाजपा अब महज बनियों तक सीमित नहीं रही, मध्यम वर्ग की पार्टी बन गई है। इस तरह पूर्वोत्तर से आती भाजपा क्रांति इस बार प.बंगाल में होने की संभावना कुछ विश्लेषक व्यक्त कर रहे हैं। इन विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा आधी सीटों तक तो पहुुंच ही सकती है।

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। 2014 में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए ने लालू के आरजेडी व नीतीश कुमार के जेडीयू का सफाया कर दिया था। अकेली भाजपा ने 22 सीटें और उसके सहयोगी दलों ने 9 सीटें इस तरह कुल 31 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने महज एक सीट, जबकि उसके सहयोगी दलों ने दो सीटें जीती थीं। इस चुनाव में नीतिश कुमार एनडीए से हट गए और उन्होंने कांग्रेस व आरजेडी से हाथ मिलाकर महागठबंधन बनाया था। लेकिन भाजपा की हवा में गठबंधन बह गया।

लेकिन तब से गंगा में बहुत पानी बह चुका है। इस बार जेडीयू और भाजपा दोनों प्रत्येकी 17-17 सीटें लड़ रही हैं, जबकि रामविलास पासवान को 6 सीटें दी हैं। पिछली बार 22 सीटें जीतने के बावजूद इस बार 17 सीटों पर ही भाजपा का लड़ना रणनीतिक कदम माना जा रहा है। इन तीनों को छोड़कर बिहार में और कोई दिखता भी नहीं है। इसलिए भाजपा व एनडीए को यहां अच्छा लाभ हो सकता है। कम से कम पिछली बार की 31 सीटें तो मिल ही सकती हैं। भाजपा का मुस्लिम चेहरा शाहनवाज हुसैन भागलपुर से मैदान में है।

झारखंड में कुल 14 सीटें हैं। पिछली बार भाजपा को 12 व शिबू सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा को दो सीटें मिली हैं। भाजपा राज्य में सत्तारूढ़ है। कांग्रेस का सफाया है। अन्य दल कहीं नहीं दिखते। भाजपा के लिए मैदान खुला है।

ओडिशा में बिजू जनता दल (बीजेडी) के नवीन पटनायक की सत्ता को पिछले डेढ़ दशक से कोई हिला नहीं सका। वहां कुल 21 सीटें हैं, जिनमें से 20 बीजेडी ने व एक भाजपा ने जीती है। वहां चार चरणों में चुनाव पूरे हो चुके हैं। बीजेडी की जनकल्याण योजनाएं गांवों के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच गई है, जिसका लाभ उसे अवश्य मिलेगा। इस गढ़ में भाजपा कितनी सेंध लगाती है, यह देखना होगा। अन्य दलों की कोई औकात नहीं है।

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में एक सीट है। वह भाजपा के पास ही है। वहां कोई बहुत उठापटख नहीं हुई है। भाजपा का पलड़ा भारी है।

मध्य भारत

मध्य भारत में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ इन दो राज्यों को लेते हैं। दोनों राज्यों में कुल 40 सीटें हैं। भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर दिखाई देती है। पिछले विधान सभा चुनावों ने कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली है। लेकिन, याद रखना चाहिए कि दोनों राज्यों में दोनों दलों को मिलने वाले वोटों के प्रतिशत में अल्प अंतर है।

मध्यप्रदेश में भोपाल, इंदौर, विदिशा, मुरैना, भिंड, सागर, टिकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, जबलपुर, बालाघाट, बैतूल और रेवा ऐसी 14 सीटें हैं, जहां पिछले 15 वर्षों से भाजपा जीतती रही है। पिछले चुनाव में उसके पास 29 में से 27 सीटें थीं। कांग्रेस केवल माधवराव सिंधिया व कमलनाथ की दो सीटें बचा पाई थीं। ये दोनों कांग्रेस के भीतर प्रतिस्पर्धी गुट हैं। भाजपा ने भी सुमित्रा महाजन जैसे स्थापित सांसदों का पत्ता काटा है। इसका दोनों दलों को कितना नुकसान पहुंचता है इस पर परिणाम निर्भर होंगे, परंतु पलड़ा भाजपा के पक्ष में ही होगा। राजपूत करणी सेना का चुनाव से दूर रहने का फैसला भाजपा के पक्ष में जा सकता है।

छत्तीसगढ़ में पिछले विधान सभा चुनावों में भाजपा की दारुण पराजय हुई थी। कांग्रेस 68 सीटें पाई थीं, भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई थीं। इस पराजय को भाजपा सह नहीं सकी। उसने वर्तमान सभी 10 सांसदों के टिकट काट दिए और नए चेहरे दिए हैं। कुल 11 सीटों में से एक कांग्रेस के पास थी। अजित जोगी की जनता कांग्रेस और बसपा में गठबंधन है। कुछ आरक्षित सीटों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। संघर्ष बहुत नुकीला दिख रहा है।

पश्चिम भारत

पश्चिम भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा ये तीन राज्य व लक्षद्वीप का केंद्रशासित प्रदेश शामिल करते हैं। तीनों राज्यों में भाजपा बहुत ताकतवर दिखाई दे रही है। तीनों राज्यों को मिलाकर कुल सीटें 76 हैं। ये तीनों राज्य जितनी अधिक सीटें भाजपा को देंगे उतना केंद्र में उसे संख्याबल अधिक मिलेगा।

महाराष्ट्र में कुल 48 सीटें हैं। फिलहाल भाजपा 22, सहयोगी शिवसेना 18, राकांपा 5 व अन्य के पास एक सीट है। मतलब एनडीए के पास 40 सीटें हैं। लगभग हर सीट पर सीधी टक्कर है। जिन सीटों पर सीधा मुकाबला है उनके आंकड़ें देखिए- भाजपा-कांग्रेस 16, शिवेसना-कांग्रेस 10, भाजपा-राकांपा 8, शिवसेना-राकांपा 11। कांग्रेस-राकांपा गठबंधन है, जबकि भाजपा-शिवसेना युति कायम है। इस तरह दो गठबंधनों के बीच यह लड़ाई हैं। विस्तार से जाना संभव नहीं है, परंतु एनडीए की राज्य में अच्छी कमाई होगी।

गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है। वहां कोई विशेष चुनौती दिखाई नहीं देती। वहां भाजपा का मताधार कोई 60% का है। इसीमें सबकुछ आ गया। गोवा में भी भाजपा संगठन मजबूत है। राज्य की दोनों सीटें भाजपा के पास है। मगोपा व भाजपा में गठबंधन है, जबकि कांग्रेस अकेले लड़ रही है। केजरीलवाल की आम आदमी पार्टी बीच में नाक घुसेड़ रही है, लेकिन उनका कोई वजूद दिखाई नहीं देता। मनोहर पर्रिकर के जाने का कुछ असर तो रहेगा, लेकिन भाजपा के पार होने में दिक्कत नहीं होगी।

लक्षद्वीप समूह में एक सीट है। यह मुस्लिम बहुल इलाका है। पिछली बार राकांपा के मोहम्मद फैजल जीते थे। वहां हिंदुत्ववादी भाजपा का जीतना कुछ मुश्किल है।

दक्षिण भारत   

दक्षिण भारत में सीमांध्र, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु इन पांच राज्यों व केंद्रशासित प्रदेश पुडुच्चेरी को शामिल करते हैं। यहां कुल 130 सीटें हैं। भाजपा के लिए कर्नाटक में ही अच्छे अवसर हैं, केरल में मुश्किल है, तेलंगाना में सहयोगी टीआरएस से भाजपा अलग होकर लड़ रही है, जबकि शेष राज्यों में सहयोगी दलों के साथ है। दक्षिण में भाजपा और भाजपातर दलों में ध्रुवीकरण हो चुका है, जिससे भाजपा को केवल सहयोगी दलों पर ही निर्भर रहना होगा।

आंध्र का विभाजन होकर होकर सीमांध्र और तेलंगाना दो राज्य बन चुके हैं। सीमांध्र में चंद्राबाबू नायडू की तेलगू देशम सत्ता में है। पिछला चुनाव उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और फिल्म अभिनेता पवन कल्याण की पार्टी जनसेना का समर्थन था। उनका जगमोहन रेड़ी की वाईएसआर कांग्रेस के साथ मुकाबला था।  तेलगू देशम को 15 व वाईएसआर कांग्रेस केा 8 सीटें मिली थीं। दोनों में मतों का अंतर मात्र 0.4% था। राहुल की कांग्रेस का नामलेवा भी कोई नहीं है। चंद्राबाबू एनडीए से नाता तोड़ चुके हैं। अब तेलगू देशम, भाजप व वाईएसआर कांग्रेस स्वतंत्र रूप से लड़ रहे हैं। संघर्ष तिकोना होने का लाभ भाजपा को मिल सकता है। वहां जातिगत राजनीति हावी है। कापू, रेड्डी व कम्मास के वोट निर्णायक हैं। इसमें से रेड्डी समुदाय जगमोहन रेड्डी के साथ व शेष चंद्राबाबू के साथ हैं। किस तरफ कितना ध्रुवीकरण होगा, इस पर परिणाम निर्भर होंगे।

तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं। के.चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के पास 12, कांग्रेस 2, भाजपा 1 व अन्य के पास 2 सीटें हैं। वर्तमान में भी टीआरएस का तूफान थमता नजर नहीं आता। यदि केंद्र में त्रिशंकू स्थिति बनी तो टीआरएस के हाथ में तुरूप का पत्ता आ जाएगा। एक दिलचस्प बात लिखने का मोह संवर नहीं रहा। के. चंद्रशेखर राव कवि हैं और वे अपनी पार्टी के प्रचार गीत स्वयं लिखते हैं।

दक्षिण में सेंध लगाने का भाजपा का प्रयास कर्नाटक में सफल रहा है। 2014 में भाजपा ने 28 में से 17 सीटें जीती थीं, कांग्रेस 9 पर व जेडीएस 2 पर थी। 2018 के विधान सभा चुनाव में येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन 28 सीटों वाली जेडीएस ने 78 सीटों वाली कांग्रेस के साथ गणित जमाकर भाजपा को सत्ता से बाहर रखा और देवेगौड़ा के पुत्र कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। जोड़तोड़ से अल्पमत वाले भी कैसे सत्ता पा जाते हैं, इसका यह उदाहरण है। देवेगौड़ा स्वंय भी इसी तरह प्रधानमंत्री बने थे। उनका पूरा परिवार याने दोनों पुत्र, बहुएं व वे स्वयं मंत्री, विधायक या सांसद हैं। राज्य में असली टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। भाजपा के हावी रहने के संकेत हैं।

केरल में 20 सीटें हैं। वहां दो गठबंधनों में टक्कर है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन यूडीएफ कहलाता है, जबकि माकपा के नेतृत्व वाला वामपंथी गठबंधन एलडीएफ कहलाता है। यूडीएफ के पास फिलहाल 12 व एलडीएफ के पास 8 सीटें हैं। राहुल गांधी राज्य के वायनाड से भी मैदान में हैं। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला काफी गरमाया था और इससे हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो भाजपा के लिए अवसर है। अब तक राज्य से भाजपा ने एक भी सीट नहीं जीती है।

तमिलनाडु में अन्ना-द्रमुक व द्रमुक के बीच ही असली संघर्ष है। कांग्रेस या भाजपा का कोई विशेष अस्तित्व नहीं है। इसलिए भाजपा ने अन्ना-द्रमुक के साथ व कांग्रेस ने द्रमुक के साथ गठबंधन किया है। वहां चतुष्कोणीय मुकाबले हैं- अन्ना-द्रमुक, द्रमुक, कमल हासन की पार्टी मक्कल निधि मइयम और अन्ना-द्रमुक से बाहर आए टीटीवी दिनकरन की अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कडघम। पड़ोसी पुडुच्चेरी में एक सीट है और वहां कांग्रेस का दबदबा बताया जाता है।

उत्तर भारत

उत्तर भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली शामिल करते हैं। इनमें कुल 151 सीटें हैं।

राजस्थान में पिछले वर्ष के विधान सभा चुनाव में भाजपा के विरोध में हवा बह गई। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधराराज सिंधिया के खिलाफ ‘रानी तेरी खैर नहीं, मोदी से बैर नहीं’ यह नारा खूब चला था। सरकार विरोधी असंतोष के चलते भाजपा कुल 200 में से 73 सीटों पर पार्टी सिमट गई, जबकि कांग्रेस को 100 सीटें मिलीं और गहलोत मुख्यमंत्री बने। लेकिन अब हवा का रुख फिर पलट गया लगता है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की पूरी की पूरी याने 25 सीटें जीती थीं, अब की बार भी दो-तिहाई से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद लगाई जा रही है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में 80 सीटें हैं। पिछले चुनाव में मोदी लहर में भाजपा को 71 सीटें मिली थीं। शेष 9 सीटें ऐसी हैं, जो सभी भाजपा विरोधी दलों के परम्परागत गढ़ हैं। बसपा-सपा गठबंधन में कुछ दम अवश्य है। हिंदू वोट बैंक टूटता दिख रहा है। कांग्रेस, भाजपा और हिंदुस्थान निर्माण पार्टी में यह विभाजित होगा। यादव, जाट और जाटव जातियों में वोटों का जातिगत ध्रुवीकरण है। प्रियंका की इंदिरा छवि का कुछ असर दिख रहा है। राहुल गांधी पिछडे विरुद्ध अतिपिछड़े गुटों को जोड़ने में लगे हैं। याने गैर-यादव, गैर-कुर्मी, गैर-जाटव आदि। राज्य में अतिपिछड़ों का 34% का वोट बैंक है। गंगा घाटी में मल्लाहों की संख्या 17% है। प्रियंका की गंगा यात्रा का यही कारण है। कांग्रेस की नजर इसी पर है। अतिपिछड़े यदि कांग्रेस की ओर झुक गए तो इसका बसपा-सपा और भाजपा दोनों को नुकसान होगा।

हरियाणा में कुल 10 सीटें हैं। 2014 में इनमें से 7 भाजपा ने, ओमप्रकाश चौटाला की आईएनएलडी ने 2 व कांग्रेस ने 1 सीट जीती थीं। हरियाणा में 29% वोटों के साथ जाट ताकतवर कौम है। जाटों की आरक्षण की मांग को लेकर तीव्र आंदोलन हुए हैं। वहीं, सोनियाजी के दामाद राबर्ट वाड्रा और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हूड़ा जमीन घोटाले में फंसे हुए हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस का दबदबा न के बराबर है, चौटाला कुछ पा सकते हैं; लेकिन भाजपा सर्वाधिक सीटें ले जाएंगी। फिलहाल भाजपा की राज्य में सत्ता है और मनोहरलाल खट्टड़ मुख्यमंत्री हैं। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का यहां कुछ असर है।

पंजाब में कुल 13 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन को 6, आम आदमी पार्टी को 4 और कांग्रेस को 3 सीटें मिली थीं। 2017 के विधान सभा चुनाव में कैप्टन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस सत्ता में लौटी है। आप का दबदबा कायम है। यहां भाजपा को सहयोगी अकाली दल के साथ ही रहना होगा। अब पहले जैसी स्थिति नहीं दिखती। ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना कठिन जान पड़ता है।

उत्तराखंड में 5 सीटें हैं। सभी भाजपा के पास हैं। भाजपा का दबदबा अब भी कायम है। कुमायूं व गढ़वाल दो पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य बंटा हुआ है। प्रियंका, राहुल, मोदी की सभाएं हो चुकी हैं। उत्ताखंड क्रांति दल की हालत दयनीय है। कभी इसी ने उत्तराखंड के निर्माण का आंदोलन चलाया था। कांग्रेस की हालत भी पतली है।

हिमाचल में केवल चार सीटें हैं। सभी भाजपा के पास हैं। इस बार भाजपा के ‘हैट्रिक’ की संभावना है। भाजपा के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मातृशक्ति सम्मेलन आयोजित कर महिलाओं को आकर्षित करने में लगे हुए हैं। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह विभिन्न घोटालों में अटके हुए हैं। उनके सुझाव पर केंद्रीय नेतृत्व ने सुखविंदर सिंह सुखू को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर कुलदीप सिंह राठोड़ को तैनात किया है। इससे गुटबाजी पनपेगी और कांग्रेस को नुकसान होगा।

जम्मू-कश्मीर में कुल 6 सीटें हैं। वह तीन क्षेत्रों में बंटा हुआ है- जम्मू (2 सीटें), लद्दाख (1 सीट) व कश्मीर (3 सीटें)। जम्मू हिंदू बहुल व लद्दाख बौद्ध बहुल सीटें हैं, जबकि कश्मीर मुस्लिम बहुत। फिलहाल मेहबूबा मुफ्ती की पीडीपी के पास एक, भाजपा के पास दो व फारुक अब्दुल्ला की नेशनल कांग्रेस के पास एक सीट है। लद्दाख की सीट भाजपा ने जीती थी, लेकिन केंद्रशासित प्रदेश बनाने की मांग को लेकर उसके सांसद थुपसिन छेआँग ने इस्तीफा दे दिया। मेहबूबा मुख्यमंत्री बनने से अनंतनाग सीट भी रिक्त है। अब भी स्थिति में कोई विशेष अंतर दिखाई नहीं देता। पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से केवल कश्मीर घाटी त्रस्त है, अन्य दो क्षेत्र लगभग शांत हैं। दिलचस्प मुकाबला उधमपुर से है, जहां जम्मू-कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह के पोते विक्रमादित्य मैदान में है। यह राजपूत बहुल सीट है।

दिल्ली में कुल 7 सीटें हैं। राज्य में केजरीवाल की आप सत्ता में है। उनकी केंद्र से हमेशा अनबन बनी रहती है। कांग्रेस का विरोध कर सत्ता हासिल करने वाले केजरीवाल का दूसरा चेहरा यह है कि वे कांग्रेस से ही गठबंधन को उत्सुक है। कांग्रेस हाथ पीछे खिंचती रही है। ताजा खबर यह है कि कांग्रेस ने केजरीवाल को चार सीटें देने का प्रस्ताव किया है। कांग्रेस की शीला दीक्षित गठबंधन के पक्ष में नहीं है। फिलहाल भाजपा का पलड़ा झुकता दिख रहा है। 2014 की मोदी लहर में सभी सात सीटें भाजपा को मिली थीं। इसमें कुछ टूटफूट की संभावना है।

केंद्रशासित प्रदेश दादरा नगर हवेली में एक लोकसभा सीट है। भाजपा के नथूभाई पटेल पिछली दो बार से जीत रहे हैं। अबकी बार फिर वही स्थिति बनने की संभावना है, क्योंकि छह बार कांग्रेस से जीते डेलकर अब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ हैं।

पाठक कृपया याद रखें कि ये महज अनुमान हैं। विभिन्न सूत्रों से चुनावी सूचनाएं प्राप्त होती रही हैं और इन्हीं सूचनाओं के संकलन पर आधारित यह सर्वेक्षण है। राजनीति ऐसी दलदल होती है कि कहां कीचड़ अधिक है यहा कहां कम इसे भगवान ही नाप सकता है। इसलिए इसमें कमोबेशी संभव है।

 

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