ग्रामीण समृद्धि  एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए जीव जंतुओं का संरक्षण जरूरी है 

हमारे वेद पुराण और ग्रंथों में पशुओं  के सम्मान का विस्तृत वर्णन है. पशु  संरक्षण के महत्व का उल्लेख आदि काल से है. यही कारण है पशुओं को  देवी-देवताओं का दर्जा दिया  गया है. देसी गाय के दूध   की तुलना अमृत से  की गई है. गाय के बारे में चर्चा करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने कहा था कि- ‘गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा. गाय नष्ट होगी तो उसके साथ, हमारी सभ्यता और अहिंसाप्रधान संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी और पीछे रह जाएंगे भूखे-नंगे हड्डी के ढ़ांचेवाले मनुष्य  जो अपना सामान्य जीवन जीने के लिए सक्षम नहीं होंगे.

बड़े दु:ख का विषय है कि आज पशुओं के प्रति लोगों का रवैया ठीक नहीं है।  कुछ लोग ऐसे हैं कि करुणा की बातें करते हैं किंतु व्यावहारिक कार्य कुछ भी नहीं है. लोग महात्मा गांधी के जीवदया और करुणा के बारे में चिंतन, आत्म मंथन  और आदर्शों को भूलते जा रहे हैं. आज जगह-जगह  तमाम तरह के  आंदोलन होते हैं उनमें  जीवदया  करुणा  और पशु कल्याण की  जमीनी हकीकत नहीं के बराबर होती है.  मैं आपको बताना चाहूंगा  कि पशु कल्याण का मामला पर्यावरण और  अन्न  जुटाने के प्रबंध से लेकर  पशु कल्याण के सभी मामलों तक एक दूसरे से जुडा हैं.  यूरोपियन देशों के मुकाबले हमारे देश में भूमि की उर्वरता बनाए रखने में “कार्बन” और “ह्यूमस”  की मात्रा 5%  के बजाय 0.5% है.

यही कारण है कि  आज न तो पर्याप्त पैदावार है और न ही अन्य की गुणवत्ता. खेती में ऑर्गेनिक खाद की कमी के कारण उत्पादन लागत बढ़ती जा रही है. हमारे देश में 2100  मैट्रिक टन  गोबर पैदा होता है जिसमें से 700 मैट्रिक टन ईंधन के लिए प्रयोग किया जाता है और 320 मैट्रिक टन गोबर से खाद बनाई जाती है.  गाय के गोबर में एक महत्वपूर्ण बैक्टीरिया पाया  जाता है जिसका नाम है “माइकोबैक्टेरियम वेकासी” और इससे निकलने वाली गंध  से मस्तिष्क की  न्यूरॉन  नामक कोशिकाएं  अत्यंत क्रियाशील हो जाती है. जिसका सबसे बड़ा प्रभाव यह होता है कि मस्तिष्क में सूचनाओं को एकत्र करने की क्षमता बढ़ जाती है. इससे कई असाध्य मानसिक रोगों को ठीक होते हुए पाया गया है.

गाय के दूध के साथ साथ गोबर एवं मूत्र की उपयोगिता का जितना बखान करें उतना ही कम है. आपको स्मरण दिलाना चाहते हैं कि गोमूत्र से कई प्रकार की औषधियां बन रही है. पंचगव्य की दवाएं आज अमेजॉन पर उपलब्ध है. भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड ने गौ संरक्षण की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं जिसमें गोचर विकास,  मानव संसाधन के लिए मानव जीव जंतु कल्याण अधिकारियों का प्रशिक्षण एवं उन्हें  क्रूरता निवारण के लिए अधिकारिता प्रदान करना,  पशु चिकित्सा संबंधी सुविधाएं प्रदान करना, गौशाला निर्माण के लिए मार्गदर्शन देना, नियम कानूनों के प्रति जानकारी देकर पशुओं पर होने वाले अत्याचार को नियंत्रित करना आदि कार्य किए जा रहे हैं. अभी पिछले महीने में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना की है जिसमें 750 करोड़ रुपए की अनुदान सहायता का प्रावधान है.

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग पशुओं के संरक्षण संवर्धन एवं सुरक्षा के सभी मुद्दों  का सामना करने के लिए किसानों एवं पशु प्रेमियों की सहायता करेगा. देश के कई भागों में बहुत अच्छे कार्य हुए हैं जिनमें गौ संवर्धन के कई अनूठे प्रयास किए गए हैं. अगर इस दिशा में गौ सेवा एवं गोचर विकास बोर्ड गुजरात का उल्लेख करें तो अवश्य आपको अच्छा लगेगा. गौ सेवा एवं विकास बोर्ड गुजरात ने अपने प्रदेश में कॉउ हॉस्टलस , गौशाला के पशुओं में माइक्रोचिप इमप्लांट करना, वनवासियों को गौशाला कार्यक्रम से जोड़ना, पंचगव्य की दवाओं के निर्माण, उत्पादन एवं विपणन के नेटवर्क तैयार करना, पशु चिकित्सा के लिए 24X7 सेवाएं देना, आम आदमी को गौ कथा जैसे जागरूकता पैदा करने वाले कार्यक्रम आयोजित कर गौ सेवा करने के लिए प्रशिक्षित करने जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बैलों की संख्या में निरंतर कमी हो रही है. क्योंकि, हमारे देश में बैल यानी बछड़े की कोई कीमत नहीं है नतीजन उन्हें वधशाला भेज दिया जाता है. प्रदेश सरकारों को चाहिए कि बछड़ों की उपयोगिता पर नए नए कार्यक्रम संचालित करें. आंकड़े बताते हैं कि 2007 से 2012 के बीच में 2% बैल देश से विलुप्त हो गए. 19वीं पशु जनगणना के हिसाब से पशुओं के कुल आबादी के 3% पशु लावारिस हैं और दिन-ब-दिन यह संख्या बढ़ती जा रही है. 19 वी पशु जनगणना के अनुसार 190 लाख कुल पशुओं की संख्या में से 59 लाख पशु लावारिस थे. मैं मानता  हूं विदेश में इसके लिए जागरण का अच्छा कार्य हो रहा है किंतु वह काफी नहीं है. अभी हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार  20% ऑर्गेनिक फूड का प्रोडक्शन किया जा रहा है जिसमें 10% ऑर्गेनिक फार्मर  ऑर्गेनिक खेती में और जुड़ गए हैं. देश के सभी मेट्रो शहरों में ऑर्गेनिक आउटलेट्स खुलते ही जा रहे हैं. हरियाणा की मिट्टी से निकले स्वामी रामदेव के फूड प्रोडक्शन की सफलता जग जाहिर है.

पशुओं का कल्याण, संरक्षण, संवर्धन आज एक ऐसा मुद्दा है जो विश्व के पर्यावरण जैसे मुद्दे से ही नहीं जुड़ा है बल्कि जलवायु परिवर्तन  नियंत्रण का एक बहुत बड़ा और जिम्मेदार कारक है. इसलिए पशु कल्याण के मुद्दे को या गौ संरक्षण के मुद्दे को हमें आगे लाना होगा और इसकी सभी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. “ऋषि कृषि” की व्यवस्था अपनानी होगी जिसमें स्वभाविक तौर पर जीवदया या पशु कल्याण का मामला जुड़ा रहना चाहिए. हालांकि अपने देश में गौ संवर्धन और गौशाला विकास में लगे लोगों ने काफी उत्साहवर्धक कार्य किए हैं, जिसमें पंचगव्य के निर्माण, विपणन  एवं अनुसंधान का प्रयास उल्लेखनीय है. आज जरूरत इस बात की है कि इस प्रयास को सरकार निधि से जो दे तो यह दिन दूना रात चौगुना आगे बढ़ेगा. इससे पशुओं की तस्करी तथा अवैधानिक वध पर नियंत्रण मिलेगा और ग्रामीण विकास के नए नए-नए रास्ते खुलेंगे.

देशभर में तकरीबन 15,000 गौशालाए हैं  फिर भी और गौशालाओं की जरूरत है. रोज नई-नई गौशाला स्थापित की जाए और उसमें पशु स्वास्थ्य से लेकर के उनके संरक्षण की सारी व्यवस्था हो तो देसी नस्लों के संरक्षण की आवाज और बुलंद हो जाएगी. राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अनुसार गौ संरक्षण की सूचनाओं को कृषि के माध्यम से आम आदमी तक ले जाने की योजना पर विचार किया जा रहा है ताकि देश में सबसे अधिक होने वाले गो वंशीय अपराध एवं उन पर होने वाली क्रूरता की घटनाएं रोकी जा सके.

लेखक भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं  समस्त महाजन संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी हैं.

 

 

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