नाशिक कुंभ का नियोजन

सन 2027 और उसके बाद भी कुंभ मेले का केंद्र बिंदु मूल रामकुंड यानी रामघाट ही रहने वाला हैं। रामकुंड एवं लक्ष्मण कुंड को एकरूप किया गया है। इस कुंड का और विस्तार किया जाएगा। शाही मार्ग को चौड़ा करके न्यूनतम 30 मीटर यानी 100 फुट बनाया जाएगा। गोदावरी मैया तक पहुंचने वाली अन्य सड़कें भी चौड़ी कर जाएगी।

हाल में सम्पन्न प्रयागराज कुंभ मेले की तैयारी पिछले 4-5 साल से चल रही थी। केंद्र की मोदी सरकार ने संपूर्ण सहयोग देने की बात सामने रखी थी, पर पिछली समाजवादी राज्य सरकार ने काम में लापरवाही बरती। इसके चलते नई योगी सरकार को तेजी के साथ काम करना पड़ा। मुख्यमंत्री योगी और भाजपा की विभिन्न शाखाओं ने मिलकर बड़े पैमाने पर सरकारी विचारधारा को कार्यप्रवाहित करके “क्राऊड मैनेजमेंट” में एक नई मिसाल पेश की। भारतवर्ष में नाशिक+त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन, हरिद्वार और प्रयागराज में सिंहस्थ कुंभ मेला मनाया जाता है। पहली तीन जगहों पर 12 वर्ष बाद आने वाले इस “हिंदुत्सव” को पूर्ण कुंभ माना जाता है, और प्रयागराज में 6 वर्ष बाद आने वाले को अर्धकुंभ कहा जाता है।

गौर करें तो समझ में आएगा कि अर्धकुंभ की तैयारी लगातार चलती है, पर पूर्ण कुंभ की तैयारी में रूकावट आती है। इस रूकावट की वजह से प्लानिंग में कठिनाई, बाधाएं आती हैं। इसी वजह से पूर्ण कुंभ की सफलता कुछ कम दिखती है। अर्धकुंभ की प्लानिंग करते समय सिर्फ 6 साल का विचार करते हैं, जिसके चलते अल्पावधि योजना में अपेक्षित नतीजे मिलना संभव हैं। पूर्ण कुंभ की योजना, 12 साल के विचार पर आधारित होने से, दीर्घावधि योजना की श्रेणी में आती है, जिसके चलते अपेक्षित नतीजें मिलना बड़ा कठिन होता है। 12 साल में जनसंख्या और संसाधनों में इतना फर्क आ जाता है कि आगे की सोच दुधारी तलवार जैसी होती है। प्रयागराज कुंभ-2019 की सफलता की चर्चा अभी जारी हैं। आइये, अब चर्चा करते हैं नाशिक कुंभ की योजना के बारे में।

नाशिक कुंभ-2003

आपको 31 अगस्त 2003 का दिन और तारीख याद हैं? नहीं… अरे इसी दिन तो केवल सरकारी लापरवाही की वजह से नाशिक का नाम पूरी दुनिया में बदनाम हुआ था, मानो शहर की नाक कट गई थी। उस काले इतवार को 21वीं सदी के पहले ही कुंभ मेले का दूसरा शाही स्नान था (नाशिक कुंभ में 3 शाही स्नान होते हैं, जिसमें दूसरे शाही स्नान को सबसे ज्यादा भीड़ होती हैं)। शाही स्नान के लिए शोभा यात्रा में जाते हुए संत और साधु आनंद लेते हैं। नाशिक में गोदावरी मैया के पूर्व छोर पर पंचवटी चौराहे से सरदार चौराहे के इलाके में भक्तों की भीड़ बेकाबू हो गई और 27 बेकसूर श्रध्दालू कुचल कर मर गए। उन बेबस लोगों को अगर यह पता होता कि सरकारी बाबुओं की नकारात्मक सोच का शिकार उन्हें होना पड़ेगा तो वे शायद नाशिक आते ही नहीं। पिछले पापों के क्षालन और  पुण्य कमाने के इरादे से आए भक्त फिर अपने गांव लौट नहीं सके। गलती किसकी, और भोगना किसे पड़ा!

हम भारतीय “चलता है” की बाधा से पीड़ित है, जिसके चलते गलतियों को सुधारने की हमारी इच्छा नहीं होती। नाशिक कुंभ की इस दुर्घटना के इस इतिहास को दोबारा दोहराना न हो तो नए सोच की जरूरत थी। भविष्य में आने वाली मानव निर्मित आपात की चेतावनी ने नाशिक नगर निगम को होश में लाया। ऐसा हादसा दोहराया न जाए इसलिए नगर रचनाकार याने सिटी प्लानर की भूमिका अहम मानी गई। नगर निगम में एक उच्च समिति का गठन किया गया। लेखक को बतौर सिटी प्लानर और नगर निगम के वास्तु सलाहकार के रूप में किए गए योगदान के कारण उस समिति में कार्य करने का अवसर मिला।

भीड़ नियंत्रण का पूर्व प्रयास

पिछले 150-200 साल से गोदावरी नदी के समीप की बस्ती में कोई खास बदलाव नहीं आया है। 2003 के पहले छोटी- छोटी घटनाएं जरूर हुई थीं, पर उस पर किसी ने विशेष ध्यान नहीं दिया। हर बार बढ़ने वाली आबादी को पवित्र रामघाट पर स्नान करना आसान हो केवल इस छोटे से उद्देश्य से रामघाट एवं लक्ष्मण घाट के बीच की दीवार को तोड़कर विस्तीर्ण रामघाट का निर्माण किया गया। उस कुंभ में बड़े पैमाने पर साधु एवं श्रध्दालुओं को रामघाट में डुबकी लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस छोटे से बदलाव के अलावा और कुछ नहीं किया गया।

सन 2003 के कुंभ पर्व में नगर निगम एकदम सोता रहा। पिछला कुंभ बिना किसी कठिनाई से गुजर गया था, इसलिए सब चैन में थे। पिछले और इस कुंभ के दौरान नगर की पहली विकास योजना याने डेवलपमेंट प्लान तैयार हुआ। उस प्लानिंग कमेटी ने कुंभ और उसकी विशेष आवश्यकता को नजरअंदाज किया। इसकी सजा नाशिक को अगले 22 साल भुगतनी पड़ी।

नई प्लानिंग की शुरूवात :

नाशिक कुंभ 2003 ने मानो कुंभकर्ण को गहरी निद्रा से जगाया। हमारी उच्च समिति की पहली ही बैठक में हादसे की गंभीरता पर ध्यान दिया गया। उन दिनों वाजपेयी सरकार ने कड़ी चेतावनी देकर नगर निगम को कदम उठाने पर मजबूर किया था। सिटी प्लानर होने के नाते लेखक को विशेष जिम्मेदारी दी गई। कुंभ मेले का इतिहास और आने वाले अतिथियों की श्रध्दा पर जोर दिया गया। आने वाले भक्तगणों में सबसे अधिक लोग उत्तर एवं मध्य भारत से आते हैं और इसलिए उनकी सुविधा प्रमुख बन जाती हैं।

नाशिक शहर में केवल एक ही रेल्वे स्टेशन है, और उसकी अपनी क्षमता है। इसलिए पास वाले ओढा स्टेशन पर ज्यादा से ज्यादा ट्रेनें रोकी जाती हैं। नाशिक रोड़ स्टेशन पर नियमित ट्रेनों की भीड़ पहले से ही अधिक है, उसकी वजह से कुंभ विशेष ट्रेनें बड़ी मात्रा में वहां नहीं रोकी जा सकती। पास में ही दशरथ घाट पड़ता है (इस दशरथ घाट पर प्रभु श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था)। पूछताछ में ऐसा पाया गया कि कई भक्त दशरथ घाट पर भी स्नान करते हैं। निजी टैक्सी और रिक्षा वाले अक्सर भक्तों को इसी दशरथ घाट पर छोड़ जाते हैं, जिसके चलते कई भक्तों को लगता है कि यही रामघाट है। दशरथ घाट का महत्व इससे समझ में आता है।

कुंभ मेले में जो साधुग्राम बसता है वह रामघाट और दशरथ घाट के बीच होता है। कालाराम मंदिर से रामघाट तक का शाही मार्ग एकदम संकीर्ण और तेज ढलान वाला हैं। इसके दोनों ओर एक दूसरे से सटे मकान हैं। किसी ने एक इंच जगह नहीं छोडी है। रास्ते की चौड़ाई केवल 16 फुट है। गोदावरी नदी के किनारे सड़क फिर चौड़ी और समतल जमीन पर हैं। तेज ढलान वाली सड़क के एक छोर पर नाग चौक और दूसरी छोर पर सरदार चौक है। सरदार चौक में उतनी ही तेज ढलान वाली दूसरी शनि गली की सड़क आकर मिलती हैं। इसी जगह पर फेंके गए पैसे उठाने के चक्कर में भगदड़ मच गई और वह शर्मनाक हादसा हो गया।

सन 2015 के कुंभ में ऐसी आपात स्थिति से बचाव और भविष्य के संकट पर विचार किया गया और 2 सुझाव दिए गए।

स्कायवॉक की संकल्पना

मुंबई महानगर में लाखों की भीड़ हर जगह पैदल चलते दिखती है। यह समस्या नाशिक कुंभ से काफी मिलती-जुलती है।  मुंबई के रेल्वे स्टेशन हो, सरकारी दफ्तर हो, बाजार हो या मॉल हो, सब जगह इतनी भीड़ होती है कि सड़कों पर लंबा जाम लगता था। रोज की इस समस्या को दूर करने के लिए सभी जगह पर “स्कायवॉक” बनाए गए। इसे तकनीकी भाषा में ग्रेड सेपरेटर कहा जाता है।

गत कुंभ मेलों का अध्ययन करने पश्चात ध्यान में आया कि साधु और भक्तगणों को आने और जाने के लिए एक ही रास्ता है। पवित्र स्नान करने जाने वाले तेजी से चलते हैं। पीछे आ रही भीड़ भी धक्का मारती है। स्नान करके लौटने वाले धीरे-धीरे चलते हैं। आस्ते-आस्ते कदम बढ़ाते हैं। ऐसी स्थिति में आने एवं जाने वालों में टकराव होता हैं। इस संभावना को टालने के लिए रामघाट पर पहुंचने के मार्ग एवं वहां से निकास का मार्ग भिन्न होना आवश्यक है। इसके लिए ग्रेड सेपरेटर का सुझाव रखा गया। बिना किसी परेशानी से और सुलभता से निर्माण कार्य भी होगा। गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर पानी की धारा के आसपास की जमीन एकदम ऊंची है। गोदावरी मैया इस तरह घाटी में है। इसीलिए ग्रेड सेपरेटर यानी स्कॉयवॉक का सुझाव दिया था।

लौटने वाले श्रद्धालुओं को एक ऊंचाई तक चढ़ाकर वहां से एकदम सीधे चलाया जाए तो ठीक होगा। चलने वाला दूर तक चलकर सुरक्षित जगह पहुंचा तो भीड़ कम होगी। नाशिक की संस्कृति का खयाल रखते हुए वहां के धार्मिक वास्तुकला का इस्तेमाल करके इसका निर्माण करना संभव था। स्कायवॉक तक पहुंचने के लिए सीढ़िया एवं “एस्कलेटर” का उपयोग करना तय था। रामघाट से साधुग्राम के द्वारा तक की दूरी स्कायवॉक से बड़ी आसानी एवं तेजी से पूरी होती।

स्कायवॉक एकदम व्यावहारिक सुझाव था लेकिन पंड़ितों की पंचायत ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि इसके बनने से गोदावरी नदी के किनारे वाली प्राचीन वास्तुरचना दब जाएगी और रामघाट का नजारा लुप्त हो जाएगा। पंड़ितों की पंचायत बड़ी ताकतवार है। धर्म के मामले में उनका शब्द आखरी माना जाता है। और, कुंभ हिंदू धर्म का सबसे बड़ा उत्सव होने से उनका कहना स्वीकार किया गया और स्कायवॉक नहीं बना।

नए रामघाट की परियोजना

स्कायवॉक योजना अस्वीकार करने के बाद दशरथ घाट और उसके ऐतिहासिक मूल्य से प्रेरणा लेते हुए नया रामघाट बनाने की बात सामने आई। भारत वर्ष की आबादी दिन-ब-दिन बढ़ रही है, साथ ही यातायात के नए साधन उपलब्ध होने से धार्मिक पर्यटन बढ़ रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए नया रामघाट बनाने का सुझाव दिया गया। दूर से आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने का सबसे आसान तरीका है उसे अलग-अलग हिस्सों में बांटना। कम भीड़ होने पर अनुशासन आसान होता हैं।

जैसे कि पहले बताया है, कुंभ मेले में नाशिक रोड़ एवं ओढा दोनों रेल्वे स्टेशनों पर यात्रियों को उतारा जाता है। दोनों जगहों से रामघाट जाने के रास्ते में पहले दशरथ घाट आता है। हमने इसी बात को ध्यान में रखते हुए दशरथ घाट की जगह पर नया रामघाट बनाने का सुझाव दिया। उच्च समिति के एक गैरतकनीकी सदस्य ने सुझाव दिया कि नए रामघाट का निर्माण-ऐतिहासिक मूल रामघाट से मिलती-जुलती डिझाइन का हो, ताकि लोग उसका स्वीकार करें। आपातकाल स्थिति में मदद कम समय में पहुंचनी जरूरी होती है। साथ ही पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को भी जल्द से जल्द दुर्घटना स्थल पर पहुंचना होता है। अतः वाहनों के लिए 2 मार्ग बनाए हैं। ये मार्ग इनके चौड़े हैं कि उससे अग्निशमन वाहन भी आसानी से जाएंगे।

कुंभ मेले का पर्वकाल मात्र 1 महीने का होता है। इसके बाद 12 साल इस नए रामघाट का इस्तेमाल पर्यटकों को हो इस दृष्टि से कुछ नया विचार सामने आया है। रामघाट की सीढ़िया मात्र 30 मीटर लंबी हैं। उसके बाद पेड़ लगाने के लिए एक बड़ी जगह छोड़ी है। जो पेड़ लगाए गए वे अभी बढ़ रहे हैं। अगले 2027 के कुंभ मेले तक पूरी तरह छाया देते नजर आएंगे (आजकल आसपड़ोस के लोग इस छाया का आनंद लेते नजर आते हैं)।

नए रामघाट के नक्शे उच्च समिति को सौंपने के बाद उस पर चर्चा हुई। इस संकल्पना की पृष्ठभूमि बाकी सदस्यों को समझाई गई। दूर-दूर से आने वाले भक्तगणों को दशरथ घाट में पवित्र स्नान कराने के बाद उसे साधुग्राम जाने का रास्ता राज्य राजमार्ग होने से चलना आसान होगा। इस डिज़ाइन से प्रभावित होकर एक मॉडल बनाने की अनुमति दी गई। नगर निगम में टेंडर प्रक्रिया पूरी करके काम शुरू हुआ। कांट्रैक्टर तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का करीबी था। काम में बड़ी सुस्ती दिखाई दी। अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आखिर सन 2010 में पूरा होने वाला काम 2013 तक खिंच गया। इसका नतीजा यह है कि यह मॉडल अब दशरथ घाट से लेकर रामघाट तक करने का निश्चय हुआ। उस समय के स्थानीय मंत्रीजी ने नगर निगम की बजाय राज्य सरकार के सिंचाई विभाग से काम पूरा करने का निर्णय लिया।

सिंचाई विभाग ने कभी नगर आयोजना के काम नहीं किए हैं। असल में यह उनका काम भी नहीं है। लेकिन फिर भी लालच में आकर काम की शुरूआत की गई। सबसे पहले तो नगर निगम को दूर रखा गया। फिर केवल दिखावे का काम किया गया। आपातकालीन बचाव कार्य में अहम जिम्मेदारी निभाने वाले स्वास्थ्य, अग्निशमन एवं पुलिस के वाहनोेंं के लिए बनाया गया रस्ता हटा दिया।

अगले कुंभ की तैयारी

नाशिक महानगर की विकास योजना पेश किए के पूर्व ही बाहर बिक रही थी। इसके चलते शहर भर में बड़ा हंगामा हुआ और उसे रद्द कर दिया गया। नया प्लान बनाने वाली समिति में लेखक को तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में शामिल किया गया। इसके पहले किसी भी विकास योजना में सिंहस्थ कुंभ मेले के मद्देनजर नियोजन नहीं किया गया। किसी ने सोचा भी नहीं। लेकिन लेखक ने प्रस्तुत प्लान में कुंभ मेले के आयोजन के प्रति विशेष ध्यान दिया।

सन 2027 और उसके बाद भी कुंभ मेले का केंद्र बिंदु मूल रामकुंड यानी रामघाट ही रहने वाला हैं। मोदी सरकार ने प्रदूषण कम करने का फैसला किया है, इसलिए “कार्बन फुट प्रिंट” कम करने की योजना बनाने की बात सामने रखी है। शाही मार्ग को चौड़ा करके न्यूनतम 30 मीटर यानी 100 फुट बनाया जाएगा। कुछ जगह पर पुराने जर्जर मकान गिराकर वहां पर “रेफ्यूज एरिया” निर्माण कराया जाएगा। गोदावरी मैया तक पहुंचने वाली अन्य सड़कें भी चौड़ी कर जाएगी। रामकुंड एवं लक्ष्मण कुंड को एकरूप किया गया, फिर भी वह भीड़ नहीं संभाल पाता। इसलिए इस कुंड की सीमाएं और बढ़ाकर उसे एक नए अंदाज में सजाया जाएगा।

 

Leave a Reply