स्मार्ट सिटी में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण

आजकल स्मार्ट सिटी के बारे में बहुत सारी चर्चाएं चल रही हैं। उसके बारे में कई प्रकार की कल्पनाएं लोग कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी क्या होगी, कैसी होगी, इस बारे में लोगों में काफी उत्सुकता और जिज्ञासा है। जब हम स्मार्ट सिटी की बात करते हैं तो हमारी आंखों के सामने लंदन, न्यू यॉर्क, पेरिस, शंघाई, टोक्यो के चित्र आ जाते हैं। यह कल्पना की जा रही है कि आने वाले समय में स्मार्ट सिटीज इन शहरों की तरह होंगी। कुछ हद तक यह बात सच भी है। लेकिन स्मार्ट सिटीज में इसके अलावा भी बहुत कुछ है।

स्मार्ट सिटी में पर्यावरण और स्वच्छता के बारे में सोचने से पहले हमारे लिए यह जान लेना जरूरी है कि स्मार्ट सिटी है क्या ?

स्मार्ट सिटी की बात करते समय कुछ बातें मोटे तौर पर आती ही हैं कि उसका बुनियादी ढांचा (infrastructure), नगर नियोजन (town planning), प्रशासन (administration) – सब कुछ आला दर्जे का होगा और हाई – टेक होगा। बिजली, सड़क, पानी, मल – निकास (drainage) की सुविधाएं भी बेहतरीन होंगी।

अब स्मार्ट सिटी में पर्यावरण संरक्षण को दो अलग – अलग भागों में देखा जाना चाहिए :

१ ) प्रदूषण नियंत्रण और हरित पट्टों (green belts) को बढ़ाना

और

२ ) कचरा और मल प्रबंधन

१ ) प्रदूषण पर नियंत्रण और हरित पट्टों ( सीशशप लशश्रींी ) का निर्माण :

स्मार्ट सिटी के संदर्भ में जब हम बात करते हैं तो प्रदूषण नियंत्रण की कल्पना पुरानी हो जाती है। प्रदूषण नियंत्रण की बजाय प्रदूषण निर्मूलन स्मार्ट सिटी के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। शहरों में वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। इस मामले में फिलहाल बीएस – तख नियम को २०२० से लागू करने की योजना है। कुछ अधिक प्रदूषण वाले शहरों में तो इसे १ अप्रैल २०१८ से ही लागू किया जाना है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जल्द ही क्लीन फ्यूल यानि साफ़ – सुथरे ईंधन को वृहद स्तर पर लागू किया जाएगा जैसे – कुछ ही वर्षों में बैटरी पर चलने वाली कारें आम बात होगी। २०३० तक सभी कारें अनिवार्य रूप से बैटरी पर चलने लगेंगी। शहर में हरित पट्टों या ग्रीन बेल्ट की बात करें तो केवल बाग – बगीचों की बात होती है। लेकिन ग्रीन बेल्ट का अर्थ है शहर के बीचों – बीच बड़े – बड़े पेड़ों से लदा हुआ घना जंगल, न कि केवल हरी घास वाला बगीचा। हर स्मार्ट शहर में एक भव्य ग्रीन बेल्ट होना अनिवार्य है। स्मार्ट शहरों के लिए कुल क्षेत्रफल का २७ % भाग ग्रीन बेल्ट अनिवार्य किया गया है।

२ ) कचरा और मल प्रबंधन :

स्वच्छ भारत अभियान के कारण बहुत वृहद स्तर पर स्वच्छता और कचरे के प्रबंधन के बारे में जनजागृति आई है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत ठोस कचरे के प्रबंधन (Solid Waste Management) की जहां तक बात आती है, देश भर की कई नगर पलिकाएं बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं और काफी वृहद स्तर पर कचरे का प्रबंधन कर रही हैं। कचरे को पुर्नचक्रण (Recycle) करने और पुर्नप्रयोग (Reuse) करने में नई से नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही सूखा कचरा (Nonbiowaste) जैसे कांच, प्लास्टिक आदि और ई – कचरा ( जैसे मोबाइल, की – बोर्ड ) को भी पुर्नचक्रण करने की व्यवस्थाएं करनी होंगी। प्लास्टिक से ईंधन बनाने की तकनीक भी अब उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल कर ईंधन तैयार किया जा सकता है।

इंदौर : भारत का सबसे स्वच्छ शहर और स्वच्छ स्मार्ट सिटी के लिए एक रोल माडल (a case study)

जैसा कि विदित है कि मध्यप्रदेश का इंदौर शहर पिछले साल के स्वच्छता सर्वेक्षण में पूरे देश में सबसे स्वच्छ शहर के रूप में पुरस्कृत किया गया था। मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर, देश का सब से स्वच्छ शहर कैसे बना इस बारे में बड़ी उत्सुकता है। २०१४ में इंदौर १४९वें स्थान पर था और २०१६ में २५वें स्थान पर। लेकिन पहले स्थान पर आने के लिए इंदौर के प्रशासन, नगर पालिका के साथ – साथ नागरिकों ने भी भरसक प्रयास किए। इसमें ठोस राजनैतिक इच्छाशक्ति का जितना योगदान है उतना ही योगदान जनभागीदारी का भी है। देखा गया था कि कचरे के डिब्बे तो स्थान – स्थान पर थे लेकिन कचरा, डिब्बों के अलावा सब जगह था। डिब्बे खाली रहते थे और उसके आसपास कचरे और गंदगी का साम्राज्य होता था। निगम का मानना था कि शुरुआत में ही कचरा अलग – अलग रखने का काम नागरिकों के गले उतरना मुश्किल होगा। सबसे पहले तो यह जरूरी था कि नागरिकों में कचरा, निगम की गाड़ी में डालने की आदत पड़े। धीरे – धीरे इस बिजनेस मॉडल को बाकी वार्डों में बढ़ाया गया और अंततः सारे शहर तक फैल गया। उसके बाद कचरे का घर पर ही पृथक्करण करने पर जोर देना शुरू किया गया। सभी ६०० गाड़ियों में गीले और सूखे कचरे के भाग थे। साथ – साथ लोगों में जनजागृति लाने के लिए स्वच्छ इंदौर गीत (a theme song) भी लाया गया। सड़क पर कचरा फेंकने के लिए जुर्माने का प्रावधान किया गया। लगभग हर प्रमुख चौराहे पर शौचालय बनाए गए और खुले में शौच और गंदगी पर नियंत्रण लाया गया।

इन सब चरणों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि आम नागरिकों ने इसके हर भाग में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया। अपने आसपास के इलाके को साफसुथरा रखने में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेने वाले और सक्रिय रूप से काम करने वाले को पुरस्कृत किया जाता था। उसे महापौर और आयुक्त से मिलने का मौका दिया जाता था और उनके हाथों पुरस्कार दिया जाता था। संस्थाओं, अस्पतालों, होटलों और वार्डों में स्वच्छता की स्पर्धा की जाती थी और महापौर सब से अच्छा प्रदर्शन करने वाली संस्था को पुरस्कृत करती थीं। यह पुरस्कार समारोह हर महीने आयोजित होता था। हर दरवाजे से कचरा संग्रह करने के लिए संपत्ति कर में ६० /- का अतिरिक्त कर लगाया गया था। साथ ही ऑर्गेनिक कंपोस्टिंग कन्वर्टर लगाने वाली आस्थापनाओं को संपत्ति कर में ५ से १० % तक की छूट दी जा रही थी। कई संस्थाओं ने इसका भरपूर लाभ उठाया। जिन संस्थाओं के पास कन्वर्टर लगाने के लिए स्थान नहीं था उन पर २००० से ५००० तक का अतिरिक्त जुर्माना लगाया गया। मेयर हेल्पलाइन ऐप भी लॉन्च किया गया जिसमें स्वच्छता संबंधी किसी भी शिकायत को सीधे महापौर को भेजा जा सकता था और जिसे ४८ घंटे के भीतर सुलझा लिया जाता था। अब यह स्थिति आ गई है कि कागज का एक टुकड़ा भी सड़क पर नजर आना नागरिकों के लिए सहन करना मुश्किल है। दक्षिण भारत के सभी शहर अमूमन इसी प्रकार के मॉडल पर काम कर रहे हैं। किन्तु जिस तीव्रता और इच्छाशक्ति का परिचय इंदौर ने दिया है, वह तारीफ के काबिल है।

स्मार्ट सिटी में कचरा प्रबंधन

स्मार्ट सिटी में इसी प्रकार की योजनाओं को आधुनिक टेक्नोलॉजी से जोड़ा जाएगा। सभी कचरे के ट्रक, कचरे के डिब्बे, और सफाईकर्मी रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस (RDIF) से लैस होंगे। इन्हें GPS के माध्यम से एक कंट्रोल रूम में बैठ कर नियंत्रित किया जाएगा। डंप साइट यानि कचरा इकट्ठा करने के मैदान पर ही उसके और छः भागों में पृथक्करण की व्यवस्था होगी जिसमें कागज, कांच, प्लास्टिक और धातु को अलग – अलग किया जाएगा। उसी स्थान पर कचरे से बिजली और कम्पोस्ट बनाने के प्लांट्स होंगे। जबलपुर नगर निगम ने ६०० टीपीडी टन प्रतिदिन का एक प्लांट लगाया है जो कचरे से लगभग ११ मेगावाट बिजली हर रोज पैदा कर रहा है। जैसा कि कई लोगों को लगता है कि स्मार्ट सिटीज पश्चिम के बड़े शहरों की अंधी नकल मात्र होगी। किन्तु भारत में स्मार्ट सिटी की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि उसके मूलभूत पहचान, इसके प्राचीन संस्कारों और मूल्यों को किसी प्रकार की हानि न पहुंचे। हर शहर की कुछ विशेषताएं और कुछ पहचान हैं। कुछ विशेष इमारतें और कुछ खास स्थान ऐसे हैं जिन्हें स्मार्ट सिटी में भी स्थान देना होगा।

जैसा कि डॉ . अब्दुल कलाम कहते थे विकसित देश के साथ विकसित मानस भी उतना ही आवश्यक है।

नागरिकों में एक परिपक्वता और जिम्मेदारी का भाव जागृत होना आवश्यक है। तभी स्वच्छ पर्यावरण और स्वच्छ स्मार्ट सिटी का सपना साकार हो सकेगा।

मोबा . ९७३००७००२३

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