ममता …लोकतंत्र और नियति दोनों के थप्पड़ तुम्हारे गाल पर होंगे।

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण तक पहुंचते-पहुंचते राजनेताओं की फिसलती जुबान अपनी मर्यादाओं को किस प्रकार से लांघ रही है यह भारतीय जनमानस देख रहा है। पश्चिम बंगाल की तेजतर्रार जुबान रखने वाली मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी अब किसी सड़क छाप की तरह बातें करती दिख रहीं हैं। चुनावी कार्यकाल में अपने विचारों को जनता के सम्मुख रखना सभी का अधिकार है। परंतु उन विचारों को एक सभ्य तरीके से रखना भी अत्यंत आवश्यक होता है। ममता बैनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री हैं। बंगाल की परंपरा महान विचारकों की रही है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में पश्चिम बंगाल से अनेक नेताओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय साहित्य की धरोहर को सम्मानजनक स्थिति में लाने में पश्चिम बंगाल के विचारकों का अमूल्य योगदान है। भारत को वंदे मातरम मंत्र देने वाले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, भारत का नाम पूरे विश्व में उजागर करने वाले स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल की ही देन है। अध्यात्म की धरोहर को और मजबूत करने वाले स्वामी रामकृष्ण परमहंस पश्चिम बंगाल से ही है। ऐसे पश्चिम बंगाल राज्य की मुख्यमंत्री जिस तल्ख जुबान से अपने विचार देश की जनता के सामने रख रही है। उससे यह प्रश्न उपस्थित हो रहा है ममता बैनर्जी बंगाल में किस धरोहर को प्रस्थापित करने का प्रयास कर रही हैं।

हां, हम यह मानते हैं कि, अपनी तेजतर्रार राजनीति से ममता बैनर्जी ने वामपंथियों को सत्ता से बाहर किया था। तब पूरे भारतवर्ष में ममता बैनर्जी के धैर्य का स्वागत भी किया था। लेकिन लोकतंत्र की बातें करने वाली ममता बैनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कहीं भी लोकतंत्र का वातावरण नहीं रखा है। विचारकों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की भूमि पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार चुनावी हिंसा का माहौल निर्माण हुआ है, उससे यह साफ जाहिर है कि लोकतंत्र का राग आलापने वाली ममता बैनर्जी कितनी खोखली हैं। भारतीय संविधान ने सभी भारतीयों को अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ करने का मूलभूत अधिकार दिया है। ऐसे समय में जय श्री राम कहने वाले हिंदुओं पर ममता बैनर्जी इतनी आगबबूला क्यों हो रही है? जो ममता बैनर्जी कह रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह पर लोकतंत्र के थप्पड़ मारूंगी उन्हीं ने लोकतंत्र की व्याख्या का समय-समय पर अवमूल्यन किया है। ममता बैनर्जी के मुख से लोकतंत्र की ऐसी बातें शोभा नहीं देती। नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली कहावत यहां चरितार्थ हो रही है।

महाराष्ट्र के लोकप्रिय संत समर्थ रामदास जी ने जो मूर्खों के लक्षण बताए हैं उन लक्षणों को पढ़ते वक्त ममता बैनर्जी का चेहरा बार बार नजर के सामने आता है। आज ममता बैनर्जी लोकतंत्र को लेकर पश्चिम बंगाल के समाज से संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रहीं हैं? या आत्म परीक्षण कर रही हैं? शायद उनकी सोच ‘स्टार्ट फ्रॉम सेल्फ’ की हो चली है। इस बार ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को जबरदस्त टक्कर देने वाला कोई पक्ष भारतीय जनता पार्टी के रूप में मिला है। चुनावी रुझान बता रहे हैं कि वर्तमान लोकसभा चुनाव में ममता बैनर्जी मुनाफे में नहीं वरन घाटे में जाने वाली हैं। ममता बैनर्जी जब अपने राज्य में हिंसात्मक राजनीति करती हैं तब उन्हें कभी लोकतंत्र या संविधान के मूल्यों की याद नहीं आती। लेकिन जब अपनी राजनीति घाटे में चल रही है तब उन्हें इस बात का एहसास होने लगा है। हर क्षण अपनी जुबान से अथवा अपने कार्य से हिंसा पर उतारू होकर हिंसा को समर्थन देने वाली ममता बैनर्जी आज लोकतंत्र की दुहाई देने लगी हैं। वाह री ममता बैनर्जी…! उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
अगर ममता भारतीय लोकतंत्र को सही तरह से जानती होती तो इस प्रकार से लोकतंत्र के थप्पड़ लगाने वाली बात नहीं करती। लोकतंत्र के थप्पड़ भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी खा चुकी हैं, लोकतंत्र के थप्पड़ मनमोहन सिंह खा चुके हैं और वे लोग जानते हैं कि लोकतंत्र के थप्पड़ कितने करारे होते हैं। लोकतंत्र का गौरव बढ़ाने वाली इन घटनाओं को भारतीय राजनीति में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज किया हुआ है।

ममता दीदी, आज का पश्चिम बंगाल संपूर्ण देश से जुड़ा हुआ है। आपके दुर्भाग्य पूर्ण नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में होने वाली सभी गतिविधियां देश के जन-जन तक पहुंच रही हैं। आप जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल की शालीनता को मलिन करने का प्रयास कर रही हैं यह पूरे देश को रास नहीं आया। यहां तक कि पश्चिम बंगाल को भी पसंद नहीं आया। इसी कारण आज पश्चिम बंगाल में आप की कार्यपद्धति के विरोध में लहरें निर्माण हो रही हैं। पश्चिम बंगाल की जनता अबकी बार हो रहे चुनाव में अपना असर दिखाएगी और इन बढ़ती लहरों में आपकी हिटलरशाही डूब जाएगी। तब आपको महसूस होगा लोकतंत्र के थप्पड़ क्या होते हैं। जो थप्पड़ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मुंह पर लगाने की बात आपने कही है, उस थप्पड़ की गूंज को आप आने वाले भविष्य में जरूर सुनेंगी। तब आपको महसूस होगा लोकतंत्र के थप्पड़ कैसे होती हैं।

भारतीय राजनीति संयम से जुड़ी है, लोकभावना से जुड़ी हुई हैं। आपने कभी भी संयम और जनभावना का आदर नहीं किया। यह आपका इतिहास है। यह आपका गुरूर है। इस गुरुर को भारतीय लोकतंत्र कि थप्पड़ जरूर पडेगी। आज आपने जो नकारात्मक राजनीति का बीज बोया है उसकी फसल तुम्हें ही काटनी पड़ेगी। नियति कभी किसी को माफ नहीं करती। आपको तो दोहरी थप्पड़ खानी है। एक भारतीय लोकतंत्र की थप्पड़, जो भारत की जनता आने वाले समय में आपको लगाएगी और दूसरी नियति की थप्पड़। परिवर्तन लोकतंत्र की आत्मा है। आपने जिस प्रकार की राजनीति पश्चिम बंगाल में प्रारंभ की है, उस राजनीति से बंगाल की जनता छुटकारा चाहती है। आज पश्चिम बंगाल में आप के विरोध में जो आंदोलन आपको महसूस हो रहा है यह एक आंतरिक परिवर्तन की आंधी है।

सयाने होकर भी मूर्ख जैसा बर्ताव करने वाले को पढ़त मूर्ख कहते हैं। वह सत्य को समझते हुए भी बार-बार गलतियां करने से बाज नहीं आते यह पढ़त मूर्खों के लक्षण होते हैं। पढ़त मूर्ख को सत्य और असत्य का ज्ञान होता है, ऐसे होते हुए भी अपने निजी स्वार्थ के कारण उसका अपने इंद्रियों पर और मन पर संयम नहीं होता है। आज ममता दीदी की स्थिति ऐसे ही पढ़त मूर्ख जैसे ही हो गई है।

आज मोदी के विरोध में इस प्रकार के पढत मूर्खों की संख्या कई जगह महसूस हो रही है। समाज में जहरीली बातें फैलाने का घातक काम ये पढ़त मूर्ख अत्यंत प्रभावी तरीके से करते हैं। उन्हें जो बुद्धिमत्ता और प्रतिभा मिली है। उसका उपयोग वह सामान्य जनों का बुद्धिभेद करने के लिए करते हैं। अपने दुर्गुणों को तत्वज्ञान का जामा ओढ़ा देते हैं। विचार स्वतंत्रता, लेखन स्वतंत्रता, पुरस्कार वापसी यह आजकल लोकप्रिय हुए विचार प्रवाह इन्हीं पढ़त मूर्खों की ही देन है। आज इस प्रकार की तर्क बुद्धि को सम्मान देने वाली ममता बैनर्जी जैसे पढत मूर्खों के विचार प्रवाह में आकर फसने वाली जनता पश्चिम बंगाल में अब नहीं रही है। वह ममता बैनर्जी के अन्याय पूर्ण बर्ताव को समझ रही है। उसके खिलाफ अपना सर उठाने का प्रयास कर रही है। इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल कि जनता ममता बैनर्जी के विरोध में अपना सर उठाते हुए जरूर दिखाई देगी। तब ममता बैनर्जी को महसूस होगा कि लोकतंत्र की थप्पड़ क्या होती है? और उस थप्पड़ की गूंज कैसी होती है? भारत का लोकतंत्र और नियति आने वाले समय में ममता के गालों पर करारा थप्पड़ जरूर देगी।

जिन्हें सभ्य समाज में रहकर समाज नीति और राजनीति का नेतृत्व करना है उनका वर्तन विनयशील और मर्यादाओं से पूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है। इसके विपरीत वर्तन करने वाला व्यक्ति भारतीय समाज में विक्षिप्त माना जाता है। और ऐसे विक्षिप्त व्यक्ति के हाथ में अपने राज्य की बागडोर देना पश्चिम बंगाल की जनता कभी पसंद नहीं करेगी। ममता दीदी! आपने तो मर्यादाओं की सीमा लांघ दी है। अंग्रेजी में जिसे मैनर्स और एटिकेट्स कहते हैं, उनका पालन किए बिना समाज आपको प्रतिष्ठित जगह पर प्रस्थापित नहीं करता और अगर गलती से प्रस्थापित किया हो तो भविष्य में सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने पर तुम्हें तुम्हारी सही जगह दिखाई जाएगी। जिसे समाज का नेतृत्व करना है उसे सामाजिक मानस शास्त्र का सूक्ष्म ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। जिन्हें सभ्यता और शिष्टाचार जैसे सामान्य नियमों का पालन करना नहीं आता ऐसी ममता बैनर्जी देश का प्रधानमंत्री होने का सपना देख रही हैं। इतने बड़े सपने देखते वक्त आपके व्यक्तित्व से एवं आपकी जुबान पर संयम रखना अत्यंत आवश्यक है। यह सामान्य बात आपको ध्यान में नहीं आती। आंखों के सामने अपना विनाश दिखाई देते समय भी जिन्हें सौजन्यपूर्ण व्यवहार की बात ध्यान में नहीं आती, वह तो रावण और दुर्योधन के मूर्तिमान उदाहरण हैं। मूर्ख मानव का विनाश उसके दुरवर्तनों में ही है। यह बात मूर्ख मानव को कभी भी ध्यान में नहीं आती। आज ऐसे मूर्ख एवं दुराचारी लोगों के नाम बदले हैं। रावण, शूर्पणखा, दुर्योधन की जगह ममता बैनर्जी जैसे नाम हो गए हैं। वह अपने बर्ताव के कारण अपने ही पैरों पर पत्थर मारने के लिए उतावली है। खुद में दोषों का भंडार होते हुए भी दूसरों को अकारण दोष देने वाली ममता बैनर्जी आज भारत के सामने है। बीज बोने और फसल उगाने में थोड़ा अंतर होता है। प्रमाद से भरा हुआ वर्तन करते वक्त मगरूर मनुष्य को कोई गलत भावना महसूस नहीं होती है। सत्ता और अहम भाव के नशे में ममता बैनर्जी गलतियों पर गलतियां करती जा रही हैं। भारत की जनता सोच समझ कर न्याय करने वाली है। सीता का हरण करने वाले रावण को सहयोग देने वाली शूर्पणखा को नियति ने बख्शा नहीं था। ऐसे में ममता बैनर्जी जैसी सामान्य व्यक्ति को नियति छूट कैसे देगी? ममता जी, आप नकारात्मक राजनीति कर के भारतीय जनतंत्र के मन मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती।

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