यूपीएल का स्वास्थ्य, कृषि और पशुपालन में अनूठा योगदान

इंट्रो : यूपीएल वापी के वनवासी क्षेत्र में न केवल कीटनाशकों का उत्पादन कर रही है, अपितु कम्पनी सामाजिक जिम्मेदारी ( सीएसआर ) के तहत इलाके में शिक्षा, पशुपालन और कृषि के क्षेत्र में बेहतरीन   काम भी कर रही है। वैसे नियमानुसार सीएसआर के लिए मुनाफे के महज २ फीसदी रखने का प्रावधान है, लेकिन कम्पनी ने यह खर्च अपनी ओर से तिगुने से अधिक कर दिया है। कम्पनी के चेयरमैन श्री रज्जूभाई श्रॉफ से इन सेवा कार्यों के बारे में हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत हैं –

यूपीएल कम्पनी ने सीएसआर कब से शुरू किया?
आज से ५० साल पहले जब हमने छोटे पैमाने पर अपना व्यवसाय शुरू किया था, तभी हमें लगा कि अगर पिछड़े इलाकों में इंडस्ट्री को बढ़ावा देना है तो वहां के लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मुहैया करानी होंगी। इसलिए सन १९७० से हमने सीएसआर (कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) शुरू करके इन सुविधाओं की ओर ध्यान देना शुरू किया।
१९७० से लेकर अबतक आपने सीएसआर के माध्यम से समाज के किन घटकों को लाभान्वित किया है?
सब से पहले हमने वापी के वनवासी क्षेत्र में एक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया, क्योंकि वहां चिकित्सा सुविधाओं की बहुत आवश्यकता थी। आज उसने एक बड़े अस्पताल का स्वरूप ले लिया है। उसके बाद हमने उन लोगों के लिए एक अनुसंधान केंद्र स्थापित किया जिसमें उन लोगों को किस प्रकार की खेती करनी है, कौन से जानवर का किस प्रकार पालन करना है इत्यादि बातों की जानकारी दी जाने लगी। आज हमारा यह अनुसंधान केंद्र विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुका है। इसके बाद शिक्षा की आवश्यकता को देखते हुए पहले अंग्रेजी माध्यम का एक बड़ा विद्यालय शुरू किया, क्योंकि वापी में प्लांट लगने पर देश के कई जगहों से इंजीनियर आते थे परंतु बच्चों के पढ़ने के लिए विद्यालय नहीं था। अत: हमने वह शुरू किया। अब कॉलेज और
केमिकल इंजीनियरिंग कॉलेज भी शुरू कर दिया है।
इतने बड़े पैमाने पर सेवा कार्य करने के लिए एक तकनीक की, मैनेजमैंट की आवश्यकता होती है। आपकी तकनीक क्या है?
सच कहूं तो हमारे कल्याण बैनर्जी नामक एक केमिकल इंजीनियर थे। आज वे कम्पनी में डायरेक्टर हैं, उस समय वे मैनेजर हुआ करते थे। वे सेवा कार्यों में भी रुचि रखते थे और प्लांट पर काम भी करते थे। हमने उन्हें पूरा सहयोग दिया। यह टीम वर्क है। टीम के प्रमुख का अच्छा होना बहुर जरूरी है, साथ ही बाकी सदस्यों का अच्छा होना भी बहुत जरूरी है। कुछ अविवाहित समाजसेवी हमने वहां अपने काम के लिए नियुक्त किए थे परंतु उनकी गलत लतों के कारण उन्हें हटा दिया गया। आज हमारी टीम वहां बहुत अच्छा कार्य कर रही है।
अभी सरकारी नियमों के अनुसार सभी कम्पनियों को अपने लाभ का २% सीएसआर के लिए देना आवश्यक है। अगर ये कानून न हो तो भी क्या आप सेवा कार्य करते करेंगे?
हमने तो ये तभी से शुरू कर दिया था जब सरकार की ओर से ऐसा कोई कानून था ही नहीं। अब तो २% से अधिक सीएसआर के लिए देने वाली कम्पनियों का नाम प्रकाशित किया जाता है। उन कम्पनियों में यूपीएल का नाम तीसरे क्रमांक पर आता है।
जब आपने सीएसआर की शुरुआत की थी उस समय से लेकर अभी तक उन कार्यों में कितनी प्रगति हुई है?
हमने वापी में जो विद्यालय प्रारंभ किया था, आज उस विद्यालय से कई बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर, आर्किटेक्ट बन रहे हैं। कई लोग वहीं वापी में रह कर ही अपने व्यवसाय को चला रहे हैं और कुछ बाहर भी अपना व्यवसाय कर रहे हैं या उच्च पदों पर नौकरी कर रहे हैं।
हमारा मुख्य काम कीटनाशक बनाने का है। हमने अपने सीएसआर के कामों के दौरान देखा कि हमारे किसान बुद्धिमान और मेहनती हैं। उन्हें केवल थोड़े मार्गदर्शन की आवश्यकता है। हमने वही किया। आज वहां किसान जो बैलगाड़ी में हमारे केंद्र पर आता था उसके पास ट्रैक्टर भी है और कार भी है।
खेती के बारे में जो आपने किसानों को मार्गदर्शन दिया उसके कारण किसानों की आय में कितना इजाफा हुआ है?
हमने देखा दक्षिणी गुजरात में पानी की आपूर्ति अच्छी है। वहां गन्ने की पैदावार अच्छे से हो सकती है। पहले वहां किसान प्रति एकड़ २५ टन गन्ना निकालता था अब वहां का किसान प्रति एकड़ ८० से १०० टन निकालता है। अब वहां का किसान पक्के मकानों में रहने लगा है, खुशहाली आ गई है।
आपकी कम्पनी का प्रत्यक्ष कार्य और आपके द्वारा सीएसआर से संबंधित किए जाने वाले कार्यों में परस्पर क्या सम्बंध है?
हम देखते हैं कि लोग ये जानते तो हैं कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो कृषि की ओर ध्यान देना होगा, किसानों को खुशहाल बनाना होगा। परंतु इस क्षेत्र में लोग ज्यादा काम नहीं करते। हम लोगों ने जितने क्षेत्रों में कार्य किया वहां हमें सफलता मिली है। किसान कभी भी लेक्चर देने या थ्योरी सुनाने से नहीं सीखेगा। उसे प्रैक्टिकल करके सिखाना होगा। हमने किसानों को सिखाने के लिए केंद्र बनाए। किसान वहां आते हैं, सीखते हैं और उन प्रयोगों को अपने खेतों पर करते हैं। इसका परिणाम बहुत अच्छा रहा।
आपको यूपीएल में सीएसआर के लिए अलग से डिपार्टमेंट बनाने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
पहले हमारे इंजीनियर ही सीएसआर के लिए पार्ट टाइम काम करते थे। परंतु अब चूंकि इसका काम बहुत बढ़ गया है इसलिए सीएसआर के लिए पूरे समय काम करने वाले लोगों की आवश्यकता महसूस हुई। इसी बीच गुजरात सरकार ने हमें वनवासी विद्यालय को कुछ मदद करने के लिए कहा, हमने इसे मदद भी की। फिर उन्होंने हमारा कार्य देख कर पूरा विद्यालय ही हमें चलाने के लिए दे दिया। उस वनवासी विद्यालय का परीक्षा परिणाम आज १००% है। आज वह गुजरात का सब से अच्छा वनवासी विद्यालय बन चुका है।
आपने डांग के वनवासी भागों में जो कार्य किया उसके कारण वहां नक्सलवादियों की संख्या काफी कम हुई है। इसका कारण क्या है?
सीधी सी बात है। अगर लोगों के पास काम नहीं होगा तो वे लोग बंदूक उठा लेंगे। जो खुशहाल वनवासी हैं वे नक्सलवादी नहीं बनते। हम वही कोशिश कर रहे हैं। वहां और भी काम करने की जरूरत है।
सीएसआर के माध्यम से आप जो कार्य कर रहे हैं उसका यूपीएल के अन्य कर्मचारियों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
हमारे कर्मचारी भी इससे बहुत प्रभावित हो गए हैं। अब जब हमारी मार्केटिंग टीम कीटनाशकों के बारे में बताने के लिए गावों में जाती है, उनको जानकारी देती है तो वे यह भी पूछते हैं कि क्या किसान अपने बच्चे को शिक्षा दिलवा रहे हैं? क्या वे अपना और अपने परिवार का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कर रहे हैं? वे लोग सरकार के द्वारा किसानों को दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी किसानों को बताते हैं।
आपकी कम्पनी के सीएसआर के कामों में आपकी पत्नी का बहुत बड़ा योगदान है। कृपया उनके कार्यों की जानकारी दें।
मेरी पत्नी की एक आदत है, जब वह कोई काम अपने हाथ में लेती है तो उसे सब से बेहतरीन तरीके से पूरा करती है। कामचलाऊ काम करना उन्हें पसंद नहीं है। हमने स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत ५ करोड़ रुपए का बजट बनाया जिससे शौचालय बनाए जाएं। मेरी पत्नी ने न केवल शौचालयों का निर्माण कराया वरन उसके लिए आवश्यक पानी और मल निकास की भी पूरी व्यवस्था की। उसके साथ ही बायोगैस का प्लांट लगाया। शौचालय हमेशा स्वच्छ रहें इस ओर ध्यान दिया।
गांवों के लिए अन्य कौन से कार्य आपने अभियान के रूप में किए हैं?
हमने सीएसआर टीम को प्रोजेक्ट दिया। हमारी इंडस्ट्री के आसपास के गांवों में जब हम जाते थे तो वहां बहुत कचरा होता था। हमने वहां के सरपंच को बुला कर उनसे कहा कि हम आपकी मदद करेंगे, आप अपना गांव साफ कीजिए। हमने उनका ही गांव साफ करने के लिए उनकी अर्थिक सहायता की। गांव के लोग खुश हो गए। अब वे कहते हैं कि हम लोग अपना काम स्वयं कर लेंगे। वे आत्मनिर्भर हो चुके हैं।
सीएसआर के अंतर्गत किए गए कार्यों में सब से उत्तम कार्य आपको कौन से लगे?
हमारी फैक्ट्री के आसपास के गांवों के किसानों को पहले पशुपालन की जानकारी नहीं थी। कौनसा जानवर अच्छा है, उसे कैसे पालना चाहिए नहीं पता था। हमने सौराष्ट्र से उन्हें अच्छे बैल लाकर दिए। वनवासी भागों में बालवाड़ी के नाम पर कुछ नहीं था। शिक्षक कभी आते थे कभी नहीं आते थे। हमने सभी बालवाड़ियों का दौरा किया और उनको अच्छे शिक्षक दिए। इसी प्रकार विद्यालयों में भी अच्छे शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के कारण वहां का भी परीक्षा परिणाम १०० प्रतिशत होने लगा। वहां के बच्चे बड़े होकर हमसे मिलने आते हैं और अपनी तरक्की की जानकारी देते हैं तो बहुत खुशी होती है। किसान पहले अपनी खेती को लेकर बहुत चिंतित रहते थे कि फसल ठीक होगी या नहीं पर अब हमारे किसान खुशहाल हैं। हमने जिन जिन लोगों के लिए काम किया है, उनके चेहरों का आनंद देख कर ही हमें खुशी होती है।
विगत ४० वर्षों से आप सीएसआर के माध्यम से किसानों के लिए तथा अन्य लोगों के लिए सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। भविष्य में आपकी क्या योजनाएं हैं?
खेती के लिए आधुनिकतम आवश्यक तकनीकें हम किसानों को सिखाते हैं। किसान अपने खेतों में जिस तरह कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं उससे आधा कीटनाशक जमीन में जाता है और आधा फसल पर जाता है। यह बहुत ही खराब स्थिति थी। हमने कीटनाशकों के छिड़काव के लिए पहले ५०० मशीनें लगाई थीं जिससे किसानों की यह समस्या सुलझ गई। अब हम इन मशीनों की संख्या बढ़ा कर १००० करने वाले हैं, जिससे अन्य किसानों को भी लाभ मिल सके।
हमारी दूसरी योजना फसलों के निर्यात से सम्बंधित है। अभी हमारा देश कृषि उत्पादन में दुनिया का दूसरा सब से बड़ा देश है परंतु निर्यात में हम अभी बहुत पीछे हैं। ४ साल पहले तक हमारा निर्यात ४० बिलियन डॉलर था, अब कम होकर ३२ बिलियन डॉलर रह गया है। निर्यात में यह कमी क्यों आई है इसके लिए हमने एक सर्वेक्षण किया तथा सरकार को उसकी रिपोर्ट भेजी। इसे किस तकनीक से बढ़ाया जा सकता है उसके लिए भी हमने एक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण के नतीजों पर अगर सही कार्रवाई की गई तो हमारा निर्यात बढ़ सकता है। आलू की पैदावार करने वाले किसान अपनी फसल को ठीक से स्टोर नहीं कर पाते हैं। उसके कारण ६-८ महीने में उसमें अंकुर आने लगते है और आलू खराब होने लगते हैं। इन आलुओं के स्टोरेज के लिए हम भारत में नई तकनीक ला रहे हैं। यही हाल हिमाचल के सेब के साथ भी है। हमारा व्यवसाय कैलिफोर्निया में भी है। वहां के सेब लगभग ७-८ महीनों तक ताजा रहते हैं। भारत में भी वे खाए जाते हैं; परंतु हिमाचल के सेब उससे अच्छे होने के बावजूद स्टोरेज सही न होने के कारण २ महीने में ही खराब हो जाते हैं। कैलिफोर्निया में जो तकनीक हम इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे अब हम भारत में लाने वाले हैं। इसके लिए हमें सरकार की मदद की भी आवश्यकता होगी।
सरकारी नियमों के अनुसार लाभ का कम से कम २ प्रतिशत हिस्सा सीएसआर के रूप में दिया जाता है। परंतु आप उससे अधिक सिएसआर में दे रहे हैं। आपके हिसाब से वह कितने प्रतिशत है?
पिछले साल हमने लगभग ६ प्रतिशत सीएसआर में दिया था। इस वर्ष के आंकड़े वित्तीय वर्ष के अंत तक आएंगे, परंतु मेरा अनुमान है कि पिछले साल की तुलना में यह आंकड़ा निश्चित रूप से बढ़ा ही होगा।
आपका सीएसआर सरकारी आंकड़ों से अधिक होता है। आप समाज के धनी व्यवसायियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं निश्चित ही अपना उदाहरण देना चाहूंगा कि जब हम वापी में गए थे, तो हमने अपने सीएसआर के माध्यम से तो कार्य प्रारंभ किया ही था साथ ही अन्य व्यवसायियों को भी आग्रह किया था, कि वे लोग कुछ पैसा दें। हमने देखा कि छोटे व्यवसायी तो पैसा दे देते थे, परंतु धनी लोग ही पैसे नहीं देते थे। सब से पहले तो उनकी मानसिकता बदलना आवश्यक था। मेरी पत्नी को इस मामले में महारत हासिल है। वह व्यवसायियों को समझा कर उनसे सेवा कार्य करने के लिए धन व्यय करवा लेती है। अब तो सरकार ने ही यह कदम उठा लिया है।
नरेंद्र मोदी सरकार ने कई फर्जी एनजीओ पर लगाम लगाई है। आपका इस बारे में क्या विचार है?
सच कहूं तो अभी जो सरकार ने काम किया वह बहुत ही कम है। उनकी केवल लगाम कसने से कुछ नहीं होगा, उनको दंडित किया जाना बहुत आवश्यक है। अभी कुछ दिन पूर्व मेरी पत्नी ने सरकार के साथ हुई एक बैठक में शिक्षा व्यवस्था पर कई प्रश्न किए, कुछ सुझाव भी दिए तो सरकार ने उन्हें ही वीजेटीआई के डायरेक्टर बोर्ड पर ले लिया। मेरी पत्नी ने इसे भी दायित्व समझा और छात्राओं तथा शिक्षकों को दी जाने वाली सुविधाओं में जो कमियां थीं उन्हें पूरा करने की ओर ध्यान दिया, जिससे शिक्षा सुचारू रूप से चल सके।
यूपीएल के सीएसआर का दायरा बढ़ने में आपकी पत्नी का कितना योगदान है?
उनके काम करने के तरीकों की दो विशेष बातें हैं। पहली तो यह कि वह हर काम खुद जाकर देखती है। दूसरी यह कि किसी भी काम की गुणवत्ता से कोई भी समझौता नहीं करती। उन्हें हर काम ‘उत्तम’ ही चाहिए। मैंने वनवासी क्षेत्र में शौचालय बनवाने का जो उदाहरण आपको पहले बताया वह उन्हीं ने बनवाए हैं। वह खुद वहां जाकर देखती थी। वे शौचालय कम व्यय करके उत्तम काम करने का उत्तम उदाहरण है। उन्होंने मुझे बताया कि जितना पैसा काम करने के लिए दिया जाता था, उसमें से आधा तो लोग खा लेते थे। परंतु जब से वे स्वयं जाने लगी तो काम की गुणवत्ता भी बढ़ी और कम समय में काम भी हो गया।
आपने और आपकी पत्नी ने अपने सीएसआर के माध्यम से बहुत सेवा कार्य किए, क्या आपकी भावी पीढ़ी का भी इर ओर रुझान है?
वास्तविकता यह है कि वे इस ओर सकारात्मक दृष्टि से देखते तो हैं परंतु उनके पास स्वयं जाकर कार्य करने का समय नहीं होता। हां, वे अपने व्यवसाय का बजट तय करते समय सीएसआर लिए धन जरूर रखते हैं।

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