डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की जल नीति

मांटेंग्यु चेम्सफर्ड सुधार१९१९ के द्वारा जल प्रबंधन का कार्य केन्द्र से राज्य को सौंपा गया, तो भी अंतिम नियंत्रण केन्द्र के हाथों में ही था। दो राज्यों के बीच बहने वाली नदियों की ५० लाख रु. से अधि की योजनाओं को स्वीकृति केन्द्र सरकार ही देती थी। रियासतों के अंतर्गत जलप्रबंधन पर ब्रिटिश सत्ता का हस्तक्षेप नहीं था। ब्रिटिश क्षेत्र व रियासतों के बीच बहने वाली नदियों के लिए ब्रिटिश सरकार एवं रियासतों के बीच विशेष अनुबंध हुआ करता था।
आगे १९३५ में हुए सुधारों के द्वारा राज्यों को अधिक स्वायत्तता प्राप्त हुई। परंतु अंतरराज्यीय विवाद या ब्रिटिश सरकार व रियासतों के बीच होने वाले विवादों का आपसी निबटारा न होने पर मामला केन्द्र के पास ही जाता था। उस समय केन्द्र के पास इस विषय से सम्बधित कोई अलग कार्यालय नहीं था। अंतरराज्यीय विवादों में केन्द्र की भूमिका निर्णायक की नहीं थी। केन्द्र की कोई कार्यकारी भूमिका नहीं थी।
संवैधानिक दृष्टि से तो यह स्थिति थी, परंतु व्यवहार में किसान एवं शासन के बीच के सम्बंध एवं कार्यपद्धति कैसी थी, यह देखना भी आवश्यक है।
इस सम्बंध में १८७९ का पश्चिम महाराष्ट्र (मुंबई प्रांत) का अधिनियम, १९३९ का विदर्भ मध्यप्रांत के लिए सेंट्रल प्रोविंस एण्ड करार एक्ट, तो मराठवाडा के लिए (हैदराबाद स्टेट) निजाम का १९४८ का अधिनियम लागू थे। इन अधिनियमों के अनुसार किसान शासन को एक निर्धारित प्रपत्र में जल के लिए प्रार्थना पत्र देतेे थे। स्वीकृति के बाद पानी के लिए पास दिया जाता था। पानी प्राप्त होने पर उसकी प्रविष्टि पास बुक में की जाती थी। बुआई के अंतर्गत फसल का आकलन कर उसके अनुसार कर का निर्धारण एवं वसूली होती थी। इन सारी प्रक्रिया में कोई भूल होने पर अधिकारियों के पास पानी बंद करने का अधिकार भी हुआ करता था। यद्यपि उस काल में मानव निर्मित माध्यमों से दी जाने वाली सिंचाई की क्षमता बहुत सीमित थी। महाराष्ट्र में ही देखा जाए तो सिंचाई की क्षमता ६० लाख हेक्टेयर हो सकती थी, परंतु भारत के स्वतंत्रता के समय यह क्षमता केवल देड़ लाख हेक्टेयर थी
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर सिंचाई व विद्युत मंत्री के रूप में
डॉ. बाबासाहब का जल यह विषय न होते हुए भी मांटेंग्यु चेम्सफर्डं सुधार एवं सायमन कमीशन (१९२८) के साल डॉ. आंबेडकर का सम्बंध आ चुका था। उलझाने वाले सरकारी कानूनों का केस सरलीकरन कर उन्हें भारतीयों एवं भारतीय दलितों के हित में लागू करना, इस बात का अनुभव उन्हें हो गया था। इसी परिपे्रक्ष्य में १९४२ से १९४६ तक वे वायसराय की कार्यकारिणी में मजदूर, सिंचाई व विद्युत सम्बंधी प्रभाग की जिम्मेदारी सम्हालते रहे।
उत्तरी भारत का ८०% पानी हिमालय से निकलने वाली नदियों तथा दक्षिण भारत का ९०% पानी पठारों से बहने वाली नदियों से निकलकर समुद्र में बह जाता है। बारिश के तीन-चार महीनों के बीच छह से सात दिन के लिए आनेवाली बाढ़ के पानी को उपयोग में लाने की कोई सुविधा नहीं थी। बांधों की परिकल्पना सरकार के दिमाग में तब भी थी। अंग्रेज बांध के लिए उचित स्थान (साइट) देखकर बांध बनाते भी थे, पर इंग्लैंड को जिस फसल की आवश्यकता होती वही फसल बोना किसान के लिए बंधनकारी था। अतएव केवल सिंचाई के उद्देश्य से ही बांधों के निर्माण की ओर ब्रिटिश सरकार ने सीमित ध्यान दिया।
बाबासाहब का मौलिक चिंतन
बाबासाहब ने इस विश्व पर पूरे भारत को सामने रख कर विचार किया एवं उसे साकार भी किया। भारत में २० बड़ी नदियों की विशाल समस्या है। नदियां एक ही स्थान से निकलकर उसी प्रांत में ब़हकर समुद्र में मिल जाती हैं। कुछ नदियां दो-तीन प्रांतों से होकर बढती हैं। नदी के पानी के राज्यों में बंटवारे का नियम कानून बनाने, देखभाल एवं निर्णय लेना बहुत जटिल प्रक्रिया होती है। जल की धारा को तो जिले या राज्य की सीमाओं का ज्ञान नहीं होता। उद्गम से लेकर समुद्र तक नदियों में पानी विभिन्न स्रोतों से आता है। इसको आधार बनाकर यदि योजनाएं बनाईं जाए व क्रियान्वित की जाए तो अधिक सुविधाजनक होगा। पानी के उपयोग का क्षेत्र किसी भी जिले या राज्य में हो, पर स्रोत से पानी प्राप्त होगा तभी उपयोग संभव है। इन्हीं बिंदुओं को आधार मान कर यूरोप व अमेरिका में पानी के उपयोग किए जाने की बात डॉ. आंबेडकर की जानकारी में भी, जिसका उन्होंने चिंतन भी किया। अमेरिका मे इसी में से एक टेनेसी वैली भी है।
कलकत्ता परिषद में
२३ अगस्त १९४४ मे कलकत्ता परिषद मे दिए गए भाषण के अंत में बाबासाहब कहते हैं- “The Govt. of lndia has very much in its mind the Tennessee valley scheme operating in the United States. They are studying the schemes and feel that something along that tine can be done in lndia if the provinces offer their co-operation and agree provincial barrier….”
अखिल भारतीय दृष्टिकोण व गरीबी उन्मूलन का उद्देश्य ध्यान में रख कर सिंचाई विभाग का कार्यभार प्राप्त होते ही बाबासाहब ने पहले बंगाल एवं उडीसा राज्यों पर ध्यान दिया। वहां पर नदियों की बाढ़ के कारण जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता था तथा बाढ़ के विध्वंसकारी परिणामों का सामना करना पड़ता। जीवनदायी जल काल बन जाता था। इस समस्या का अध्ययन करने हेतु एक कमेटी बनाई, जिसे स्वयं बाबासाहब का मार्गदर्शन मिला। इसी विषय पर ३ जनवरी १९४४ को दामोदर वैली स्कीम से संबंधित कलकत्ता में सम्पन्न परिषद के प्रारम्भ में दिए गए भाषण में बाबासाहब ने कहा ङ्गश्र र्ाीीीं रश्रीे रिू ाू ींीळर्लीींश ींे ींहश लेााळींींशश षेी र्ींशीू र्ीेीपव र्ींळशुी ींहशू हर्रींश शुिीशीीशव लेींह ेप रिीींळर्लीश्ररी िीेलींशा ेष वशरश्रळपस ुळींह षश्रेेवी ेष ऊरोवरी ीर्ळींशी। ेप ींहश सशपशीरश्र िीेलश्रशा ेष ींहश लशीीं र्ीळींश्रळीरींळेप ेष ींहश ुरींशी ीर्शीेीीलशी ळप ींहश र्लेीपींीू.,,
भाषण के अमत में वे कहते हैं-
इस प्रकार उन्होंने क्षेत्रीय स्वार्थ को एक किनारे रखकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से समस्या को देखने की दृष्टि दी, जिससे गरीबों का भला हो सके।
बहुआयामी योजनाओं की रचना
सिंचाई व विद्युत मंत्री के रूप में केवल सिंचाई को ही एकमात्र उद्देश्य न बनाकर बांधों एव सिंचाई योजना का बहुआयामी उपयोग सुनिश्चित करने का काम उन्होंने किया। यह सर्व विधित है कि उड़ीसा में महानदी, ब्राह्मणी, वैल्रणी ये बडी नदियां बढती हैं। ये सब बड़ी क्षमता वाली नदिया हैं। इन नदियों, उपनदियों से ओडीसा के कटक, पुरी, बालासोर, जिले का ८००० वर्ग मीटर का त्रिभुज प्रदेश प्रभावित रहता है। ये तीनों नदियां विभिन्न प्रांतों के ६००० वर्ग मील क्षेत्र के पानी लेकर आती हैं। परिणाम स्वरुप हर साल भारी बाढ़ आती रहती है।
इस बाढ़ से इन नदियों का (९००००००० वर्ग फुट) १११०४३ दशलाख घन मीटर पानी प्रति वर्ष समुद्र में चला जाता है। हर साल जनधन की भारी हानि तो होती ही है। इस विषय की (१८७२, १९२८, १९३६, १९३९, १९४५) विभिन्न समितियों के अध्ययन के बाद बाबासाहब करते हैं “l am sorry to say that they did not bring g right approach to bear on the problem. Ttrey were inftuenced by the idea that water in excessive quantity was an avil. They were guiled by the conception that when water comes in excessive quantity what needs to be done is to let it run into the sea in an orderly flat. Both these views are now regarded as grave misconceptions and as positively dangerous from the point of view of the people. lt is wrong to think that water in excessive quantity is an evil. Water can never be excessive as to be an evil”’
वे आगे कहते हैं-…..”if conservation of water is mandatory from the point of view of public good, obviously, the plan of embankment is wrong plan. lt is a means which does not subserue the can, namely the conservation of water and must therefore be abandoned…”
….
यहां डॉ. आंबेडकर का बांधों के कार्य को प्राथमिकता पूर्वक कराने का कितना आग्रह दिखाई देता है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सेंट्रल वाटर कमीशन तथा दामोदर घाटी योजना कार्पो. की स्थापना की (१९४५)। इतना ही नहीं, तो जल सम्पति के विकास के लिए नदी के स्रोतों को इकाई मानकर राष्ट्रीय जल नीति की नींव रखी। शील महानदी जैसी नदियों के लिए अलग से नियमों की स्थापना की। उड़ीसा के लिए विभाग बनाने के रास्ते में बहुत सी बाधाओ को दूर कर निगम की स्थापना का कार्य प्रारम्भ किया। कृष्णा कोयना, गोदावरी, तापी इन नदियों का पानी बेकार न जाए इस हेतु उन्होंने जोड़ नदी योजना का भी सुझाव दिया।
रेलवे मार्ग की तरह जलमार्ग को भी आगे बढ़ाया जाए
रेलवे मार्ग का जाल पूरे देश में फैला हुआ है, जो केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। बाबासाहब ने जल मार्ग के विषय में भी अध्ययन किया था। वे कहते हैं, जलमार्ग के संबंध में सारी व्यवस्थाएं कम्पनी सरकार ही करती थी, रेलवे मार्ग जैसा ही महत्व जलमार्ग को दिया जाता था। पर १८७५ में इस बात पर विरोध दिखाई देता है। सर काटन ने केन्द्रीय व्यवस्था के लिए संघर्ष भी किया, परंतु वे हार गए। मैं उससे अप्रसन्न था। ऐसे जलमार्ग के अधूरे काम के कारण रेवन्यू देने की क्षमता कम हुई। हमें जर्मनी एवं रूस से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। यदि रेलवे को एक राज्य के साथ बांधकर नहीं रखा जा सकता तो अलग अलग प्रांतों से बहने वाली नदियों के जलमार्ग पर एक राज्य का अधिकार कैसे हो सकता है?
जल प्रबंधन एवं जलमार्ग ये राज्य के अधिकार क्षेत्र में होने कारण होनेवाले नुकसान के विषय में वे कहते हैं एक राज्य को बिजली चाहिए तो उसके लिए उत्पादन का केंद्र दूसरे राज्य में होना मान्य होता है, यदि उस दूसरे राज्य की विद्युत उत्पादन पर रुचि न होने, या उस राज्य के धन का अभाव हो तो प्रांतीय स्वायत्तता के नाम पर शत्रुता पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाता है, इसे न्याय संगत भी ठहराया जाता है।
डॉ. आंबेडकर सुझाव देते हैं कि संवैधानिक परिवर्तन करके स्वतंत्र प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिए, उसी प्रकार अंतरराज्यीय विवादों में केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए।
आधुनिक भारत का संविधान
बाबासाहब जब संविधान निर्माण समिति के प्रमुख बने तो उन्होंने संविधान में इस विषय पर धारा २६९ एवं २४२ संविधान में जोड़कर अपने इन चिंतन को कार्यरूप में लाने का हर संभव प्रयास किया। वर्तमान में तो अलग अलग प्रांतों ने विभिन्न नदियों के लिए प्राधिकरण बना लिए हैं। जल का विषय पूर्ण रूप से राज्यों के हाथ में है। यदि यह विषय पूर्ण रूप से केंद्र के हाथ में होता तो शायद कावेरी जल विवाद जैसे मसले इतने लम्बे न खींचे होते।
आज की जल समस्या को देखते हुए गावों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की लघु तथा महा सिंचाई योजनाओं को लागू कर जल सम्पदा विकास की श्रृखंला बनानी होगी, उसके बिना समस्या का निदान नही हो सकेगा। यदि इसी प्रकार घटनाक्रम आगे बढता गया और देश को जल समस्या से मुक्ति प्राप्त हो गई तो सम्पूर्ण भारतीय समाज बाबासाहब को ‘जल समस्या मुक्ति के प्रेरणा स्रोत’ के रूप में याद रखेगा।
मो.: ९७३००८१६६१

 

rom the point of view of the people. lt is wrong to think that water in excessive quantity is an evil. Water can never be excessive as to be an evil”’

 

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