निराश खरगोश

एक बार सुन्दर वन में खरगोश ने अपने लिए चारों तरफ मंडरा रहे खतरों पर विचार करने के लिए बैठक की। जंगल के मांसाहारी जीवों ने उनका जीना मुश्किल कर दिया था। अतः बैठक में निर्णय लिया गया कि सभी खरगोश जल-समाधि ले लें। सभी खरगोश इकट्ठे होकर तालाब की ओर चल पड़े।

उस तालाब में हजारों मेंढ़क रहते थे रहते थे। मेंढ़क तालाब से बाहर निकलकर धूप सेंक रहे थे।

खरगोशों के आने का शोर सुनकर वे भयभीत होकर ‘छपाक-छपाक’ पानी में कूद गए।

उन्हें ऐसा करते देखकर खरगोशों का सरदार चिल्लाकर बोला-‘‘ठहर जाओ, कोई आत्महत्या नहीं करेगा। देखो, हमसे डरने वाले जीव भी इस दुनिया में मौजूद हैं। जब वे आत्महत्या की बात नहीं सोचते तो हम क्यों सोंचे।’’ और फिर सभी खरगोश वापस जंगल की ओर चल दिए।

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