विदेश में भारतीय लिबास पहने लम्बे घने बालों वाली एक लड़की रंगोली बना रही है और पास ही लगभग उसी की उम्र का एक युवक बॉल (गेंद) खेल रहा है। युवक का बॉल रंगोली पर गिरता है, वह बॉल वापस लेने आता है। दोनों की पहचान होती है, दोस्ती होती है। दोनों साथ घूमते हैं। लड़का लड़की के नृत्य और बालों की तारीफ करता है और लड़की उसकी बाइक की। दोस्ती परवान चढ़ती है और प्यार में तब्दील हो जाती है। दोनों को एक-दूसरे को उपहार देना है। लड़का साड़ी और नेकलेस खरीदता है और लड़की हेलमेट और बाइक प्लेट। कहानी का नाजुक और हृदय स्पर्शी मोड़ यह है कि हेलमेट खरीदने के लिए लड़की अपने बाल कटवाकर विग बनाने वाली कंपनी को बेच देती है और लड़का अपनी बाइक बेच देता है। कहानी पढ़कर कुछ याद आया? जी हां; यह कहानी पंकज उधास की प्रसिद्ध गजल ‘और आहिस्ता कीजिये बातें’ की है। जैसे-जैसे गजल आगे बढ़ती है कहानी भी अपनी रोचकता बढ़ाती जाती है और वह सब कुछ बयां कर देती है जो एक फिल्म ढाई या तीन घण्टे में कहती है। चंद लम्हों की ऐसी कई दास्तानों ने दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया था। लोग मन्त्र मुग्ध होकर ५-६ मिनटों की इस कहानी और गीतों के मेल को देखते-सुनते रहते थे।
ये और इस तरह के कई अन्य गीतों और गजलों ने लोगों को हिन्दी फिल्मों के गीत तक भुला दिये थे। जगजीत सिंह की गजलों के एलबम, मिराज, मरासिम, सहर ने लोगों के दिलों को छू लिया था। ‘वो कागज की कश्ती…’ में एक लड़की (गायत्री जोशी) की फोटोग्राफी के दौरान गावों में घूमना, नैसर्गिक सौंदर्य को देखना, शहरी ताम-झाम से दूर गांव के लोगों का आपस में मेल-जोल, बच्चों का बूढ़ी दादी से कहानियां सुनना इत्यादि गांव की संस्कृति को बखूबी दर्शाता है।
जगजीत सिंह की ही ‘शाम से आंख में नमी सी है’ ऐसे युवा दंपत्ती (जिमि शेरगिल-सिमोन सिंह) की कहानी है जो एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं, परन्तु अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाने के कारण एक दूसरे को समय नहीं दे पाते। काम के दौरान ही पति (जिमि शेरगिल) को एक टूटी हुई फोटोफ्रेम देखकर याद करता है कि जब उसके पास वक्त था तो वह अपनी पत्नी को अपने हाथ से चूड़ियां पहनाता था। पत्नी (सिमोन सिंह) अपने दफ्तर के रास्ते को देखकर याद करती है कि पति ने इस रास्ते पर उसके लिए फूल बिछाये थे। उन दिनों को याद करके दोनों एक ही दिन बिना एक दूसरे को बताये दफ्तर से घर जल्दी लौटते हैं। अचानक ही एक-दूसरे को सामने देखकर दोनों ही खुश हो जाते हैं और एक-दूसरे के साथ शाम गुजारते हैं।
जिन्दगी में होने वाली रोजमर्रा की घटनाएं जिन्हें कोई खास अहमियत नहीं देता, इन गीतों के माध्यम से सामने आयीं और लोगों ने भी इन्हें अपनी कहानी मान लिया।
ये कहानियां केवल गजलों तक ही सीमित नहीं रहीं। सोनू निगम द्वारा गाये गए ‘दीवाना’ के हर एक गीत की अपनी एक अलग कहानी है। ‘इस कदर प्यार है’ गीत दो ऐसे दोस्तों पर चित्रित है जो बचपन में साथ खेले-पढ़े और अलग हो गये। एक दिन दोनों की एक बस में मुलाकात होती है। लड़का लड़की को दोनों की पुरानी तस्वीर दिखाता है और विश्वास दिलाने की कोशिश करता है कि वही उसका हमसफर है।
आशा भोसले और जगजीत सिंह के रोमेंटिक गीत ‘जब सामने तुम आ जाते हो’ में प्रेम त्रिकोण का सुन्दर चित्रण है। दो बहनें एक ही लड़के से प्रेम करती हैं जो कि एक बहन का दोस्त भी है। जब उस बहन को पता चलता है कि उसका सबसे अच्छा दोस्त उसकी बहन से प्यार करता है, तो वह दोनों का मिलन करवा देती है। इस पूरी कहानी को कुछ ही पलों में समेटा और सहेजा गया है।
एक ऐसा ही खूबसूरत ताना-बना बुना गया था अदनान सामी और आशा भोसले के गीत ‘कभी तो नजर मिलाओ’ में सलिल अंकोला और अदिति गोवित्रीकर पर चित्रित दो गानों में सलिल की बहन उसे अदिति के जन्मदिन पर उससे मिलवाती है। वे दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं; जबकि सलिल की सगाई हो चुकी है। यह बात जब अदिति को पता चलती है तो वह उदास हो जाती है और उधर सलिल का भी शादी की तैयारी में मन नहीं लगता। तब सलिल की बहन और अदिति की सहेली उन दोनों की मन की व्यथा समझती है और दोनों को मिलवाती है।
ऐसा नहीं है कि इन गीतों में केवल प्रेम कथाओं का ही चित्रांकन किया गया है। फाल्गुनी पाठक के ‘मैंने पायल है छनकायी’ में एक प्रतियोगिता दर्शायी गई है, जिसमें कठपुतलियों का सुन्दर उपयोग किया गया है। फाल्गुनी की खनकती मधुर आवाज पर कठपुतलियों का थिरकना मन को प्रफुल्लित कर देता है। अली हैदर ने ‘पुरानी जीन्स’ में कॉलेज के दिनों को याद किया है, जिसमें पुराने दोस्तों का मजाक उड़ाना, ग्रुप में गाना, गिटार बजाना आदि का समावेश है। ए.आर. रहमान ने ‘मां तुझे सलाम’ में वन्दे मातरम् को अलग अंदाज में पेश किया। मां और मातृभूमि की याद में उठने वाली कसक इस गाने में दिखायी देती है।
इस तरह के गीतों के माध्यम से कई पुराने रूमानी गीतों को भी नयापन दिया गया जिसे आजकल ‘रीमिक्स’ कहा जाता है। आशा भोसले द्वारा गाया गया ‘दो लफ्जों की है दिल की कहानी’ गीत फिल्म में जितना रूमानी है, उतना ही इसमें भी लगता है, क्योंकि धुन, बोल या साजों के साथ कोेई छेड़छाड़ नहीं की गयी है, केवल इसके साथ चलने वाली कहानी बदल गयी है।
आशा भोसले ने ही एक फिल्म में आशा पारेख के लिये एक गीत गाया था, बोल थे ‘पर्दे में रहने दो पर्दा न उठाओ’। यही गीत जब रीमिक्स रूप में आया तो अपने साथ एक राजकुमारी की कहानी लाया जो पहाड़ों में एक किले में कैद है। राजकुमारी की खासियत यह है कि उसकी चोटी बहुत लम्बी है। वह राजकुमारी सात-आठ बार अपने हाथ में लपेटकर ही चलती है। उस राजकुमारी को कैद से आजाद कराने के लिए के लड़का निकलता है, जिसे खुद आशा ही विभिन्न चिन्हों के माध्यम से रास्ता बताती है। उन निशानियों के माध्यम से लड़का राजकुमारी को ढूंढ़लेता है और उसे कैद से छ़ुडा लेता है।
इन कहानियों के साथ केवल शांत सुरीले और रूमानी गीत ही सफर नहीं करते बल्कि धूम-धड़ाके वाले गीत भी इनका हिस्सा हैं। पलाश सेन के यूफोरिया बैण्ड द्वारा गाये गए ‘कभी आना तू मेरी गली’ के साथ भी एक कहानी चलती है। विद्या बालन और पलाश एक-दूसरे को चाहते हैं, परन्तु यह बात दोनों ही एक-दूसरे से नहीं कह पाते। इस बीच विद्या की शादी तय हो जाती है। शादी की सारी रस्मों और हुल्लड़ के साथ ही गाना आगे बढ़ता है। फेरों के पहले ही विद्या के ससुरालवाले किसी बात पर अड़ जाते हैं। विद्या के पिता अपनी पगड़ी उनके सामने रखते हैं फिर भी वे शादी अधूरी छोड़कर चले जाते हैं। उसी पगड़ी को पलाश थामता है और विद्या से शादी कर लेता है।
इन गीतों को ध्यान से देखा जाये तो कुछ बातें ध्यान में आती हैं कि कहानियां बिल्कुल गीतों के बोलों के अनुसार नहीं चलती फिर भी दर्शकों ने इन्हें एक-दूसरे का पूरक माना। दूसरी बात यह कि ये गीत और कहानियां एक-दूसरे के पूरक तो हैं, परन्तु एक-दूसरे पर आश्रित नहीं हैं। आवाज बंद करके केवल कहानी भी देखी जा सकती है और अगर केवल गीतों को सुना जाये तो वे भी कर्ण प्रिय ही लगेंगे।
इन गीतों की कहानियों मे दिखने वाले किरदारों मे से कुछ आज छोटे और बड़े पर्दे की नामचीन हस्तियां हैं, जिन्होंने अपने करियर के शुरुवाती दौर में इनमें काम किया था। उदाहरणार्थ- विद्या बालन (कभी आना तू मेरी गली),जॉन अब्राहम (यूं मेरे खत का जवाब आया), जिमि शेरगिल (शाम से आंख में नमी सी है), बिपाशा बासु (तू! कब ये जानेगी), मिलिंद कुलकर्णी (मेड इन इण्डिया, इस कदर प्यार है) इत्यादि।
कहा जाता है कि हर पीढ़ी की अपनी पसंद, अपना संगीत होता है। आज के ‘आइटम सांग्स’ की चकाचौंध में ये गीत कहीं खो गये हैं और एक पीढ़ी आज भी उनका इन्तजार कर रही है।
प्रोफेसर श्री राम अग्रवाल
29 जून 2019जिन्दगी के सबसे खुशगवार व दिल को छूते अहसासों से रूबरू कराता आलेख
Ravindra Marathe
29 जून 2019एक अनोखे विषय वस्तु का इतना अच्छा विश्लेषण
रोमांचक लेख
Keep it up
अनाम
28 जून 2019गीतों के बोल पर थिरकती बेहतरीन लेखनी,,,बहुत खूब
Abhiahek
28 जून 2019Nice article
Really miss those meaningful remixes which are somewhere linked with everyone life