खाड़ी युद्ध- वैश्विक अस्थिरता की बानगी

ओमान की खाड़ी में दो तेल टैंकरों पर हुए रहस्यमय विस्फोटों ने दुनिया को टकराव की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। जब ये विस्फोट हुए तब ये तेल टैंकर संयुक्त अरब अमीरात से 80 समुद्री मील और ईरान से कोई 60 समुद्री मिल दूर थे। याने वे ईरान के अधिक करीब थे। इसलिए अमेरिका का आरोप है कि इन टैंकरों पर हमले ईरान ने करवाए हैं और यह एक तरह छद्म युद्ध ही है। वहीं ईरान का कहना है कि तेल टैंकरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी अपनी है और ईरान ने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिससे खाड़ी देशों में माहौल चिंताजनक हो। संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री ने भी अमेरिका के सुर में सुर मिलाया है। उनका कहना है कि टैंकरों पर हुए हमले में ईरान का स्पष्ट रूप से हाथ है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यहां से गुजरने वाले जहाजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। इजरायल भी अमेरिका के साथ है।

ओमान की खाड़ी में हुई इस घटना से पूरी दुनिया क्यों चिंतित है, यह जानना अत्यंत आवश्यक है। जिन टैंकरों पर हमले की बात कही जा रही है, उनका दूर-दूर तक अमेरिका से कोेई संबंध नहीं है। ऐसा होते हुए भी अमेरिका इस मामले में हस्तक्षेप पर क्यों उतारू है? उसकी बड़ी वजह है। दुनियाभर के करीब एक तिहाई कच्चे तेल की आवाजाही इसी खाड़ी सेे होती है। इसके अलावा प्राकृतिक गैस का करीब पांचवां हिस्सा भी यहीं से होकर जाता है। ऐसी स्थिति में समुद्री तेल टैंकरों को निशाना बनाकर पूरी दुनिया के कच्चे तेल की आपूर्ति को प्रभावित करने की कोशिश के रूप में इस घटना को देखा जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के समय से ही अमेरिका ने अरब देशों से पेट्रोलियम की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने का भरोसा दिलाया है। 1990- 91 में खाड़ी युद्ध के दौरान क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति के जरिए अमेरिका ने अपनी प्रतिबद्धता भी जता दी थी। भले ही अमेरिका के टैंकर इस विस्फोट की घटना में शामिल ना हो, फिर भी इस रास्ते के बंद होने से अमेरिकी हितों पर अवश्य दुष्प्रभाव हो सकता है।

इजरायल और अरब देशों की तरह ट्रंप भी मानते हैं कि ईरान क्षेत्र की शांति भंग कर रहा है। अमेरिका ने ओबामा के समय हुआ परमाणु समझौता तोड़ कर ईरान पर दुबारा आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। इन प्रतिबंधों का लक्ष्य ईरान के तेल निर्यात को बाधित करना है, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाए। वर्तमान में ईरान तेल उत्पादन में शीर्ष पर है। उसके तेल निर्यात पर पूरी रोक के लिए अमेरिका अन्य देशों से मिलकर दबाव बनाना चाहता है। अमेरिकी प्रतिबंध के लागू होने के बाद ईरानी अर्थव्यवस्था संकट ग्रस्त हो चली है। इस कारण ईरान ने धमकी दी है कि अगर वैश्विक समुदाय अगले साठ दिनों में समझौते का कोई रास्ता न बनाता हो तो ईरान दोबारा अपनी एटमी गतिविधियां पूरे जोरशोर से शुरू करेगा। ऐसी स्थिति में अमेरिका और ईरान का टकराव दुनिया के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। ईरान द्वारा परमाणु अस्त्र कार्यक्रम पुनः शुरू करने की चेतावनी से अमेरिका और आगबबूला हो गई हैै। अमेरिका ने कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध याने इकोनॉमिक सैंक्शंस लाकर ईरान की व्यापारिक गतिविधियां रोकने का प्रयास किया है। पर अमेरिका के इन सभी प्रयासों के बाद भी ईरान बाज नहीं आया है। मई 2019 से अमेरिका और ईरान फिर से एक दूसरे के विरोध में युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं। अमेरिका ने क्षेपणास्त्रों से लैस दो बड़े युद्धपोत ईरान के दक्षिण क्षेत्र में अरब सागर में तैनात कर दिए हैं। ईरान कहता है, अच्छा ही है ये युद्धपोत ईरानी समुद्री सीमा के करीब हैं, क्योंकि इससे ईरानी मिसाइलों द्वारा अमेरिकी युद्धपोतों को निशाना बनाना आसान हो जाएगा। यह सम्पादकीय लिखते-लिखते यह घटना चर्चा में आई है कि ईरान ने अपने एअर स्पेस में घुसे अमेरिकी जासूसी ड्रोन को मार गिराया है। इस घटना के बाद इरान ने वक्तव्य दिया है कि इस ड्रोन को गिराना ईरान की सीमाओं में घुसपैठ करनेवालों को स्पष्ट संकेत है। इस घटना के बाद अमेरिका और ईरान दोनों देशों के बीच तणाव अधिक बढ जाएगा। निश्चित रूप से अमेरिका के शक्तिशाली ड्रोन को ईरान द्वारा मार गिराने की घटना अमेरिका के लिए बड़ा झटका हैं।

ईरान यह भी कहता है कि उससे अमेरिकी युद्ध का मतलब होगा तेल की कीमतें प्रति बैरल 100 डॉलर तक पहुंचना। ईरान की बात का असर अभी से दिखाई दे रहा है। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव 60 डॉलर प्रति बैरल है। उसके 100 डॉलर तक छलांग लगाने के मायने है महंगाई का जलजला निर्माण होना। प्रत्येक राष्ट्र अपने हितों की रक्षा के लिए हमेशा कटिबद्ध होता है। दुनिया की चिंता करते रहने की अपेक्षा पहले अपने देश के हितों की चिंता करना किसी भी राष्ट्र का प्रमुख लक्ष्य होता है। ऐसे में अमेरिका के अड़ियल रवैए के कारण ईरान की सुरक्षा एवं उसके व्यापारिक हितों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। उधर, ट्रंप की नजर अगले साल हो रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर है। इसलिए वे चाहते हैं कि ईरान की मगरूरी तोड़ दें ताकि अमेरिकी जनता के सामने उनकी छवि एक प्रभावी नायक के रूप में उभरे। इसीलिए दोनों देेश एक दूसरे को आंखेंं दिखा रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत ईरान से कच्चे तेल की खरीदी बंद करें। भारत के अमेरिका, इजरायल, अरब देशों से दोस्ताना रिश्तें हैं। अन्य अरब राष्ट्रों की तुलना में भारत भौगोलिक दृष्टि से ईरान के नजदीक है। वहां भारत चाबहार बंदरगाह का विकास भी कर रहा है, जो सामरिक दृष्टि से भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी कारण भारत ईरान से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल की खरीदारी करता है। भारत को इस पर अत्यंत संतुलित नजरिए से स्थिति से निपटना होगा। भारत को अमेरिका, अरब देश, इजराइल की भूमिका के साथ भी चलना है और ईरान के साथ व्यापार भी पूरी तरह से बंद नहीं करना है। भारत के नए विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर की यह परीक्षा की घड़ी है। ऐसे समय में भारत के लिए चिंता का विषय तेल संकट को लेकर है। लेकिन इससे भी चिंताजनक बात यह है कि ख़ाडी मुल्कों में लाखों भारतीय नौकरी के कारण रहते हैं। खाड़ी देशों में बनने वाली युद्ध जैसी स्थिति उनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर देगी।

 

 

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