माओवादियों के चंगुल में फंसी महिलाएं

दंडकारण्य में कई वर्षो से आतंक का पर्याय बनी माओवादी नर्मदाक्का नामक महिला को आख़िरकार पुलिस ने गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की हैं। उस पर हत्याकांड के इतने गंभीर अपराध दर्ज है कि उसे जमानत मिलना भी मुश्किल है। साथ ही, नर्मदाक्का का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। जेल में कब तक वह रह पाएगी, यह कहना मुश्किल है। उनकी गिरफ्तारी से माओवादी गतिविधियों में भारी खलबली मच गई। वह माओवादी महिला मोर्चा की प्रमुख थीं।

नर्मदाक्का का मूल नाम अलुरी उषाराणी है। उनका पैतृक गाँव, गुडीवाड़ा, आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में है। 1995 से पहले माओवादी आंदोलन की सक्रियता के बाद, उन्होंने इसे नर्मदाक्का का नाम दिया। माओवादी आंदोलन में महिलाओं के सबसे क्रूर व हिंसक कार्यवाही और आपराधिक गिरोह में नर्मदाक्का का नाम सबसे आगे है। उसने मद्रास विश्वविद्यालय में एमए किया है। माओवादी आंदोलनों में शामिल होने के बाद नर्मदाक्का को बहुत सारी नई जिम्मेदारियां दी गई। सक्रिय भूमिका में आने के बाद  नर्मदाक्का पर  जिम्मेदारियां तेजी से बढ़ीं। स्थानीय कमेटी, ज़ोनल कमेटी होते हुए, वह दंडकारण्य के महिला नक्सलियों की प्रमुख बनीं।

*52 बड़े अपराधों में शामिल होने का शक

नर्मदाक्का गुप्त और छापामार हमलें में कुशल थी। लोकसभा के चुनाव प्रचार में दंतेवाड़ा में माओवादी हमले में भाजपा विधायक और पांच अन्य लोगों की मौत हो गई थी। हमला नर्मदाक्का द्वारा किया गया था। नर्मदाक्का ऐसे नरसंहार का षड्यंत्र रचने और उसे अंजाम देने के लिए कुख्यात है। कई राज्यों को मिलाकर उस पर कुल ५० लाख का इनाम घोषित किया गया था। नर्मदाक्का को कम से कम 52 बड़े अपराधों के संदिग्ध के रूप में नामित किया गया है।

नर्मदाक्का का पति किरण कुमार कट्टर माओवादी हैं। वह भी १५ जून को पुलिस कार्रवाई में पकड़ा गया है। उसकी उच्च शिक्षा IIT में हुई है। वह जितना बुद्धिमान है, उतना ही क्रूर है। नर्मदाक्का और उसने मिलकर कई हत्याकांड को सफल बनाया हैं। किरण कुमार ने अपना ज्यादातर समय माओवादियों के प्रचार को बढ़ावा देने में लगाया। वह और नर्मदाक्का कम से कम 25 वर्षों तक भूमिगत रहने में सफल रहे हैं। नर्मदाक्का और उनके पति हैदराबाद में छह महीने तक छिप कर रहे और इस दौरान नर्मदाक्का का इलाज किया जा रहा था। तब से उन पर निगरानी रखी जा रही थी और अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

*माओवादी संगठन में महिलाओं की दयनीय अवस्था

हालाँकि नर्मदाक्का दंडकारण्य में महिला माओवादियों की प्रमुख थी, लेकिन वह माओवादी संगठनों में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों और माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में महिला माओवादियों के खिलाफ अत्याचार को रोकने में सक्षम नहीं थी। माओवादी संगठन एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ महिलाएँ अभी भी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहीं हैं। लेकिन उनका जीवन सामान्य महिला की तुलना में बहुत ही घृणित है। आदिवासी महिलाएं पहले की तरह सुरक्षित नहीं हैं। सदियों से शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करनेवाले आदिवासी इलाकों में जब से माओवादियों ने घुसपैठ की है तब से सामान्य जीने वाले आदिवासी समाज की जीवनशैली तबाह हो गई हैं। आदिवासी महिलाओं में विभिन्न प्रकार की गंभीर समस्याएं हैं। इन समस्याओं को हल करने के तरीके के बारे में सोचना आवश्यक है।

माओवादी संगठनों में महिलाओं की स्थिति क्या है ? सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ सतत हो हल्ला मचाने वाले माओवादी, संगठन में शामिल महिलाओं की वास्तविक स्थिति प्रत्यक्ष देखेंगे तो पता चलेगा कि माओवादियों की कथनी और करनी में जमीन – आसमान का अंतर है।

*अनगिनत आदिवासी लड़कियों एवं महिलाओं को फंसाया जा रहा है

माओवादी संगठन में कई वर्षों तक रहने के बाद, आत्मसमर्पण करने वाली कुछ माओवादी महिलाओं की आप बीती हकीकत सुनने के बाद, शरीर कांप जाता है। आत्मसमर्पण करने वाले महिला माओवादियों को ढूँढना और उनसे बात करना एक मुश्किल काम है। नक्सलियों को शक होता है कि आत्मसमर्पण करने वाली महिलाएं पुलिस की खबरी के रूप में काम कर रही हैं। उसी शक के चलते उनकी हत्या की जाती है।

माओवादी आंदोलन के व्यूहरचना अनुसार, लड़कियों को संगठन में बहुत निचले स्तर पर भर्ती किया जाता है। पुलिस के साथ मुठभेड़ों में, माओवादी संगठन की लड़कियों को जानबूझकर मोर्चे पर छोड़ दिया जाता है। मुठभेड़ में यदि उनकी मृत्यु हो जाती है तो माओवादी यह प्रोपोगेंडा फ़ैलाने लगते है कि पुलिस महिलाओं को मार रहीं है। इसी तरह अनगिनत आदिवासी लड़कियां व महिलाएं काल के गाल में समाती जा रहीं है।

*महिलाओं के अधिकारों का हनन

पिछले कुछ वर्षों से, माओवादी प्रत्येक गांव के हर एक घर से एक लड़का या लड़की को अपने आन्दोलन में शामिल करने के लिए सख्ती बरत रहे हैं। एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है कि माओवादी नई पीढ़ी को अपने आन्दोलन में शामिल करने के लिए ८ वर्षीय नाबालिग बच्चों को बचपन से ही ट्रेनिंग दे रहे हैं।

पुलिस की छावनियां जहां होती हैं, उस स्थान पर भाजी, दूध, पानी आदि दैनिक रूप से जरुरी खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करनेवाले लड़कियों और महिलाओं को उनके घर से माओवादी उठा कर ले जाते है। गडचिरोली जिला के अनेक गांवो के छोटे व्यापारी, किराणा दुकानदार की स्त्रियों को माओवादी भगाकर ले गये है। आज भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। कुछ लोगों का यौन शोषण करने के बाद गर्भवती होने पर अथवा मन भर जाने पर ६ महीनों बाद छोड़ दिया जाता है और कुछ लोग हमेशा के लिए लापता हो जाती है। नक्सलियों के डर से पुलिस के पास जाने की किसी की हिम्मत नहीं होती। यह कहना पेचीदा होगा कि इस क्षेत्र में मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में काम करने वाले संगठन, जो माओवादियों के काउंसल लेते हैं, वे स्थानीय समाचार पत्रों से उपर्युक्त मामलों को नहीं जानते हैं। इनमें से कोई भी आवाज इसके खिलाफ नहीं उठाता। क्योंकि वे सभी माओवादियों के प्रभाव में है और माओवादियों की ओर से काम कर रहे हैं। स्थानीय जनता और पुलिस को इन मुद्दों की जानकारी है। लेकिन माओवादियों के डर से और पुलिस व राजनेताओं की निष्क्रियता के कारण लोग कुछ नहीं कर सकते हैं।

*आत्महत्या पथ पर महिलाएं और बच्चे

विभिन्न माओवादी संगठनों में 30 प्रतिशत महिलाएँ हैं। महिलाओं को भोजन बनाने और  घर के काम में लगाया जाता है तथा वरिष्ठ माओवादी अपनी सुरक्षा के लिए महिलाओं को अपने अंगरक्षक के रूप में नियुक्त करते हैं। जिसके चलते महिलाओं का दुरुपयोग करना आसान हो जाता है।

माओवादियों के अनुसार हजारों महिलाएं माओवाद में शामिल हैं। अधिक से अधिक संख्या में माओवादियों के समक्ष महिलाओं को आत्मसमर्पण करना चाहिए। कहा जाता है कि जब तक माओ आंदोलन पूरा नहीं होगा, तब तक महिलाओं का शोषण होता रहेंगा।

कई बच्चे माओ आंदोलन में शामिल रहे हैं। बच्चों की टुकड़ियां माओवादियों के लिए उपयोगी हैं। क्योंकि कम उम्र के कारण उन पर शक नहीं होता है। ये बच्चे सुरक्षा बलों की गतिविधियों पर नजर रखते है। इसके अलावा इन्ही बच्चो के द्वारा हथियार व पैसों की सप्लाई की जाती हैं। अक्सर इन बच्चों का उपयोग जमीन (सड़क) के निचे विस्फोटक लगाने के लिए किया जाता है।

*महिलाओं की सुरक्षा के उपाय

केंद्र और राज्य सरकारों ने बार-बार माओवाद प्रभावित क्षेत्रों की महिलाओं की सुरक्षा के उपायों की घोषणा की है; लेकिन इसे अमल में लाने के लिए कुछ खास ठोस कदम नहीं उठाये। सरकार को आने वाले दिनों में ग्राम सुरक्षा समितियों के निर्माण पर जोर देना चाहिए। ऐसी समितियाँ स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से बनाई जानी चाहिए। माओवादी हिंसा से आम लोगों की रक्षा गाँव सुरक्षा दल ही कर  सकती है। हर गांव को कश्मीर की तरह ग्राम रक्षा परिषद बनाना होगा। उन्हें होमगार्ड, सेवानिवृत्त सैनिकों और पुलिस की मदद मिल सकती हैं। ऐसा होने पर ही सुरक्षा का भाव बढ़ेगा।

*आम जनता की जिम्मेदारी

पुलिस और खुफिया एजेंसियां को सर्वे और जांच करा कर माओवाद प्रभावित क्षेत्रों से कितनी लड़कियों और महिलाओं का अपहरण किया गया है, इसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। इसके बाद  निश्चित रूप से, नक्सलियों के चंगुल में फंसी महिलाओं को छुड़ाने का पूरा प्रयास सरकार व सुरक्षा बलों को करना  चाहिए।

लोकतंत्र में माओवादियों से लड़ना देशभक्त आम नागरिकों का भी काम है। तथाकथित मानवतावादी जो माओवादी हिंसा के पीछे हैं, उन्हें उजागर करना होगा।

2019 के चुनावों में, पार्टी के घोषणा पत्र में माओवादियों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं लिखा गया था। ऐसे सभी राजनैतिक पार्टियों को मतदान न कर सबक सिखाना बेहद जरुरी है। 2019 में विधानसभा चुनाव में माओवादियों का विरोध चुनावों में एक महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए।

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