कारगिल युद्ध की  स्मृतियां 

आज 26 जुलाई 2019 को कारगिल युद्ध को 20 वर्ष पूरे हो गए. कारगिल युद्ध की वीर गाथा प्रत्येक भारतीय के मन में आज भी जिंदा है। अब तक हुए युद्धों में केवल कारगिल युद्ध का प्रसार समाचार पत्रों और टेलीविजन पर बड़े पैमाने पर कियागया। इस  युद्ध पर अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। कारगिल,लेह यह भाग समुद्र तल से 13 से18 हजार फुट की ऊंचाई पर है। साल के 6 महीने वहां बर्फगिरती है एवं जमीन पर भी बर्फ जमा रहती है।-30 से -40 डिग्री तापमान इस भाग में रहता है। कश्मीर की सीमा पर दो लाख सैनिक पहरा दे रहे हैं परंतुकारगिल में कश्मीर की अपेक्षा दुगनी लंबी सीमा पर, लद्दाख से कश्मीर तक एक ब्रिगेड यानी 3000 से 4000 सैनिक ही तैनात थे। पाकिस्तानी सेना ने जहां भारतीय सेना का पहरा नहीं था ऐसे कारगिल के पर्वतों पर अपने सैनिकों की घुसपैठ कराकर वहां कब्जा जमाया।

 26 जुलाई कारगिल विजय दिवस

भारतीय सेना को जब इसका पता चला तब पाकिस्तानी सेना को भगाने के लिए भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” मुहिम  शुरू की। पहले तो पाकिस्तान ने ऐसा कहना शुरू किया की ये हमारे सैनिक नहीं है वरन आतंकवादी हैं। पाकिस्तानी सेना की नार्दन लाइट इन्फेंट्री की 11 से अधिक बटालियंस(एक बटालियन में 750 से 1000 सैनिक होते हैं) ने कारगिल के अलग-अलग भागों में घुसपैठ की। उन्हें वहां से हटाने के लिए भारतीय सेना ने अपनी  10000 से 15000 सैनिकों की दो टुकड़ियों  को युद्ध भूमि पर भेजा। 26 जुलाई 1999 को  अंतिम पाकिस्तानी सैनिक को मार कर यह क्षेत्र पाकिस्तानी सेना से मुक्त कराया गया, इसलिए इस दिन को “कारगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

 543 अधिकारी एवं जवान युद्ध में शहीद

विश्व की सबसे ऊंची पर्वत मालाओं में कारगिल युद्ध हुआ था। पहले इतनी ऊंचाई पर कोई भी युद्ध नहीं हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान के साढ़े 4000 से अधिक सैनिक मारे गए। भारत के 543 अधिकारी एवं जवान युद्ध में शहीद हुए। 13 सौ से अधिक भारतीय सैनिक एवं अधिकारी इस युद्ध में गंभीर रूप से घायल हुए। इस युद्ध के प्रारंभ में लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया को  कहा गया कि पाकिस्तानी सेना ने कहां तकघुसपैठ की है यह पता लगाएं।

कारगिल युद्ध के दूसरे हीरो या ने कैप्टन विक्रम बत्रा। शेर जैसे विक्रम बत्रा को उनके सैनिक शेरशहा कहते थे। कारगिल युद्ध केकेवल डेढ़ वर्ष पूर्व सेना में शामिल हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक ऐतिहासिक कार्य किया। कारगिल की पहली चोटी जीतने के बाद के बाद जब प्रसार

माध्यमों ने उन्हें पुछा कि इसके आगे क्या?तो उनका जवाब था, ” जितना भागजीता है  इससे संतोष नहीं है, ‘ ये दिलमांगे मोर’। उन्हीं के कारण ‘ ये दिल मांगे मोर’ यह वाक्य  प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद प्वाइंट 5140 पर की पाकिस्तानी सेना पर आक्रमण की जवाबदारी कैप्टन बत्रा को दी गई। प्वाइंट5140 जीता जरूर पर उसमें वे शहीद हो गए। युद्ध के पहले उन्होंने कहा था, “मैं भारत के ध्वज में लिपट कर ही वापस आऊंगा”। उनकी यह वाणी सच साबित हुई। इस युद्ध का सबसे पहला परमवीर चक्र कैप्टन बत्रा प्रदान किया गया।

 युद्ध भूमि को देखने जाएं

इसके बाद लेफ्टिनेंट विजयंत थापर को “थ्री पिंपल्स” नामक चोटी पर भेजा गया। उसमें उनकी दो राजपूताना राइफल्स के कंपनी कमांडर  मेजर आचार्य शहीद हुए। 22 वर्ष के विजयंत  कुछ महीने पहले हीसेना में अधिकारी बने थे। विजयंत ने 17000 फुट ऊंची इस “थ्री पिंपल्स” नामक   चोटी पर तिरंगा लगाया। इस चोटी पर  पाकिस्तान के 150 सैनिक  थे। विजयंत को इस मुहिम में वीरगति प्राप्त हुई। उन्हें  वीरचक्र  प्रदान किया गया।उन्होंने मुहिम पर जाने के पूर्व अपने परिवार को एक पत्र लिखा था। उन्होंने लिखा था, ‘ मैं यदि वापस नहीं आया तो ही यह पत्र मेरे परिवार को भेजा जाए। इस पत्र में उन्होंने अपने पिता सेवानिवृत्त कर्नल व्ही.एन. थापर को लिखा था कि हम कितनी कठिन परिस्थिति में लड़ रहे  थे, यह देखने युद्ध समाप्त होने के बाद अवश्य  जाएं। 88 वर्षीय कर्नल थापर हर साल26 जुलाई को 18000 फुट ऊंचीकारगिल की वीर भूमि पर जाकर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

 परमवीर कैप्टन मनोज पांडे,, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव सिपाही संजय कुमार की वीर गाथा

कैप्टन मनोज पांडे ने खालू बर नामक शिखर पर हमला कर शिखर वापस प्राप्त किया। उसमें उन्हें वीरगति प्राप्त हुई। उस समय अपनी टुकड़ी के जवानों को उन्होंने दो शब्द कहे थे’ ना छोडनु’ । नेपाली भाषा में इन दो शब्दों का अर्थ होता हैदुश्मन को छोड़ना नहीं। 24 वर्षीय मनोज पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया। इस युद्ध में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने अपनी प्लाटून के साथ टाइगर हिल परहमला किया था एवं वहां तिरंगा फहराया था। वह हमले में गंभीर रूप से घायल होगए थे। उन्हें परमवीर चक्र प्रदान किया गया। तेरा जैक राइफल के सिपाही संजय कुमार को प्वाइंट 4877 पर जाने का आदेश हुआ था। संजय कुमार ने पाकिस्तानी सेना पर जोरदार हमला कर  3 जवानों को मार गिराया। उसमें वे गंभीर रूप से घायल हुए। उन्हें भी परमवीर चक्र प्रदान किया गया।

इस युद्ध में  अनेक अधिकारी एवं जवान गंभीर रूप से घायल हुए। इनमें मेजरडी.पी.सिंह को  अपना एक पैर खोनापड़ा। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। वे आज भी कृत्रिम पैर से दौड  में भाग लेते रहते हैं। वे भारत के अग्रक्रम के ब्लेड रनर माने जाते हैं। गंभीर रूप से जख्मी हुए और अपने अंग गंवाए  अनेक जवान है  जो अपने अपंगत्व पर मात कर जीवन जी रहे हैं।

 युवा अधिकारी एवं वीर जवानों का युद्ध

कारगिल युद्ध युवा अधिकारी एवं उनकेमातहत काम करने वाले वीर जवानों का युद्ध था। यह भाग बड़े-बड़े पर्वतों का होने के कारण यहां तकनीक एवं क्षेपणास्त्र काउपयोग अधिक संभव नहीं था। यह पैदल सेना का युद्ध  था। पाकिस्तानी सेना परप्रत्यक्ष हमला कर उन्हें मारना पड़ रहा  था। इस युद्ध में शहीद अधिकारी एवं जवान  20 से 26 इस आयुसीमा के थे। हमारे 36 अधिकारी, 576 सैनिक और वायु सेना के 5 जवान शहीद हुए। शहीद अधिकारियों के रैंक लेफ्टिनेंट, मेजर, कैप्टन, लेफ्टिनेंट कर्नल इस प्रकार थे। पाकिस्तानी सेना की ओर से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए भारत के अनेक बुद्धिमान अधिकारी, सैनिकों ने अपने प्राण अर्पण किए।

इस युद्ध के लिए चार परमवीर चक्र, चार महावीर चक्र 29 वीर चक्र और 52 सेना मेडल प्रदान किए गए। इस युद्ध में 18 ग्रेनेडियर्स, दो राजपूताना राइफल्स, तेरा जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स, 18 गढ़वाल राइफल्स और 8 सिख रेजीमेंट सैनिक टुकड़ियों ने विशेष पराक्रम दिखाया। इसके लिए इन  टुकड़ियों को ‘ यूनिट साइटेशन ‘ से सम्मानित किया गया।

 आवश्यकता वीर सैनिकों एवं देश प्रेमी नागरिकों की

कारगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना ने द्रास क्षेत्र में एक युद्ध स्मारक बनाया है. कारगिल जाने वाले अनेक पर्यटक इस स्मारक को देखने जाते हैं। वहां जाने केबाद कारगिल युद्ध के कई शिखर वहां से   नजर आते हैं। इसे देखकर इस भाग मेंयुद्ध लड़ना कितना कठिन है, इसकी अनुभूति हमें होती है।इस युद्ध में अपने जीवन की आहुति देकर हमारे युवा अधिकारी एवं सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को वहां से भगाकर मातृभूमि की रक्षा की। युद्ध में शस्त्र एवं

सैनिक दोनों महत्वपूर्ण होते हैं। परंतु कोई भी शस्त्र चलाने के लिए सैनिक सबसे महत्वपूर्ण है और सैनिक यदि हमेशा सतर्क रहें तो देश हमेशा सुरक्षित रहता है। इसलिए भारतीय नागरिकों एवं सरकार नेअपने सैनिकों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।

आज की स्थिति में देश की सुरक्षा को बहुआयामी खतरे हैं। इसके लिए बड़े पैमाने पर सेना के साथ साथ नागरिकों कीभी भारत को आवश्यकता है.26 जुलाई” कारगिल विजय दिवस ” के निमित्त देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले सशस्त्र   दलों के वीर अधिकारी और सैनिकों को, देशवासियों की ओर से विनम्र  आदरांजली।

 

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