जब शेर जी उठा…

एक नगर में चार दोस्त रहते थे. उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे, जबकि चौथा वैज्ञानिक नहीं था, पर वह बहुत समझदार और बुद्धिमान था. चारों ने सोचा कि उनकी विद्या का लाभ तभी मिल सकता है, जब वे देश-विदेश में जाकर धन संग्रह करें. यही सोचकर वे यात्रा पर निकल पड़े.

कुछ दूर जाकर उनमें से सबसे बड़े ने कहा- हम चारों में एक विद्या-शून्य है, वह स़िर्फ बुद्धिमान है, पर हमारी तरह वैज्ञानिक नहीं. धनोपार्जन के लिये विद्या आवश्यक है. हम अपनी विद्या के चमत्कार से लोगों को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए हम अपने धन का कोई भी भाग इस विद्याहीन को नहीं देंगे. वह चाहे तो घर वापिस जा सकता है.

दूसरे ने भी इस बात का समर्थन किया, किन्तु, तीसरे ने कहा- नहीं, यह बात उचित नहीं है. बचपन से ही हम एक-दूसरे के सुख-दुःख के सहभागी रहे हैं. हम जो भी धन कमायेंगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा. अपने-पराये की गणना छोटे दिल वालों का काम है. हमें उदारता दिखलानी चाहिये.

उसकी बात मानकर चारों आगे चल पड़े. थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला. उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे. तीनों वैज्ञानिकों ने कहा- क्यों न हम अपनी शिक्षा की परीक्षा करें. विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं. यह कह कर तीनों उसकी हड्डियां बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गये. एक ने अस्थियां इकट्ठी कीं, दूसरे ने चमड़ी, मांस आदि, तो तीसरे ने प्राणों के संचार की प्रक्रिया शुरू की.

इतने में चौथे मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा- तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो, इसलिए सोच लो. वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खा जायेगा.

 

वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया. तब वह बुद्धिमान बोला- यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है तो दिखलाओ, लेकिन एक क्षण ठहर जाओ, मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊं… यह कहकर वह पेड़ पर चढ़ गया.इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया. जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया और तीनों मारे गये.

सीख: केवल शास्त्रों में कुशल होना ही पर्याप्त नहीं है, लोक-व्यवहार को समझने की बुद्धि भी होनी चाहिये. मात्र विद्या या ज्ञान की ज़रूरी नहीं, सामान्य ज्ञान व बुद्धि भी आवश्यक है, वरना विद्वान भी मूर्ख ही साबित होता है.

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