देश को लूट लिया इन घोटालेबाजों ने

जिस देश में बैंक का कर्ज चुका न पाने के कारण एक तरफ किसान आत्महत्या को बाध्य होते हों वहां बैंकों को हजारों करोड़ की चपत लगाने वाले पूंजीपति कानून को ठेंगा दिखाते हुए भोग-विलास कर रहे हों तो बात सोचने की हो जाती है। हर्षद मेहता, केतन पारेख से लेकर नीरव मोदी और मेहुल चोकसी तक ऐसे घोटालेबाजों की सूची पहुंचती है।

नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में भारत कई वित्तीय घोटालों के लिए चर्चित रहा। हालांकि वित्तीय या बैंकिंग घोटाले कभी भी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में कोई असाधारण घटना नहीं हैं। लेकिन जिस देश में बैंक का कर्ज चुका न पाने के कारण एक तरफ किसान आत्महत्या को बाध्य होते हों वहां बैंकों को हजारों करोड़ की चपत लगाने वाले पूंजीपति कानून को ठेंगा दिखाते हुए भोग-विलास कर रहे हों तो बात सोचने की हो जाती है। भगोड़ा विजय माल्या ओवल में वन डे क्रिकेट विश्वकप के दौरान भारत-आस्ट्रेलिया मैच पूरी ठसक से देख ही तो रहा था। हालांकि भारतीय दर्शकों ने ‘चोर-चोर’ का नारा लगा कर उसे अपमानित होकर वहां से भागने को मजबूर कर दिया। भारत में हर्षद मेहता, केतन पारेख, विजय माल्या से नीरव मोदी, जतिन मेहता तक घोटालों का इतिहास रहा है, जिन्होंने देश को हिला कर रख दिया।

भारतीय बैंकों को मार्च 2018 तक अंतिम तीन वित्तीय वर्षों के दौरान धोखाधड़ी के कारण लगभग 70,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। राज्यसभा में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के आंकड़ों के हवाले से तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने एक लिखित जवाब में यह बताया था। मंत्री ने कहा कि धोखाधड़ी का डेटा रिपोर्टिंग के वर्ष के अनुसार होता है, न कि धोखाधड़ी की घटना या ऋण की मंजूरी का वर्ष, उपक्रम का पत्र, जो पहले की अवधि का हो सकता है।

मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में पहला घोटाला उसी के संस्थापकों में से एक प्रेमचंद रायचंद ने किया था। इतिहासकार शारदा द्विवेदी ने अपनी पुस्तक ‘प्रेमचंद रायचंद: हिज लाइफ एंड टाइम्स’ में लिखा है, ‘वे शायद देश के पहले शेयर दलाल थे जिन्हें अंग्रेजी बोलना और लिखना आता था।’ उन्होंने 1861 में शुरू हुए अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान कपास की सौदेबाजी में काफी पैसा कमाया। इस गृह युद्ध की वजह से ब्रिटेन की मिलों को कपास अब हिन्दुस्तान से जाने लगा था। इसके चलते रायचंद की कंपनी बेकबे रिक्लेमेशन के शेयर दिनों-दिन महंगे होते गए। इनकी खरीद फरोख्त वायदा व्यापार के जरिये होती थी। जिसके लिए पैसे जुटाने का खेल बैंक ऑफ बॉम्बे से होता था। उस समय के इस बड़े बैंक पर भी रायचंद का नियंत्रण था। इस तरह की और भी कई कंपनियां बनीं और रायचंद ने अपने नाम का इस्तेमाल करके उनके शेयर भी आसमान छूती कीमतों पर बिकवाए। 1865 में अमेरिका में गृह युद्ध बंद हुआ तो इंग्लैंड ने फिर कपास वहां से ख़रीदना शुरू कर दिया। इसका असर यह हुआ कि हिन्दुतान की कंपनियों के शेयर्स रातों-रात ज़मीन पर आ गिरे। अब सबके पास आसमान छूती कीमतों में खरीदे गए ऐसे शेयर थे जिनका भाव कौड़ी हो चुका था क्योंकि उनका कोई खरीददार नहीं था। सबसे ज्यादा नुकसान प्रेमचंद रायचंद की कंपनी को हुआ। चूंकि बैंक ऑफ़ बॉम्बे का भी पैसा उनकी कंपनियों में लगा हुआ था लिहाज़ा वह भी धराशायी हो गया। यह देश का सबसे पहला शेयर बाजार घोटाला था जिसमें बैंक के 1.38 करोड़ रुपये डूब गए थे।

नब्बे के दशक के कुछ चर्चित घोटाले इस प्रकार हैः

हर्षद मेहता घोटाला

यह बहुचर्चित घोटाला 1991 में शेयर दलाल हर्षद मेहता ने किया। यह लगभग 5000 करोड़ रु का घोटाला था और इसका भंडाफोड़ किसी सरकारी संस्था ने नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध पत्रकार सुचेता दलाल ने किया था। उन्होंने हर्षद मेहता के बैंक ऑफ कराड और मेट्रोपोलिटन को-आपरेटिव बैंक के बीच फर्जी लेनदेन को उजागर किया था।

बी. कॉम पास हर्षद मेहता ने अनेक नौकरियों में हाथ आजमाते हुए हरजीवनदास नेमीदास सिक्योरिटीज नाम की ब्रोक्रेज फर्म में शेयर बाजार के हर पैंतरे सीखे औऱ 1984 में खुद की ग्रो मोर रीसर्स एंड असेट मैनेजमेंट नाम की कंपनी की शुरुआत की और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में बतौर ब्रोकर मेंबरशिप ली। 1990 के दशक में हर्षद मेहता की कंपनी में बड़े निवेशक पैसा लगाने लगे थे। उदारीकरण के उस दौर में हर दिन शेयर बाजार चढ़ रहा था, जिसका फायदा उठाने के लिए हर्षद मेहता ने बैंकों को बेवकूफ बनाया। हर्षद मेहता के एसीसी में पैसा लगाने के बाद मानो एसीसी के भाग्य ही बदल गए, क्योंकि एसीसी का जो शेयर 200 रुपये का था उसकी कीमत कुछ ही समय में 9000 हो गई। शेयर बाजार में हर्षद मेहता का दबदबा बढ़ गया। हर्षद मेहता के 1550 स्कॉवयर फीट के सी फेसिंग पेंट हाउस से लेकर उसकी मंहगी गाड़ियों के शौक तक सबने उसे एक सेलिब्रिटी बना दिया था। दरअसल, हर्षद मेहता रेडी फॉरवर्ड (आरएफ) डील के जरिए बैंकों से फंड उठाता था। आरएफ डील अर्थात् शॉर्ट टर्म लोन। बैंकों को जब शॉर्ट टर्म फंड की जरूरत पड़ती है तो वे इस तरह का लोन लेते हैं। इस तरह का लोन कम से कम 15 दिनों के लिए होता है। इसमें एक बैंक सरकारी बाँड गिरवी रखकर दूसरे बैंकों को उधार देते हैं। रकम वापस करने के बाद बैंक अपना बाँड दोबारा खरीद सकते हैं। इस तरह के लेनदेन में बैंक असल में सरकारी बाँड का लेनदेन नहीं करते हैं। बल्कि बैंक रसीद जारी करते थे। इसमें होता ये है कि जिस बैंक को कैश की जरूरत होती है वह बैंक रसीद जारी करता था। यह हुंडी की तरह होता था। इसके बदले में बैंक लोन देते हैं। दो बैंकों के बीच यह लेनदेन बिचौलियों के जरिए किया जाता है। मेहता को इस तरह के लेनदेन की बारीकियों की जानकारी थी। बस हर्षद मेहता ने अपनी पहचान का फायदा उठाते हुए हेरफेर करके पैसे लिए। फिर इसी पैसे को बाजार में लगाकर जबरदस्त मुनाफा कमाया। वह अखबारों में एडवाइजरी कॉलम्स लिखने लगा कि आप इस कंपनी में इंवेस्ट करे आपको फायदा होगा या इस कंपनी में ना करें इससे नुकसान होगा। बाद में पता चला कि मेहता सिर्फ उस कंपनी में पैसा लगाने की सलाह देता था जिसमें उसका खुद का पैसा लगा हुआ है। मेहता ने 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री और उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष पी वी नरसिंह राव पर केस से बचाने के लिए 1 करोड़ घूस लेने का आरोप लगाया था। हालांकि कांग्रेस द्वारा इसे सिरे से खारिज कर दिया गया था। मेहता पर अनेक केस चल रहे थे मगर उसे मात्र 1 केस में दोषी पाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसे दोषी पाते हुए 5 साल की सजा और 25000 रुपये का जुर्माना लगाया था। ठाणे जेल में बंद रहने के दौरान 31 दिसंबर 2001 को देर रात उसे सीने में दर्द की शिकायत हुई जिसके बाद उसे ठाणे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसकी मौत हो गई।

चेला भी चला गुरु की राह पर

हर्षद मेहता की तरह केतन पारेख के ग्लोबल ट्रस्ट बैंक घोटाले को भी देश नहीं भूल सकता। कहा जाता है कि हर्षद मेहता, केतन पारेख के गुरु थे। उसी की तर्ज पर साल 2001 तक केतन पारेख देश का सफल ब्रोकर बन गया। हर्षद मेहता की तरह ही केतन पारेख ने उस समय सिकंदराबाद में स्थापित ग्लोबल ट्रस्ट बैंक और माधवपुरा मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक से पैसा लिया और के-10 स्टॉक्स के नाम से शेयर बाजार में हेरफेर किया। पारेख ने तमाम नियमों को तोड़ते हुए कई फर्जी कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ा दिए थे। बाद में आई जोरदार बिकवाली से देश के लाखों निवेशकों को करोड़ों रुपए का चूना लगा।

विजय माल्या का बैंक घोटाला

हर साल खूबसूरत मॉडलों के नग्न कैलेंडर बनवाने में करो़डों रुपये उड़ाने और आलीशान पार्टियों पर पानी की तरह पैसा बहाने वाले भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या ने देश के 13 बैंकों को 9,432 करोड़ रुपये का चूना लगाया। इसमें 1600 करोड़ का सबसे ज्यादा कर्ज एसबीआई ने दिया था। इसके बाद पीएनबी (800 करोड़), आईडीबीआई (650 करोड़) और बैंक ऑफ बड़ौदा का नंबर है। माल्या इस समय लंदन में रहता है और सरकार उसके प्रत्यर्पण के लिए कोशिश कर रही है। जब विजय माल्या ने बैंकों से लोन लिया था तब उसकी कंपनी किंगफिशर शानदार तरीके से चल रही थी और उसके शेयर काफी ऊंचे थे। परंतु साल 2015 के अंत तक घोटाले के दौरान उसकी कंपनी डूब गई, शेयर बुरी तरह गिर गए।

2003 में किंगफिशर अस्तित्व में आई। 2006 में यह लिस्टेड हुई। तभी से विजय माल्या ने उधारी का खेल खेलना शुरू कर दिया। 2008 में तेल कंपनियों ने पहली बार पैसा न चुकाने का सवाल उठाया, लेकिन तब तक तत्कालीन उड्डयन मंत्री और विजय माल्या के क़रीबी संबंधी प्रफुल्ल पटेल ने विजय माल्या को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की स्थायी समिति का सदस्य नामित कर दिया था। मतलब यह, जिनकी प्राइवेट एयर लाइंस थी, उन्हें ही एयर लाइंस के कारोबार पर नज़र रखने के  लिए नियुक्त कर दिया गया। ज़ाहिर है कि ऐसे में न तो तेल कंपनियों की हिम्मत हुई कि वे विजय माल्या से बक़ाया वसूलने की बात करें और न ही एयरपोर्ट अथॉरिटी ने फीस वसूलने का साहस दिखाया। ऊपर से बैंकों ने भी विजय माल्या को मुंहमांगा लोन देने में पूरी उदारता बरती। बताते हैं कि पटेल के निर्देश पर कमाई के अधिकतर रूट किंगफिशर को ही मिलते रहे। विजय माल्या को फायदा पहुंचाने के लिए इंडियन एयर लाइंस की सभी उड़ानों को घाटे वाले रूट पर डाल दिया गया और उसकी सर्विस इतनी अनियमित कर दी गई कि यात्रियों ने इसकी उड़ानों का इस्तेमाल करना ही छोड़ दिया। प्रफुल्ल पटेल ने रही सही कसर 111 विमानों की एकसाथ खरीद करके पूरी कर दी, वह भी क़र्ज़ लेकर। सीएजी की रिपोर्ट में भी प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल में एयर इंडिया में हुई विमानों की खरीद-फरोख्त पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।

ऐसे ठगा नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने

यह घोटाला पंजाब नेशनल बैंक से जुड़ा है, और घोटाले के दोनों आरोपी हीरा कारोबारी हैं। पंजाब नेशनल बैंक के दो अधिकारियों की मिलीभगत से नीरव मोदी और उनके सहयोगियों ने साल 2017 में विदेश से सामान मंगाने के नाम पर बैंकिंग सिस्टम में जानकारी डाले बिना ही आठ एलओयू जारी करवा लिए, जिसके कारण बैंक को 280 करोड़ रुपये से भी अधिक का नुकसान हुआ। जबकि यह पूरा घोटाला 11 हजार 500 करोड़ का है। 48 साल का नीरव मोदी दुनिया की डायमंड कैपिटल के नाम से मशहूर बेल्जियम के एंटवर्प शहर के मशहूर डायमंड ब्रोकर परिवार से आता है। ऐसा कहा जाता है कि एक समय ऐसा भी था जब वह खुद ज्वैलरी डिजाइन करना पसंद नहीं करता था, लेकिन पहली ज्वैलरी डिजाइन करने के बाद से उसे ऐसा चस्का लगा कि उसने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। नीरव की डिजाइन की हुई ज्वैलरी की कीमत करोड़ों में होती है, वह भारत के एकमात्र ऐसे ज्वैलरी ब्रांड का मालिक है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान रखता है, लेकिन अब इस ब्रांड की चमक धूमिल हो गई है।

नीरव की एक कंपनी हीरो का कारोबार करने वाली कंपनी फायरस्टार डायमंड और दूसरा ब्रांड नीरव मोदी है। नीरव अपने ब्रांड नीरव मोदी को दुनिया का सबसे बड़ा लक्जरी ब्रांड बनाना चाहता था। नीरव द्वारा डिजाइन किए गए गोलकोंडा नेकलेस की नीलामी साल 2010 में हुई थी। नीलामी के दौरान इस नेकलेस की कीमत 16.29 करोड़ लगी थी। जबकि साल 2014 में एक नेकलेस की बोली 50 करोड़ रुपये लगी थी। अपने ज्वैलरी ब्रांड के दम पर नीरव फोर्ब्स की सबसे अमीर लोगों की सूची (2017) में 84वें भारतीय के तौर पर शामिल किया गया था। नीरव करीब 12 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिक बताया जाता है, जबकि उसकी कंपनी करीब 149 अरब रुपये के आसपास की है।

इस घोटाले में नीरव मोदी के साथ मेहुल चोकसी भी आरोपी है। मेहुल, नीरव का रिश्तेदार बताया जाता है, जो कि आभूषण का बड़ा कारोबारी है। मेहुल की कंपनी गीतांजलि का सालाना टर्नओवर करीब 13 हजार करोड़ का है। गीतांजलि कंपनी की स्थापना साल 1966 में मेहुल चोकसी के पिता ने की थी। गीतांजलि दुनियाभर में हीरों का निर्यात करती है। नीरव मोदी जनवरी 2017 के पहले हफ्ते में ही देश छोड़कर चला गया था। नीरव के साथ उसके भाई, पत्नी और बिजनेस पार्टनर भी देश से बाहर जा चुके हैं। फिलहाल नीरव को जहां लंदन से गिरफ्तार कर लिया गया है और उसके प्रत्यर्पण की कानूनी लड़ाई चल रही है, वहीं मेहुल चोकसी ने भारत की नागरिकता को छोड़कर एंटिगुआ की नागरिकता हासिल कर ली है।

जतिन मेहताः वे डाल-डाल ये पात-पात

जतिन मेहता की कहानी भी नीरव मोदी जैसी ही है। मेहता भी एक भगोड़ा हीरा कारोबारी है। वह गुजरात से अपना कारोबार चलाता था। मेहता पर 6500 हज़ार करोड़ के बैंक घोटाले का आरोप है। इस घोटाले में भी सबसे ज़्यादा नुकसान 1700 करोड़ रुपये पंजाब नेशनल बैंक का ही हुआ है। जतिन मेहता का हीरा कारोबार ज़्यादातर दुबई से था। वह अक्सर अपनी कंपनी विन्सम डायमंड्स, फॉरएवर प्रिशियस ज्वेलरी, सूरज डायमंड्स के पक्ष में बैंकों से लेटर और अंडरस्टैंडिंग लेता था। बैंकों का विन्सम डायमंड्स पर 4,366 करोड़ रुपये का बकाया है। 1932 करोड़ का बकाया फॉरएवर प्रिशियास ज्वेलरी पर और 283 करोड़ रुपये का सूरज डायमंड्स पर।

मेहता ने 2012 में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। उसने कहा कि वह दुबई की जिन कंपनियों के साथ बिज़नेस कर रहा था उन्हें एक बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। इसलिए उन कंपनियों ने मेहता का पैसा नहीं चुकाया है। इस सब के बाद मेहता 2016 में देश छोड़ कर भाग गया। इस सब के बीच 2015 में मेहता ने दुबई में अपनी बिज़नेस पार्टनर कंपनियों पर ये आरोप लगाया कि उन्होंने उसका पैसा वापस नहीं किया है। मामला जब आगे बढ़ा तो जांच में पता चला कि दुबई की जिन कंपनियों के साथ मेहता अपना बिज़नेस दिखा रहा था और नुकसान की बात कर रहा था उन कंपनियों में मेहता की भी हिस्सेदारी है। उनमें से कुछ कम्पनियां तो केवल कागज़ातों पर थीं। मतलब ये मामला ऐसे था कि बैंकों से नकली कारोबार के आधार पर लोन लेना। फिर कारोबार को दिवालिया घोषित कर देना और बैंकों के लोन का पैसा खुद खा लेना। मेहता के भाग जाने के बाद तीन बैंकों के कहने पर 2017 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की।

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  1. priyabharati96

    dekh drohi hai ye sahbhi

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