जीव एवं पर्यावरण रक्षक संस्था‘समस्त महाजन’

गुजरात की प्रसिध्द सामाजिक संस्था ‘समस्त महाजन’ का जीवदया और गोसेवा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान है। संस्था के कार्यों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए संस्था के संस्थापक गिरीशभाई शाह से हुए वार्तालाप के कुछ प्रमुख अंश-

स मस्त महाजन’ संस्था की स्थापना करने की प्रेरणाआपको कैसे मिली?
इसकी प्रेरणा मुझे मेरे गुरु प. पू. चंद्रशेखरजी विजय महाराज से मिली। उन्होंने मुझे इस सामाजिक कार्य का विचार दिया। १९९६ में उन्होंने कहा, गौशालाओं की परिस्थिति सुधारने के लिए कुछ करना चाहिए। मैंने सोचा थोडा चंदा इकट्ठा करके और कुछ अपने पास से लगाकर काम हो जाएगा। परंतु व्यापारी होने कारण चंदा मांगना मेरे लिए असुविधाजनक था। मैंंने यह बात गुरुजी को बताई तो उन्होंने मुझे कुछ किताबें पढने के लिए दीं। वे पढ़ने के बाद मेरी समझ में आया कि गौशाला का मतलब केवल गायें रखने की जगह होना काफी नहीं है। उसके लिए चरागाह होने चाहिए, देशी वृक्ष होने चाहिए, जलाशय होने चाहिए। हमने तय किया यह प्रयोग करेंगे। उस समय प्रयोग करने के लिए कोई पैसे देनेवाला भी नहीं था। अत: अपने पैसों से शुरू किया। गुरु कृपा से हमने पहला ही प्रयोग १२०० एकड़ में किया। उसे बहुत सफलता मिली। इसी भूमि पर पौधें लगे, जलाशय बने, चरागाह बना। परंतु सफलता यह थी कि वहां जो पशु ऐसे थे जो बाकी लोगों के किसी भी काम के नहीं थे। बीमार होते थे, निरुपयोगी होते थे। उनमें से रोज औसतन चार पशुओं की मृत्यु हो जाती थी। परंतु हमारे यहां आने के बाद वह मृत्यु दर शून्य पर आ गई। इस सफलता को देखते हुए कई लोग सहायता हेतु आगे आए। फिर सन २००१ में हमने ‘समस्त महाजन’ नामक ट्रस्ट की स्थापना की। तब से अब तक हम लगातार कार्य कर रहे हैं। हर साल दान और कार्य दोनों में वृद्धि हो रही है।
जब भी कार्य किया जाता है तो कहीं न कहीं यह सुप्त इच्छा होती है कि उससे कुछ प्राप्त हो। इस कार्य से आपको क्या मिल रहा है?
हम यह सारा कार्य सेवा के भाव लेकर कर रहे हैं। हमें उसके बदले में कुछ नहीं चाहिए। लेकिन व्यवस्था की दृष्टि से यह सामने आया कि जो गाय दूध नहीं दे रही है, कोई भी कार्य करने लायक नहीं है, उससे भी गोबर और गोमूत्र तो मिलता ही है। इसका उपयोग करने के लिए कई लोगों से मिला। जिन गांवों के लोग हमारे पास पशु लेकर आते थे वहां केंपेन शुरू किया। उन लगों से कहा कि जब आपको खाद की जरूरत होगी आप हमसे गोबर लेकर जाइये। हम एक बैलगाड़ी चारे के बदले एक गाड़ी खाद अर्थात गोबर देते थे। शुरू में चारे के मुकाबले खाद की कीमत कई गुना अधिक थी। परंतु इसका फायदा यह हुआ कि लोग अपने आप ही हमारे बिना मांगे अधिक कीमत का चारा हमारे पास पहुंचाने लगा। कार्य का फल केवल पैसे के रूप में नहीं मिलता। अच्छी भावना, समाज में जागृति भी आपके कार्य का फल हो सकती है।
सामाजिक कार्य करने के लिए आपने जीवदया क्षेत्र ही क्यों चुना?
यह भी गुरुजी की ही कृपा थी। उन्होंने मुझे कहा कि तुम अपने धन का सदुपयोग इस क्षेत्र में करो। आज गौसेवा के साथ अन्य आयाम जैसे मानव सेवा, धर्म सेवा, केलीग्राफी, आपदा प्रबंधन भी इसमें जुड़ गए हैं। परंतु शुरुआत गौसेवा से हुई थी।
कई राज्यों में आजकल गौवंश हत्या पर प्रतिबंध लगाया गया है। आपका इसके प्रति क्या दृष्टिकोण है? क्या यह गौवंश तक ही सीमित है?
यह कानून बहुत ही अच्छा है। इस पर बहुत पहले से काम हो रहा था। कई संशोधन हुए। कई बार राष्ट्रपति के पास गया। फिर संशोधन हुए। मैं स्वयं सन १९९५ से इस ओर ध्यान दे रहा हूं। अत: भाजपा की सरकार के समय आया है इसलिए अन्य लोगों द्वारा विरोध करना उचित नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि यह कानून गलत है। गौमांस खाने में हमारी रुचि है, यह हमारा अधिकार है। यह सोच गलत है। हमारे कानून ने सभी को अधिकार दिए हैं लेकिन उन अधिकारों पर नियंत्रण भी आवश्यक है। यह कानून बनने के कारण लगभग तीन लाख गोवंश बचेंगे। हमारी दृष्टि में सभी जानवर समान हैं परंतु कानून अभी तक गौवंश तक ही सीमित है।
क्या यह प्रतिबंध उन लोगों के जीवनयापन का साधन नहीं छीन रहा है जो गौमांस या चर्म उद्योग से जुड़े हैं?
मुझे नहीं लगता चर्म उद्योग पर कुछ फर्क पड़ेगा। क्योंकि प्राकृतिक रूप से हुई मृत्यु के बाद भी चमड़ा काम में आता है। आज विदेशों में निर्यात करने के लिए पशुओं की हत्या बड़े पैमाने पर की जा रही है। इसकी क्या जरूरत है? भारत के लोगों को चप्पल पहनाने के लिए जितने चमड़े की आवश्यकता होती है उतनी प्राकृतिक रूप से हुई मृत्यु से भी प्राप्त किया जा सकता है। अत: चर्म उद्योग पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून अब बना है परंतु इसकी प्रोसेस बहुत सालों से चल रही है। ‘समस्त महाजन’ संस्था भी कई सालों से यह कार्य कर रही है। आपने सरकार की सहायता कैसे की है?
हमने इसके लिए कई बार प्रेजेंटेशन दिए। राज्यपाल जी से आग्रह किया कि विधेयक को आगे बढ़ाया जाए। अपनी ओर से हमने सरकार को हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया था।
अपनी संस्था के अलावा क्या आप अन्य माध्यमों से भी सामाजिक कार्य करते हैं?
समाज में कई ऐसे कार्य हो रहे हैं जहां ‘समस्त महाजन’ संस्था सीधे कार्य नहीं करती। कुछ स्थानों पर हम धन से सहायता करते हैं। कुछ संस्थाओं की सर्वे करने में मदद करते हैं। कुछ को कार्य करने के लिए खाका बनाकर देते हैं।

समस्त महाजन द्वारा किए जानेवाले कार्यों के लिए आर्थिक नियोजन कैसे होता है?

हमारे पास दानदाताओं की लंबी श्रृंखला है। हम समय-समय पर उन्हें अपनी जरूरतों के बारे में बताते रहते हैं। और वे हमें उस हिसाब से मदद करते हैं। कई बार लोग सीधे हमें पैसे दे देते हैं या कई बार हम से दिशा निर्देश लेते हैं कि किस तरह से दान दिया जा सकता है।
आपने जलाशयों के निर्माण के लिए भी कार्य किया उस पर प्रकाश डालें।
पिछले साल जब अकाल पड़ा था तब हमने बीड जिले में काम किया था। हम वहां के हर गांव में गए। आर्थिक सहायता तो की लेकिन उसका स्वरूप भीख के रुप में नहीं था। हमने वहां के तालाब को खोदना शुरू किया। गांव के लोगों ने ही इसे खोदा। उस मिट्टी को गांव के खेतों में डाला इस काम का उनको रोज शाम २५० के हिसाब से मेहनताना दिया। पहले दिन २५० रुपये नगद दिए। दूसरे दिन २५० का अनाज दिया। तीसरे दिन २५० का चारा दिया। चौथे दिन २५० का किराना सामान दिया। पांचवेें दिन फिर से २५० रुपये नकद दिए। यह क्रम ४० दिन तक चलाया। एक गांव में करीब १० लाख रुपये खर्च किए। आज ११७ गांवों में पानी की समस्या नहीं है।
इसी तरह जालना में ६०० एकड़ का बड़ा तालाब बना है। उसकी मिट्टी किसानों को दी। जिनके खेत अनउर्वर हो गए थे उनको नई और अच्छी मिट्टी मिली। तालाब की सफाई होने से, मिट्टी, कचरा निकलने से वहां बारिश का पानी जमा होने की जगह बन गई। तो वहां पर तालाब पूरी तरह भर गए।

आपकी संस्था का मिशन क्या है?
पहला मिशन तो यही है कि विश्व में सुख शांति फैले। लेकिन केवल बात करने से कुछ नहीं होगा। उसके लिए कार्य तो करना होगा। भारत के लगभग ६ लाख गांवों को स्वावलंबी बनाना होगा। यह कैसे होगा? भारत में छॠज, उडठ वाली कंपनियां, कुछ धनाढ्य व्यक्तियों की यदि सूची बनाई जाए तो लगभग ६ लाख लोग, संस्थाएं होंगी। इन सभी को एक एक गांव स्वावलंबी बनाने के लिए दे दिया जाए। जिस प्रकार सांसदों को गांव को गोद लेने के लिए कहा गया है, उसी तरह से व्यक्ति या संस्थाएं गांव को गोद लें तो निश्चित रूप से गांव स्वावलंबी बनेगा।
आपकी भविष्य की योजनाएं क्या हैं?
हमारा सबसे बड़ा स्वप्न है कि हम भारत को स्वावलंबी बनाएं। उसके लिए हम प्रयत्नशील हैं। केवल भाषण देने से काम नहीं होता। अत: प्रति दिन इस दिशा में प्रयत्न करते हैं। कभी प्रेजेन्टेशन के माध्यम से, कभी दान के द्वारा आदि। स्वप्न बहुत बड़ा है। शायद वह पूरा न हो सके; परंतु हम प्रयत्न जरूर कर रहे हैं।
आप एक हीरा व्यापारी हैं। अपना व्यापार और यह कार्य दोनो कैसे संभालते हैं?
इसकी सबसे बड़ी पूंजी है समय का नियोजन। रोज सुबह करीब ४.३० बजे उठकर मैं कुछ स्वाध्याय, पूजा पाठ, सुबह घूमना, व्यायाम आदि करता हूं। रोज सुबह ९ बजे मैं दफ्तर के लिए निकल जाता हूं। ऑफिस में मेरे पास प्रोफेशनल मैनेजमैंट है। बिजनेस और समस्त महाजन दोनों जगह मैनेजमैंट अच्छा चुना है। आपके साथ बैठकर बात कर रहा हूं फिर भी मैं ऑफिस के ऑनलाइन कैमरे से मोबाइल पर सब देख सकता हूं। यह बात ऑफिस में भी सभी को पता है। संयमित जीवन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और व्यवस्थित दिनचर्या के कारण मेरे पास समय और ऊर्जा बहुत होती है। रात की पांच घंटे की नींद छोड़ दी जाए तो १९ घंटे मैं काम करने के लिए तत्पर होता हूं।
आपने बताया कि यह सारा कार्य आपने अपने गुरुजी के आदेश से शुरू किया। यह भाव आपमें कहां से आया?
सच कहूं तो यह गुरुजी के प्रति श्रद्धा है। समर्पण का भाव है। जिस काम के बारे में मैं कुछ नहीं जानता हूं उसी कार्य को उन्होंने मेरे द्वारा इतने व्यापक स्तर पर करवाया। इसे उनकी अनुकंपा ही कह सकते है।

Leave a Reply