अनुशासन से आई चुस्ती

शेखू को कई साल तक यह पता नहीं था कि उसका नाम ऐतिहासिक है। बचपन से उसे राजकुमारों की तरह एक टांग मोड़कर उस पर दूसरी टांग टिकाकर हाथ में दूध की बोतल पकड़कर आराम से दूध पीने की आदत रही।

शेखू को कई साल तक यह पता नहीं था कि उसका नाम ऐतिहासिक है। बचपन से उसे राजकुमारों की तरह एक टांग मोड़कर उस पर दूसरी टांग टिकाकर हाथ में दूध की बोतल पकड़कर आराम से दूध पीने की आदत रही। धीरे धीरे बड़ा हुआ तो उसकी आदतों में आलस शुमार होने लगा। स्कूल में सहपाठियों ने उसके नाम का अर्थ पूछा तो उसे पता नहीं था। उसने अपने पापा से पूछा तो बताया कि तुम्हारा नाम महान कहे जाने वाले मुगल सम्राट अकबर के बेटे सलीम के नाम पर है। सलीम को घर में प्यार से शेखू पुकारा जाता था। शेखू यह सुनकर बहुत खुश हुआ और उसके दोस्त बोले, क्या नाम है तुम्हारा वाह!

वैसे शेखू मेहनती व होशियार लड़का था। स्कूल में भाषण प्रतियोगिता होनी थी। पुरस्कारों में महंगे उपहार मिलने थे। सब विद्यार्थी उत्साहित थे। अपने अध्यापक के कहने पर शेखू ने भी प्रतियोगिता में नाम लिखवा दिया। पापा की मदद से उसने अच्छी प्रभावशाली शब्दावली वाला भाषण तैयार कर लिया। उधर दूसरे प्रतियोगी भी तैयारी में जुटे थे सबकी नज़र बढ़िया पुरस्कारों पर थी। पापा ने समझाया कि तुम अपना भाषण निश्चित समय में खत्म करने के लिए सही स्पीड से बोलना। प्रतियोगिता के दिन वह अच्छी तैयारी करकर आया था। उसके बोलने के तरीके व सही उच्चारण की  सभी ने तारीफ़ की। खूब तालियाँ बटोरीं उसने पर एक गड़बड़ कर दी। भाषण धीमी रफ़्तार से दिया तभी उसे निश्चित अवधि से ज्यादा समय लग गया। मुख्य निर्णायक ने निर्णय सुनाने से पहले कहा कि शेखू की प्रस्तुति सर्वोत्तम थी उसे प्रथम पुरस्कार मिलता यदि उसने अपना बढ़िया भाषण निश्चित समय में पूरा कर लिया होता। उसे दूसरा पुरुस्कार मिला। शेखू जब घर लौटा तो उसके दिमाग में पहली बार कुछ चल रहा था। उसने मम्मी पापा को बताया तो उन्होंने अगली बार चुस्ती से प्रयास करने को प्रेरित किया।
अपने कमरे में जाकर आँखें मीचकर वह कुछ देर अकेला बैठा रहा फिर एक कागज़ पर बार बार कुछ लिखता रहा। कुछ देर बाद उसके पापा ने आकर उसे प्यार से समझाया कि यूं उदास हो जाने से कुछ नहीं होगा। घबराओ मत यह तो आपके जीवन की पहली प्रतियोगिता थी। अभी तो तुमने सैकड़ों प्रतियोगिताओं में शामिल होना है। जीवन एक प्रतियोगिता है जिसमें जीत हार तो चलती रहती है। तुम्हें अपने आप से वायदा करना है कि तुम सुस्ती छोड़ दोगे और अपने सभी प्रयास पूरी मेहनत, निश्चित समय में तत्परता से करोगे। शेखू ने नीची नज़र कर वह कागज़ पापा को थमा दिया था। जिस पर सुन्दर शब्दों में सौ बार लिखा हुआ था, पापा अब मैं सुस्ती नहीं करूंगा। उसकी आँखों में निश्चय की चमक थी वह बदल चुका था। पापा ने उसे एक घड़ी उपहार में दी और कहा यह लो कल से अलार्म लगाकर उठना और अपना वादा निभाना। अगली सुबह सचमुच अच्छी रही शेखू ने अलार्म बजते ही बिस्तर छोड़ दिया था और कुछ देर व्यायाम के बाद पढ़ने बैठ गया था। उसके जीवन में चुस्ती प्रवेश कर चुकी थी।

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