एक बोरी गेहूँ

प्रतापनगर एक बहुत ही संपन्न राज्य था। वहाँ के राजा बहुत ही प्रतापी थे और प्रजा का पूरा ख्याल रखते थे। राजा ने पूरे जीवन प्रजा की मन से सेवा की थी लेकिन अब वह बूढ़े हो चले थे तो मन में बड़ी दुविधा थी कि उनके बाद राज्य को कौन चलाएगा?

राजा साहब के 3 बेटे थे। अब तीनों ने एक ही गुरु और एक ही विद्यालय से शिक्षा ली थी लेकिन राजा ये निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि कौन राज्य के लिए सबसे अच्छा उत्तराधिकारी है। अब राजा ने तीनों बेटों की परीक्षा लेने की सोची।

एक दिन राजा ने सुबह सुबह सभी पुत्रों को बुलाया और उन सबको एक एक बोरी गेहूं देते हुए कहा कि मैं और तुम्हारी माता तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। हमें वापस आने में एक वर्ष से भी ज्यादा लग सकता है। तुम तीनों की ये जिम्मेदारी है कि अपने हिस्से के गेहूं को संभाल के रखना और जब मैं वापस लौटूं तो तुमको ये गेहूं की बोरी वापस लौटानी है। ऐसा कहकर राजा और रानी तीर्थ यात्रा पर चल दिए।

सबसे बड़े बेटे से सोचा ये गेहूं की बोरी पिताजी को वापस लौटानी है तो इसे मैं तिजोरी में बंद कर देता हूँ। जब पिताजी आएंगे तो वापस दे दूंगा। यही सोचकर उसने गेहूं की बोरी तिजोरी में रखवा दी ताकि एक दाना भी इधर उधर ना हो।

दूसरे बेटे से सोचा कि तिजोरी में तो गेहूं सड़ जायेंगे मैं इन गेहूं को खेत में डलवा देता हूँ जिससे गेहूं की अच्छी फसल होगी और पिताजी को एक बोरी की बजाय कई बोरी गेहूं दे सकूँगा। अब उसने ना गेहूं के लिए अच्छा खेत देखा और ना ही अच्छी उपजाऊ जमीन देखी और नाही खेत की घास फूस को साफ़ कराया बस ऐसे ही एक बंजर जमीन पर गेहूं डलवा दिए और कभी उनकी देखभाल करने नहीं आया। उसे लगा कि अब अपने आप फसल आ जाएगी।

तीसरा बेटा ज्यादा समझदार था। उसने अपने मित्र के साथ मिलकर एक अच्छा खेत देखा जो बहुत उपजाऊ था फिर उसकी मिटटी बदलवायी, वहां घास फ़ूस की सफाई कराई और फिर विधिअनुसार गेहूं के दाने खेत में बो दिए। पूरी लगन और मेहनत से खेत की हिफाजत की। समय पर खाद पानी सब कुछ दिया। साल भर बाद पहली फसल आयी उसने फिर से उसे बोया फिर और अन्न उपजा। खेत खलिहान लहलहाने लगा।

राजा यही कोई 3 वर्ष बाद वापस आया। तीनों पुत्रों को देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई साथ ही मन में इच्छा थी ये जानने की कि बेटों ने गेहूं के साथ क्या किया। पहले पुत्र ने जैसे ही तिजोरी खोल के दिखाई। अंदर से बहुत बुरी बदबू आ रही थी, सब कुछ सड़कर राख हो चुका था। पिता ने कहा ये अन्न है जिससे हम सबका जीवन चलता है और तुम इसकी देखभाल नहीं कर पाए तुम क्या राज्य संभालोगे।

अब दूसरा बेटा पिता को उस जगह पर ले गया जहाँ उसने गेहूं को डलवाया था। वहां जाकर देखा तो जंगल था, बड़ी बड़ी घास फूस खड़ी थी। गेहूं का तो नामोनिशान ही नहीं था। राजा बहुत नाराज हुआ और उसे भी राज्य का उत्तराधिकारी बनाने से मना कर दिया।

अब तीसरा पुत्र पिता को अपने खेतों पर ले गया। वाह! दूर से ही एक अलग खुशबू आ रही थी। गेहूं की फसल लहलहा रही थी। चारों तरफ हरियाली और जीवन था। और उस खेत से 50 बोरी से भी ज्यादा गेहूं उत्पन्न हो चुका था और आज भी खेत में फिर से फसल खड़ी थी। राजा का मन देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और राजा ने तीसरे बेटे को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया।

दोस्तों उस राजा की तरह भगवान ने भी हमें कुछ गेहूं संभाल के रखने को दिए हैं। वो गेहूं हैं – हमारा जीवन, जिसे हम बेकार के कामों में नष्ट कर देते हैं। ईश्वर ने जीवन दिया कि दुनिया का विकास करना, आपने ज्ञान को बढ़ाना और उसे बाँटना। लेकिन हम अज्ञानी लोग इस जीवन को सड़ा देते हैं और अंत समय जब ईश्वर पूछता है कि जीवन में क्या किया ? तो जवाब होता है शून्य, कुछ नहीं।

अपने मन की जमीन को साफ़ करिये उसमें जो घास फूस हैं वो हटाइये, मन में जो ईर्ष्या, गुस्सा और व्यसनों को हटाइये और अच्छाई के बीच बोइये। फिर ईश्वर आपसे बेहद खुश होंगे।

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