जंगल की पाठशाला

एक दिन शेर सिंह अपने जंगल में घूमने निकले। घूमते-घामते एक पेड़ पर टंगी एक तख्ती देखी। रुक गए। जोर से दहाड़ा। उनकी दहाड़ सुन चुन्नू चूहा अपने बिल से निकला। शेर सिंह को देखा तो हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बोला- ‘क्या हुआ महाराज? क्या गलती हुई?’

शेर सिंह ने तख्ती की ओर इशारा कर पूछा- ‘यह किसका काम है?’

चुन्नू ने जवाब दिया- ‘इसे मैने टांगा है महाराज। पाठशाला खोली है मैने।’

चुन्नू ने मुस्कुराकर कहा- ‘इसमें पढ़ाई होगी। मैं जंगल के भाई-बहनों के बच्चों को पढ़ाऊंगा।’

‘क्यों पढ़ाओगे? क्या पढ़ाओगे?’ शेर सिंह ने चुन्नू से पूछा।

चुन्नू ने कहा- ‘महाराज! आप तो देहात-शहर जाते नहीं। मैं आता जाता हूँ। वहां लोगों ने पढ़-लिखकर खूब तरक्की की है। तरह-तरह के घर बनाए हैं। वे साइकिल, मोटर साइकिल और बस पर चलते हैं। हवाई जहाज पर आकाश में उड़ते हैं।’

शेर सिंह चुन्नू का मुंह देखने लगे। चुन्नू ने आगे कहा- ‘सच महाराज, वे पानी के लिए दूर-दूर तक नहीं जाते। कुआं खोद लिया है, नल लगवा लिए हैं। तरह-तरह के कपड़े-जूते पहनते हैं। जबकि हम जंगल के लोग जहाँ के तहां हैं। क्या बताऊं महाराज कि पढ़ाई के कितने फायदे हैं।’

चुन्नू की बातों को शेर सिंह ने कुछ समझा, कुछ नहीं समझा।

पूछा- ‘पढ़ाएगा कौन?’

‘मैं पढ़ाऊंगा। मैनें आदमियों के यहाँ आ-जाकर पढ़ना-लिखना सीख लिया है।’ चुन्नू बोला।

शेर सिंह ने कहा-शेर सिंह खुश हुआ। पढ़ाओ और एक अलग तख्ती पर लिखकर टांग दो- ‘जो पढ़ेगा, वह आगे बढ़ेगा।’

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