अशरफ गनी और भारत

अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष अशरफ गनी २७,२८,२९   अप्रैल को भारत दौरे पर आए थे। इस बीच नेपाल में भूकंप आया और सलमान का केस भी चला इसलिए अशरफ गनी की भारत यात्रा की जितनी गंभीर चर्चा होनी चाहिए थी उतनी नहीं हुई। अफगानिस्तान के राष्ट्रप्रमुख का यह दौरा पर्यटन दौरा नहीं था। इस दौरे के पीछे जबरजस्त भू-राजनैतिक संदर्भ था। भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के दृष्टिकोण से, भारत-चीन संबंधों के दृष्टिकोण से, अंतरराष्ट्रीय जिहादी आतंकवाद के दृष्टिकोण से यह दौरा बहुत महत्वपूर्ण था। इसे समझना बहुत आवश्यक है।

पिछले साल अफगानिस्तान में चुनाव हुए। अशरफ गनी निर्वाचित हुए। वे देश के प्रमुख बने। उनके पहले हमीद करझई अफगानिस्तान के प्रमुख थे। करझई और भारत के संबंध अच्छे थे। उन्होंने कई बार भारत के दौरे किए। अशरफ गनी एक अलग परिस्थिति में अफगानिस्तान के राष्ट्रप्रमुख बने। २००१ में अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया। तालिबान सरकार की धज्जियां उडा दीं। अमेरिकी सेना १० साल तक अफगानिस्तान में रही। सन २०१४ में अमेरिका ने नाटो और अमेरिकी सेना के वापस जाने की घोषणा की और नाटो तथा अमेरिका के सैनिक अपने देश लौटने लगे। इसी दौर में अफगानिस्तान में चुनाव हुए। अब्दुला-अब्दुला और अशरफ गनी के बीच कांटे की टक्कर के बाद अशरफ गनी ५७ प्रतिशत मत प्राप्त करके विजयी रहे। अफगानिस्तान के चुनाव किसी चमत्कार की तरह हैं। चुनाव कैसे हुए तथा अशरफ गनी कैसे जीते यह हमें समझना होगा। कौन हैं ये अशरफ गनी?

अफगानी इंसान की एक प्रतिमा हमारे सामने होती है। रवींद्रनाथ ठाकुर की कथा ‘काबुलीवाला’ बहुत प्रसिद्ध है। उसमें पठान को अलग तरह से चित्रित किया गया है। इतिहास में जिस पठान का वर्णन मिलता है उसमें वह क्रूर, सिरफिरा, हिंसा करने के लिए लालायित, अत्यंत निर्दयी है। अशरफ गनी इस सांचे में नहीं बैठते। आज उनकी गिनती दुनिया के १० बुद्धिमान लोगों में की जाती है। वे राज्यशास्त्र और मानववंश शास्त्र के ज्ञाता हैं। अमेरिका के कालेज में वे प्राध्यापक थे। अंंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के वे सलाहकार थे। वे यूनो में सलाहकार थे। हामिद करझई की सरकार में वे वित्त मंत्री थे। सन १९७९ में रूस ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया और अशरफ गनी करीब २५ साल देश के बाहर थे। सन २००१ में वे वापस आए। सन २००९ के चुनावों में वे खड़े हुए परंतु जीत नहीं सके। हामिद करझई और अमेरिका के बीच अनबन हो गई। करझई का जाना निश्चित हो गया। अफगानिस्तान में सत्ता किसको सौंपी जाए यह निर्णय अमेरिका के हाथ में था। राजनीतिक स्तर पर अमेरिका ने कभी ऐसा नहीं कहा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कभी ऐसा कहना भी नहीं चाहिए। परंतु अमेरिका ने यह प्रयास किए कि अशरफ गनी ही अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष बने। साफा पहने किसी मुल्ला से राजनैतिक संबंध रखना अमेरिका के लिए कठिन था। उसकी जगह जिसका अंग्रेजी पर प्रभुत्व हो और जो पाश्चात्य विद्या में पारंगत हो ऐसा राष्ट्राध्यक्ष अमेरिका के लिए उपयुक्त था। इसलिए अशरफ गनी अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष बने। वे अमेरिका के हाथ की कठपुतली नहीं हैं; फिरभी वे ऐसा कुछ नहीं कर सकते जिससे अमेरिका का अहित हो।

अफगानिस्तान अमेरिका की दृष्टि से महत्वपूर्ण देश बन गया है। इसका कारण यह है कि अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवाद का गढ़ था। आज भी अफगानिस्तान का तालिबानी और हक्कानी आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है। वे कभी भी कहीं भी हमला करते हैं। उनके पास आधुनिक शस्त्र हैं और संपर्क के आधुनिक साधन हैं। पाकिस्तान में बैठकर इस गुट के लोग अफगानिस्तान में आतंक मचाते हैं। उन्हें नेस्तनाबूत करने का कार्य अशरफ गनी को सौंपा गया है। अफगानिस्तान शांत रहे या हमेशा जलता रहे यह पाकिस्तान के हाथ में है। पाकिस्तान सरकार इस संदर्भ में कुछ नहीं कर सकती है। वह नपुंसक सरकार है। अफगानिस्तान में शांति रखना है या हिंसाचार यह पाकिस्तानी सेना के हाथ में है। आई. एस. आई. पाकिस्तानी सेना का प्रमुख अंग है। यह अत्यंत खतरनाक संगठन है। इसने कई आतंकवादी संगठनों को जन्म दिया है और उनका पालनपोषण भी कर रही है। पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान की ओर पाकिस्तान के पालक के नजरिए से देखती है। भारत के प्रति पराकोटी का द्वेष पाकिस्तान सेना का प्राण है। आज या कल दिल्ली जीतने की सुप्त आकांक्षा पाकिस्तान सेना की है। भारत से चिरकालीन शत्रुत्व पाकिस्तानी सेना के द्वारा बनाई गई विदेश नीति के रीढ़ की हड्डी है। कल अगर भारतीय सेना पाकिस्तान में प्रवेश करती है और पाकिस्तान की पराजय होती है तो अफगानिस्तान में बैठकर भारत से युद्ध किया जा सके, इसके लिए अफगानिस्तान का पाकिस्तान के नियंत्रण में होना आवश्यक है। पाकिस्तान सदैव ही अफगानिस्तान में दखलअंदाजी करता रहता है। तालिबानी सरकार भी अफगानिस्तान में पाकिस्तान ने ही बिठाई थी। अमेरिका के द्वारा अफगानिस्तान पर हमला करने के बाद तालिबानी और अल कायदा के नेताओं को पाकिस्तान ने अपने यहां छिपने की जगह दी। ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद में छिपाकर रखा। अफगानिस्तान में भारत का किसी भी प्रकार का अस्तित्व न रहे इस हेतु पकिस्तान सदैव प्रयत्नशील रहता है। सन २००९ तक अफगानिस्तान में ४ हजार भारतीय विभिन्न पदों पर काम कर रहे थे। उन पर कई बार हमले हुए हैं। काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर भी हमला हुआ है। ये सारे हमले पाकिस्तानी सेना ने करवाए हैं।

अशरफ गनी सितंबर में राष्ट्राध्यक्ष बने और उन्होंने सबसे पहला दौरा पाकिस्तान का किया। पहले वे रावलपिंडी में लष्कर के मुख्यालय में गए और बाद में नवाज शरीफ से मिले। नवाज शरीफ प्रधान मंत्री हैं परंतु उनके हाथ में सत्ता कहने मात्र को है। वे हमारे मनमोहन सिंह से भी कमजोर प्रधान मंत्री हैं। अशरफ गनी का लष्कर प्रमुख से बात करना आवश्यक ही था क्योंकि अफगानिस्तान के तालिबानी आतंक को रोकने की शक्ति लष्कर के हाथ में ही है। पाकिस्तान और चीन की अफगानिस्तान के संदर्भ में मिलीभगत है। अत: अशरफ गनी ने दूसरा दौरा चीन का किया। चीन भारत का मित्र नहीं है। चीन की राजनीति हमेशा भारत को घेरने की ही होती है। अफगानिस्तान तालिबान और लष्करे-तैयबा का अड्डा है और इन दोनों से भारत को खतरा है। चीन और पाकिस्तान कभी नहीं चाहेंगे कि यह खतरा दूर हो।

अफगानिस्तान भारत की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण देश है। मध्य एशिया से गैस और तेल की सप्लाई अफगानिस्तान-पाकिस्तान मार्ग से भारत को हो सकती है। तुर्कमेनिस्तान और कझाकिस्तान अफगानिस्तान से सटे हुए देश हैं। इन देशों से और मध्य एशिया के अन्य देशों से अफगानिस्तान के माध्यम से ही व्यापार करना पड़ता है। हम अफगानिस्तान में भारत से मैत्रीपूर्ण व्यवहार करनेवाली सरकार चाहते हैं। इस दृष्टि से यूपीए सरकार ने भी प्रयत्न किया था। उनके कार्यकाल में भारत ने अफगानिस्तान में १.२ बिलियन डॉलर का निवेश किया था। यह निवेश मुख्यत: रास्ते बनाने के लिए तथा अफगानिस्तान की प्रशासनिक इमारतें बनाने के लिए किया गया था। अफगानिस्तान के पास समुद्री किनारा नहीं है। अफगानिस्तान के लिए समुद्र मार्ग से होने वाला आवागमन ईरान के माध्यम से होता है। ईरान में चब्बार बंदरगाह बांधने के काम में भारत ने बड़ा निवेश किया है। इस बंदरगाह तक जाने का झरांज देलाराम मार्ग भारत ने निर्माण किया है। मोदी सरकार ने भी भारत की हितवाली इस नीति को आगे बढाया है।

अशरफ गनी तीन दिन भारत में थे। प्रधान मंत्री मोदी के साथ उनकी चर्चा हुई परंतु सामान्यत: दो देशों के बीच चर्चाएं होने के बाद जिस तरह के करार होते हैं वैसे करार इस बार नहीं हुए। इस पर अशरफ गनी का कहना है कि हमने एक दूसरे के हित संबंधों के विषय में कुछ चर्चा की है। इस आधार पर अगले तीन महीनों में कुछ करार हो सकते हैं। भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के परस्पर संबंध बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। आज अफगानिस्तान से माल लेकर ट्रक केवल बाघा सीमा तक पहुंच सकता है। पाकिस्तान उन्हें भारत में नहीं आने देता। वहां ट्रक खाली करने पड़ते हैं। दूसरे ट्रक में माल भरना पड़ता है। इसमें समय और पैसा अधिक लगता है। अशरफ गनी ने पाकिस्तान के इस रवैये पर नाराजगी जताई है। विदेशी व्यवहारों की भाषा थोड़ी गहन होती है। गनी कहते हैं कि ‘सार्वभौम राज्यों को सार्वभौम समानता का पालन करना चाहिए।’ उनके कहने का अर्थ यह है कि हमारे देश में पाकिस्तान के ट्रक आते हैं तो हम उन्हें नहीं रोकते, विदेश में जाने देते हैं। पाकिस्तान को भी यही करना चाहिए। अफगानिस्तान को भारत से संरक्षण सामग्री की आवश्यकता है, उससे संबंधित भी कुछ करार होंगे।

अशरफ गनी आतंकवादी और उनके संगठनों के प्रति अत्यंत दृढ़ हैं। तालिबान और इसिस जैसे कट्टरवादी संगठन केवल अफगानिस्तान के सामने ही समस्याएं खडी नहीं कर रहे हैं; बल्कि ये संगठन रूस, चीन, भारत इत्यादि देशों के सामने भी समस्याएं खडी कर रहे हैं। इन संगठनों की जड़ें पाकिस्तान में हैं यह अशरफ गनी जानते हैं। गनी को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सार्वभौम स्तर पर संबंध निर्माण करने हैं। साथ ही अफगानिस्तान के अलग-अलग आतंकवादी संगठनों के साथ संवाद साध कर उन्हें राजनैतिक प्रवाह में लाना है। यह जितना दिखता है उतना आसान काम नहीं है। अफगानिस्तान को पाकिस्तान के हाथ की कठपुतली बनने न देना हमारी प्राथमिक आवश्यकता है। इसके साथ ही अफगानिस्तान के माध्यम से पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों को खत्म करना भी महत्वपूर्ण कार्य है। यह सब बिना बोले करने का और अंतरराष्ट्रीय बुद्धिचातुर्य का विषय है। हम आशा करते हैं कि मोदी सरकार इस संदर्भ में कहीं कम नहीं पड़ेगी।

हमें यह याद रखना चाहिए कि अफगानिस्तान भारत में आने का दरवाजा है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हम सामान्य जैसी जनता ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। यह सरकार का काम है। परंतु अपने देशहित के संबंध में जागरुक रहना और उसके लिए हमारी सीमा के देशों में क्या चल रहा है इसकी जानकारी मिलना आवश्यक है। अगर हम जागरूक रहे तो हर पांच वर्ष में चुने जानेवाले प्रतिनिधि भी हम जागरुकता से चुनेंगे और सरकार को भी जागरुक रहने के लिए प्रेरित करेंगेे। सलमान की गिरफ्तारी के लिए हायतौबा मचाने में समय नष्ट करने की जगह अशरफ घनी भारत आए और भारत आने के बाद क्या हुआ इसकी जानकारी रखना अपने राष्ट्रीय हित में होगा।

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