सेकीम हिलिंग

पुरातन काल में मानव का रहन-सहन प्रकृति के अनुसार होता था। जीवन सुचारू रुप से चलता था। मन शांत होता था, सेहत भी तंदुरुस्त रहती थी। तकनीकी प्रगति के कारण सबका जीवन जीने का तरीका बदल गया। इससे अनेकों तनाव, रोग बढ़ने लगे। मन:शांति नहीं रही। शारीरिक, सामाजिक, मानसिक स्तर पर मानव को अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ने लगा। उन परेशानियों को दूर करने में उसकी शक्ति खर्च होने लगी।

ऐसे हालात में मानव सेहतमंद जिंदगी और तनाव से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अलग-अलग रास्ते ढूंढ़ने लगा। कुछ लोग योगाभ्यास करने लगे। सेकिम भी इनमें से एक है। ‘सेकीम’ उपचार पद्धति की जानकारी यहां प्रस्तुत है।

‘योग’ संबंधी विशेष जानकारी न होने के कारण मैं उसका विस्तृत अध्ययन करने लगी। योगाभ्यास की जानकारी लेने पर समझ में आया कि योग और सेकीम इन दोनों शास्त्रों में बहुत सी समानताएं हैं और थोड़ा सा फर्क भी। पर एक बात पक्की है कि दोनों शास्त्रों के अध्ययन से मनुष्य तनावमुक्त होकर मन:शांति प्राप्त कर सकता है।

इन दोनों शास्त्रों का तुलनात्मक अध्ययन लिखने की कोशिश मैं यहां पर कर रही हूं। योगाभ्यास के बारे में विशेषज्ञों के विचार इस विशेषांक में हैं ही। इससे पहले हम सेकीम की जानकारी लेंगे। फिर तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।

मानवी शरीर में अनेक चक्र कार्यरत होते हैं। ये चक्र जिनमें भरसक ऊर्जा है, ये ऊर्जा के स्रोत हैं। इस प्रत्येक चक्र की अपनी गति है। ऊर्जा चेतना इस चक्र से निरंतर बहती रहती है। ‘मन’ का अस्तित्व हम शरीर में नहीं दिखा सकते, उसी प्रकार ये चक्र भी नहीं दिखा सकते। परंतु उनकी समझ हम रखते हैं। हमारे शरीर में प्रमुख सात चक्र हैं।

बचपन से लेकर आजतक आसपास की घटनाओं का, लोगों का असर हम पर होता है। जाने-अनजाने हम उन्हें सीखते हैं। उससे अपने मत, अपना स्वभाव बनता है। कुछ बातों की हम गांठ बांध लेते हैं। इनमें से नकारात्मक बातें, नकारात्मक विचार हममें अनजाने घर कर जाते हैं। ये सारी नकारात्मक बातें जब इन चक्रों में जमा हो जाती हैं, तब धीरे-धीरे चक्रों की गति पर उसका परिणाम होने लगता है, उसमें से बहनेवाली सकारात्मक ऊर्जा या चेतना पर परिणाम होने लगता है। मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक स्तर पर विविध समस्याओं से जूझना पड़ता है। जिंदगी अस्त-व्यस्त होती है, मन बहकता है, शांति नहीं मिलती।

‘सेकीम’ पद्धति में इन चक्रों में से भावनिक, मानसिक नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर सकारात्मक ऊर्जा भरी जाती है। नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तन किया जाता है। इसके लिए संबंधित व्यक्ति का ‘हिलिंग’ किया जाता है। ‘हिलिंग’ देना या लेना यानी नकारात्मक ऊर्जा का क्षीण चेतना या एनर्जी की सकारात्मक ऊर्जा से बदलाव यह चक्र के सारे ब्लॉकेजेस (बाधाएं) निकालता है। इससे सारे चक्र नियमित रूप से चलने लगते हैं। गति को ऊर्जा प्राप्त होती है। वह व्यक्ति आसपास के वातावरण में सकारात्मक परिवर्तन अनुभव करने लगता है।

सेकीम स्वयं अनुभव करके समझनेवाली चिकित्सा पद्धति या इलाज है। अब हम ‘योगाभ्यास’ और ‘सेकीम’ पद्धति की समानता देखेंगे। योगशास्त्र में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान-धारणा, समाधि जैसे आठ भाग या अंग हैं। इस में ‘यम-नियम’ इस अंग के अंतर्गत योगाभ्यास करनेवालों के लिए कुछ नियमों का पालन जरूरी है। योगाभ्यास करनेवाला व्यक्ति इन नियमों का पालन पूर्ण क्षमता से करेगा तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। योगाभ्यास में इन नियमों का महत्व अनन्य साधारण है। ‘सेकीम’  चिकित्सा पद्धति के नियमों का पालन करने से मानव की जीवन शैली तथा सोच में सकरात्मक बदलाव देखने को मिलता है। वह व्यक्ति दूसरों के प्रति कृतज्ञता की भावना रखने लगता है।

योग साधना में समाविष्ट ‘आसन और प्राणायाम’ से मनुष्य को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य मिलता है। आसनों द्वारा सारी मांसपेशियों और शारीरिक हिस्सों को ऊर्जा मिलती है। प्राणायाम के अभ्यास से शरीर को प्राणवायु ज्यादा मिलती है, मन शांत होता है। नियमित अभ्यास से शरीर तंदुरुस्त होता है। मन और बुद्धि स्थिर होने में मदद मिलती है। ‘सेकीम’ से भावनिक, मानसिक ऑरा की गलत बातें और नकारात्मक विचार निकल जाते हैं। पॉझिटिव एनर्जी (सकारात्मक ऊर्जा) के कारण चक्र के अंतर्गत आने वाले सारे अवयव, मांसपेशियों पर सकारात्मक परिणाम दिखाई देता है।

प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि इन सारे अंगों का अध्ययन करने के बाद मनुष्य जैसे जैसे आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे उसकी आध्यात्मिक प्रगति होती है। विश्व की शक्ति से उसका संबंध जुड़ जाता है। योगशास्त्र का अंतिम उद्देश्य देह से परे होकर आध्यात्मिक प्रगति की ओर उन्मुख होना है। इसी तरह से ‘सेकीम’ में सहस्रार चक्र को हिलिंग देकर आध्यात्मिकता में प्रगति करना है। इससे विश्व के साथ एकाकार होने मेें मदद मिलती है।

शरीर और मन संतुलित करना और उसी में से सेहत और मन: शांति प्राप्त करना यह योगशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य है।

योगाभ्यास और सेकीम इनकी समानताएं हमने देखीं। (अर्थात योगाभ्यास का मेरा ज्ञान अधूरा है यह पाठक ध्यान में रखे) अब इन दोनों के अंतर को हम समझें।

योगाभ्यास में सारे अष्टांगों का अभ्यास व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है। इससे उसका फायदा होता है। जो कसरत करेगा फायदा भी उसी को होगा। (जो परिश्रम करेगा फल भी वही पाएगा) ‘सेकीम’ पद्धति में हिलिंग खुद के लिए होता है और दूसरे को भी दिया जा सकता है। सामने उपस्थित न होनेवाले व्यक्ति पर भी हिलिंग प्रभाव डालता है। इसी को ‘ऍबसेंटी हिलिंग’ कहा जाता है।

एक रोगी जो दिल का मरीज था उसकी आंख का ऑपरेशन (शल्यक्रिया) हुआ। उसके लिए हाथ-पांव हिलाना संभव नहीं था। उसे ‘ऍबसेंटी हिलिंग’ दिए जाने पर टांके जल्दी सूखने लगे। रक्तचाप पर नियंत्रण रखने में मदद मिली। इससे उसका और परिजनों का मानसिक तनाव कम हुआ। यह हुआ शारीरिक रोगों पर इलाज के संदर्भ में। आइए, देखें कि मानसिक स्तर पर भी संघर्ष करके जीने वाले व्यक्तियों में अद्भुत शक्ति का संचार कराने का काम सेकीम किस तरह करता है।

नई-नवेली दुलहन को ससुराल के माहौल में स्वयं को ढालने के लिए कुछ समय तो लगता ही है। कभी-कभी वह नए घर से अपने आपको दूर रखने की कोशिश करती है। ऐसी ही एक त्रस्त नवविवाहिता को जब हिलिंग दिया गया तब उसके मन का तनाव दूर हुआ। उसमें सकारात्मक बदलाव आया। दोनों का वैवाहिक जीवन संतोष से बीतने लगा।

हमें समाज में ऐसे लोग दिखाई पड़ते हैं जो जीवन में आत्मविश्वास खो चुके हैं। इस तरह की मानसिकता के कारण वे दिशाहीन हो जाते हैं। ऐसे लोगों का हिलिंग करने के पश्चात उनमें अंदर को क्षमता पर विश्वास बढ़ता है। भविष्य में उनका मार्गक्रमण अच्छी तरह से चलना है।

हालातों से नाराज एक गृहिणी आत्मविश्वास खो चुकी थी। हिलिंग देने के पश्चात् सकारात्मक बदलाव के कारण उसका आत्मविश्वास उसे वापस मिला। अभी वह कुछ घरेलू कारोबार करके अपना घर अच्छी तरह से चलाती है।

ऐसी एक नहीं अनेकों समस्याओं के हिलिंग के माध्यम से मात करके लोग नए जोश से काम करने में जुट गए हैं।

मैं भी सेकीम पद्धति से इलाज करके अपने में सकारात्मक परिवर्तन पाती हूं। दूसरों को भी इसका फायदा हो इसलिए अपना हिलिंग सेंटर भी चला रही हूं।

 सब को सुखी और सेहतमंद जीवन मिलें यही मेरी शुभकामना।

 सर्वेभवतु सुखिन:। सर्वेसन्तु निरामया:॥

 सर्वेभद्राणि पश्यन्तु। मां कश्चित् दु:ख भाग्भवेत॥

 

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