नहीं होती देवी-देवताओं में गिनती, फिर भी चर्चित हैं इनके मंदिर  

हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं का सबसे उच्च स्थान माना जाता है। इसके  अनुसार हमारे जीवन को फ़लने-फूलने के लिए हर देव का आशीर्वाद ज़रूरी है। जहां इन 33 करोड़ देवी-देवताओं को देश के विभिन्न हिस्सों में पूजा जाता है, वहीं हमारे धार्मिक इतिहास में कुछ ऐसे पौराणिक पात्र हैं, जिन्हे वैसे तो भगवान का दर्जा तो नहीं दिया जाता, लेकिन फिर भी उनके मंदिरों का निर्माण किया गया है। इन ऐतिहासिक मंदिरों की अपनी खासियत है और इन पात्रों को पूजे जाने का रोचक कारण भी। आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ मंदिरों की विशेषताएं, जिसके बारे में आपने पहले कभी नहीं सुना होगा।

कौरवों के मामा शकुनि का मंदिर 

कौरवों के मामा और महारानी गांधारी के भाई शकुनी गांधार के राजकुमार थे। शकुनी मामा ने महाभारत में एक खास भूमिका निभाई थी। उन्होंने महाभारत के लिए कौरवों को उकसाया था। जिसकी वजह से लोगों के बीच उनकी नकारात्मक छवि बन गई थी। लेकिन केरल के कोल्लम जिले में शकुनी मामा का मंदिर बनाया गया है और वहां के लोग शकुनि की पूजा पूरे मन से और श्रद्धा से करते हैं। साथ ही शकुनि के मंदिर में कौरवों के राजकुमार दुर्योधन का मंदिर भी निर्मित किया गया है। यह स्थान पवितत्रेश्वरम नाम से प्रसिद्ध है।

अर्जुन पुत्र इरावन का मंदिर 

इरावन एक क्षत्रिय था। नागराज कौरव्य की पुत्री उलूपी से पांडुपुत्र अर्जुन का विवाह हुआ था, जिससे इरावन पैदा हुआ। इरावन का मंदिर तमिलनाडु के कुवागम गांव में बनाया गया है। इस मंदिर को मुख्य रूप से किन्नरों का मंदिर माना जाता है। देशभर से किन्नर इस मंदिर में इरावन के दर्शन के लिए आते हैं और इन्हें देवता मानकर पूजा करते हैं। साल की एक तिथि को इस मंदिर में हजारों किन्नर देश के अलग-अलग कोनों से एकत्रित होते हैं और उत्सव मनाते हैं।

भीम की पत्नी हिडिम्बा का मंदिर 

आप भीम की पहली पत्नी हिडिंबा को तो जानते ही होंगे। हिडिंबा राक्षस राजकुमारी थी, जिसके भाई का वध करके भीम ने उससे विवाह किया था। इस तरह हिडिंबा को पांडु पुत्रवधू कहना गलत नहीं होगा। हिमाचल प्रदेश के मनाली में हिडिंबा का मंदिर बनाया गया है और यहां हर साल हिडिंबा को पूजने के लिए एक खास उत्सव का आयोजन होता है। यहां हिडिंबा को देवी की तरह पूजा जाता है। हर साल मई के महीने में यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान अन्य देवी देवताओं का अभिषेक भी किया जाता है और हिडिंबा की पूजा के दौरान जुलूस भी निकाला जाता है। इस उत्सव में लोक नृत्य प्रस्तुत किया जाता है और मनाली के आसपास के सभी गांव से लोग इस आयोजन को देखने आते हैं।

राक्षसराज रावण का मंदिर 

रामायण राजा राम और रावण के बीच के युद्ध से खत्म होती है। राजा राम को युद्ध के लिए ललकारने वाले रावण की नकारात्मक छवि लोगों के मन में बसी हुई है। लेकिन फिर भी मध्य प्रदेश के पूरा गांव में रावण के नाम से मंदिर बनाया गया है। इस गांव को रावण गांव के नाम से भी जाना जाता है, जहां रावण का एक खूबसूरत मंदिर स्थापित किया गया है। यहां रोज भगवान की तरह रावण की पूजा की जाती है। साथ ही यहां विजयादशमी का त्यौहार नहीं मनाया जाता, बल्कि इस दिन यहां गांववाले शोक मनाते हैं।

पाण्डुपुत्रों की पत्नी द्रौपदी का मंदिर 

द्रौपदी को पांचाली के नाम से भी जाना जाता था। महाभारत के रचयिता के नाम से पहचानी जानेवाली द्रौपदी पांडवों की पत्नी थी। कौरवों द्वारा द्रौपदी के चीरहरण के बाद पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ था। द्रौपदी स्वयं अग्नि से उत्पन्न हुई थी और इसीलिए उसे याज्ञसेना का नाम भी मिला था। बेंगलुरु में द्रौपदी का एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। यह मंदिर ऐतिहासिक माना जाता है, जो धर्माया स्वामी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यह मंदिर 800 साल पुराना है, लेकिन आज भी द्रौपदी की देवी स्वरूप में पूजा होती है।

दानवीर कर्ण का मंदिर 

महाभारत के एक और ऐतिहासिक पात्र दानवीर कर्ण का नाम तो आपने सुना ही होगा। अंग देश के राजा कर्ण कौरवों की ओर से लड़े थे, जबकि वह पहले पांडू पुत्र और जेष्ठ पांडव थे। दानवीर कर्ण को दानवीर इसीलिए कहा गया क्योंकि वह सूर्य आराधना के बाद गरीब लोगों को दान दिया करते थे। इसी का फायदा उठाकर एक दिन देवराज इंद्र ने उनके कुंडल और कवच दानरूप में मांग लिए थे। इसी के बाद उन्हें  दानवीर की उपाधि मिली। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित सारनौल में कर्ण का मंदिर स्थित है, जहां उन्हें भगवान के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर लकड़ियों से निर्मित किया गया है, जिसमें पांडवों के मंदिर भी बने हुए हैं। इसके अलावा दानवीर कर्ण का एक और मंदिर मेरठ में भी स्थित है।

ये कुछ ऐसे ऐतिहासिक पात्र हैं, जिन्हे भले ही आम लोग भगवान ना माने, लेकिन इन ख़ास मंदिरों में इन्हें देवी-देवताओं की तरह पूजा जाता है।

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