कोरोना जैसी विषाक्त है तब्लीगी मानसिकता

दुःख , शोक , भूख , गरीबी कभी कोई मजहब , जाति , रंग , का भेद नहीं करते।  सबको एक जैसा दुःख और गरीबी का कहर झेलना पड़ता है।  लेकिन सेमिटिक मजहब इसमें भी अपने मजहबी रंग घोलते हैं , जहाँ दुःख और शोक हो वहां ईसाई प्रचारक धर्म परिवर्तन के लिए पहुँच जाते हैं और अब तब्लीग़ी जमात के मौलानाओं ने कोरोना महामारी को भारत  और   हिन्दुओं से प्रतिशोध का मौका बनाने का कुत्सित प्रयास किया ऐसे प्रमाण मिल रहें हैं. 
 
एक उदाहरण  बंगलोर की विश्वप्रसिद्ध सॉफ्टवेयर कंपनी इनफ़ोसिस में वरिष्ठ इंजीनियर के पद पर कार्यरत मुजीब मोहम्मद का है का है।  उसकी शैक्षिक योग्यताएँ देखिये – सीनियर टेक्नोलॉजी आर्किटेक्ट , सर्टिफायड मशीन लर्निंग एक्सपर्ट , सर्टिफाइड ब्लॉकचैन एक्सपर्ट।, सर्टिफाइड इन इस्लामिक फाइनांस एंड बैंकिंग। 
 
इस व्यक्ति को अनपढ़ जाहिल मुल्ला कहकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता।  इसने अपनी फेसबुक पर लिखा –  चलो हमसब मिलकर खुले में छींके , वायरस फैलाएं।  
 
 उच्च शिक्षित , टेक्नोक्रैट का खुला  आह्वान   ताकि जिस देश में वह  जन्मा,पढ़ालिखा , जहाँ एक  बड़ी कंपनी में कार्यरत हिन्दुओं  ने उसको एक अच्छी नौकरी दी , वहां भारी संख्या में लोग मर जाएँ। 
 
इसे अकेली , या किसी सनकी की उपेक्षायोग्य बकवास नहीं कहा जा सकता।  
 
इसके तार जुड़ते हैं दिल्ली में दो हज़ार तब्लीगी जमाती  मुसलमानों को इकट्ठा करने वाले मौलाना सादी  से जिसने न सिर्फ महामारी की भयावहता से परिचित होते हुए भी जमात को बुलवाया बल्कि चेतावनी के बावजूद मुसलमानों से कहा – डटे रहो , मस्जिद बाहर न जाओ।  और जब पुलिस   कार्यवाही की  तो  मुसलमानों ने जानबूझकर  जवानो और अफसरों पर  थूका। यह जमात अगर रूस या अमरीका में की जाती और वहां सादी  जैसा मुल्ला होता तो उसपर नरसंहार के षड़यंत्र का मामला चलता जिसमें फांसी मिलना तय होता. 
 
लेकिन यह भारत है जहाँ हिन्दुओं को सदियों से आक्रमण , अपमान और नरसंहार झेलने की आदत हो गयी है  गयी है. काबुल में सिखों को अत्यंत निर्ममता से इस्लामवादी मार डालते हैं , पर  दुनिया  में उसका कोई शोर नहीं होता , पंजाब से लेकर शेष देश तक  कोई  हाहाकार नहीं हुआ। यदि किसी मुस्लिम फिल्म अभिनेता को  अमरीका में हवाई अड्डे पर जांच  रोका जाता है या गाय  काटने के अपराध में भीड़ लिंचिंग होती है तो वह राष्ट्रसंघ से लेकर   न्यूयोर्क टाइम्स तक में सुर्ख़ियों में चर्चित होती है ।  यहाँ उल्टा   इस नरपिशाच  मौलाना के हक़ में बोलने वाले खड़े हो जाते हैं।  ।  
 
तीसरा सूत्र पश्चिम बंगाल  से है जहाँ मौलाना अब्बास सिद्दीकी का २६ फरवरी २०२० का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह भारत  के  करोड़ों  लोगों के कोरोना  से मरने  की दुआ कर  रहा है.
   
 
भारत में अमन और विकास  माहौल न रहे इसमें किसकी दिलचस्पी हो सकती है ? वे कौनसे विदेशी तत्त्व हैं जो पंजाब से लेकर उत्तरपूर्वांचल तक नशीले पदार्थों के फैलाव से लेकर आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न हैं ? कश्मीर और कर्नाटक , असम और उत्तरप्रदेश मजहबी आग में झुलसे इस लिए विभिन्न जमातों और स्लीपर सेल्स का उपयोग  करते   है ,. अब जबसे नरेंद्र मोदी सरकार में आयी है अलगाववादी तत्वों पर शिकंजा  कसा , सम्पूर्ण विश्व में भारत की प्रगतिवादी , विकासशील छवि उभरी , विश्व नेताओं मैं मोदी की गणना होने लगी तो इस माहौल को कभी  शाहीन  बाग़  तो कभी तब्लीगी जमात के  माध्यम से बिगाड़ने का  प्रयास किया  जाता है।   
 
तब्लीगी जमात अकेले  किस भयानक तरीके से  देश में कोरोना फ़ैलाने में कामयाब हुई है इसका एक प्रमाण इनपंक्तियों के लिखे जाने तक के ये सरकारी आंकड़े है (  स्वास्थ्य मंत्रालय ). तब्लीगी जमात  से जुड़े लोगों में कोरोना मामले- तमिलनाडु-   १७१ ,राजस्थान ११, अंडमान निकोबार -९, दिल्ली ४७ ,पुदुच्चेरी २ , जम्मूकश्मीर २२ , तेलंगाना ३३ , आँध्रप्रदेश ६७ ,असम १६ ,. .सरकार ने तब्लीगी जमात से जुड़े ऐसे  नौ हजार लोगों की शिनाख्त की है जो कोरोना संक्रमण  प्रभावित हुए हैं।  सभी को एकांतवास यानी  क्वैरेन्टाइन में रखा गया है.   इनमें से १३०६ विदेशी हैं। 
 
ये विदेशी भारत गलत जानकारी देकर आये।  वीसा देनेवालों को कितना देखना चाहिए ये प्रश्न भी उभरकर सामने आये हैं।  यद्यपि इन विदेशी तब्लीग़ियों को भविष्य में भारत आने से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है , परन्तु भारत में तो आकर विनाश का सामान   इन्होने बिखरा दिया।  उसका खामियाजा भारत  नागरिकों को भुगतना पडेगा। 
 
 
हिन्दुओं  तथा  भारत  के   विरुद्ध इन वहाबी तब्लीग़ियों की नफ़रतें कितनी तीव्र हैं इसका एक उदाहरण जामिआ मिलिया इस्लामिआ विश्विद्यालय (  केंद्रीय सहायता प्राप्त )   के प्रोफेसर का  देना समीचीन होगा।  इस प्रोफेसर  नाम है डाक्टर  अबरारअहमद जो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में पढ़ाते हैं।  जाहिर सी बात है , अच्छे खासे पढ़े लिखे इंसान हैं।  इन्होने ट्ववीट किया कि  सी ए ए  का समर्थन करने वाले -गैर मुस्लिम 15 छात्रों को उन्होंने किस प्रकार परीक्षाओं में फेल कर  दिया। इसपर सोशल मीडिया में हंगामा हो गया और विश्विद्यालय ने अबरार अहमद को ससपेंड दिया।  बाद में अबरार ने  लिखा कि ऐसा उन्होंने कुछ भी नहीं किया था और वे केवल   सी ए ए  के पक्षपाती रुख को बताने के लिए व्यंग्य कर रहे थे। उनकी बात पर भी सोशल मीडिया  में  विरोध हुआ  सफाई को भी उनकी गंदी सांप्रदायिक मानसिकता का प्रमाण बताया गया।  यह उदाहरण पढ़े लिखे उच्च शिक्षित जिहादी मानसिकता के मुसलमानों की भीतरी जहनियत बताता है। 
 
यही मानसिकता इन   सबको तब्लीग़ियों, सादी , सिद्दिक्की  और इनफ़ोसिस के इंजीनियर मुजीब के नफरती तIने बानों  से जोड़ती है.
 
 
अब जरा याद कीजिये कि  जब १९४६ में गांधीजी सबको साथ लेकर चलने की बात कर रहे   थे तब जुलाई में कलकत्ता में मुस्लिम लीग के   अधिवेशन में  जिन्नाह ने हिन्दू विरोधी भाषण देकर डायरेक्ट एक्शन की  घोषणा  की थी जिसके बाद कलकत्ता और नोआखाली  तक चार हज़ार हिन्दू सिख मारे गए , एक   लाख से ज्यादा बेघर हुए थे.

यह वही मानसिकता है जिसके कारण कश्मीर से पांच लाख हिन्दुओं को तड़पा तड़पा कर मारने , स्त्रियों को अपमानित करने के  बाद उनको उनके अपने पुश्तैनी घरों से निकाल दिया गया। 
आज जब हर जगह धार्मिक लोग कोरोना  महामारी में   सबकी मदद के लिए आना ही धर्मभक्ति, देशभक्ति मान रहे   हैं , इस वातावरण को विषाक्त बनाने वालों के  विरुद्ध सदाशयी मुस्लिम नेताओं को विशेषकर  और सभी  को खुलकर  बोलना होगा।  सब  मुसलमान ऐसे नहीं हैं. लेकिन यदि इन तब्लीग़ियों की  वजह से आपसी विश्वास ख़त्म हो गया तो  परिणाम कोरोना से भी ज्यादा भयानक  होगा. यह ध्यान  में रखा जाये
  

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