हॉटस्पॉट क्षेत्रों में बढ़ते मरीज

कोरोना महामारी के आते ही जांच सुविधाओं और उपकरणों की किल्लत के कारण संक्रमितों की संख्या कम दिखाई दी, लेकिन जैसे-जैसे ये सुविधाएं उपलब्ध हुईं जांच में तेजी आई और मरीजों की संख्या बढ़ती गई। तबलीगियों ने इसमें आग में घी डालने का राष्ट्रद्रोह किया है।

देश में एक ओर तो कोरोना संदिग्ध एवं संक्रमित लगातार बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में मरीज ठीक भी हो रहे हैं। ठीक होने की दर 13.06 प्रतिशत से बढ़कर 25.19 प्रतिशत हो गई है। देश में कोरोना के कारण मौत का प्रतिशत भी अन्य देशों की तुलना में कम है। यह कुल संक्रमितों का 3.2 प्रतिशत है। देश में अब तक 35000 संक्रमितों से लगभग 1112 लोगों की मौत हो चुकी हैं। लेकिन देश में जो राज्य हॉटस्पॉट बने हुए हैं, वहां निरंतर संक्रमितों और मरीजों की मौत की संख्या बढ़ रही है। महाराष्ट्र में 10,000 से ऊपर संक्रमित हैं और 432 की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र के बाद गुजरात में करीब 4500 कोरोना संक्रमित हैं और 215 की मौत हो चुकी है। दिल्ली में 3500 के करीब संक्रमित हैं और करीब 56 लोगों की मौत हो चुकी हैं। मध्य-प्रदेश का भी बुरा हाल है। यहां संक्रमितों की संख्या 3000 से ऊपर पहुंच गई है और 136 की मौतें हो चुकी हैं।

हैरानी की बात यह है कि कोरोना संक्रमण का कहर जिन महानगरों में शुरूआत में टूटा था, वह आज भी बरकरार है। मुंबई में 6644 संक्रमित हैं और 270 काल के गाल में समा गए हैं। दिल्ली में 3439 संक्रमित हैं और 56 की मौतें हो चुकी हैं। अहमदाबाद में 3026 संक्रमित है और 149 की मौतें हुई हैं। इंदौर में 1485 संक्रमित हैं, जबकि 68 मर चुके हैं। पुणे में 1192 संक्रमित हैं और 85 की मौत हो चुकी हैं।

इस भयावह स्थिति के बावजूद यह अच्छी बात है कि जो संक्रमित हैं, उनमें से महज 0.33 फीसदी ही वेंटिलेटर पर हैं, 1.5 फीसदी को ऑक्सीजन देनी पड़ रही है और 2.34 प्रतिशत को ही आईसीयू में रखने की जरूरत पड़ रही है। इससे यह साबित होता है कि आम भारतीय की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत है। इस कारण कोरोना रोगी तेजी से ठीक हो रहे हैं।

यदि मरकज से निकले तब्लीगी जमात के लोग पूरे देश में न फैल गए होते तो साफ है, न तो इतनी बड़ी संख्या में रोगी होते और न ही देश को इतनी मौतों का सामना करना पड़ता। यही नहीं हमारे चिकित्सक और चिकित्सा कर्मियों को भी मौत की नींद सोना पड़ा है। इंदौर में दो और दिल्ली में एक डॉक्टर कोरोना का निवाला बन गए। इंदौर की एक मुस्लिम बस्ती में जांच के लिए गए चिकित्सा दल पर लोगों ने पत्थर बरसाए और थूका भी। वहीं मरकज के जिन लोगों को दिल्ली के एक रेल भवन में उपचार के लिए रखा गया था, वहां इन लोगों ने थूकने के साथ नर्सों के साथ अश्लील  हरकतें भी कीं। इस सब के बावजूद स्वास्थ्य कर्मियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। अलबत्ता अस्पतालों में विषाणुओं से बचाव के सुरक्षा उपकरण पर्याप्त मात्रा में नहीं होने के बावजूद डॉक्टर जान हथेली पर रखकर इलाज में लगे हैं। यह विषाणु कितना घातक है, यह इस बात से भी पता चलता है कि चीन में फैले कोरोना वायरस की सबसे पहले जानकारी व इसकी भयावहता की चेतावनी देने वाले डॉ ली वेनलियांग की मौत हो गई है। चीन के वुहान केंद्रीय चिकित्सालय के नेत्र विशेषज्ञ वेनलियांग को लगातार काम करते रहने के कारण कोरोना ने चपेट में ले लिया था। वेनलियांग ने मरीजों में सात ऐसे मामले देखे थे, जिनमें सॉर्स जैसे किसी वायरस के संक्रमण के लक्षण देखे थे और इसे मनुष्य के लिए खतरनाक बताने वाला चेतावनी से भरा एक वीडियो भी सार्वजनिक किया था।

कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने के अनेक कारण हैं। जांच किटों की पर्याप्त उपलब्धता के बाद संदिग्धों की बड़ी मात्रा में जांच हो रही हैं। इस वजह से कोरोना पॉजीटिव भी अधिक संख्या में सामने आ रहे हैं। मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, दिल्ली, इंदौर, उज्जैन और भोपाल जैसे बड़ी आबादी वाले शहरों में लॉकडाउन उतनी सख्ती से नहीं हो पाता है, जितना इसके संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है। मुस्लिम बहुल बस्तियों में स्थिति संभालना और भी कठिन हो रहा है। भरोसे के सूत्रों से जानकारी मिली है कि कोविड-19 की जांच लगभग 150 प्रयोगशालाओं में हो रही है। इनमें भी तकनीशियनों की संख्या सीमित है। लगातार सूक्ष्मदर्शी यंत्रों पर आंखें गड़ाए, यही लोग किट में कोरोना की पहचान करने में लगे हैं। ऐसे में यदि इस सूक्ष्म जीव की सटीक पहचान नहीं होती है तो ये पॉजीटिव रिपोर्ट दे देते हैं, जिससे कम से कम मरीज की जान तो सुरक्षित रहे।

चिकित्सा दल के लगातार चपेट में आते जाने के कारण भी कोरोना मरीजों की संख्या में वृद्धि देखने में आई है। कोरोना के शुरूआती दौर में सुरक्षा उपकरणों की बहुत कमी थी। इसलिए कोरोना प्रभाव के करीब एक माह बाद चिकित्सा दल के लोग इस महामारी की चपेट में आने लग गए। चूंकि ये सीधे रोगियों के संपर्क में आते हैं, इसलिए इनके लिए विशेष प्रकार के सूक्ष्म जीवों से सुरक्षा करने वाले ‘बायो सूट’ पहनने को दिए जाते हैं। इसे ही पीपीई अर्थात ‘व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण’ कहा जाता है। हालांकि यह एक प्रकार का बरसात में उपयोग में लाए जाने वाले बरसाती जैसा होता है। यह विशेष प्रकार के कपड़े से बनता है। इसका वाटरप्रूफ होना भी जरूरी होता है। पाली राजस्थान में व्यापारी कमलेश गुगलिया को जब जोधपुर के एम्स में बायोसूट कम होने की जानकारी मिली तो उन्होंने छाते में उपयोग होने वाले वस्त्र से बायोसूट बना डाला। परीक्षण के बाद कुछ सुधारों की हिदायत देते हुए एम्स के अधीक्षक डॉ विनीत सुरेखा ने इन सूटों कोखरीदने की मंजूरी दे दी। इसकी लागत महज 850 रुपए है। जबकि पीपीई बनाने वाली कंपनियां इस सूट को तीन से पांच हजार रुपए में बेचती हैं। इसी तरह अब वेंटीलेटरों की कमी की आपूर्ति ऑटो मोबाइल कंपनियों में इन्हें निर्मित कराकर पूरी की जा रही है।

इसी तरह विषाणु विज्ञानी मीनल भोसले ने कोरोना वायरस की परीक्षण किट बनाने में सफलता हासिल की है। यह किट आठ घंटे की बजाय केवल ढाई घंटे में ही जांच रिपोर्ट दे रही है। इसकी कीमत भी केवल 1200 रुपए है। जबकि इस किट को 4500 रुपए में भारत सरकार खरीद रही है। हाल ही में चीन से जो किट आयात किए गए थे, वे स्तरहीन निकले, इसलिए चिकित्सकों ने इनके उपयोग करने से मना कर दिया। इन किटों को जहां प्रयोग में लाया गया, वहां के कोरोना टेस्ट संदेह के घेरे में हैं। डीआरडीओ ने भी किट और वेंटीलेटर बनाने में सफलता हासिल कर ली है। शुरूआत में मास्क कीभी कमी थी। लेकिन इसे स्वसहायता समूहों और निजी स्तर पर बनवाकर कमी की पूर्ति कर ली गई। शुरूआत में जब इनकी कमी थी, तब परस्पर संपर्क से यह वायरस ज्यादा फैला, लिहाजा मरीज बढ़ते गए। इन कारणों के चलते घनी आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना तेजी से फैला और यही क्षेत्र बाद में हॉटस्पॉट बन गए। इन पर आज भी नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा है।

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