कोरोना , संघ और सेवा कार्य

आज दुनिया के देश कोरोना महामारी से ग्रस्त हैं। लाखों की संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई है, वही जिस चीन से ये रोग दुनिया के देशों में पहुंचा था उस देश में वुहान शहर से बाहर भी यह वायरस नहीं पहुंच पाया लेकिन दुनिया के देशों में पहुंचने में इसे कम ही समय लगा। दुनिया इस पर चिंता कर रही है और समाज में प्रश्न भी उठ रहा है कि क्या यह जैविक युद्ध तो नहीं है। बहरहाल यह एक चर्चा का विषय है, अब अगर हम इसका असर अपने देश में देखे तो वर्तमान सरकार की तत्परता और उसका अपने वैज्ञानिकों, चिकित्सीय इंटिलेक्ट पर विेशास करना और उनके सुझाव अनुसार समय पर पूरे देश में लॉकडाउन करना अधिक कारगर सिद्ध हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप भारत में इसका प्रभाव उतना नहीं पड़ा जितना विेश के अन्य देशों में पड़ा है। स्वास्थ्य सेवाओं की नितांत कमी के बावजूद भी हमारे यह कोरोनो पीड़ितों की संख्या कुछ हज़ारों में ही है, जिसमें 80 प्रतिशत कोरोना पीड़ित बड़ी तेज़ी से ठीक भी हो रहे हैं। यह आंकड़ा भी हज़ारों में पहुंच गया है। अगर दिल्ली की जमाती मरकज़ की घटना ना हुई होती तो पीड़ितों की संख्या निश्चित ही और कम होती। हम सभी इस बात से वाक़िफ़ हैं कि 130 करोड़ आबादी का विशाल देश भारत आज भी विकासशील देश की है श्रेणी में आता है परंतु यह भी सच है कि बड़ी तेज़ी से दुनिया में प्रगति करने वाला देश भी अपना भारत ही है। इतने विशाल देश को इस कोरोना संकट से बचाने हेतु केंद्रीय सरकार द्वारा अपने चिकित्सकों, वैज्ञानिकों एवं राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सुझाव पर भारत बंद का अहम निर्णय लिया गया, जिसमें सम्पूर्ण भारत में 24 मार्च से 21 दिन के भारत बंद की घोषणा की गई। इस तालाबंदी से देश भर के सारे उद्योग, बाज़ार बंद हो गए। साथ ही उन लोगों के घर के चूल्हे भी जो रोज़ कमाने- खाने से ही अपना जीवन यापन करते हैं। जब सभी कुछ बंद तो इन मज़दूरों, रिक्शा चलाने वाले बंधुओं का सब्ज़ी मंडियो में बस और रेल स्टेशनों पर पल्लेदारी करने वाले, कुली आदि का क्या होगा- वे इस बंदी में कैसे सुरक्षित रहेंगे यह प्रश्न उनके सामने था।

हालांकि सभी राज्य सरकारों एवं केंद्रीय सरकार ने कहा कि आप जहां भी रहा रहे वहीं रहे हम आपके खाने रहने की व्यवस्था करेंगे, लेकिन दिल्ली में तो यह व्यवस्था ठीक से नहीं हो पाई। इसी का परिणाम था भारी संख्या में लोग पैदल घरों की ओर चलने लगे। दिल्ली में उत्तर प्रदेश, बिहार के मज़दूरों की संख्या ज़्यादा होने के कारण वे सभी पैदल ही अपने-अपने प्रांतों की ओर निकल लिए। उत्तर प्रदेश के मुहाने पर बने बस अड्डे आनंद विहार पर लाखों की भीड़ आ गई। ऐसे में उनको कौन सम्भाले, कैसे शारीरिक दूरी बनाइ जा सके क्योंकि इस भारी भीड़ में कोई भी कोरोना पीड़ित भी हो सकता है, जिससे किसी अन्य व्यक्तियों में भी वायरस पहुंच सकता है। यही ही समय था सरकार का इंतज़ार ना करते हुए समाज का काम है सबको बचाना है बस इसी इरादे से पूर्वी विभाग के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता 260 की संख्या में वहां पहुंचे और सभी मज़दूरों को व्यवस्थित करने में लग गए। कुछ ही घंटों में जितना हो सकता था खाने- पीने की चीज़ों की व्यवस्था की गई और इस उभरी परिस्थिति को देख उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी तत्पारता का परिचय देते हुए उत्तर प्रदेश और बिहार के जो भी बंधु थे उनको उनके घर तक पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था की, संघ के कार्यकर्ता सारा-सारा दिन टोली अनुसार इन सभी अपने प्रवासी मज़दूर बंधुओं की सहायता करते रहे।

इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन सेवा भारती दिल्ली ने इस सारी व्यवस्था से निपटने के लिए एक टीम बनाई और एक हेल्पलाइन नम्बर जारी किया कि जिसको भी भोजन आदि की समस्या है वह इस हेल्पलाइन नम्बर पर सम्पर्क कर सकता है। प्रारम्भ में 400-500 फ़ोन आ रहे थे। फिर यह संख्या 1200-2000 तक पहुंच गई। इस सारे कार्य में तेज़ी लाने इस हेतु अन्य चार सहायता संपर्क नम्बर (हेल्पलाइन नम्बर) चालू किए गए। सेवा भारती (50666), विद्यार्थी (550), उत्तर-पूर्व के छात्रों हेतु (2366), दिव्यांग जनों हेतु (171) जिसमें 130 कार्यकर्ताओं के द्वारा मात्र दिल्ली में ही 12500 लोगों से रोज़ सम्पर्क होने लगा। अभी तक 50000 से अधिक कॉल लोगों की आई है। साथ ही उत्कर्ष डिजिटल प्लेटफ़ार्म भी बनाया गया जिसमें सारे कार्य की निगरानी और सब तक सेवा को और अधिक सुलभ बनाने का कार्य किया गया, जिससे अधिक से अधिक लोगों की सहायता की जा सके।

संघ का पूरा तंत्र दिल्ली में कार्यरत

179 रसोइयो के माध्यम से अब तक 28,62,312 लोगों की भोजन की व्यवस्था की गई। ये 910 स्थानों पर हैं, साथ ही 8908 स्वयंसेवक परिवार भोजन के पैकेट तैयार करके दे रहे हैं। वही 1,22,468 से अधिक कच्चे राशन की किट गरीब परिवारों तक पहुंच गई हैं। रोज़ 4000 लोगों से संपर्क होता है। इसके लिए संघ का पूरा तंत्र दिल्ली में लगा है। जिन परिवारों में केवल बुजुर्ग ही है उन परिवारों को संघ के कार्यकर्ताओं ने गोद लिया है। ऐसे 406 परिवार हैं। इसके साथ ही दिल्ली स्थित गो-शालाओं में 75000 क़िलो चारा दिया जा चुका है। वही 508 स्थानों पर चिड़ियों के लिए दाने और जल पात्र रखे गए। गली के कुत्तों को भोजन मिले इसकी भी व्यवस्था की गई है। 2400 घुमंतू जाति के परिवारों को भोजन उपलब्ध करा रहे है । Sex workers की भी चिंता की है। लगभग 986 Sex workers के 250 कॉटेज में भोजन कच्चा पहुंच रहा है। वही 68 किन्नर समाज के बंधुओं के लिए राशन की व्यवस्था की गई है।

इस सारे कार्य में संघ के दिल्ली के 9745 कार्यकर्ता

दिन रात लगे हैं। वही संघ पूरे देश में जहां भी समस्या है बड़ी तत्परता से लगा है। संघ की 8 क्षेत्रों की रचना है जिसमें 25,398 स्थानों पर 204224 कार्यकर्ताओं की सहायता से लाखों लोगों की सहायता की जा रही है। इस प्रकार ‘देश के लिए जिये समाज’ के लिए जिये का मंत्र लेकर संघ अपनी हिस्सेदारी समाज में कर रहा है। 1,50,000 से ज़्यादा सेवा प्रकल्पों के माध्यम से अंतिम पंक्ति मेंखड़े व्यक्ति के कल्याण में एक-एक कार्यकर्ता लगा है। वनवासी क्षेत्रों के बंधुओं के मध्य एकल विद्यालय और उनको उद्यमिता से जोड़ने की कई योजना संघ का ही संगठन वनवासी कल्याण आश्रम कर रहा है। विद्यार्थियों के मध्य राष्ट्र भक्ति का भाव जागृत कर देश के लिए युवा शक्ति को तैयार कराने का कार्य अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कर रही है। वही हिंदू धर्म के भारत तत्व को लेकर विेश हिंदू परिषद लगी है। देश के मज़दूरों के मध्य भारतीय मज़दूर संगठन भी ‘देश के लिए करेंगे काम काम के लेंगे पूरे दाम’ के नारे के साथ सेवा कार्य में लगा है, वही भारत विकास परिषद के माध्यम से भी समाज में समाज के सहयोग से बड़े-बड़े सेवा कार्यों का संचालन संघ कर रहा है।

अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो इतना काम कर रहा है वही जो वामपंथी एवं छद्म आंबेडकरवादी सदैव संघ की आलोचना करते हुए नहीं थकते थे, जो सब अब कहीं नहीं दिख रहे हैं। जब भी भारत पर संकट आया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बड़ी ही तत्परता के साथ समाज कार्य में अपना योगदान दिया।

चीनी युद्ध में सेना को खाने आदि का समान पहुंचाना हो या यातायात की व्यवस्था संभालनी हो या फिर रक्तदान इन सभी को बख़ूबी संघ ने निभाया है। संघ की देश और समाज के प्रति सक्रिय भूमिका के कारण उसे 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भी शामिल किया गया। जब भी अपनी भारत भूमि पर संकट आया संघ कार्यकर्ता तन, मन और धन के साथ समाज कार्य में लग गए। जो लोग या विचार संघ का विरोध करते हैं वे समाज का कितना कार्य करते हैं, यह प्रश्न समाज को उनसे पूछना चाहिए। हम काम करते हैं बिना किसी भेद के क्योंकि सबके कल्याण की कामना ही तो हिंदू तत्व है और यह हिंदुत्व ही तो भारत है।

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