मजदूर : संवाहक या योद्धा

कहा जाता है कि जब किसी महिला को प्रसव पीड़ा होती है तो वह दर्द 20 हड्डियों के एकसाथ टूटने के बराबर होता है। इतना दर्द सहने के बाद चिलचिलाती धूप में 160 किमी की पैदल यात्रा करके अपने गांव वापस जाने की जिजीविषा या तो अदम्य साहस का परिचय है या फिर जान पर बन आने वाली मजबूरी का। कोरोना की मार झेल रहे मजदूरों की मजबूरी के ऐसे कई किस्से फिलहाल चर्चा का विषय है।

कोरोना की त्रासदी झेलकर अपने घर लौटने को मजबूर मजदूरों पर सभी लोग अपनी-अपनी राय दे रहे हैं। कोई उनके प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रहा है, कोई उन्हें हर संभव सहायता करने की कोशिश कर रहा है, तो कोई उन्हें कोरोना कैरियर अर्थात कोरोना को एक राज्य से दूसरे राज्य लेकर जाने वाला भी कह रहा है। ये सभी भावनाएं या जुमले तात्कालिक हैं। मुख्य समस्या तो निकट भविष्य के लिए ही मुंह बाए खड़ी है, जो इन मजदूरों के घर वापस लौटने के कारण उत्पन्न होगी।

ये मजदूर मुख्यत: उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से हैं, जो कि महानगरों के साथ-साथ महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात और देश के अन्य राज्यों में भी फैले थे। कम मेहनताने में अधिक काम करने वाले ये मजदूर सभी की पहली पसंद थे। छोटे से किराना-बेकरी की दुकानों से लेकर मेट्रो के निर्माण जैसे विशाल कार्य में इन मजदूरों का पसीना लगा हुआ है। पंजाब में तो खेतों में कार्य करने वाले अधिकतर मजदूर अन्य गावों से आए हुए ही थे। अब इनके वापस लौटने के बाद इन राज्यों में छोटे-छोटे कामों के लिए भी मजदूर मिलना मुश्किल हो जाएगा।

कोरोना तो देर सवेर चला जाएगा या हमें उसके साथ जीने की आदत पड़ जाएगी। परंतु इन मजदूरों के वापस लौटने से उद्योग ( Furniture Store ) व्यवसायों और परिणामत: भारत की अर्थव्यवस्था पर जो गंभीर परिणाम होंगे उनका गणित समझना बहुत आवश्यक होगा। अभी यह समस्या किसी एक राज्य की नहीं है। अत: यह समय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने या राजनीति करने का नहीं है। अब राज्य निहाय विचार करके, राज्य आधारित उद्योगों को बढ़ावा देते हुए राज्यों की समांतर प्रगति का खाका बनाना आवश्यक है। मजदूरों के स्थलांतर को तो भविष्य में भी नहीं रोका जा सकता या यों कहें कि उनको उनके घर बैठे काम उपलब्ध नहीं कराए जा सकते; परंतु अगर सभी राज्यों में खेती और उद्योग-धंधों को समान रूप से शुरू किया गया तो रोजी-रोटी के लिए मजदूरों को इतनी लंबी दूरी तय नहीं करनी पडेगी। वे अपने गांव के आस-पास के शहरों में या कम से कम अपने राज्य में ही काम कर सकेंगे। इसका परिणाम राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भी होगा।

अभी संम्पूर्ण देश एक तराजू की तरह है, जिसके एक पलड़े पर पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे विकसित राज्य हैं। ये राज्य खेती-किसानी या उद्योगों के कारण प्रगति कर रहे हैं। तराजू के दूसरे पलड़े पर वे राज्य हैं जो तुलनात्मक दृष्टि से पिछड़े माने जाते हैं। कालांतर में पिछड़े राज्य के मजदूर अपनी आजीविका और भविष्य संवारने के उद्देश्य से इन विकसित राज्यों में आते रहे तथा इस ओर के पलड़े को अधिक भारी करते गए। परिणाम यह हुआ कि एक पलड़ा जरूरत से ज्यादा झुक गया और दूसरा बिलकुल रीता हो गया।

अब इस कोरोना की त्रासदी के कारण जबकि अधिकतर मजदूर अपने रीते पलड़े की ओर वापस लौट गए हैं तो आवश्यकता है कि उन्हें वहीं रोके रखने की जिससे तराजू के दोनों पलड़े फिर से समान हो जाएं।

अब राज्य सरकारों का दायित्व अधिक बढ़ जाता है। कोरोना ने सम्पूर्ण दुनिया को एक नई तरह से सोचने का भी अवसर दिया है। भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को भी अपनी सोच में आमूलाग्र और प्रभावी बदलावों की आवश्यकता है। अब जबकि स्थापित उद्योग भी अपनी रणनीतियों में परिवर्तन करेंगे और कुछ विदेशी कम्पनियों की भारत में आकर उद्योग स्थापित करने की सम्भावनाएं प्रबल हैं, राज्य सरकारों को भी उद्योग आधारित संकल्पनाओं को जन्म देना होगा और केवल बाहर से आए मजदूरों ने स्थानीय मजदूरों की रोटी छीन ली यह रोना रोने की बजाय अब स्थानीय मजदूरों को अवसर प्रदान करने होंगे।

पिछले कुछ वर्षों की जीडीपी पर अगर गौर करें तो उसमें कृषि क्षेत्र की भागीदारी बहुत कम दिखाई देती है, जबकि हम हमेशा से ही भारत को कृषि प्रधान देश कहते हैं। कृषि में हो रहे नुकसान और उसके कारण युवाओं का उस ओर से हटता ध्यान यह अलग चर्चा का विषय है, परंतु गावों को पुन: समृद्ध बनाने और स्थानीय मजदूरों को अपने राज्यों में ही रोकने का सबसे उत्तम उपाय यही है। महात्मा गांधी, पं.दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख जिस ग्राम विकास की कल्पना करते रहे उसे यथार्थ में लाने का समय आ गया है। भारत के विकास को अब किसी युद्ध की भांति देखना होगा। जिसमें हर मुख्यमंत्री सेनापति की भूमिका सम्पूर्ण निष्ठा के साथ अदा करें। उसे सम्पूर्ण भारत के विकास के लक्ष्य के साथ जोड़े, अपने राज्य के संसाधनों का अधिकतम उपयोग करें और मजदूरों को वॉरियर अर्थात सैनिक समझकर उनके अंदर की प्रतिभा का सम्पूर्ण उपयोग करें। स्थलांतर, विस्थापन की समस्या से निजात पाने तथा सभी राज्यों की समान प्रगति करने की दिशा में यही ठोस कदम होंगे।

This Post Has 3 Comments

  1. Raghunath Deshpande

    विश्लेषणात्मक लेख। निश्चित ही इस लेख ने नई अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक विचार करने का बीज बोया है। अब इन विषयों के विशेषज्ञों को गहन विचार मंथन कर प्रगति में योगदान देना चाहिए।

  2. Anonymous

    बहुत अच्छा लगा अंक

  3. Anonymous

    विशाखा मराठे

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