कालातीत स्वातंत्र्यवीर सावरकर

२८ मई १८८३ स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जन्मदिन है। १८८३ में जन्मे स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपनी उम्र के ८३वें वर्ष में अंतिम सांस ली। १८८३ से १९६६ की कालावधि में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन पर गौर करें तो आंखों के सामने उभरेगा उनका जीवन संघर्ष,  देशहित के लिए उनका समर्पित जीवन,  एक विशिष्ट लक्ष्य की प्रेरणा। उनके सम्पूर्ण जीवन, उनके जीवन-कार्य का समीक्षात्मक रूप से अध्ययन करें तो ध्यान में आएगा कि राष्ट्रनिष्ठा, हिंदुत्वनिष्ठा, देश की स्वतंत्रता, राष्ट्र समर्पण, साहित्य और समाज हित का रक्षण करने के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर दिया।

      ‘मनुष्य देह नश्वर है’ यह जानते हुए भी अपने देह का भारत में जन्म लेना सार्थक हो इसके लिए देश की स्वतंत्रता का लक्ष्य रखने वाले स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर! ब्रिटिशों की जुल्‍मी राजसत्ता से देश को मुक्त करने के लिए कपूर जैसे जलने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर! हिंदुओं के हितों के लिए हिंदू समाज को निरंतर जागृत करने वाले हिंदू हृदय सम्राट स्वातंत्र्यवीर सावरकर! हिंदू समाज को कुप्रथाओं से दूर रखने के लिए लगातार प्रयास करने वाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर! स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपने सम्पूर्ण जीवन में जो अनुभव किया, जो भोगा, जो सहा, जो गंवाया और उससे जो कमाया, जो निर्माण किया और जो प्राप्त किया वह सब अलौकिक है। सावरकर के सम्पूर्ण जीवन की उर्मी, यौवन कोल्हू घुमाते-घुमाते बीत गया। उनके मन और बुद्धि में जो दिव्य प्रतिभा थी वह रत्नागिरी की नजरबंदी में खत्म होने का समय था। उनके जीवन के महत्वपूर्ण १४ वर्ष अंडमान के कारावास और १३ वर्ष रत्‍नागिरी की नजरबंदी में बीते। उम्र के पचासवें साल के बाद सही अर्थ में वे मुक्‍ति की सांस ले सके। लेकिन भारत की स्वाधीनता के बाद भी कांग्रेस की कृपा से उन्हें कारावास भोगना पड़ा। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्रोद्धार के लिए समर्पित था। उन्होंने बचपन में अपनी कुलदेवता के समक्ष भीष्म-प्रतिज्ञा की थी “मातृभूमीच्या रक्षणासाठी मारिता मारिता मरेतो झुंजेन ” (‘मातृभूमि की रक्षा के लिए अंतिम क्षण तक संघर्षरत रहूंगा)। इसलिए देश की स्वतंत्रता को लक्ष्य मानकर उसके लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

अंडमान के कारावास के १४ वर्ष, रत्नागिरी की नजरबंदी के १३ वर्ष, यहां तक कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी स्वदेश और विदेश में विरोध जैसी अनंत यातनाएं वीर सावरकर को झेलनी पड़ी। लेकिन इस कठिनाई में भी वे कभी भी टूटे नहीं। जीवनभर अनेक कष्ट भोगते रहे। वे जितने उदारमना और निर्भय वृत्ति के थे उतने ही वैचारिक दृष्‍टि से दृढ़ थे। उनके विचार ज्वलंत थे। उनका सम्पूर्ण जीवन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी है।

भारत की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति का मार्ग स्वीकार करने के कारण स्वातंत्र्यवीर सावरकर को गिरफ्तार किया गया। मोरिया जहाज से हिंदुस्थान में लाते समय उन्होंने समुंदर में छलांग लगाकर पूरी दुनिया में भारत की स्वतंत्रता के आवाज को गुंजायमान कर दिया। सावरकर को काले पानी की सजा अंडमान में भोगनी पड़ी। अंडमान की जेल के बारे में कहा जाता था कि कोई कैदी यदि वहां पहुंच गया कि उसकी मृत देह ही बाहर आती है। सावरकर की महानता अविवादित है। उन्होंने अंडमान के अत्यंत कठिन काल में भी बड़ी मेहनत से साधन जुटाकर कविताएं लिखीं। ये कविताएं उन्होने आजन्म कारावास के दौरान लिखी हैं इसलिए उनका अलग महत्व है। कविताएं लिखने के लिए उन्हें दीवार का कागज और किसी कांटे की कलम साहित्य निर्मिति के लिए उपलब्ध हो सकी। फिर भी सावरकर की उत्तुंग प्रतिभा के लिए किसी चीज की मर्यादा नहीं थी। उन कविताओं को भी अत्यंत गोपनीयता से अंडमान के कड़े बंदोबस्त के बीच बाहर भेजने का इतिहास भी अद्भुत है। भाषा-शुद्धि का सावरकर का उपक्रम भी अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। इस उपक्रम के माध्यम से मराठी को अनेक नए शब्द मिले।

‘अनादि मी, अनंत मी’ (अनादि मैं, अनंत मैं) जैसी आध्यात्मिक एवं राष्ट्रीयता को स्पर्श करने वाली कविताओं से लेकर शृंगारिक कविताओं तक उनकी प्रतिभा ने असीमित संचार किया। ‘ने मजसी ने, परतूनी माय भू ला… सागरा प्राण तळमळला’ (हे सागर,मुझे अपनी मातृभूमि में ले चल, इसके लिए कबसे जान तड़प रही है), स्वातंत्र्य देवता का ‘जयोस्तुते श्रीमहन्मंगले’ या छत्रपति शिवाजी महाराज पर लिखी ‘हे हिंदु- नरसिंहा प्रभो शिवाजीराजा’ जैसे अमर गीत उनकी काव्य प्रतिभा का विलक्षण आविष्कार है।

सावरकर ने रत्नागिरी के अपने निवास में अस्पृश्यता निवारण और जातिभेत निर्मूलन का कार्य किया। इस कार्य के कारण मालवण में हुई पूर्वास्पृश्य परिषद का अध्यक्षपद उन्हें सर्वसम्मति से मिला। इसमें सभी अस्पृश्य जातियों का समावेश था। इस परिषद में पूर्वास्पृश्य बंधुओं को जनेऊ याने यज्ञोपवित विधिपूर्वक प्रदान किए गए। इस अवसर पर सावरकर ने स्पष्ट किया कि सभी जातियों, सभी हिंदुओं को वेदोक्त, वेद वाङ्‌मय का अधिकार है। वह कालखंड अस्पृश्यों को सभी पवित्र बातों से दूर रखने वाला था। ऐसे समय में स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा इस तरह की घोषणा करना समाज परिवर्तन की लम्बी छलांग लगाने जैसा था। हिंदू समाज से दूर रखे गए एक महत्वपूर्ण घटक अस्पृश्यों ने इस परिषद में संगठित होकर उन पर होने वाले अन्याय को मुखर किया। इस तरह की परिषद में स्वातंत्र्यवीर सावरकर का अध्यक्ष चुने जाने का अर्थ है उन्हें सभी जाति-जमातियों में विशेष महत्वपूर्ण स्थान था। इस परिषद में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने जो भूमिका ली उस सम्‍बंध में पुणे के चर्मकार समाज के नेता राम भोज ने कहा कि, ‘‘सावरकर का अस्पृश्य समाज के प्रति निष्कपट व प्रेममय बर्ताव देखकर हिंदू संगठनों के बारे में मेरे मन की सभी शंकाएं दूर हो गईं हैं।’’

            स्वातंत्र्यवीर सावरकर कहते थे, ‘‘मैं जो कहता हूं वह दस वर्ष बाद लोगों की समझ में आता है और दस वर्ष रुकने की मेरी तैयारी है।’’ सावरकर के तर्कबुद्धिवादी विचार उनके विचारों से प्रतिबद्धता रखने वालों को भी कभी-कभी ठीक से समझ में नहीं आते थे। इसलिए सावरकर का तत्वज्ञान किसी बुद्धिवादी को पूरी तरह मंजूर होना कठिन था। आजन्म कारावास की पचास वर्ष की कालेपानी की सजा सुनाए जाने के बाद अंडमान ले जाने के पूर्व सावरकर को डोंगरी की जेल में रखा गया था। वहां सावरकर को पता चला कि अपनी चमड़ी बचाने के लिए कुछ भारतीय राजनीतिकों ने उनका निषेध किया था। यहीं क्‍यों, एक अंग्रेजी अखबार ने ‘हरामखोर’ की संज्ञा भी दी थी। इस अंग्रेजी अखबार ने लिखा था कि, ‘‘इस हरामखोर के भाग्य में क्‍या है यह अब उसे समझ में आ गया होगा।’’ उस समय सावरकर को कितनी यातनाएं हुई होंगी? देश के लिए प्राणों की आहुति देने के लिए आसन्न एक महान देशभक्त की अवहेलना भारत में अपने ही स्वदेशी बंधुओं से हो, इससे दुर्भाग्यपूर्ण उपेक्षा और क्‍या हो सकता है? इसके विपरीत यूरोप के अखबारों ने सावरकर की खूब प्रशंसा की। सावरकर कोई आम आदमी नहीं थे कि निंदा करने पर टूट जाए और स्‍तुतिसुमनों से प्रसन्न हो जाए। जिस व्यक्‍ति ने ये दोनों बातें सावरकर को सुनाई उसे सावरकर ने बेहद शांत स्वर में कहा, ‘‘यूरोप के अखबारों ने हुतात्मा कहकर मेरी प्रशंसा की है और भारत के इस अंग्रेजी अखबार ने मुझे ‘हरामखोर’ कहकर मेरी निंदा की है। इन परस्पर विरोधी विधानों ने एक-दूसरे का स्वयं खंडन किया है। और मैं वास्तव में जैसा हूं वैसा ही रहूंगा।’’ इसी को कहते हैं सुख दु:खे समेकृतवा…। यही सावरकर की स्‍थितप्रज्ञता का दर्शन है।

समर्पण का महत्व कभी कम नहीं होता। भारत की स्वतंत्रता के विचार से अनेक नेता अभिभूत थे। स्वातंत्र्यपूर्व काल में भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के अनेक नेता थे। संविधानकार डॉ.बाबासाहब आंबेडकर ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के कार्यों का सदैव गौरव ही किया है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्‍वातंत्र्यवीर सावरकर के त्याग का मूल्‍य जानते थे। इसी कारण जब गांधी हत्या के झूठे आरोप में सावरकर को कांग्रेस द्वारा फंसाया गया तब डॉ.बाबासाहब आंबेडकर ने अपरोक्ष रूप से अपनी वेदना व्यक्त की थी।

            सावरकर ने स्पष्ट कहा था कि मुसलमान और हिंदू ये दो राष्‍ट्र हिंदुस्‍थान में मौजूद हैं। इस यथार्थ को स्वीकार किए बिना समस्या को सुलझाने के उपाय नहीं किए जा सकते। वास्तविकता बयान करने का अर्थ उसका समर्थन करना नहीं होता। विरोधियों ने यह गरल उलीचना शुरू किया कि सावरकर ने द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत पेश किया है। मुस्लिम मानस मूल रूप से राष्‍ट्र की संकल्पना को ही स्‍वीकार नहीं करता। हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को स्वीकार करते हैं। इस वास्तविकता को ध्यान में रखकर सावरकर ने यह भाष्य किया था। लेकिन सावरकर के सत्य को गलत राह पर ले जाने का प्रयास किया जा रहा था। खिलाफत आंदोलन जब शुरू हुआ तब सावरकर ने कहा था, ‘‘यह खिलाफत नहीं आफत है।’’ मुस्लिम नेताओं की तब की मांगें देखकर सावरकर ने चेतावनी दी थी कि, ‘‘उन्हें १० सिंध दिए तब भी वे ११हवां सिंध मांगेंगे। इसलिए विभाजन के साथ स्वतंत्रता स्वीकार न करें।’’ सावरकर द्वारा समय-समय पर दी गई ऐसी सूचनाओं की तत्कालीन राज्यकर्ताओं ने अवहेलना की। इसलिए आज देश में और देश के बाहर भी पाकिस्तान के रूप में यह समस्या खड़ी है। सत्ता के लालची  व किसी तरह की राष्‍ट्रीय नीति न रखने वाले नेताओं के कारण भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान की निर्मिति हुई। पाकिस्तान के आतंकवाद को पनाह मिली और यही आतंकवाद आज अपने देश में कुहराम मचा रहा है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के आत्मार्पण को आज चौवन वर्ष हो गए हैं। किंतु छह दशक पूर्व सावरकर की भविष्यवाणी का आज हम अनुभव ले रहे हैं। समस्या के मूल से इनकार कर हम उसे दबा नहीं सकते। हिंदुस्थान में हिंदू और मुसलमान मुख्यतः दो राष्ट्र मौजूद हैं। अर्थात तब जो अस्तित्व में था वह यथार्थ था। अप्रिय लगने वाला सत्य कथन था। कर्क रोग का निदान होने पर कर्क रोग हुआ है यह स्वीकार करना ही पड़ता है। उसे मान्य करने पर ही हम समाधान खोज सकते हैं। देश को इस्लामिक कर्क रोग हुआ है इस सत्य को तत्कालीन नेताओं ने स्वीकार नहीं किया। इसीलिए पाकिस्तान और मुस्लिम आतंकवाद के कर्क रोग पर अब तक कोई उपाय नहीं किया जा सकता। उपाय करने के लिए देश को इस्लामिक कर्क रोग हुआ है इसे तत्कालीन नेताओं को स्वीकार करना चाहिए था।

” आसिंधु सिंधुपर्यंता यस्य  भारतभूमिका

   पितृभू पुण्यभूश्वैव स वै हिंदूरिती स्मृत “

            हिंदू की इस तरह व्याख्या करते हुए सावरकर कहते हैं कि, ‘‘बौद्ध, जैन, सिख, चार्वाक पंथ वेद नहीं मानते। इसलिए क्‍या उन्हें हिंदू न कहें? बौद्ध,जैन, सिख, चार्वाक सभी हिंदू ही हैं।’’ यह कहते हुए सावरकर ने हिंदुओं में चैतन्य जागृत किया। सावरकर के ये विचार कालातीत है। इसलिए कहा जाता है कि सावरकर समय से आगे का विचार किया करते थे।

    रत्नागिरी के १३ साल के निवास में सावरकर ने हिंदू महासभा के जरिए सहभोजन, जातिभेद व अस्पृश्यता निर्मूलन, भाषाशुद्धि, स्‍वदेशी, साक्षरता का प्रचार इस तरह अनेक आंदोलन सफलतापूर्वक किए। भारत को हथियारों की अधिकाधिक निर्मिति करनी चाहिए। शक्‍तिशाली सैन्य न हो तो अपना लोकतंत्र और बेहतरीन राज्य संविधान हम सम्हाल नहीं पाएंगे। लोकतंत्र की पृष्ठभूमि में भी शक्‍ति की आवश्यकता होती है। अपना राज्य कायम रखना हो तो जैसे को तैसा की नीति भारत की होनी चाहिए। आज चीन के बारे में जब हम विचार करते हैं तब सावरकर के जैसे को तैसा की नीति की सलाह स्वीकार करनी ही होती है। स्‍वातंत्र्यवीर सावरकर के समग्र जीवन की ओर देखें तो विज्ञाननिष्ठ, प्रज्ञावंत, इतिहासकार, समाज सेवक ( Join RSS ), राष्ट्रभक्त, मानवतावादी, भाषा-विज्ञानी, राष्ट्रचिंतक, आर्थिक चिंतक आदि सावरकर हमारे सामने उभरते हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर का प्रत्‍येक श्वास, प्रत्येक कृति, प्रत्येक विचार, प्रत्येक निर्णय देशहित के लिए था। राष्ट्रभक्ति से लेकर समाजसेवा तक और साहित्य से विज्ञान तक जो कुछ उनके हृदय में जन्म पाया वह केवल और केवल राष्ट्रहित के लिए ही था।

      योग साधना ने सावरकर को जीवन में कठिन प्रसंगों में आजीवन साथ दी। युवावस्था से लेकर आत्मार्पण तक के कठिन समय में वे योग को अपनाते रहे। कुंडलिनी का महत्व विशद करते हुए सावरकर कहते हैं, ‘‘मानवजाति को कुंडलिनी के कारण जीव का शिव से साक्षात्कार होने का आनंद मिलता है। स्‍वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा अपनाए गए क्रांति संघर्ष में भी उनकी योगवृत्ति पिछड़ गई ऐसा नहीं हुआ है। चिंतन लगातार चलते रहता था। अपने योगाभ्यास के बारे में सावरकर ने कहीं बहुत उल्लेख नहीं किया है। फिर भी उनके योग अभ्यास का संकेत उनके साहित्य और बर्ताव में मिलता है।

            अंडमान के कारागृह में उनके योगाभ्यास का समय निर्धारित था। अंडमान के कारावास से बाहर आने पर शेष जीवन में योग साधना सावरकर के लिए उपयोगी रही। इसीलिए सावरकर कभी निवृत्ति या संन्यास की दिशा में नहीं गए। अपनी दैनिक योग साधना का उन्होंने कभी प्रचार भी नहीं किया। योग साधना अंधश्रद्धा नहीं है; बल्‍कि अतींद्रिय अनुभव, दिव्यत्व की प्रचीती दिलाने वाला परिपूर्ण शास्त्र है, यह सावरकर जानते थे।

      सावरकर की ८३ वर्ष की आयु में ३० वर्ष कारागार में बीते। उस अवधि में वाद-विवाद, जीवन में उतार-चढ़ाव नित्य की बात थी। लेकिन इस सम्‍पूर्ण आपाधापी में मन पर नियंत्रण रखने का कौशल सावरकर को कहां से मिला? यह प्रश्न मन में उभरता ही है। अंडमान में काले पानी की सजा हो या रत्नागिरी में नजरबंदी हो, भारतीय समाज को दिशा देने का उनका विचार हो, भारत को सारी गुलामी से मुक्त करने के लिए योग और स्वतंत्रता का संयोग सावरकर ने अपने जीवन में किया। सावरकर कई बार कहा करते थे, ‘‘मेरा अंत किस तरह करना है यह मैं जानता हूं।’’ सावरकर ने अपना अंत भी किसी योगी की तरह ही किया। इसके लिए उन्होंने महान योगियों के अंतकाल को जाना। महान लोग अत्यंत कृतार्थ भाव से अपना जीवन विसर्जितकरते हैं।

सम्‍पूर्ण राष्‍ट्रभाव से अपना जीवन समर्पित करते समय जीने की परवाह किए बिना सावरकर ने अपने जीवन के ८३ वर्ष पूरे किए। अंतिम क्षणों में उन्होंने चाय, डॉक्टर, औषधियां सब त्याग दिया था। केवल जल ग्रहण करते थे, वह भी अंत में बंद कर दिया। बाईस दिन इस तरह ‘‘आता कर्तव्य न उरले, सारे सारे पावले’ (अब कर्तव्य पूरा हो गया, सबकुछ मिल गया) इस कृतार्थ भाव से इस महायोगी ने २६ फरवरी १९६६ को इस दुनिया से विदा ली।

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This Post Has 3 Comments

  1. Sankul Pathak

    सावरकर के द्वि राष्ट्र के सिद्धांत कीस्पष्ट विवेचना करनी चाहिए ऐसा लेख पुनः प्रसारित करें।ऐसा निवेदन है।ताकि आज की स्थिति स्पष्ट हो जाए। आशा करता हूँ लेख जल्द ही प्रकाशित करेंगे।

  2. Sameer Harishchandra Nagvekar

    खुप अप्रतिम लेख लिहिला आहे अनेक गोष्टीची माहिती मिळाली आजच्या दिवशी ही माहिती वाचून मन भरून आले

    1. Amol Pednekar

      धन्यवाद ।

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