यदि  आज चीन-पाकिस्तान एक साथ भारत पर हमला करें तो क्या होगा?

आज विश्व के तमाम रणनीतिकार इस विषय पर विचार कर रहे हैं कि यदि चीन और पाकिस्तान दोनों एक साथ भारत पर हमला करें तो क्या होगा ? हर भारतीय के मन में भी यह प्रश्न बार-बार उठता रहता है।चूंकि चीन की नीति आंतरिक मामलों में दमनकारी तथा विदेशी मामलों में विस्तारवादी है अतः इस बात को सच माना जा रहा है।भारतीय सेनाएं न केवल इस दिशा में गंभीर तैयारी कर रही हैं बल्कि दो मोर्चों पर समानांतर युद्ध का अभ्यास भी कर चुकी हैं। इसके लिए जंगी खेल(War Games) भी बन चुके हैं। यह भारतीय सुरक्षा परिदृश्य के लिए सबसे कठिन सवाल है। इसलिए इस काल्पनिक प्रश्न का एक संभावित उत्तर देने का प्रयास कर रहा हूँ। युद्ध आरंभ होते ही भारत  अपनी संपूर्ण शक्ति से तुरंत जवाब देगा।भारत दोनों ही मोर्चों पर अपने 5-5 लाख सैनिक भेजेगा।  इस युद्ध में रूस की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण होगी जिसके भारत और चीन दोनों से ही गहरे रणनीतिक और व्यापारिक संबंध हैं। यदि वह चीन का साथ देता है तो अमेरिका और उसके तमाम नाटो एवं गैर नाटो सहयोगी भारत के पक्ष में उतर जाएंगे। दूसरी ओर यदि वह भारत का साथ देता है तो चीन पाकिस्तान चारों ओर से घिर जाएंगे। साथ ही, रूस के तटस्थ रहने की सर्वाधिक संभावना है ।लेकिन वह दीर्घकालिक संबंधों के कारण भारत को सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति जारी रखेगा। वह भलीभांति जानता है कि यदि चीन युद्ध जीतता है तो लंबे  समय से चला आ रहा सीमा-विवाद तथा चीन की साम्राज्यवादी आकांक्षा अगला नंबर उसका ही लगाएगी।यह जग-जाहिर है कि सीमा विवाद के चलते पूर्व सोवियत संघ तथा चीन के बीच परमाणु युद्ध होते-होते बचा था। अतः वह भारत की जीत में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मदद ही करेगा। जहां तक खाड़ी देशों का सवाल है तो वे अमेरिका और रूस के दबाव में या तो भारत का साथ देंगे अथवा तटस्थ रहेंगे।
 युद्ध शुरू होते ही सामरिक साझेदारी के समझौते के कारण अमेरिका , जापान , दक्षिण कोरिया तथा वियतनाम की सेनाएं अत्यधिक सतर्कता की स्थिति में आ जाएंगी । भारत-अमेरिका और चीन के उपग्रह सीमाओं के चप्पे-चप्पे पर निगरानी करने लगेंगे।अमेरिका चीन के अलावा उत्तर कोरिया की गतिविधि पर अपना ध्यान केंद्रित कर देगा।वह चीन और पाकिस्तान की हर गतिविधि की सूचना भारत को भेजता रहेगा जिससे भारतीय सेनाओं को त्वरित प्रतिक्रिया करने का सुअवसर मिलेगा। भारतीय सेना संपूर्ण पश्चिमी सीमा तथा लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड , सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश के सीमांत तक जवानों , टैंकों, तोपों, राॅकेटों और मिसाइलों द्वारा हमले को निरस्त करते हुए आगे बढ़ेगी। इस कार्य में पिनाक राॅकेट, प्रलय, प्रहार , पृथ्वी तथा ब्रह्मोस मिसाइल की सबसे बड़ी भूमिका रहेगी। इससे चीन के तिब्बत स्थित सैन्य ठिकाने तथा पाकिस्तान के अधिकांश सैन्य ठिकाने नष्ट हो जाएंगे।
भारतीय सेना संपूर्ण शक्ति से पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को शुरुआती हमले में नष्ट करने का प्रयास करेगी जिससे युद्ध में टिके रहने की उसकी क्षमता कमजोर हो जाएगी। फलतः अनेक मोर्चों पर उसके सैनिक आत्मसमर्पण करेंगे। चीन-पाकिस्तान की मिसाइलें और राॅकेट भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने का प्रयास करेंगे जिसे भारतीय सेनाएं रूसी-200, आकाश, बराक-8 मिसाइल सुरक्षा प्रणाली तथा अपने लेज़र हथियारों से निरस्त करेगी। यदि चीन बहुत बड़े पैमाने पर मिसाइल हमले का प्रयास करता है तो भारतीय सेना काली-5000 के प्रयोग द्वारा उसे रास्ते में ही नष्ट अथवा विपथित कर देगी। वह भारत के महत्वपूर्ण ठिकानों के लिए एक लेज़र छतरी बना देगी। भारत के पास विश्व की सर्वोत्तम पर्वतीय ब्रिगेड है जिसके पेशेवर युद्धकौशल से चीनी सैनिक पनाह मांगेंगे। स्थिति अनुकूल होते ही भारतीय सेना तिब्बत के महत्वपूर्ण ठिकानों तथा पी.ओ.के.पर कब्जा कर लेगी। अमेरिकी वायुसेना और नौसेना ऐसी परिस्थिति पैदा करेगी जिससे चीन डरकर उस पर हमला कर दे। फलतः अमेरिका और जापान की अत्याधुनिक वायुसेना एवं नौसेना के समक्ष चीन को अपनी अधिकतम शक्ति झोंकनी पड़ेगी। अमेरिका के 3000 अत्याधुनिक बी-1,बी-2  तथा एफ-35  युद्धक विमानों के सामने चीनी वायुसेना मामूली सिद्ध होगी। यदि चीन बौखलाहट में सियोल, टोक्यो तथा गुआम पर मिसाइल हमले का प्रयास करता है तो बदले में अमेरिका और सहयोगी देशों की सेनाएं चीन के किस-किस ठिकाने पर और कितना हमला करेंगी, इसका अनुमान लगाना भी कठिन है।  इस अवसर का लाभ उठाकर ताइवान, फिलीपीन्स, वियतनाम ,मलेशिया, कंबोडिया और इंडोनेशिया दक्षिण चीन सागर में अपने -अपने क्षेत्रों पर कब्जा कर सकते हैं। भारत से सांस्कृतिक संबंध के कारण मंगोलिया भी अपना खेल दिखा सकता है।  चूंकि चीन का सभी पडोसियों के साथ सीमा विवाद है अतः वे अपने अधिकारों को पाने का प्रयास कर सकते हैं।
 जहां तक वायुसेना का सवाल है तो भारत सुखोई-30एम.के.आई., मिग-29 तथा तेजस विमानों द्वारा चीन पर हमले करेगा। भारतीय सुखोई-30 एम.के.आई.तथा तेजस ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस होने के कारण अत्यंत सटीक और घातक निशाना लगा सकेंगे। भारत के सारे महत्वपूर्ण विमान- तल समुद्र की सतह के बराबर हैं अतः वे पूरे आयुध भार के साथ उड़ान भरेंगे जबकि तिब्बत स्थित चीनी विमानों को 4000 मीटर की उंचाई से उड़ान भरनी पड़ेगी  । फलतः वे भारतीय विमानों की तुलना में आधा वज़न भी नहीं उठा पाएंगे।चूंकि चीन अपने सुखोई-30,जे-20 और रूसी एस-400 को पूर्वी तट से हटा  नहीं सकता अतः भारतीय वायुसेना के  लिए चीनी जे-10, जे-11, सुखोई-27 तथा जे-17 विमान आसान शिकार  सिद्ध होंगे। भारतीय वायुसेना अवाक्स प्रणाली से लैस होने के कारण चीन के भीतर 1500 किमी.तथा संपूर्ण पाकिस्तान पर अपनी सीमा से ही नज़र रख सकेगी। भारत अपने मिराज-2000,जगुआर, मिग-29,मिग-27,तथा आधुनिक बनाए गए मिग-21 से  पाकिस्तान पर इतना जोरदार हमला करेगी कि वह जवाब देने के लायक ही न रह जाए। यदि पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 तथा जे-17 विमान भारत पर हमले का प्रयास करते हैं तो भारतीय वायुसेना अंबाला में तैनात दो राफेल, मिग-29  तथा सुखोई-30 एम.के.आई.द्वारा उन्हें भारतीय सीमा में प्रवेश करने के पहले ही ध्वस्त कर देगी।
   इस युद्ध में सबसे बड़ी भूमिका नौसेना की रहेगी। भारतीय नौसेना की पश्चिमी कमान ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस युद्धपोतों एवं पनडुब्बियों से कराची, ग्वादर तथा मकराना की तमाम नौसैनिक सुविधाओं को आरंभिक हमले में नष्ट कर देगी जिससे वे कच्छ एवं कांडला पर हमला न कर सकें। यदि कोई कसर बाकी रह जाएगी तो उसे नलिया से उड़ान भरने वाले वायुसेना के विमान पूरी कर देंगे। भारत और ईरान मिलकर अरब सागर में चीन-पाकिस्तान का रास्ता रोक देंगे। यदि ईरान तटस्थ रहता है तो भी भारतीय नौसेना का पश्चिमी बेड़ा इस कार्य के लिए अकेले ही पर्याप्त है। तदुपरांत भारतीय नौसेना का पूर्वी तथा अंडमान – निकोबार द्वीप समूह स्थित चौथी कमान मलक्का जलसंधि को ब्लाॅक करके चीन के 80 फीसदी व्यापार और तेल आपूर्ति को रोक देगी । इस कार्य में दिएगोगार्शिया स्थित अमेरिका के सातवें बेड़े द्वारा भरपूर सहयोग मिलेगा जो  सुन्दा व अन्य मार्गों को बाधित कर देगा। साथ ही, फ्रांस तथा ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं दक्षिण हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति से चीनी नौसेना को हिंद महासागर में आने से रोकेंगी। चूंकि भारत की जैव-भौगोलिक स्थिति रणनीतिक दृष्टि से इतनी व्यापक और सुरक्षित है कि यदि चीन हमारे समुद्री मार्ग को बाधित करना चाहे तो उसे अपनी संपूर्ण नौसेना हिंद महासागरक्षेत्र में उतारनी होगी  जो व्यावहारिक दृष्टि से लगभग असंभव है । उसे अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया तथा ऑस्ट्रेलिया की अत्याधुनिक नौसेना से मुकाबले के लिए अपनी अधिकतम शक्ति पूर्वी चीन सागर तथा दक्षिण चीन सागर में झोंकनी होगी।यदि वह ऐसा करता भी है तो भारतीय मिसाइलों की मारक क्षमता के भीतर आ जाएगा। फलतः ब्रह्मोस मिसाइल तथा अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों   के प्रहार से तथा भारतीय वायुसेना के हमले से उसे हिंद महासागर क्षेत्र में जल समाधि लेनी पड़ सकती है।
यदि चीन भारत पर हमले के लिए एक विमानवाहक पोत , कुछ विध्वंसक युद्धपोत और पनडुब्बियां भेजता है तो इसकी सूचना भारतीय और अमेरिकी उपग्रह प्रस्थान के समय ही दे देंगे। साथ ही, वियतनाम, इंडोनेशिया और सिंगापुर की नौसेना भी हमें समय पर सूचित कर देंगी। साथ ही, वे अपनी शक्ति भर उसके रास्ते को बाधित करने का कार्य करेंगी। ऐसी स्थिति में मलक्का जलसंधि पर भारतीय नौसेना और सुन्दा जलसंधि पर अमेरिकी नौसेना का सातवां बेड़ा उसका स्वागत करेगा। यदि चीनी नौसेना चकमा देकर  हिंद महासागर में पहुंचने में सफल हो गयी तो सामने से भारतीय नौसेना तथा पीछे से अमेरिकी नौसेना के दोहरे प्रहार को वह नहीं झेल पाएगी और हिंद महासागर उसका कब्रिस्तान बन जाएगा। चीन अफ्रीका के जिबूती स्थित अपने नौसैनिक बेड़े को भारत पर हमला करने के लिए कह सकता है जिसे अदन की खाड़ी और सोमालिया तट पर तैनात ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस भारतीय नौसेना के युद्धपोत  नष्ट कर देंगे। यदि जरूरी हुआ तो भारत सुखोई-30 एम.के.आई.विमानों तथा अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों से जिबूती नौसैनिक अड्डे को तबाह कर देगा।
    इसके अलावा यदि चीन लंबी दूरी की मिसाइलों द्वारा भारत के आंतरिक रक्षा ठिकानों को निशाना बनाने का प्रयास करता है तो भारत अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से ही  अग्नि-4 और अग्नि-5  मिसाइलों से हमला करके दक्षिण चीन सागर स्थित तमाम  कृत्रिम नौसैनिक सुविधाओं को नष्ट कर सकता है।साथ ही, चीन के हर कोने में स्थित सैन्य सुविधाओं को भी नष्ट कर सकता है। इस चतुर्दिक हमले से चीन का सुरक्षा तंत्र बिखर जाएगा। फलतः भारतीय सेना तिब्बत को आजाद करवाकर अक्साई चिन पर कब्जा कर लेगी। तिब्बत की आजादी की घोषणा होते ही ताइवान, हांगकांग, झिनजियांग , आंतरिक मंगोलिया समेत चीन के दूसरे प्रांत आजादी की घोषणा कर देंगे।फलतः चीन पूर्व सोवियत संघ की नियति को प्राप्त हो जाएगा। दूसरी ओर भारतीय सेना गिलगित-बालटिस्तान सहित संपूर्ण पी.ओ.के.को अपने अधिकार में कर लेगी। इस अवसर का लाभ उठाकर बलूचिस्तान तथा सिंध आजाद हो जाएंगे। यदि बिखराव से बचने के लिए चीन-पाकिस्तान परमाणु हमला करते हैं तो भारतीय प्रतिक्रिया के बाद पाकिस्तान इतिहास बन जाएगा और पश्चिमी चीन नष्ट हो जाएगा। यदि  चीन सियोल तथा टोक्यो पर भी परमाणु हमला करता है तो अमेरिका बीजिंग व अन्य चीनी ठिकानों को नेस्तनाबूत कर सकता है।यदि परमाणु युद्ध हुआ तो संपूर्ण पाकिस्तान , नयी दिल्ली, पश्चिमी चीन, बीजिंग , शंघाई तथा चीन के अन्य सैन्य ठिकाने और सियोल तथा टोक्यो को भारी नुकसान हो सकता है। ऐसी स्थिति में 30 करोड़ लोगों की मृत्यु हो सकती है। यदि परमाणु युद्ध नहीं हुआ तो तीन लाख लोगों की मौत हो सकती है।
भारत यथासंभव रूस, अमेरिका तथा इजरायल से प्राप्त मिसाइल सुरक्षा प्रणाली और अपने द्वारा विकसित सुरक्षा प्रणाली से स्वयं को बचाने का प्रयास करेगा। यदि ऐसा हुआ तो यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा दु:स्वप्न होगा। दूसरी ओर यदि परमाणु युद्ध की नौबत नहीं आयी तो चीन का आर्थिक एवं सैनिक महाशक्ति बनने का सपना सदा-सर्वदा के लिए टूट जाएगा। भारत दस साल पीछे चला जाएगा। पाकिस्तान इतिहास बन जाएगा। भारत की स्थिति सुरक्षित होते ही रूस संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक बुलाएगा जिसमें अमेरिका , फ्रांस तथा ब्रिटेन चीन पर युद्ध शुरू करने का आरोप लगाएंगे। उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाएंगे। चीन और पाकिस्तान से जो देश आजाद होंगे उन्हें मान्यता दी जाएगी। समूचा विश्व भयावह मंदी की चपेट में आ जाएगा। विश्व भर के शेयर बाजार नीचे गिर जाएंगे। सोना आसमान छूने लगेगा । इन देशों की मुद्राएं भी गिर जाएंगी। एक नयी विश्वव्यवस्था  बनेगी जिसमें अमेरिका अकेली विश्व शक्ति के रूप में दुबारा उठेगा । भारत एशिया की सबसे बड़ी ताकत बन जाएगा। संपूर्ण विश्व में एक नए ढंग की अफरा-तफरी मच जाएगी। यह विश्लेषण सम्बद्ध राष्ट्रों की वर्तमान सैन्य शक्ति , युद्ध कौशल और रणनीतिक साझेदारी पर आधारित है। इसके नतीजे में केवल उन्नीस-बीस का ही फर्क आ सकता है। यदि यही हमला रूस से एस-400 मिसाइल प्राप्त  होने के बाद होता है तो भारत नयी दिल्ली को बचाने में सफल हो जाएगा।
                                                                                                                                                                डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय
                                                                                                                                                     ( रक्षा व विदेश मामलों के विशेषज्ञ)

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