हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
इत्ते टेंशन…

इत्ते टेंशन…

by मुकेश जोशी
in जून- सप्ताह तिसरा, ट्रेंडींग, साहित्य
0

“चीनी चपटा नासमिटा कोरोना, अम्पन तूफान, पाकिस्तान से टिड्डियों का आतंकी हमला, ये मजदूर अलग नी मान रिये… उधर अपनी फटी जेब वाले भिया भी नित नई हेयर स्टाइल में टिड्डियों से भी खतरनाक हमला सरकार पर बोलते हैं। अब आप ही बताव कि इत्ते टेंशन में कोई मजे में कैसे रहे?”

अपने सुखराम जी, यथा नाम तथा गुण थे। अभी तीन महीने पहले तक तो, दुनियादारी की चिंताएं, फिक्र उन्हें ज्यादा नहीं सताती थी। अपनी सीमित आमदनी में भी वे अच्छा खा पीकर तशरीफ पर हाथ फेरते हुए खुशहाल जिंदगी बिता रहे थे। न उधो का लेना न माधो का देना। उनके दो बेटे थे अब उनके नाम ‘उधो- माधो’ थे कि नहीं ये नहीं पता, पर उनकी सबसे बड़ी बेफिकरी थी बेटी संतान न होना। अक्सर कहा करते- दोई छोरे हैं कमा खाएंगे,
छोरी है ही नहीं तो काहे की फिकर।

छोरी होती तो उसके बियाव के लिए लड़के वालों की चिरौरी जी, हुजूरी करो उनके नखरे उठाव, क जन कित्ते पापड़ बेलने पड़ते, दिन भर निगरानी अलग करो, कहां कब जा रही, कब कहां से आ रही, कब तक पीछे-पीछे फिरते फिरो भिया। आजकल लडकियां भोत चतरी हो गई हेंगी। अपनी छोरी कितनी भी काबू में रखो, घर परिवार के संस्कार से बंधी, लाख वो सयानी हो पर सहेलियां तो उछाले मारती फिरती हैं न वोई बिगाड़ दें और लड़कियों को बिगाड़ने के लिए तो आवारा छोरों की पूरी फौज दिन भर गली मोहल्ले, कॉलोनी, स्कूल-कॉलेज के बाहर फर्राटे मारती ही रहतीं हैं। भिया क्या बतऊँ, आप तो देख ही रहे हो कि मिडिल स्कूल से ही ये आवारा लौंडे-लपाड़ी अबोध बच्चियों को अवेरने में लग जाते हैं पर अपने को क्या अपन तो छोरी की तरफ से बेफिकर। अपने तो दोई छोरे..समझ में नहीं आता कि वे बेटी न होने से सुखी हैं या दुखी?

तो बेटी न होने और दो छोरे होने से सुखी सुखराम जी बावजूद लॉकडाउन की तमाम बाधाओं को पार करते हुए कहीं कूच करते पाए गए। चेहरे पर जो परमानेंट सुख के भाव हुआ करते थे उनकी जगह माथे पर लटों की बजाय सलवटें लटकती दिखाई दे रहीं थीं। अपन खबरची उनके माथे की शिकन देख ठेठ देसी अंदाज में पूछ बैठे- मजे में तो हो सुखराम जी, कहां निकल लिए 45 डिग्री के तड़के में? सुखरामजी बरसों बाद दुखी होते हुए बोले- क्या ̃ाक
मजे में। आक्खी दुनिया टेंशन में जी रही है, टेंशन से मर रही है और आप पूछ रहे के मजे में। मैं कोई डोनाल्ड ट्रंप हूं जो हजारों की मौत पर भी मजे में दिखूं और चीन को ठोंक डालने की सोचूं और निकला इसलिए कि ढाई महीने हो गए घर में पड़े-पड़े, कचुवा गए यार घर की खाट- खुर्ची तक करान्जने लग गई कि दादा थोड़े तो हलो-चलो ने उप्पर से तुमारी भाभी। वो और ज्यादा कचुवा गई मेरकु बनियान पजामे में देख देख के। आज तो निकल ही ली-
मके वो तुमारे पेंट बुश्शट में फफूंद लगने लगी है कब तक ये छेद वाली बनियान में घर में इ फिरते रोगे..थोड़ा कपड़े झटको और बाहर की हवा खाकर कुछ नई जूनी लेकर आव। दिन भर टीवी में आंखें घुसेड़े रहते हो और तुमारे दोई छोरे मोबाइल में। इन दो महीनो में मैं तो खाली रोटी वाली और काम वाली बाई बनकर रह गई।

बस दिन भर तुम बाप बेटों की फरमाइश पूरी करती रहूँ ऐ.? तो निकला भिया। मैंने मजे लेने के लिए फिर छेड़ा सुखराम जी को कि आपको कायका टेंशन, आपके तो दो छोरे हैं। बोले- येई तो टेंशन है, दोई पड़ेले बैल सरीखे दिन भर खा-खा के पड़े रेते हेंगे भिया। दिन भर मोबाइल ने ये पिच्चर वो सीरिज बस। कमाने खाने की कोई चिंता ही नी.. मुफत की मिले खाने को तो कौन जाय कमाने को। मैंने कहा- अभी इस खतरनाक समय में तो अच्छे अच्छे कमाने वाले बड़े बड़े धन्ना सेठ, हेकड़ी वाले अफसर, सारे कर्मी ही घरों में जमा बैठे हैं तो आपके लड़के क्या कमा लेते? सुखराम जी फिर दुखी होते हुए बोले-भिया पेले काम मिल जाता तो मिल जाता अब तो वो भी मुश्किल। कम्पनियों में छंटनी हो रही है, पगारें कम हो रही हैं। पता नी यार ये ‘सत्यानासी कोरोना’ कब जाएगा यहां से?

मरने वालों की ̃बरें अलग डरा रही हैं। अपन किसी के सुख दु…ख में भी उनके कने नी जा पा रहे। ये चीनी चपटा नासमिटा कोरोना गया भी नहीं कि उधर वो बैंकाक पटाया वाले रंगीन देस से कने कौनसा उम्फुन, इम्फुन, अम्पन तूफान अलग कम्पन ला रहा है। बंगाल उड़ीसा में तो भोत बिगाड़ा करा भिया इसने। अच्छा हुआ इधर नी आया। चलो तूफान नी आया पर तो क्या हुआ वो निसडला निसर्ग आ गया। पाकिस्तान से आई टिड्डियों ने आतंकी हमला कर दिया। वहां के आतंकियों से तो चलो हमारी सेना निबट लेती है, पूरे देश में तब्लिगियों की तरह पसर गई इन टिड्डियों के आतंक से कौन लड़े, आप ही बताव भिया? ये मजदूर अलग नी मान रिये… सबको घर की याद आ गई। इन भोलों को कौन समझाए कि जब मुंबई दिल्ली जैसे बड़े बड़े शहरों में तुमको रोजी रोटी का संकट दिख रहा है तो तुम्हारे गांव में क्या मिल जाएगा? पर राजनीति की भेडचाल वाली गाड़ी में बैठकर राउरकेला पहुंच जाएं। भले ही जाना जरूर है ..उधर अपनी फटी जेब वाले भिया भी नित नई हेयर स्टाइल में टिड्डियों से भी खतरनाक हमला सरकार पर बोलते हैं। अब आप ही बताव कि इत्ते टेंशन में कोई मजे में कैसे रहे? सदा सुखी दिखने वाले सुखरामजी अपने सारे टेंशन मेरे मत्थे मढ़कर बढ़ लिए …

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: breaking newshindi vivekhindi vivek magazinelatest newstrending

मुकेश जोशी

Next Post
सेना ने 5 आतंकियो को मार गिराया, इस साल कुल 100 आतंकियों का हुआ सफाया

सेना ने 5 आतंकियो को मार गिराया, इस साल कुल 100 आतंकियों का हुआ सफाया

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0