कारोबारी जगत को सीधी मदद समय का तकाजा

सरकार को तत्काल ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे कारोबारी को ‘तरल’ धन सीधे व आसानी से उपलब्ध हो, ताकि वह देश को वर्तमान संकट से उबारने में जी-जान लगा दे। इससे सरकार को करों के रूप में राजस्व बढ़कर मिलेगा ही, रोजगार मिलने से लोगों में हताशा भी नहीं आएगी।

कोरोना वायरस के प्रकोप ने भारत जैसे विकासशील राष्ट्रों को जबरदस्त रूप से प्रभावित किया है। समूची दुनिया में काम-धंधे ठप पड़े हैं, क्योंकि सर्वदूर तालाबंदी है, जिसमें लोगों को घरों में ही रहकर इस विनाशकारी वायरस से जूझना है। तालाबंदी खुलने के बाद भी कारोबार पुरानी रफ्तार से दौड़ने में कितना वक्त लगेगा यह केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। भारत में भी जनजीवन सामान्य होने में काफी वक्त लगेगा। जब कारोबारी संस्थान खुलने लगेंगे, तब भी बिना तेज गति की कारोबारी गतिविधियों के अर्थ व्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकती। कारोबारी संस्थानों को बीमार मानकर उपाय नहीं किए गए तो यकीन जानिए, देश की धड़़कन धीमी पड़ जाएगी, जिसका सीधा असर पूरे मुल्क पर होगा। इन्हें ऑक्सीजन दिए बिना इनका चलना-फिरना दूभर होने वाला है। सरकार इससे बेखबर कतई नहीं होगी, फिर भी उसे त्वरित गति से ऐसे उपाय करने होंगे, जिसका सीधा असर दिखे और कारोबार जगत राहत महसूस करे तथा उपभोक्ता भी उससे प्रभावित न हो, बल्कि राहत महससू करे।

कोरोना के मद्देनजर खुदरा दुकानदार, दुकानों, मॉल्स, लघु, मध्यम, बड़े उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक, कर्मचारी, शासकीय-निजी दफ्तरों में काम करने वाले सब घर बैठे हैं। किसी को वेतन मिलेगा, किसी को आधा-अधूरा तो किसी को बतौर कर्ज अग्रिम वेतन मिलेगा तो किसी को वह भी नहीं मिलेगा। सरकार ने ज्यादातर संस्थानों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि वे किसी का वेतन न रोकेंगे न कम करके देंंगे। इसका कितना पालन होगा, यह निश्चित नहीं है। रोज कमाने, खाने वालों की मुसीबत ज्यादा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या काम-धंधे बिना किसी अतिरिक्त मदद के पुराने स्वरूप में लौट पाएंगे?

देश की रीढ़ अर्थ व्यवस्था होती है, जिसका मजबूत होना प्राथमिकता होती है। यह संभव हो पाता है भारत जैसे देश में बेहतर फसलों के साथ व्यापार-उद्योग की गति से। इन दोनों क्षेत्र में मिल रहा रोजगार भी मायने रखता है। वक्त का तकाजा है कि हमेशा कृषि क्षेत्र को कर्ज माफी जैसे उपायों से भरपूर मदद करने वाली सरकार को व्यापार-उद्योगों को फिर से अपनी स्वाभाविक रफ्तार पाने के लिए आगे बढ़कर मदद करना होगा, जिसमें सीधे तौर पर आर्थिक पैकेज से लेकर विभिन्न करों में निश्चित समय तक रियायत, वसूली में नरमी, कर की दरों में कमी जैसे उपाय करने होंगे। प्रकारातंर से यह अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ ही करेगा और सरकार को राजस्व का नुकसान भी नहीं होगा।

भारत के लिए भी यह समय पूरी दुनिया की तरह विकट, विषम परिस्थितियों वाला है, लेकिन यह समय एक अवसर भी है, जब भारत जैसा मुल्क विेश विजेता भले न बन पाए, सक्षम राष्ट्र की स्थिति पा सकता है। वजह है, उसके पास अथाह मानव श्रम का उपलब्ध होना। साथ ही कृषि संपन्नता, कुटीर उद्योग में माल बनाने की अकूत क्षमता, कम लागत और सबसे बड़ी बात कमोबेश कच्चे माल की अपेक्षाकृत सुगम उपलब्धि। ये तत्व हमें सिर उठाकर चलने में सहायक हो सकते हैं। यहां जरूरत सरकार की इच्छाशक्ति और व्यापार-उद्योग के लिए नए सिरे से नीति निर्धारण की है। वह जितनी उदारता बरतेगी, उतने हम इस अंधेरी काली रात से बाहर निकलकर चमकीले सूरज की रोशनी का दीदार कर पायेंगे।

सरकार के पास ऐसे मुश्किल समय के लिए संचित कोष होता है, जिसे वह विवेकपूर्ण तरीके से खर्च कर सकती है। वैसे केंद्र सरकार ने समूचे देश के तमाम वर्ग के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज घोषित किया है। फिर भी कारोबार जगत कुछ सीधी मदद की अपेक्षा कर रहा है। इस क्षेत्र से यह मांग आ रही है कि 50 लाख से सौ करोड़ तक के टर्नओवर वाले उद्योगपतियों को अपने टर्नओवर की 5 प्रतिशत रकम उसे तुरंत, बैंकों के माध्यम से मिल जाए। यह ब्याज मुक्त हो। वह उस धन से वेतन, कच्चा माल एवं कारोबार सम्बंधी जरूरतें पूरी कर सके। इससे बाजार में पैसा घूमने लगेगा, जिससे दूसरे सहायक काम भी चलने लगेेंगे और अंतत: बाजार मे तेजी आएगी। बैंकों से मिला यह धन समय सीमा मेें व्यापारी, संस्थान मालिक वापस करेंगे। वैसे भी बैंकों के पास नोटबंदी के बाद नकदी की बिलकुल कमी नहीं है। जिसे वह गैर उत्पादक कार्यों में जैसे कार, दोपहिया वाहन, व्यक्तिगत कर्ज आदि के लिए देने को हरदम उत्सुक रहती है। कर्ज वापसी की यह समय सीमा अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही हो सकती है।

यह सर्वज्ञात तथ्य है कि सरकार को हर मद में सर्वाधिक कर व्यापारियों-उद्योगपतियों से ही प्राप्त होता है। इस पर हक भले ही पूरे देश का हो, लेकिन यह वक्त है व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने का, जो सरकार के संरक्षण के बिना संभव नहीं है। बिना उसके स्वाभाविक रफ्तार पाने में काफी वक्त लगेगा, जिससे देश सकल विकास दर को प्राप्त करने मेें पिछड़ जाएगा। इस समय देश के उत्पादक वर्ग को भरपूर प्रोत्साहन की जरूरत है, जिससे वह अपनी पूरी क्षमता से काम कर देश को, अपनी इकाई को विषम परिस्थितियों से बाहर निकाल ले। इस समय सरकार से जो भी मदद उसे मिलेगी, उससे भरोसा पैदा होगा कि यदि वह कर के तौर पर देश को अपना अंशदान देता है तो देश भी उसके कठिन समय में आगे बढ़कर उसकी सहायता को तत्पर रहता है।

एक विचार यह भी है कि बड़े कारोबारियों, उद्योगपतियों के द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष में सभी प्रकार के जो कर (खास तौर से जीएसटी, आयकर) अदा किए गए हैं, उसका 25 प्रतिशत उन्हें लौटा दिया जाए, जिसे वह अगले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में वापस कर दे। इस दौरान वह जो व्यापार करेगा, उस पर जो भी कर बनेगा, उसकी अदायगी वह करेगा ही। एक तरह से अपनी अमानत को कुछ दिन वह इस्तेमाल कर सकेगा। इससे भी व्यापारिक माहौल तेजी के साथ अनुकूल बन सकेेंगे।

हर तरह के कारोबारी संस्थानों के कर्ज की जो भी किश्त वसूली जा रही हैं, वे आगे बढ़ाई जा सकती हैं। उसका ब्याज आने वाले वित वर्ष के पहली तिमाही में बैंक वसूल सकती है, बजाए इसके कि उसे मूल धन में जोड़ा जाए। बैंक चाहे तो एफडी मेें जमा धन पर भी तीन से छह माह के लि, ब्याज देना बंद कर दे, जिसे अगले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अदा कर दे। सार रूप में यह कि सरकार को देश की कमजोर होती अर्थ व्यवस्था को सक्षम बनाने के लि, प्रोटीन-विटामिन देने की जरूरत है। सामान्य खुराक उसकी सेहत नहीं सुधार पाएगी। इसके लिए बैंकों व बीमा कंपनियों के पास बिना दावे के जो 32 हजार करोड़ रुपये पड़े हुए हैं, उसका भी उपयोग कर सकते हैं। सरकार इस बारे में 2019 में लोकसभा में बता चुकी है कि बैंकों के पास 14,578 करोड़ व बीमा कंपनियों के पास 17,887 करोड़ रुपये रखे हैं। ये आंकड़ें 2018 के थे याने रकम बढ़ ही चुकी होगी।

इस संबंध में मध्यप्रदेश मिठाई-नमकीन एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास जैन का कहना है कि कारोबारी वर्ग पहली बार अतिरिक्त रियायतों की उम्मीद कर रहा है, क्योंकि हालात भी विशेष हैं। कारोबार को बढ़ावा देने के लिए सरकारें जो बजट प्रावधान करती हैं, वे एक प्रक्रिया का हिस्सा होता है। जबकि यह मौका उसे स्वस्थ, स्वच्छ माहौल प्रदान करने का है, जिसमें वह अपना कारोबारी स्वास्थ्य बेहतर कर सके। उन्होंने कहा कि सरकार के भविष्य निधि खाते में और बैंकों में भी करोड़ों रुपया बिना दावेदारी का पड़ा हुआ है। इसी तरह से राज्य कर्मचारी बीमा निगम के पास भी 84 हजार करोड़ रुपये का संचय है। रिजर्व बैंक के पास संरक्षित सोना है। ये तमाम कोष संकट के वक्त काम में लिए जाने से अंतत: देश के ही काम आएगा। इस संचित कोष का कुछ हिस्सा कारोबारियों को कुछ समय के लिए उपलब्ध कराने से हम बड़ी लड़ाई जीत सकते हैं। वैसे भी यह वह अमानत है, जो सरकार को वापस मिल जाएगी। इस संचित कोष के उपयोग से काम-धंधे तेजी से दौड़ने लगेंगे और सरकार को जीएसटी, आयकर व अन्य करों के रूप में भी राजस्व बढ़कर ही मिलेगा। रोजगार मिलने से लोगों में निराशा, हताशा नहीं आएगी और उत्पादकता बढ़ने से अर्थ व्यवस्था पटरी पर रहेगी। इसलिए सरकार को तत्काल ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे कारोबारी को तरल धन आसानी से उपलब्ध हो, ताकि वह देश को वर्तमान संकट से उबारने में जी-जान लगा दे।

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