विरोधी कौन?

भारतीय सेना द्वारा एनएससीएन-के के उग्रवादियों के खिलाफ की गई छापामार कार्रवाई निम्न तीन गुटों को परेशानी होनी चाहिए-

१. प्रभावित राष्ट
२. अंतरराष्ट्रीय प्रसार-माध्यम
३. भारत के बाहर के राजनीतिक दल

लेकिन जब आप गहराई में जाएंगे तो बड़ा दिलचस्प एवं विपरीत दृश्य आपको दिखाई देगा।

१. म्यांमार ने इसका कोई विरोध नहीं किया, और न ही भारत की पूर्वी सीमा से लगे देशों ने; बल्कि विरोध किया है पाकिस्तान ने। पाकिस्तान ने विरोध इसलिए किया कि उसे भय है कि उनके खिलाफ इस तरह की कार्रवाई हो सकती है। लेकिन यह साफ दिखाई नहीं देता कि पाकिस्तान के इस विरोध को चीन का समर्थन है। जबकि यह खुल कर बोला जा रहा है कि भारतीय सेना पर घात लगाकर हमला करने वाले उग्रवादियों को चीन का समर्थन है। यही नहीं, भारतीय सेना की सफल कार्रवाई से भारत एक फौजी ताकत के रूप में उभरेगा, जो कि एशिया में चीन की स्थिति को सीधी चुनौती देगा।
२. प्रसार-माध्यमों से विरोध दिलचस्प है। याद रहे कि अंतरराष्ट्रीय प्रसार-माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय प्रसार-माध्यम इसका विरोध कर रहे हैं। सभी पाकिस्तान समर्थक प्रसार-घराने एवं पत्रकार इस कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं। इस कार्रवाई पर सवाल उठाने वाले कुछ पत्रकार हैं- सागरिका घोष, निखिल वागले एवं बरखा दत्त। वास्तव में पाकिस्तान ने निखिल वागले, बरखा दत्त एवं एनडीटीवी के बयानों को अपने समर्थन में उद्धरित किया है।

इन लोगों में से कुछ के ट्विट देखिए-

सागरिका घोष ः हे भारत सरकार, अगली बार जब इस तरह की ‘गुप्त’ कार्रवाई करें तब कृपया उसे गुप्त ही रखें। दूसरे देश की प्रभुता को तोड़कर अपनी वाहवाही करना अच्छा नहीं है। शुभरात्रि।
उनका इसके पूर्व का ट्विट देखें-

आज ओसामा, कल मुल्ला ओमर? अमेरिका फिर पाक के सहयोग से या उसके बिना छापामारी कर सकता है।
गुल मोहम्मद गुलः जब भारतीयों को अपनी फौज के बारे में ही संदेह है तो इससे बहुत कुछ समझ में आ जाता है।
निखिल वागलेः मैं भारतीय फौज का सम्मान करता हूूं। लेकिन मेरा पेशा ऐसा है कि परेशानी वाले प्रश्न मुझे पूछने पड़ते हैं। मैं केवल चीयर लीडर नहीं हो सकता।

गुल मोहम्मद गुलः भारत के श्रेष्ठ पत्रकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि भारत मणिपुर में नरसंहार कर रहा है। संदर्भ रोहिंग्या मुस्लिम, मणिपुर हमला।

बरखा दत्तः म्यांमार गुप्त कार्रवाई। विशेष बल ने पूरी कार्रवाई की। म्यांमार ने कोई फौजी या सामरिक सहयोग नहीं किया। उन्हें कार्रवाई शुरू करने के बाद सूचना दी गई।

याद रहे कि हमीद गुल आईएसआई के पूर्व प्रमुख हैं और उनके अल-कायदा एवं तालिबान से सम्पर्क हैं। अमेरिका ने उन्हें आतंकवादियों से जुड़े होने की घोषणा की है।

३. यह भी उल्लेखनीय है कि इस कार्रवाई को लेकर अत्यधिक रोष भारत के बाहर की नहीं, अपितु भारत के भीतर की राजनीतिक पार्टी ने व्यक्त किया है। वह विरोध सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का है। और उसका कारण भी आश्चर्यजनक है। द टेलीग्राफ ने २० फरवरी २००७ को खबर दी थी कि आतंकवादी गुट एनएससीएन-के ने उसे ५ लाख रु. देने के लिए कांग्रेस सरकार के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। उन दिनों नगालैण्ड में कांग्रेस विपक्ष में थी और चुनाव में सहायता के लिए पार्टी ने इस गुट को पैसा दिया था। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस फिर वही खेल खेल रही है। म्यांमार कार्रवाई के बाद सोनिया नेतृत्व वाली कांग्रेस ने भारतीय फौज का मनोबल गिराने के लिए ट्विट किया है, देखें-
कॉंग्रेसः भारतीय विदेश मंत्रालय संदेह के घेरे में। म्यांमार ने उसकी सीमा में आकर भारतीय सेना द्वारा कार्रवाई किए जाने का खंडन किया है।

इकोनॉमिक टाइम्सः म्यांमार ने उसकी सीमा के भीतर आकर भारतीय सेना द्वारा विद्रोहियों के खात्मे का खंडन किया है। म्यांमार ने कहा है कि भारतीय सैनिकों ने अपने देश की सीमा में ही आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की और वह यह सहन नहीं करेगा कि आतंकवादी समूह उसकी भूमि का आतंकवादी कार्रवाई के लिए उपयोग करें।

इसी तरह की प्रतिक्रियाएं पाकिस्तान, भारतीय प्रसार-माध्यम के एक वर्ग एवं सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने तब व्यक्त की थी जब जनवरी २०१५ में भारतीय तट रक्षक दल ने पाकिस्तानी नौका का लगभग एक घंटे तक पीछा किया और संदेहास्पद गतिविधियों के कारण चेतावनी में गोलियां भी दागी थीं। इससे नौका का चालक दल डेक के नीचे चला गया और नौका को आग लगा दी। इस पर सोनिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने कहाः ‘‘सरकार को इस पर सफाई देनी चाहिए। कोई सबूत नहीं है। आप कैसे कह सकते हैं कि आतंकवादी हमला रोका गया? वे (सरकार) इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे कि वह आतंकवादी नौका ही थी? कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया। इसके पीछे कौन सा आतंकवादी संगठन था?

जब आप इस घटना पर समग्रता से विचार करते हैं तो पता चलेगा कि कलई खुल गई है। याद रहे कि कांग्रेस ने ही भिंडरावाले, उल्फा, एलटीटीई जैसे अलगाववादी गुटों को पैदा किया है।

उस राष्ट्र की कल्पना कीजिए जिसके प्रसार-माध्यम एवं राजनीतिक दल अपने ही लोगों को मरवाने के लिए दुश्मन का साथ दे रहे हों।

और यथार्थ यह है कि हम ऐसे ही देश में रह रहे हैं।
आम तौर पर आम आदमी जीने की जद्दोजहद में राष्ट्रीय समस्याओं पर समग्रता से सोच नहीं पाता, और ज्यादातर उसे घटना के सभी पक्षों की जानकारी नहीं होती। और अराष्ट्रीय तत्त्व इस स्थिति का देश को कमजोर बनाने के लिए फायदा उठाते हैं।
ऐसी घटना से सरकार, राष्ट्रवादी प्रसार-माध्यमों एवं नागरिकों को बहुत कुछ सीखना है और उन्हें इसके अनुकूल कदम उठाने हैं।

* सरकार को अराष्ट्रीय तत्त्वों के खिलाफ अविलम्ब व बेहिचक कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। भारतीय पत्रकारों, आईएसआई एजेंटों, एवं कांग्रेस के बीच सांठगांठ का पता लगाया जाना चाहिए।

* राष्ट्रवादी मीडिया को सरकार एवं नागरिकों को अराष्ट्रीय तत्त्वों के खिलाफ कार्रवाई करने की याद दिलाते रहना चाहिए और उनसे सतर्क रहना चाहिए।

* अधिकतम बल नागरिकों पर है। व्यक्ति एवं समूह के रूप में नागरिकों को अराष्ट्रीय तत्त्वों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखना चाहिए। लोकमान्य तिलक ने भारतीयों से कहा था कि ‘‘ब्रिटिशों को रोकने के लिए उनका बहिष्कार करें’’; अब समय है कि ‘‘अराष्ट्रीय संस्थाओं एवं व्यक्तियों को रोकने के लिए उनका बहिष्कार करे।’’
फौज की कार्रवाई तभी फलप्रद होगी जब उससे सरकार एवं प्रसार-माध्यम पाठ सीखेंगे और अपनी भूमिका अदा करेंगे। संक्षेप में, सब कुछ हम भारतीय नागरिकों पर निर्भर है। नागरिकों की उपेक्षा के कारण हम अब तक काफी सह चुके हैं। अब समय इसे रोकने का है।

Leave a Reply