आतंकवाद इस्लामी संगठनों के कारण

बोको हरम के आतंकवादियों ने नाइजीरिया के उत्तर-पूर्व के शहर बागा पर बड़ा हमला कर सैन्य अड्डे को लूट लिया। पूरे शहर में आग लगा दी। सड़कों और गलियों को लाशों से पाट दिया। शहर के एक अधिकारी मूसा अलहाजी बकर ने बताया कि बोको हरम के नए हमले में करीब २,००० से अधिक लोग मारे गए हैं। हमले के बाद भागते हुए लोगों ने बताया कि शहर की १० हजार की आबादी तबाह हो गई।
कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के पेशावर में पाकिस्तान तालिबान के आतंकवादियों ने एक स्कूल पर हमला कर १४० छात्रों की हत्या कर दी।
२० मार्च को आईएसआईएस ने यमन में दो मस्जिदों पर हमले कराए जिनमें १५३ शिया मारे गए और २६० घायल हुए।
सोमालिया के खूंख्वार आंतकवादी संगठन अल शबाब के आतंकियों ने ग्रेनेड और स्वचालित हथियारों से गैरीसा यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में सो रहे छात्रों पर हमला बोल दिया। हमलावरों की अंधाधुंध गोलीबारी में १४७ छात्र मारे गए और ७९ से ज्यादा घायल हुए हैं। चश्मदीदों का कहना है कि चरमपंथियों ने ईसाई छात्रों को अलग खड़ा कर गोलियों का निशाना बनाया।

हर सुबह आनेवाला आखबार आतंकवादी हिंसा के बारे में कोई बुरी खबर लेकर आता है। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता है जिस दिन दुनिया के किसी न किसी हिस्से में किसी न किसी आतंकी वारदात में लोगों की बलि न चढ़ती हो। दरअसल आतंकवाद युद्ध का एक नया रूप हो गया है जो किसी सीमा को नहीं मानता और जिसका कोई स्पष्ट चेहरा भी नहीं होता।यह आतंकवाद आधुनिक तकनीक के साथ जुड़कर दुनिया में कहर बरपा कर रहा है। कुछ आतंकवादी किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर आत्मघाती हमला करते हैं और सैंकड़ों लोग मारे जाते हैं। इससे बुरी बात यह है कि मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की- कुछ ऐसा ही हुआ है आतंकवाद के साथ। भारत जैसे देश तो लंबे समय से आतंकवाद को झेलते रहे हैं लेकिन विकसित देशों ने कभी सुध नहीं ली। लेकिन ११ सितंबर के न्यूयार्क हमले के बाद पश्चिमी देश आतंकवाद के खतरे के प्रति सचेत हुए्। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने आतंक के खिलाफ जंग का ऐलान किया, इराक और अफगानिस्तान पर सैनिक आक्रमण किए, पाकिस्तान और कुछ अन्य देशों पर ड्रोन से बमबारी हुई, ४.३ ट्रीलियन डालर फूंक दिए लेकिन आतंकवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है, उसने वैश्विक रूप ले लिया है। कुछ देशों के अस्तित्व और शांति व्यवस्था के लिए आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बन गया है। उसका शिकार बनने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। विश्व के प्रतिष्ठित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस ने अपनी ने २०१४ की रपट में कहा है कि वर्ष २००० के बाद आतंकवाद से हुई मौतों में पांच गुना वृद्धि हुई है। वर्ष २००० में दुनिया में आतंकवाद से ३३६१ मौतें हुईं थीं जबकि २०१३ में यह आंकड़ा बढकर १७९५८ हो गया। यह इस बात का संकेत है कि मर्ज पर दवा काम नहीं कर रही। घाव अब नासूर बन चुका है।

रपट के मुताबिक आतंकवाद एक तरफ कुछ देशों में केंद्रित है दूसरी तरफ दुनियाभर के कई मुल्कों में फैला हुआ है। एक तल्ख हकीकत यह है कि २०१३ में ८० फीसदी आतंकवादी घटनाएं केवल पांच देशों इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में हुई हैं। दूसरी तरफ ५५ देश ऐसे हैं जहां आतंकवाद से एक या दो मौतें हुई हैं। २०१३ में हुई मौतों में से ६६ प्रतिशत चार आतंकवादी संगठनों आईएसआईएस, बोको हराम, तालिबान, और अल कायदा के कारण हुईं। ये सभी संगठन वहाबी इस्लाम के कट्टर समर्थक हैं। लेकिन इस्लामी आतंकवादी संगठन केवल यही चार नहीं हैं। इस्लामी आतंकवादी संगठनों की तो बाढ़ आ हुई है। ड़ेढ सौ से दो सौ के बीच आतंकवादी संगठन हो सकते हैं दुनियाभर में। यदि उनकी वारदातों को भी जोड़ लिया जाए तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस समय दुनिया में इस्लामी आतंकवादी संगठनों की बाढ़ सी आ हुई है। लगभग ८० से ८५ प्रतिशत आतंकी वारदातें इस्लामी संगठनों की तरफ से हो रही है। इस तरह दुनिया में इस्लामी आतंकवाद सबसे ज्यादा ताकतवर बनकर उभरा है। यूं तो दुनिया में कुछ ईसाई और यहूदी आतंकी संगठन हैं लेकिन उनका प्रभाव और ताकत बहुत कम है इसलिए उनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती।

रपट के मुताबिक आतंकवाद केवल तेजी से बढ़ा ही नहीं है वरन उसमें गुणात्मक या चरित्रगत परिवर्तन भी आया है। वर्ष २००० से पहले मुख्य रूप से माओवाद जैसा राजनीतिक या आयरलैंड रिवोल्यूशनरी पार्टी जैसा उपराष्ट्रीयताओं से प्रेरित या नस्लीय या जातीय आतंकवाद था लेकिन अलकायदा द्वारा न्यूयार्क पर किए ११ सितंबर के हमले के बाद से धर्म से प्रेरित आतंकवाद में नाटकीय तरीके से वृध्दि हुई। यह गुणात्मक परिवर्तन इस्लामी आतंकवाद के बड़े पैमाने पर उभरने से हुआ है।
इस रपट में आतंकवाद सूचकांक तैयार करने की भी कोशिश की गई है। इसके मुताबिक विश्व में आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रताड़ित पहले दस देश हैं -इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजेरिया, सीरिया, भारत, सोमालिया, यमन, फिलीपीन और थाईलैंड। उनमें से सीरिया को छोड़ कर सभी पिछले पंद्रह वर्षों से आतंकवादी हमलों का शिकार होते रहे हैं। इनमें से पहले पांच देशों में २०१३ में आतंकवाद से हुई कुल मौतों में से ८० प्रतिशत मौतें हुई हैं। सबसे ज्यादा यानी ३५ प्रतिशत मौते हुई हैं इराक में। पिछले दस वर्षोमें से नौ वर्षों में सबसे ज्यादा मौतें भी वहीं हुई हैं। केवल अपवाद रहा २०१२ जब अफगानिस्तान में इराक से ३०० से ज्यादा मौतें हुईं। आतंकवाद से हुई मौतों में सबसे ज्यादा इजाफा सीरिया में हुआ है। १९९८ से २०१० तक सीरिया में आतंकवाद से कुल २७ मौतें हुईं थी लेकिन २०१३ में १००० मौतें हुईं।

वर्ष २०१३ के सबसे दुर्दांत चार आततंकवादी संगठनों अलकायदा, आईएसआईएस, तालिबान और बोको हरम में सबसे खतरनाक संगठन रहा तालिबान है जो पिछले २५ वर्षों से सक्रिय है और पिछले एक दशक में २५००० लोगों की हत्या कर चुका है। तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक कट्टरतावादी आंदोलन है जो अफगानिस्तान को पाषाण युग में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इन दिनों इसे पिछड़ेपन और क्रूरता का पर्याय माना जाता है। लोग भले ही उसकी आलोचना करें लेकिन उसके नेताओं का कहना है कि वह इस्लाम को उसके मूल रूप में या पहली पीढ़ी के इस्लाम को स्थापित करना चाहते हैं।

इसके बाद अल कायदा का नंबर है जो सबसे चर्चित और वैश्विक आतंकवादी संगठन है। विश्व के कई इस्लामी संगठन उसके साथ जुडे हुए हैं। बाकी दो संगठन बोको हरम और आईएसआईएस नए हैं। २००९ से सक्रिय हुए हैं। आईएसआईएस इन दिनों सारी दुनिया में पहला ऐसा आतंकवादी संगठन है जो अपने लिए अलग राष्ट्र स्थापित करने में कामयाब रहा है। इस कारण दुनिया के इस्लामी आतंकवादी संगठनों में उसका दबदबा बढ़ता जा रहा है और वह अल कायदा से होड़ करने लगा है।
इनके अलावा भी कई इस्लामी आतंकवादी संगठन कार्यरत हैं। आतंकवाद के शिकार देशों में सातवें नंबर पर सोमालिया है, जहां अल शबाब नामक आतंकी संगठन बड़े स्तर पर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहा है। उसने २०१३ वर्ष में ४०५ हत्याओं को अंजाम दिया। यह संगठन केन्या में भी सक्रिय है। आठवें नंबर पर आता है यमन। यहां शिया आतंकी नेता हौथी के समर्थक आतंकवादी सक्रिय थे। अब उन्होंने तख्ता पलटकर सत्ता पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद फिलीपीन और थाईलैंड का नंबर आता है।

जो १० देश आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रताड़ित हैं उनमें से छह देश इस्लामी हैं और जो चार गैर इस्लामी देश हैं वो हैं नाइजीरिया भारत, फिलीपीन, थाईलैंड। इनमें से नाइजीरिया, भारत और फिलीपीन में इस्लामी आतंकवाद काफी ताकतवर है। नाइजीरिया में तो बोको हरम जैसा खूंख्वार इस्लामी आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं जो अब तक हजारों लोगों की हत्या कर चुका है। इस्लामी आतंकवाद में शिया,सुन्नी और वहाबी सुन्नी हर तरह का आतंकवाद है। इराक में तो एक सूफी आतंकवादी संगठन है जिसका नाम नक्शबंदी आर्मी है जिसे सद्दाम के समर्थकों ने बनाया है। पाकिस्तान और इराक में शिया और सुन्नी दोनों ही प्रकार के आतंकी संगठन हैं। आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में भारत छठे नंबर पर है। भारत में २०१२ और २०१३ के बीच आतंकवाद में ७० प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे मरने वालों की संख्या २३८ से बढ़ कर ४०४ हो गई। भारत में वामपंथी उग्रवाद सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है क्योंकि आधी हत्याएं यानी १९२ वामपंथी आतंकवादियों के तीन संगठनों द्वारा की गईं। ये हमले ज्यादातर बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड में हुए। तीन इस्लामी संगठन १५ प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार रहे। इनमें से ज्यादातर हमले कश्मीर या हैदराबाद में हुए। उत्तर पूर्वी राज्यों के अलगाववादी संगठन १५ प्रतिशत मौतों का कारण बने।

आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान का रवैया बहुत दोहरा है। आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद वह एक तरफ वह पाकिस्तान के तालिबान के सफाए का अभियान भी चलाए हुए है और दूसरी तरफ सईद हाफिज के आतंकवादी संगठन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल भी कर रहा है। वैसे पाकिस्तान मिसाल है इस बात की कि आतंकवाद के शेर की सवारी करने का क्या हश्र होता है। वैसे उल्लेखनीय बात यह है कुवैत, क्वाकर और संयुक्त अमीरात जैसे इस्लामी देश भी दूसरी तरफ है जहां आतंकवाद नहीं है जो शांति के साथ गुजर बसर कर रहे हैं।

आतंकवाद के जानकारों का मत है कि इस सदी में धर्म पर आधारित आतंकवाद के तेजी से उभरने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इस्लामी आतंकवाद एशिया और अफ्रीका में बेहद ताकतवर बन कर उभरा है। ८० प्रतिशत से ज्यादा आतंकवाद इस्लामी संगठनों के कारण है। इसलिए कई राजनीतिक चिंतक यह कहते हैं कि इस्लाम के सिद्धांत आतंकवाद को बढ़ावा देनेवाले हैं। इस्लाम और आतंकवाद का चोली दामन का साथ है। हालांकि इस्लाम के किसी ग्रंथ में आतंकवाद का समर्थन नहीं किया गया है मगर काफिरों से संघर्ष करने की बात १०० से ज्यादा जगह कही गई है जो आतंकवाद को प्रेरित करती है। इसके अलावा इस्लाम का वर्चस्व कायम कर दारूल इस्लाम बनाने की बात कही गई है। बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यही सोच इस्लामी आतंकवाद का कारण बनती है। वे मदरसे भी आतंकवादियों की जन्मस्थली बनते हैं जहां असहिष्णुता की शिक्षा देने वाले धार्मिक ग्रंथ ही पढ़ाए जाते हैं। इस्लाम का वर्चस्व कायम करने की बात करने वाले विश्व के सबसे ताकतवर इस्लामी आतंकवाद की दारूण त्रासदी यह है कि आतंकवादी वारदात करने वाले भी मुस्लिम होते हैं और उसके सबसे ज्यादा शिकार भी मुस्लिम ही होते हैं। इससे इन दिनों काफिर कम और मुसलमान ही ज्यादा मर रहे हैं। विकसित देशों में तो आतंकवाद के शिकार होनेवालों में से पांच प्रतिशत ही है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जो आतंकवादी वारदातें होती हैं उनमें ज्यादातर मुस्लिम ही मरते हैं्। इराक में अल कायदा सुन्नी आतंकवाद का पर्याय बन गया है और उसने शियाओं का ही बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया। इराक में तो शिया और सुन्नी आतंकवादी संगठन एक दूसरे को अपनी आतंकवादी वारदातों का निशाना बनाते रहे हैं। इराक, लेबनान और पाकिस्तान जैसे देशों में तो शिया आतंकवादी संगठन भी हैं।।ये सुन्नी मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन इसमें मरता तो मुसलमान ही हैं। इसके अलावा ज्यादातर इस्लामी आतंकी संगठन उन मस्लिमों को भी निशाना बनाते हैं जिनके बारे में उनका खयाल है की वे इस्लाम के रास्ते पर नहीं चल रहे। इसलिए तालिबान और बोको हरम का निशाना वो मुस्लिम बन रहे हैं जिन्हें वे पथभ्रष्ट मुस्लिम मानते हैं। नाइजरिया का इस्लामी आतंकवादी संगठन बोको हरम देश से मौजूदा सरकार का तख़्तापलट करना चाहता है और उसे एक पूरी तरह इस्लामिक देश में तब्दील करना चाहता है। कहा जाता है कि बोको हरम के समर्थक कुरान की शब्दावली से प्रभावित हैं कि जो भी अल्लाह की कही गई बातों पर अमल नहीं करता है वो पापी है। बोको हरम इस्लाम के उस संस्करण को प्रचलित करता है जिसमें मुसलमानों को पश्चिमी समाज से संबंध रखने वाली किसी भी राजनीतिक या सामाजिक गतिविधि में भाग लेने से वर्जित किया जाता है। इसमें चुनाव के दौरान मतदान में शामिल होना, टी शर्ट, पैंट पहनना और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा लेना शामिल है। अपनी सनसनीखेज आतंकवादी गतिविधियों के कारण आजकल यह संगठन चर्चा में है। कुछ समय पहले उसने दो सौ लड़कियों का अपहरण कर लिया था जिन्हें आज तक रिहा नहीं किया है।

दरअसल पिछले कुछ वर्षों में दुनिया में इस्लामी आतंकवादी संगठनों की बाढ़ आई हुई है। लगभग डेढ सौ से दो सौ के बीच इस्लामी आतंकी संगठन हो गए हैं। पिछले दिनों संयुक्त अरब अमीरात ने ८३ इस्लामी आतंकी संगठनों की सूची जारी की थी।

इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस की रपट के कुछ निष्कर्ष काफी चौंकाने वाले हैं कि पिछले ४५ वर्षों में कई आतंकवादी संगठन खत्म हो गए। उनमें से केवल १० प्रतिशत ही विजयी हुए जिन्होंने सत्ता हासिल की और अपनी आतंकवादी इकाइयों को विसर्जित कर दिया। केवल सात प्रतिशत ही ऐसे रहे जिन्हें सीधे सैनिक कार्रवाई से खत्म किया जा सका। उनमें से ८० प्रतिशत आतंकवाद को बेहतर पुलिसिंग और जिन मांगों को लेकर ये संगठन उभरे थे उन मांगों का राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा समाधान करके खत्म कर दिया गया। रपट का निष्कर्ष है कि आप गरीबी खत्म करके और शिक्षा को बढ़ावा देकर आतंकवाद को खत्म नहीं कर सकते। उनका आतंकवाद से कोई लेनादेना ही नहीं है। आपको उन राजनीतिक, धार्मिक और एथेनिक शिकायतों का समाधान करना होगा जो आतंकवाद के लिए कारणीभूत हैं।
मो. : ९८१८४३७८७४

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