ओसामा के खात्मे के बाद

1 मई 2011 यह दिन भी 9/11 या 26/11 जैसा सब के ध्यान में रहने वाला साबित होगा। वैसे वह पहले भी था ही। उस दिन रूस में साम्यवादी क्रांति होकर जारशाही नष्ट हो गई थी और मजदूरों के नेता कहे जाने वाले (जो पहले क्रांतिकारियों के नेता और बाद में क्रूर कर्मा साबित हुए) लेनिन, स्तालिन आदि का राज आया। महाराष्ट्र का मंगल कलश भी राज्य के निर्मिति के अवसर पर लाया गया। लेकिन, अब 1 मई ध्यान में रहेगा अमेरिका की लादेन के खिलाफ कार्रवाई के कारण, क्योंकि उसी दिन इक्कीसवीं सदी के इस सब से बड़े आतंकवादी को मार गिराया गया और समुंदर की तलहटी में उसे हमेशा के लिए बिदा कर दिया।

कुछ वर्ष पूर्व सद्दाम हुसैन को पकड़ कर अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलवाया और उसे दोषी करार देकर इराकियों के ही हाथों उसे फांसी दिलवाई। उसका नतीजा उलटा ही निकला। सद्दाम को अपने किए पर कोई पछतावा तो हुआ नहीं, लेकिन अदालत में उसके उद्दण्ड बर्ताव से कई मुसलमानों में अमेरिका विरोधी भावना जगी। उसने अदालत की अवमानना तो की ही, उसकी खिल्ली भी उड़ाई। उसे पता था कि उसे फांसी दी जाएगी या उसकी हत्या कर दी जाएगी। बाद में टेप भी प्रसारित हुई, जिसमें उसे फांसी के फंदे पर पहुंचते समय ‘अल्ला हू अकबर’ (अल्ला ही सर्वश्रेष्ठ है) का नारा लगाते हुए दिखाया गया है। इससे भी आम मुस्लिमों के बीच अमेरिका और यूरोप के प्रति विरोध की भावना को हवा मिली। इससे अमेरिका अर्थात नए राष्ट्रपति ने सीख ली और शुक्रवार 29 अप्रैल को ओबामा ने ओसामा का खात्मा करने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर आगामी संभाव्य भ्रम टाल दिया।

अब नई नई खबरें आ रही हैं और कहा जा रहा है कि ओसामा के घर में अमेरिकी सैनिकों को किसी प्रतिकार का सामना करना ही नहीं पड़ा। बहुत ज्यादा हथियार या सुरक्षा दल भी उसके पास नहीं था। ओसामा ने घर की महिलाओं की आड़ में अपने को बचाने का प्रयास किया होगा। वहां उतरे अमेरिकी सैनिकों ने गोलियां दाग कर उसे वहीं खत्म कर दिया। उसकी सब से युवा यमनी पत्नी के पैर में गोली लगी। ओबामा के दस‡बारह पुत्र भी वहां रहे होंगे। ओसामा की एक किशोरवयीन पुत्री के अनुसार अमेरिकी सैनिकों ने बेड़रूम में छिपने की कोशिश कर रहे ओसामा के माथे पर गोलियां दाग कर उसे वहीं ढेर कर दिया। अमेरिका ने दावा किया है कि ओसामा की शिनाख्त के लिए उसके डीएनए की भी जांच कर ली गई।
इस्लाम में मृत व्यक्ति का दफन कर उसका शव दुनिया के अंत तक वैसा ही रखने की धार्मिक परम्परा है। जिस दिन दुनिया नष्ट होगी उस दिन सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामने उसका निर्णय होगा कि उसे जन्नत दी जाए या दोजख और इसलिए शरीर जरूरी होगा। इस मान्यता के कारण शव दफन किया जाता है।

सद्दाम के शव के दफन के बाद अब वहां लोगों के दर्शन के लिए आने की खबरें हैं। हमारे यहां भी अफजलखान की कब्र पर चादर चढाने और मन्नत मांगने की बातें होती ही है। ये कब्रें बाद में शाही इंतजाम की तरह सुरक्षित रखी जाती हैं। ओसामा के बारे में ऐसा न हो इसलिए अमेरिका ने कुछ घंटों में ही उसका शव अरब सागर की तलहटी में छोड़ दिया। इससे उसके नाम से कोई निश्चित स्थल नहीं होगा और उसे हुतात्मा नहीं बनाया जा सकेगा। यह पाठ अमेरिका के फौजी प्रशासन को सीखना पड़ा।

ओसामा के प्रति न केवल सहानुभूति रखने वाले अपितु उसे अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र के खिलाफ जेहाद पुकारने वाले और इतने वर्षों तक पश्चिमी राष्ट्रों से बच कर जिहादी कार्रवाई करने वाले ‘गाजी’ धर्मयोध्दा का दर्जा देने वाले लोग पाकिस्तान व भारत में भी हैं। ओसामा जहां पांच वर्ष तक रहा उस स्थान, वह जहां मारा गया वह कमरा‡ तीर्थस्थल बनाने का काम पाकिस्तान का गुप्तचर संगठन आईएसआई कर ही देगा। शायद इसीलिए अमेरिका की मांग है कि उस बंगले को पाकिस्तान पूरी तरह ढहा दे और वहां का सब कुछ नष्ट कर दे ताकि कोई सबूत न बचे।
पिछले पांच वर्षों से पाकिस्तानी फौजी प्रशिक्षण केंद्र के करीब ही ओसामा आराम से रह रहा था। वह विशाल बंगला, उसका विस्तृत परिसर, उसके चारों ओर 12 से 18 फुट ऊंची चहारदीवारी आदि बनाते समय उसकी जानकारी क्या पाकिस्तानी गुप्तचर संगठन को नहीं थी? यह असंभव ही है। उस हवेली में बाद में ओसामा का परिवार रहने आया। उसका परिवार 25‡30 लोगों का बड़ा कुनबा था। उसके बच्चे, उसकी औरतों, वहां आने‡जाने वाले लोगों पर आईएसआई की नजर नहीं होगी, यह कहना शुध्द मूर्खता ही होगी और अब यह कहना होगा कि यह मूर्खता पिछले 3‡4 वर्षों से अमेरिकी प्रशासन कर रहा था।

अफगानिस्तान में पकड़े गए कुछ कैदियों से जो जानकारी मिली थी उससे अमेरिका को पता चल गया था कि ओसामा पाकिस्तान में ही छिपा हुआ है। चूंकि अल कायदा के कुछ आतंकवादी भीड़भाड़ वाले आबादी इलाकों से पकड़े गए थे इसलिए ओसामा भी ऐसे ही किसी इलाके में छिपा होगा, यह अमेरिकी गुप्तचर विभाग का अनुमान हो सकता है, इसे नकारा नहीं जा सकता। इस दौरान आईएसआई ने अमेरिकी गुप्तचर विभाग और प्रशासन को आसानी से बेवकूफ बनाया। ओसामा वजिरीस्तान की किसी गुफा में छिपा है, उस पहाड़ी व दुर्गम इलाके से उसे खोजना मुश्किल है इसलिए व्यापक पैमाने पर खोज अभियान चलाया गया। एक‡दो बार नागरिक इलाकों पर भी द्रोन से हमला किया गया और उन मकानों को नष्ट कर दिया गया। उस समय निर्दोष नागरिकों के मारे जाने और ओसामा के खिसक जाने की खबरें ही आती रहीं। लोगों में यह दृश्य उपस्थित किया जाता रहा कि अमेरिका ने पाकिस्तानी फौजों की जानकारी में कार्रवाई की, लेकिन आईएसआई में ओबामा समर्थक तत्वों ने उसे पहले ही खबर कर दी और भागने में मदद की। असल में ओसामा तो पाकिस्तानी फौज की सुरक्षा में ही अबोटाबाद में आलीशान बंगले में आराम से रह रहा था। ओसामा इतना होशियार अवश्य था कि दरवाजे पर हथियारबंद पहरेदार रखने से आसपास के लोगों की नजर उस ओर जाएगी। अमेरिका के गुप्तचर विभाग को दो‡तीन वर्ष पहले ही पता चल गया था कि ओसामा पाकिस्तान में ही है, बाहर की दुनिया से उसका सम्पर्क एक कूरियर के माध्यम से होता है, उसका नाम अल‡कुवैती है आदि। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि ओसामा के कुछ करीबी लोग अमेरिका के हाथ लगे थे, लेकिन उनसे कोई जानकारी उगलवाना संभव नहीं हो सका। उसके बाद ओसामा पर धावा बोलने का अभ्यास नौसेना की टुकड़ी ने स्वयं व्हाइट हाऊस में ही किया। सैनिक व्हाइट हाऊस के मैदान से हेलिकॉप्टर से उड़ कर इमारत के छज्जे पर उतरे। फौजी कार्रवाई के पूर्व ओबामा ने ओसामा को खत्म करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए। तब तक पाकिस्तान का यह दावा चलने दिया कि वह आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में अग्रसर है और उसे अरबों डॉलर की सहायता भी दी। सांप को जहर पिलाने का काम अमेरिका करता रहा। ओसामा के पाकिस्तान में होने की बात 2007 में अमेरिका को पता चल गई थी, फिर भी 2011 तक पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद देने और फौजी कार्रवाइयों में अपने ही नहीं यूरोपीय देशों के सैनिकों की जान भी दांव पर लगाने की मूर्खता अमेरिका ने की है।

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री गिलानी ने अपनी फ्रांस यात्रा के दौरान बड़ा मनोरंजक बयान दिया, ‘ओसामा का पता लगाने में यदि पाकिस्तानी गुप्तचर विभाग विफल रहा होगा तो यह विफलता केवल पाकिस्तान की ही नहीं सारी दुनिया की है, क्योंकि कई देशों के गुप्तचर उसके पीछे लगे थे।’ इसे मुंहजोरी के सिवा और क्या कहेंगे? उसे आईएसआई ने ही छिपा कर रखा था, अन्य राष्ट्रों के गुप्तचरों व्दारा उसे खोज न पाना, या उसमें देर होना इसमें उनकी विफलता है इससे कौन इनकार करेगा?

वास्तव में अमेरिका और अफगानिस्तान में युध्द के लिए अपनी फौज देने वाले इंग्लैण्ड, फ्रांस जैसे देशों के गुप्तचर सालों तक ओसामा को खोज नहीं पाए। ये देश पाकिस्तान को मदद न देने के लिए अमेरिका को रोकने में भी विफल रहे। स्थिति का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान भी उनसे आर्थिक सहायता लेता रहा। अब पाकिस्तान की दोमुंही नीति खुल कर सामने आ जाने से उसे सहायता देने का अमेरिकी सीनेट में विरोध होता रहेगा। ऐसा लगता है कि अमेरिकी जनमत का ध्यान में रखते हुए अमेरिका को पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देने की अपनी नीति में सुधार करना होगा।

ओसामा के खात्मे की मुहिम पिछले कई महीनों से चल रही होगी। लेकिन, ब्रिटेन के शाही विवाह की बयारें पश्चिमी टीवी पर चल रही थीं, उस समय यदि कार्रवाई होती तो शायद दिक्कत होती। इसी कारण शायद ओबामा ने ‘घर की शादी’ निपटने का इंतजार किया। लेकिन, इसी दौरान, ओबामा का जन्म हवाई में होने का प्रमाणपत्र प्रसारित हो गया। अमेरिका में जन्म पाने वाला ही राष्ट्रपति हो सकता है, इसलिए ओबामा के इस्तीफे की मांग उठने लगी। यदि यह मांग जोर पकड़ लेती तो ओबामा को अमेरिकी जनमानस में धूमिल होती अपनी छवि को सुधारने में दिक्कत होती और नए विवाद का सामना करना पड़ता। इसे देखते हुए शाही विवाह निपटते ही मुहिम की अनुमति दे दी गई और ओसामा के खात्मे का श्रेय ओबामा को मिल गया। इससे ओबामा की लोकप्रियता 10‡12 फीसदी बढ़ गई है। जन्म प्रमाणपत्र का विवाद ठण्डा पड़ गया, यह मात्र संयोग नहीं है। यह ध्यान में रखना होगा कि इसके पीछे राजनीतिक गणित है।

ओसामा के मर जाने से आतंकवादी कार्रवाइयां थम जाएंगी, यह मानना निरा भोलापन ही होगा। पाकिस्तान में वह आराम से रह सकता था। अरब होकर भी किसी अरब देश में रहना उसने पसंद नहीं किया और पाकिस्तान में रहना ही उसे सुरक्षित व सुविधाजनक लगा। उसने आईएसआई का पूरा समर्थन पा लिया था। उसके मारे जाने के बाद पाकिस्तान में कुछ गुटों ने सामूहिक दु:ख प्रदर्शन किया, जो पाकिस्तान के मुसलमानों की गुलामी वृत्ति का ही परिचायक है। आपस में झगड़ने वाले शिया‡सुन्नी, अहमदिया विवाद में अपने ही लोगों की बलि लेने वाले पाकिस्तानी, ओसामा का पूरी तरह से बचाव कर रहे थे। वह केवल अरब था इसलिए उनकी राय में वह ‘धर्मयोध्दा’ बन गया था। अब तक पकड़े गए अल‡कायदा के पहले दर्जे के आतंकवादियों में एक भी पाकिस्तानी नहीं है। वे या तो पश्चिम एशिया के हैं या एकाध‡दो इंडोनेशिया के हैं। ओसामा ने पाकिस्तानियों को करीब नहीं आने दिया यह वास्तविकता है। पाकिस्तान में जो आतंकवादी शिविर लगाए गए उनमें मात्र अफगानी व पाकिस्तानी युवकों की भरमार है। उन्हें सालोसाल आतंकवादी कार्रवाइयों का प्रशिक्षण दिया गया। उनके मन में अमेरिकी और हिन्दुस्तानी काफिरों के खिलाफ व्देष का गहरा बीजारोपण किया गया। ऐसे हजारों युवकों ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और कश्मीर की सीमाओं पर कड़ाई बरतते ही पाकिस्तान में ही आतंकवादी गतिविधियां शुरू कर दीं। पिछले दो‡तीन वर्षों से पाकिस्तान में हो रही आतंकवादी गतिविधियों का कारण भी यही है। अमेरिका ने सोवियत संघ के खिलाफ ओसामा को पालपोस कर खड़ा किया, लेकिन सोवियत फौज अफगानिस्तान से लौटते ही यह भस्मासुर उसी पर उलट गया। वही बात अब पाकिस्तान के साथ हो रही है। पाकिस्तानी प्रधान मंत्री युसूफ गिलानी ने जानकारी दी है कि आतंकवादी प्रशिक्षण पाए युवकों ने अब तक कोई 13 हजार निर्दोष नागरिकों की हत्या की है। और, अब तो 12-13 वर्ष के लड़के भी उसमें शामिल हो रहे हैं। अत: ओसामा मरने से आतंकवाद रुक जाएगा, यह कदापि माना नहीं जा सकता।

दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि आतंकवादी संगठनों को मिलने वाली आर्थिक मदद कम होते नहीं दिखाई दे रही है। जिस तरह फौज आर्थिक समर्थन पर चलती है, वैसे ही प्रशिक्षण केेंद्र भी धन के प्रवाह पर चलते हैं। जो आत्मघात के लिए तैयार होते हैं उनके परिवार को भी आर्थिक लाभ होता है। ओसामा अबोटाबाद की हवेली में रह कर अल‡कुवैती के माध्यम से इतने धन की व्यवस्था करता था, यह मानने का ेकोई कारण नहीं है। इसका मतलब यह कि धन की व्यवस्था बाहर से होती थी। आतंकवादियों को अफगानिस्तान की अफीम की तस्करी से जिस तरह धन आता है, वैसे ही विदेशों से और अल‡कायदा से सहानुभूति रखने वाले लोगों व संस्थाओं से आता है। यह खुला सत्य है कि अफीम के कारोबार, बाहर से आने वाले धन व हथियारों के कारोबार में पाकिस्तानी फौजी अधिकारी और आईएसआई अधिकारी शामिल होते हैं। इस तरह के अपराधी प्रवृत्ति वाले लोगों के जरिए अमेरिका पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद देता है। ओसामा भले खत्म हुआ हो, लेकिन जब तक आतंकवादी संगठनों की आर्थिक नकेल नहीं कसी जाती तब तक उनकी गतिविधियां रुकने की संभावना कम ही है। उसमें तात्कालिक धीमापन आ सकता है, जिसका कारण ओसामा के स्थान को पाने के लिए संगठन में होने वाली आपसी मारकाट है। गतिविधियों में रुकावट अमेरिका आदि के दबाव से नहीं होगी। वह मुस्लिम आतंकवादी दुनिया का स्थायीभाव है। जो आतंकवादियों से सहमत नहीं वह काफिर और इसीलिए उसका खात्मा अवश्यंभावी है, यह उनकी धारणा जब तक है तब तक ऐसा ही चलेगा।

यहां उल्लेख करना जरूरी है कि ओसामा के बदन पर 500 यूरो की मुद्रा मिली। इसका अर्थ यह कि आतंकवादियों को डॉलर की अपेक्षा यूरो अधिक महत्वपूर्ण लगता है। अत: अमेरिका और यूरोपीय देश जब तक इन संगठनों की आर्थिक नकेल नहीं कसते तब तक आतंकवादी कार्रवाइयां नहीं रुकेगीं। ओबामा अब अफगानिस्तान से अपनी फौज हटा कर अगले वर्ष चुनाव का सामना करेंगे। इससे अब अफगानिस्तान व पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेशों में आतंकवादियों को खुला मैदान मिलने वाला है। इसमें अफगानी और पाकिस्तानी नागरिक ही ज्यादा पीड़ित होंगे।

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