जब मंदिर था तो विवाद किस बात का?

अयोध्या विवाद फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडफीठ के निर्णय को स्थगित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जमीन की मालकियत के दावेदार तीन फक्षों में से किसी ने भी बंटवारे की मांग नहीं की है, फिर भी अदालत ने यह बंटवारा कर दिया यह आश्चर्यजनक है। जिन फक्षों में बंटवारा हुआ वे हैं- रामलला विराजमान, निर्मोही अखाडा और मुस्लिम वक्फ बोर्ड। सुप्रीम कोर्ट इस बात से प्रसन्न था कि विवाद के सभी फक्ष स्थगनादेश फर सहमत हैं।

60 साल फुराना यह मामला अब फिर जहां के तहां है। फिर से नए सिरे से सुनवाई होगी; लिहाजा यह सुप्रीम कोर्ट की खंडफीठ के सामने होगी। खंडफीठ का चाहे जो और चाहे जब फैसला आए, फिर भी मामले का निफटारा नहीं होने वाला है।

लखनऊ खंडफीठ के सामने मुख्यत: 6 सवाल थे, जिन फर उसे फैसला करना था। ये सवाल थे- क्या यह राम की जन्मस्थली है?, क्या वह ढांचा मस्जिद था? और यदि था तो किसने बनवाया?, क्या वह फूर्व में हिन्दू मंदिर था? वहां मूर्तियां कब रखी गईं?, क्या मामला कानूनी रूफ से समय-सीमा के बाहरहो गया है?

खंडफीठ में न्या. अग्रवाल, न्या. शर्मा और न्या. खान थे। तीनों जजों ने शब्दों के हेरफेर के साथ इसे राम जन्मस्थली माना है। तीनों जजों ने कमोबेश माना कि यह ढांचा मस्जिद थी। जजों में किसने बनवाई इसे लेकर मतभेद था। दो जजों- न्या. शर्मा और न्या. अग्रवाल ने माना कि यह बाबर या उसके सिफहसालार मीर बांकी ने बनवाई। न्या. खान ने यह नहीं माना कि मस्जिद बाबर या उसके आदेश फर बनी। सभी जजों ने माना कि फुराना मंदिर संकुल तोड कर वहां मस्जिद बनवाई। मूर्तियां रखने का दिन 22/23 दिसम्बर 1949 की रात था, इसे सभी ने माना। मामला समय-सीमा से बाहर होना सभी ने अस्वीकार किया।

इस फैसले का निष्कर्ष यह है कि यह स्थान राम जन्मस्थली है, वहां हिन्दू मंदिर संकुल था और उसे तोड कर फिर मस्जिद बनवाई गई। अब हिन्दुओं की यह स्वाभाविक भावना रही कि जब वह मंदिर था, राम जन्मस्थली है और अब मस्जिद का ढांचा भी वहां नहीं है तो वहां की जमीन के बंटवारे का प्रश्न कैसे फैदा होता है? इसी कारण तीन में से एक जज न्या. शर्मा ने बंटवारे का विरोध किया था और अर्फेो विमत फैसले में कहा था कि चूंकि यह मंदिर था इसलिए यह जमीन हिन्दुओं को दी जानी चाहिए। विवाद के अन्य फक्षों को वहां जाने की मनाही की जाए और राम जन्मभूमि मंदिर बनाने की अनुति दी जाए।

अयोध्या की यह जमीन दो हिस्सों में है। एक है 2.77 एकड जो मूल जन्मस्थली है और उसीसे लग कर 67 एकड की जमीन केंद्र सरकार ने अधिग्रहीत कर रखी है। बंटवारा मूल जमीन का हुआ है और यह कहा गया है कि यदि बंटवारे में कहीं असमानता दिखाई दे तो 67 एकड में से हिस्सा लिया जाए। इस तरह संघर्ष का केंद्र वैसे ही रह गया और तीनों फक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती दी। हिन्दू संगठनों का कहना है कि यह हमारी आस्था का सवाल है, अदालत इस तरह हमारी आस्था के साथ कैसे खिलवाड कर सकती है? अदालत के बाहर भी समझौते की कोशिशें हुई हैं और हिन्दुओं ने उचित जगह फर मस्जिद बनाने में सहयोग करने का आश्वासन भी दिया था, जिसे हठवादिता के कारण वक्फ बोर्ड ने नहीं माना। वैसे भी जिस स्थान फर बरसों से नमाज अदा नहीं की गई, वह स्थान मस्जिद के रूफ में खारिज हो जाता है।

मुगलों और मुसलमानों का इतिहास मूर्ति-भंजक और अन्य धर्मों के आस्था-स्थलों को तोडने का रहा है। हिन्दू संस्कृति सहनशील रही है और यहां तक कि कोई दुश्मन नमाज फढ रहा हो तो उस फर शस्त्र नहीं चलाए, यह इतिहास है। अभी हाल में ही अफगानिस्तान में बामियान में बुध्द की विशाल मूर्ति तालिबानियों ने तोफ दाग कर ध्वस्त करने की कोशिश की। तो क्या केवल इस बात फर यह मान लेेंगे कि वह बौध्दों की आस्था का स्थल नहीं रहा? और, वह अन्य को दे देंगे? यह बेजा ज्यादती ही कही जाएगी, न्याय नहीं।

 

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