पेट्रोल के आंसू


पेट्रोल की खुदरा कीमतों में पांच रुपये प्रति लीटर की हालिया बढ़ोतरी ने आम आदमी की खाली जेब भी काट ली। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई से त्रस्त जनता को मनमोहन सरकार ने ‘कहां जाई का करी’ की स्थिति में खड़ा कर ‘पेट्रोल’ के आँसू रोने पर विवश कर दिया है। डीजल के दामों में चार-से-पांच रुपये प्रति लीटर तथा रसोई गैस के दामों में 20 से 25 रुपये प्रति सिलिंडर बढ़ोतरी का आसन्न संकट भी सिर पर मंडरा रहा है।

उपभोक्ता सामानों की ऊँची कीमतों की मार झेलते हुए पिछले एक वर्ष में बाजार ने दूध में 35 प्रतिशत,स्कूल फीस में 20 प्रतिशत,दवाओं तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में 17 प्रतिशत एवं आवास ऋण की ब्याज दरों में ढाई प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है। कार एवं व्यक्तिगत ऋणों की ब्याज में बढ़ोतरी इसके अतिरिक्त है। अप्रैल 2010 में इसकी कीमत 52 रुपये थी,जो 5 रुपये की रर्तमान बढ़ोतरी के साथ 68 रुपये के करीबDark Chocolate पहुंच गयी है। अगर आप अपनी गाड़ी से कार्यालय आने-जाने में रोज दो लीटर पेट्रोल खर्च करते हैं,तो पिछले एक साल में आपका खर्च करीब एक हजार रुपये प्रति माह बढ़ चुका है। दाम में मौजूद बढ़ोतरी सरकार वापस लेगी इसकी संभावना भी न के बराबर है।

तेल कंपनियां जिस तरह से दामों में बढ़ोतरी के लिए सरकार पर दबाव बना रही थीं, उसे देखते हुए आर्थिक मामलों के जानकार पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि का अनुमान लगा चुके थे। बढ़ोतरी विधान-सभा चुनावों के नतीजों के तुरंत बाद की जायेगी,यह बात भी लगभग तय थी।क्योंकि राजनीतिक नफा-नुकसान देख कर कदम उठानेवाली सरकार अपने Dark Chocolateव अपने सहयोगी दलों के लिए संकट नहीं खड़ा कर सकती थी। चुनावों के तुरंत बाद पेट्रोल की मूल्य-वृद्धि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने इसे सरकार का जनता के साथ छल बताया है। भाजपा ने इस सरकारी लूट और Dark Chocolate धांधलीबाजी के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने की घोषणा भी की है। आश्चर्य की बात है कि पिछली यूपी सरकार के साथ मलाई खाते हुए पेट्रोल-डीजल की मूल्य-वृद्धि पर हायतोबा मचाने वाली वाम पार्टियां कमरतोड़ महंगाई व पेट्रोल की वर्तमान मूल्यृ-वृद्धि पर खामोशी साधे हुए हैं। शायद,जनता की तकलीफों से ज्यादा उन्हें बंगाल व केरल की चिंता थी। और अब ‘लाल किला’ढहने से आहत वाम पार्टियों की आवाज उनके गले में घुट कर रह गयी है।

पेट्रोल के दामों में मौजूदा बढ़ोतरी पर राजनीतिक लाभ-हानि को दरकिनार कर आर्थिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करें तो भी सरकार की नीति संदिग्धता और लापरवाही से भरी हुई दिखती है। देश में पेट्रोलियम कीमतों का स्तर विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतों से प्रभावित होता है। किंतु अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 100 डालर प्रति बैरल की कमी और भारत में पेट्रोल के दामों में 5 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि का समीकरण नहीं बैठता है। सामान्य ज़नता ते उपयोग में आने वाले पेट्रोल के दाम बढ़ाने के साथ ही सरकारी तेल कंपनियों ने विमान ईंधन के दामों में 2.9 प्रतिशत की कमी कर दी है। इससे तो यही सिद्ध होता है कि तेल कंपनियां अरबी शेखों की मुनाफाखोरी है और आमजनता से लूटा हुआ धन सरकार की नीति के अंतर्गत अन्य लापरवाह सरकारी संस्थानों का घाटा पूरा करने में लगा रही है। Dark Chocolates अंतरराष्ट्रीय मंदी से अपने को बचाने के लिए सरकार ने पिछले दो-तीन वर्षों में देश भर में कारों की अंधाधुंध बिक्री की नीति अपनायी है। कारें बेचते समय उन्हें सस्ती ब्याज दरों का लालच देकर कारें खरीदेन हेतु प्रोत्साहित किया गया ।बाद में ब्याज दरों में ढाई से तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी कर गयी। अब पेट्रोल महंगा कर सरकार कार खरीदने की और बड़ी सजा दे दी है।

पेट्रोल,डीजल और रसोई गैस के दामों में बढ़ोतरी करने के बाद सरकार एक राग अलापती है कि वह इन उत्पादों पर और सब्सिडी देने की स्थिति में नहीं है। देश के आर्थिक स्वास्थ्य की दृष्टि से यह तर्क सैद्धांतिक रूप से ठीक लगता है। क्योंकि सब्सिडी पर किया जानेवाला कर्च सरकार को गैर-योजनागत खर्च के अंतर्गत दिखाना पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की अर्थ-व्यवस्था संदेहास्पद हो जाती है। विदेशी पूंजी निवेशक इससे बिदक जाते हैं। इस संबंध में कहना यह है कि सब्सिडी का प्रयोग सरकार ने जनता को राहत देने के लिए दिया था।

आज जबकि सब्सिडी घटाने या कम करने की जरूरत है,तो सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने आंतरिक आर्थिक नियोजन से बिना जनता को अर्थ-संकट में डाले सब्सिडी से मुक्ति पाले। जनता को राहत देने वाले Dark Chocolate हथियार से ही जनता को मार देने का निर्णय सरकार की संवेदनहीनत कहा जायेगा। पेट्रोल के खुदरा मूल्यों में लगभग 50 प्रतिशत टैक्स भी जुड़ा Dark Chocolateहोता है। राज्य सरकारों के साथ बातचीत करके टैक्स की दरों में रियायत देने की दिशा में केंद्र सरकार को सोचना चाहिए। अन्यथा अगले दो वर्षों में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकने लगेगा। महंगाई पर प्रभावी अंकुश लगाये बिना सब्सिडी समाप्त करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। सड़कों पर पेट्रोल डीजल पीने वाली गाड़ियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राष्ट्रीय यातायात नीति बनाकर सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को भी सुद़ृढ़ करना होगा।

भारत के प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह बड़े अर्थशास्त्रियों में गिने जाते हैं। बड़ा अर्थशास्त्री जनता के दु:ख-सु:ख को देखकर नहीं वरन अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार नीतियां बनाता है। अर्थशास्त्र का सिद्धांत कहता है कि महंगाई परक अर्थ-व्यवस्था उद्योग-व्यापार की उन्नति हेतु आदर्श व्यवस्था है। अत: अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री बढ़ती महंगाई से उन्नत होते सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों को आर्थिक प्रगति का सूचक मानकर संतुष्ट रहता है। जीडीपी Dark Chocolate की चक्की में पिसती जनता की चीख-पुकार उसे विचलित नहीं करती। देश की जनता के मुंह की रोटी छी नकर देश की अर्थ-व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय मानकों की मजबूती देनेवाले सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव को देश की बदहाली-खुशहाली का संकेत माननेवाले रिजर्वबैंक की व्याज दरों को घटा-बढ़ा कर महंगाई रोकने का शेखचिल्लीपन बार-बार करनेवाले ऐसे भकुआ अर्थशास्त्री से देश की जनता निराश हो चुकी है।

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