खाकी-खादी-क्राइम का काकटेल 

उत्तर प्रदेश का गैंगस्टर विकास दुबे खाकी, खादी और क्राइम के मिश्रण की सबसे नग्न मिसाल है। कहते हैं कि ऐसा संगठन ढूंढना मुश्किल है जो विकास दुबे के टुकड़े पर न पला हो। खाकी, खादी और क्राइम का ऐसा काकटेल अन्य राज्यों में भी है। आखिर इससे कैसे पार होइएगा?

राजनीति की सीढ़ियां चढ़ता हुआ 25 हज़ार (यह पंक्तियां लिखे जाने तक पांच लाख) का इनामी बदमाश उल्टा डिप्टी एसपी समेत आठ पुलिस वालों का ही एनकाउंटर कर दे, यह बात ताज्जुब में डाल देती है। उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के बिकरु गांव की लोमहर्षक घटना पर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना कि यह (गैंगस्टर विकास दुबे) खाकी, खादी और अपराध के मिश्रण की सबसे नग्न मिसाल है, बिल्कुल सही है। कहते हैं कि ऐसा संगठन ढूंढना मुश्किल है जो विकास दुबे के टुकड़े पर न पला हो।

मीडिया को दिये बयान में विक्रम सिंह ने कहा कि ये मेरे विभाग की गलती है कि (2001 में राज्य मंत्री संतोष शुक्ला को) थाने में घुसकर मारने के बावजूद किसी ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी और वह बरी हो गया। पहले ऐसे लोगों को दौड़ाकर गोली मार दी जाती थी, इन्हें अंतिम छूट नहीं दी जाती थी। मेरे कार्यकाल में इस पर रासुका लगा था। उसका इलाज उसी वक्त कर देना चाहिए था और ऐसा ही होगा।

छः राज्यों की पुलिस भागते फिर रहे गैंगस्टर को तलाश करती रही, उसके पांच साथी एक के बाद एक मार भी दिए गए लेकिन यह शातिर अपराधी उज्जैन के महाकाल मंदिर में बाकायदा दर्शन करने के बाद पुलिस को समर्पण करने में सफल हो गया।

उत्तर प्रदेश के हिश्ट्रीशीटर विकास दूबे का शुक्रवार को पुलिस ने इनकाउंटर कर दिया गया जिससे उसकी मौत हो गयी है। पुलिस के मुताबिक विकास दूबे को उज्नैन से कानपुर लाया जा रहा था इसी दौरान उस कार का एक्सीडेंट हो गया जिसमें विकास दूबे को रखा गया था, विकास दूबे के साथ पुलिस और एसटीएफ के कुछ जवान भी मौजूद थे लेकिन जैसी की कार का एक्सीडेंट हुआ और कार कई बार पलटी खाकर सड़क के किनारे चली गयी वैसे ही विकास दूबे भागने की कोशिश करने लगा। इस दौरान विकास ने पुलिस पर फ़ायरिंग भी की जिसमें पुलिस के कुछ जवान घायल हो गये। पुलिस ने भी जवाबी फ़ायरिंग की जिसमें विकास दूबे घायल हो गया। पुलिस ने विकास को कानपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया जहां डाक्टर की टीम ने उसे मृत घोषित कर दिया।

पुलिस के मुताबिक विकास दूबे को सरेंडर करने का मौका दिया गया था लेकिन विकास दूबे भागने की कोशिश करने लगा। विकास दूबे ने गाड़ी के एक्सीडेंट के दौरान एक पुलिस जवान की पिस्टल भी निकाल ली थी जिससे वह फ़ायरिंग करते हुए भागने की कोशिश कर रहा था। घटना स्थल के पास मौजूद कुछ चश्मदीत ने बताया कि वह अपने काम से वापस लौट रहे थे और उन्होने फ़ायरिंग की आवाज़ सुनी लेकिन जैसे ही वह करीब पहुचे पुलिस वालों ने उन्हे हटने के लिए कहा लेकिन इस दौरान फ़ायरिंग हो रही थी।

इससे पहले विकास दूबे को गुरुवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन मंदिर से गिरफ्तार किया गया था। विकास दूबे ने खुद से इसकी सूचना दी थी वह मंदिर में है और इसके बाद उसे महाकाल पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने गिरफ्तार किया था और फिर उसे शुक्रवार को कानपुर लाया जा रहा था। विकास दूबे को लेकर अभी तक पुलिस ने सिर्फ उसकी मौत की पुष्टि की है जबकि घटना की पूरी जानकारी अभी तक विस्तार से पुलिस की तरफ से नहीं दी गयी है।

दरअसल, आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी विकास दुबे की खादी और खाकी में पकड़ इतनी मजबूत थी कि उसका नाम कानपुर जिले के टॉप 10 अपराधियों की सूची में भी नहीं था, जबकि उसके खिलाफ 71 आपराधिक मामले दर्ज हैं। विकास दुबे का नाम राज्य के 30 से अधिक शीर्ष अपराधियों की एसटीएफ सूची में भी शामिल नहीं था, जो इस साल के शुरु में जारी की गई थी। विकास दुबे और उसके कद के बारे में बिकरु कांड से पहले तक लोगों को अधिक नहीं पता था, भले ही उसके खिलाफ कई जघन्य आपराधिक मामले दर्ज थे, क्योंकि वह चुपचाप काम करता था। एक बड़े इलाके में अपनी ताकत के कारण वह नेताओं की ज़रूरत बन गया था। लोगों के अनुसार, वह विधायक और फिर एक सांसद बनना चाहता था। उसकी स्थानीय राजनेताओं के साथ अच्छी सांठगांठ थी। घटना के बाद उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक के साथ उसकी फोटो भी खूब चर्चित हुई। ‘खाकी’ से हुई मुखबिरी भी लोगों की जुबान पर है। इस मामले में थानेदार सहित पूरा थाना ही शक के दायरे में है। एसटीएफ के डीआईजी अनंतदेव जिन पर कानपुर का एसएसपी रहते हुए शहीद डिप्टी एसपी देवेन्द्र मिश्र की सूचनाओं/सिफारिशों को नजरअंदाज करने का आरोप है, को भी हटा दिया गया है।

दरअसल, विकास दुबे बचपन से ही अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बनना चाहता था। इसलिए वह अपना एक गिरोह बनाकर लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा। चुनावों में अपने आतंक और दहशत से हार जीत भी तय करता था। लेकिन राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने के कारण लगातार बचता रहा। 1995-96 में अपने को बचाने के लिए बसपा में शामिल हो गया था। फिर, जिला पंचायत सदस्य भी बना। इसके बाद उसकी पत्नी जिला पंचायत का चुनाव सपा के समर्थन से लड़ी। 20 सालों से अभी तक किसी मामले में सजा न होने के पीछे मुख्य कारण उसका खाकी और खादी के बीच मजबूत घुसपैठ होना ही है। पिछले 15 सालों से उसके घर में ही प्रधानी रही है। वह गांव वालों के लिए रॉबिनहुड था। सरकारी योजनाओं से लेकर रुपए-पैसे तक से सब की मदद करता था। दुबे जब जेल में था तो वह बैरक से ज्यादा समय जेल अस्पताल में बिताता था। राजनीतिक सांठगांठ की वजह से उसकी जेल के अंदर भी हुकूमत चलती थी। जेल के अंदर भी उसके लिए हर एक सुख-सुविधा के पुख्ता इंतजाम थे।

अपराधियों के सुरक्षा/पुलिस कर्मियों पर हमले की खबरें हालांकि कोई नई बात नहीं है। 1981 में एटा जिले के अलीगढ़ थाने में डाकू छविराम के गिरोह ने नौ पुलिस वालों को घेर कर मार डाला था। उस घटना में भी पुलिस की एसएलआर रायफलें और लाइट मशीनगन गिरोह लूट ले गया था। फिर भी गरीबों की मदद करने के कारण क्षेत्र में लोग उसे आदर से नेताजी कहते थे, जैसे विकास दुबे को लोग पंडितजी कहते हैं। इसी प्रकार, मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र की चित्रकूट, सेमरिया, सिरमौर, त्योंथर और अमानगंज सीट समेत उप्र के बांदा, इलाहाबाद से लेकर मिर्जापुर जिले तक कभी डकैत शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ का आदेश चलता था। वह प्रत्याशी विशेष के समर्थन के लिए फरमान जारी करता और गिरोह इसे मतदाताओं तक पहुंचाता था। इसी नक्शे-कदम पर अंबिका पटेल ठोकिया, बलखडिया गिरोहों ने भी राजनीति में पैठ बनाने की कोशिश की। ददुआ का छोटा भाई उप्र में सपा सांसद तो बेटा और भतीजा सपा विधायक रह चुके हैं। इसी प्रकार डाकू मनोहर सिंह गुर्जर 90 के दशक में भाजपा में शामिल होने के बाद 1995 में भिंड की मेहगांव नगरपालिका अध्यक्ष बना। 2013 के चुनाव में चित्रकूट से बड़ी जीत हासिल करने वाले प्रेम सिंह डकैत पृष्ठभूमि के आखिरी विधायक थे। मप्र में तो रेत माफिया खादी और खाकी की मिलीभगत से कितनी ही संगीन घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। पत्थर माफिया, वन माफिया, शिक्षा माफिया, दवा माफिया इसी की एक कड़ी हैं।

उत्तर प्रदेश में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की लंबी सूची है। हरिशंकर तिवारी लगातार 22 साल तक गोरखपुर की चिल्लूपार विधान सभा सीट से विधायक बने रहे। बसपा, सपा और भाजपा, हर सरकार में मंत्री रहे। 80 के दशक में गोरखपुर में तिवारी के खिलाफ हत्या, रंगदारी, अपहरण के दर्जनों मामले दर्ज हुए। गैंगस्टर से पॉलिटिशियन बने मऊ से बसपा विधायक मुख्तार अंसारी का कारवां निकलता था तो लाइन से 19-20 एसयूवी गुज़रती थीं। सारी गाड़ियों के नंबर 786 से ख़तम होते थे। मुख़्तार की शुरुआत भी गैंग्स ऑफ़ वासेपुर टाइप ही थी – कोयला, रेलवे, शराब का ठेका, गुंडा टैक्स इत्यादि। डीपी यादव, रघुराजप्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी, अतीक अहमद ऐसे ही प्रमुख दागी नेताओं में शुमार हैं।

खादी-खाकी की ऐसी होती है मजबूरी

मार्च 2018 में मप्र के बुरहानपुर में एक पुलिस स्टेशन का उद्घाटन करते समय भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान ने कहा था, ’एक अपराधी भी क्राइम करने के बाद अपने जनप्रतिनिधि से कुछ मदद की उम्मीद करता है, और हम लोग पुलिस को फोन करने को मजबूर होते हैं और ये कहते हैं कि फलां व्यक्ति ने ऐसा ऐसा काम किया है, लेकिन उसे छोड़ दीजिए।’ उन्होंने कहा कि ’पुलिस-प्रशासन का संरक्षण हो, और गुंडों पर लगाम कसी जाए, इस उहापोह के बीच अनेक प्रकार के दबाव में पुलिस-प्रशासन काम करता है, मैं सामाजिक जीवन में हूं, विधायक और सांसद रहते हुए इन चीजों से रुबरू हुआ हूं, एक अपराधी भी अपराध करने के बाद अपने जनप्रतिनिधि से राहत की अपेक्षा करता है और हमको भी विवशता में पुलिस को फोन करना पड़ता है, भाई इसने ऐसा किया इसे छोड़ दो।’

खाकी, खादी और क्राइम का काकटेल अन्य राज्यों में भी इसी तरह है। 2009 के चुनावों से जुड़ी एक घटना के हवाले से एक सेवानिवृत्त आईपीएस ने मीडिया को बताया कि वे बाहुबली प्रत्याशियों के खिलाफ एक सीरीज लिख रहे थे। उसका शीर्षक था ’जागते रहो’। उन्नीस बाहुबलियों के खिलाफ लिखा, जिनमें से 17 हार गए। इन्हीं में से एक के खिलाफ उन्होंने लिखा था कि उसका संबंध काठमांडू के मिर्जा दिलशाद बेग से था। बेग नेपाल में दाउद इब्राहिम की फ्रेंचाइज़ी चलाता था। इस बात की पुख्ता जानकारी मिली थी कि इस बारे में इंटेलिजेंस के इनपुट बाक़ायदा एक फाइल में हैं, जो गृह विभाग में है। आर्टिकल छप गया। चुनाव हो गए। वह प्रत्याशी हार गया और फिर उसने एक बड़ी रकम का मानहानि केस उन आईपीएस पर कर दिया। उस फाइल और दस्तावेज़ को हासिल करने के लिए अपने जानने वाले हर पुलिस अफसर और गृह विभाग की खाक उन्होंने छानी। दस्तावेज नहीं दिया गया। एक अधिकारी ने साफ कहा कि सत्ताधारी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बाहुबली के अच्छे संबंध हैं।

लिहाजा उस फाइल को फिलहाल कोई हाथ भी नहीं लगाएगा। बाद में वह केस जैसे तैसे निपट गया लेकिन यह अहसास हो गया कि अपराधियों के पुलिस और नेताओं के साथ कितने गहरे संबंध होते हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने वाले प्रत्याशियों के हलफनामों का विश्लेषण करने पर पाया कि हर चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है। इस संगठन द्वारा किए गए विश्लेषणों से पता चलता है कि 2019 में संपन्न 17हवीं लोकसभा के चुनाव में 1070 प्रत्याशियों ने अपने खिलाफ बलात्कार, हत्या, हत्या के प्रयास, महिलाओं के प्रति अत्याचार जैसे गंभीर अपराधों के मामले लंबित होने की जानकारी हलफनामे में दी थी। इनमें भाजपा के 124, कांग्रेस के 107, बसपा के 61, मार्क्सवादी पार्टी के 24 और 292 निर्दलीय उम्मीदवार शामिल थे। दरअसल राजनीति में पुलिस व अपराधियों के इस्तेमाल को देखते हुए पुलिस सुधार और राजनीतिक सुधार दोनों की जरूरत है।

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