सहकारिता को राजनीतिक नहीं, आर्थिक उद्यम समझें

सहकार भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष मा. सतीश मराठे जी का साक्षात्कार

सतीश मराठे यह नाम सहकार क्षेत्र से समर्पित भाव से कार्य करने वाला नाम है। किसी भी कार्य का मूल भाव ‘कार्यकर्ता’ भाव में होता है। सहकार भारती का अखिल भारतीय कार्य करने का ‘कार्यकर्ता’ भाव आप में कैसे निर्माण हुआ?

मैं मूलत: १९६८ से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता रहा हूं। १९७७ तक मैं सक्रिय रूप में विद्यार्थी परिषद के कार्य से जुड़ा था। दादर विभाग प्रमुख, मुंबई मंत्री, महाराष्ट्र प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, फिर अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष के रूप में कार्यकर्ता के नाते योगदान दिया है। आपात्काल मे मैं १४ महीने मीसाबंदी के रूप में जेल में था। तब रा. स्व. संघ के असली रूप और कार्य से मेरा परिचय हो गया। विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालीन कार्यकर्ता के रूप में योगदान देने की इच्छा थी। परंतु घर की स्थिति के कारण पूर्णकालीन कार्यकर्ता के रूप में निकलना संभव नहीं हुआ। परिषद के बाद अब आगे क्या करें? यह प्रश्न मन में था। तब तक परिषद के कार्य और मीसाबंदी के नाते जेल में रहने के कारण देशभर के अन्यान्य क्षेत्र के प्रमुख कार्यकर्ताओं से मेरा संपर्क बढ़ा था। विद्यार्थी परिषद समाज के सभी क्षेत्रों का विचार करने वाली संस्था है। कार्यकर्ताओं को बहुत बडा एक्सपोजर्स देने की व्यवस्था परिषद में है। कार्यकर्ताओं के विकास की जो क्रमश: व्यवस्था विद्यार्थी परिषद में है, उसी के अनुभव के कारण मुझ में एक प्रकार का विश्वास निर्माण हुआ था। मेरे इस कार्य पर विद्यार्थी परिषद के यशवंतराव केलकर जी की नज़र थी। उन्होंने संघ के पदाधिकारियों से बात की। तभी महाराष्ट्र में सहकार क्षेत्र के विकास की दृष्टि से मा. लक्ष्मणराव इनामदार जी को जिम्मेदारी दी गई थी। मा. लक्ष्मणराव इनामदार जी के साथ महाराष्ट्र राज्य के सहकार क्षेत्र के विकास हेतु कार्य करने की जिम्मेदारी तब मुझे दी गई। उस समय महाराष्ट्र में सहकार भारती का कार्य अत्यंत अल्प स्वरूप में था।

विद्यार्थी परिषद का कार्य उत्साह और उमंग से भरा था। और सहकार क्षेत्र का कार्य आर्थिक दृष्टि से होता है। आर्थिक विषय रूक्ष समझा जाता है। फिर आपने सहकार भारती के कार्य का प्रारंभ कैसे किया?
मेरे लिए सहकार क्षेत्र की जिम्मेदारी एकदम ‘ब्रँड न्यू’ थी। वह इसलिए कि यह मेरे लिए अत्यंत नवीनतम जिम्मेदारी थी। न तो मैं किसी बैंक का शेयर होल्डर था, न मैं किसी हाऊसिंग सोसायटी, कंज्यूमर सोसायटी या क्रेडिट सोसायटी का सदस्य था। दो-तीन साल कार्य करने पर दत्तोपंत ठेंगडी और लक्ष्मणराव इनामदार जी से संपर्क में आने से ध्यान में आ गया कि, समाज के विकास के लिए आवश्यक सामाजिक दृष्टिकोण या आर्थिक नीति अपने देश में नहीं है। सहकार क्षेत्र ऐसी स्थिति में था कि निष्प्रभ होने का डर था। लोगों का सहकार क्षेत्र से विश्वास उड़ रहा था। और ऐसे समय में सहकार क्षेत्र में एक तरह क संतुलन की स्थिति लाना अत्यंत जरूरी था। जिसमें लोगों के सहभाग से विकास, लोगों का अपने आर्थिक जीवन में स्वयं का प्रभाव और इस देश में समाज आधारित अर्थनीति निर्माण करने में सहकारिता एक बड़ा योगदान दे सकती है। आज सहकार क्षेत्र की स्थिति कितनी ही गंभीर हो, पर इसी गंभीर स्थिति में ही सहकार क्षेत्र के विकास के बीज हैं। और यह हम पर एक गंभीर जिम्मेदारी है। इस प्रकार सकारात्मक सोच मैंने मन में तैयार की। मेरे इन विचारों की निश्चिति में मा. दत्तोपंत ठेंगडी जी का अत्यंत महत्वपूर्ण सहयोग रहा। इस समय मुझे राजनीतिक क्षेत्र से भी निमंत्रण आ रहे थे। पर मुझे ‘सायलेंट वर्क’ में रूचि है। और मुझे विश्वास था कि अपने योगदान से एक सम्पूर्ण क्षेत्र को खड़ा कर सकता हूं, तो मैंने ‘सहकार भारती’ का कार्य स्वीकार किया।

सहकार क्षेत्र के विकास के लिए शून्य से कार्य प्रारंभ करना था। फिर आपने कार्य का ‘पथ’ किस प्रकार निश्चित किया?
उस समय किए प्रयासों को अब याद करता हूं तो विश्वास नहीं होता है। आज वह विषय भी नहीं है। पुणे विश्वविद्यालय में आर्थिक एवं सहकार से जुड़े पाठ्यक्रम की जो किताबें थीं उन्हें लाकर पढ़ना प्रारंभ किया। उन किताबों का अध्ययन किया। मीसाबंदी के नाते कारावास में रहते समय वहां अनेक क्षेत्र से मीसाबंदी आए थे। उनमें सहकार क्षेत्र से जुड़े मीसाबंदी बहुत थे। उनके संपर्क में सहकार क्षेत्र की बहुत सारी बातें सिखने को मिलीं। बापूसाहेब पुजारी, एड. दादा बेंद्रेे, बिपीन नाईकवाडी, सूर्यभानजी वहाडणे-पाटील जैसे सहकार क्षेत्र के दिग्गज वहां मिले। सहकार क्षेत्र में संगठित कार्य निर्माण करना है तो कार्यकर्तांओं से निरंतर सम्पर्क रखना महत्वपूर्ण है यह जानकर कार्यकर्ताओं का जाल निर्माण करने में प्रयत्नपूर्वक प्रयास प्रारंभ किए।

सहकार क्षेत्र में मेरा प्रारंभ में दायित्व था संगठन मंत्री। उसके पहले सहसचिव यह दायित्व था। महाराष्ट्र में सहकार क्षेत्र में जिन परिवर्तनों की आवश्यकता थीं वे हम कर नहीं पा रहे थे। कारण सत्ता और सहकार यह बात सभी के मन में पक्की बैठी थी। सहकारिता के यशस्वी होने का श्रेय सत्ता से जोड़ा जा रहा था। कांग्रेस की राजनीति के कारण यह भाव सभी के मन में था। यह बात सत्य नहीं है। यह बात प्रथम हमने सभी के मन में कायम करना प्रारंभ किया। भाजपा-सेना युति शासन के समय तक यह भाव थे। वह उनकी राजनैतिक जरूरत थी। पर यह बात सत्य नहीं थी। हमारे प्रयासों को अब सफलता मिल रही है। सहकार पर राजनैतिक पकड़ कम हो रही है। ऐसी स्थिति अब नहीं रही कि चीनी कारखानों पर पकड है, दूध सहकारी क्षेत्र पर पकड़ है, इसलिए कोई हमेशा ही चुनाव चुनकर आएगा। पर आज सरकार की ओर से सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल प्रयास नहीं हो रहे हैं। इसमें भाजपा सरकार के राज्यों में भी कोई सकारात्मक पहल नहीं हो रही है। बस वे सहकारिता क्षेत्र पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। पर सहकारिता के स्वतंत्र रूप में विकास करने के लिए पोषक निर्णय नहीं हो रहे हैं। यह बात उनके एजेंडे पर भी नहीं है।

आप दो बार सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए हैं। इस कार्यकाल में लिए प्रमुख निर्णय कौन से हैं?
पिछले ८-१० सालों में सहकार क्षेत्र के स्थिति का हमारे कार्यकर्ताओं ने गहराई से अध्ययन किया है। सहकार भारती का सहकारिता के संदर्भ में जो चिंतन है वह बंगलुरु में हुए पिछले राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रस्तुत किया गया है। सहकार क्षेत्र के विकास के लिए आज की स्थिति में हम क्या कर सकते हैं? उसके लिए हमें कौनसी दिशा अपनानी चाहिए। उसका एक एजेंडा तैयार हुआ है। और वह एजेंडा सभी ने स्वीकार किया है। सहकार भारती में प्रथम ऐसा माहौल है, सभी सहकार कार्यकर्ता मजबूती से सब जगह बोल रहे हैं, ‘सहकार को आर्थिक दृष्टि से देखें, सहकार को जनसहभागिता से देखें, सहकार को राष्ट्र विकास की दृष्टि से देखें।’ आज हम अत्यंत विश्वास से और आग्रह से बोल रहे हैं।

“Now is the time for Developing Public-Co. operative Partenship Model”  इस बात को ध्यान में रख कर सहकार भारती ने एक माडल डेवलप किया है। आने वाले समय में वही माडेल लेकर हम सहकार क्षेत्र को मजबूत बनाने में प्रयास करने वाले हैं।

हमने जेटलीजी के समक्ष बैंकों पर लगाया गया टैॅक्स रद्द करने का प्रस्ताव रखा है। फिलहाल नागरी सहकारी बैंकों को प्राप्तिकर की ३३% रकम भरनी पडती है। यह कर बैंक के विकास में बाधक है। इसलिये इसे खत्म कर देना चाहिये। कुछ साल पहले पूरे देश में नागरी सहकारी बैंकों की संख्या दो हजार से अधिक थी। परंतु अब यह संख्या १६०० तक घट गयी है। इसे सहकार आंदोलन की अधोगति कहा जायेगा। अत: भविष्य में सहकारी बैंकों के अच्छे दिनों के लिये सरकार को प्रयत्न करना चाहिये। हमने जेटलीजी से कहा है कि हम यह टैक्स देने में असमर्थ हैं। आप हमें समर्थ बनाने में योगदान दें। आप यदि हमें सशक्त नहीं बनाएंगे और टैॅक्स की अपेक्षा रखेंगे यह गलत है। सहकार भारती के कार्यकर्ताओं का देश भर में बड़ा नेटवर्क है, आप सहकारी संस्था पर जबरन कोई बात थोप नहीं सकते।

नई सरकार के आने के बाद देश में ‘अच्छे दिन’ आएंगे ऐसा कहा जाता था। क्या नई सरकार के आने से सहकार क्षेत्र में ‘अच्छे दिन’ आ रहे हैं?
नई सरकार को समय देना चाहिए। यह सरकर अच्छा कार्य कर रही है। इस बारे में कोई दो राय नहीं है। सरकार का सहकार क्षेत्र यह फोकस नहीं है। सरकार बनते ही गोपीनाथ मुंडेजी का देहांत होना सहकार क्षेत्र के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है। वे सहकार क्षेत्र से प्रत्यक्ष जुड़े होने के कारण उन्हें सहकारिता की जरूरत और विस्तार की जानकारी थी। अब उत्तर से जो नेता है उनमें सहकारिता क्षेत्र का अनुभव न के बराबर है। इसी के कारण सहकारिता की जरूरतों को वे समझते ही नहीं हैं। अब तक सहकार क्षेत्र के हित में सरकार ने कोई बात की नहीं है। पर भविष्य में हम अपेक्षा रखते हैं। सहकार और सरकार में कोई टकराव नहीं है। सहकार एक जन आंदोलन है। सहकार की अपनी एक सोच है। आर्थिक क्षेत्र के विकास के संदर्भ में सहकार क्षेत्र का चिंतन है। सहकारिता यह देश के विकास में योगदान देनेवाली व्यवस्था है।

सहकार विभिन्न क्षेत्र में फैला है, चीनी कारखाने से लेकर कुक्कुट पालन तक अनेक क्षेत्र सहकार में आते हैं। इन विभिन्न क्षेत्रों के विकास हेतु ‘सहकार भारती’ कौन से प्रयास कर रही है?
आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे जो कृषि क्षेत्र से जुड़ेे उत्पादन हैं उनकी प्रोसेसिंग हो। मार्केट की आवश्यकता के अनुसार वह उपलब्ध हो। ग्रीन रिवोल्यूशन के साथ आवश्यकता है कृषि उत्पादनों का प्रोसेसिंग करने वाले हजारों यूनिट देश में निर्माण हो। यह हमारी जरूरत है। साथ साथ ग्रामीण क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज और ऑर्डिनरी स्टोरेज की भी बड़ी आवश्यकता है। यह विषय सहकार भारती के द्वारा हम समाज तक ले जा रहे हैं। देश में डेरी यूनिट्स बनाने की बड़ी आवश्यकता है। प्राइवेट सेक्टर और सहकार क्षेत्र में जमीन आसमान का अंतर है। सहकार क्षेत्र का आप कहीं भी अध्ययन कीजिए जो उत्पादनों की मूल कीमत है उसकी ७० प्रतिशत कीमत उत्पादकों को सहकार देता है। लेकिन प्राइवेट सेक्टर से वह ४५ प्रतिशत तक भी नहीं मिलती है। यह बड़ा फर्क है। सहकार क्षेत्र को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिलने की जरूरत है। सहकार भारती इन बातों का अध्ययन करके विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दे रही है।

सहकार भारती का काम प्रारंभ में शहरों से शुरू हुआ। सहकार भारती के कार्यकर्ता ज्यादातर बैंकों से जुड़े थे। इस कारण सहकार भारती का काम बैंकों में ज्यादा बढ़ा है। इसी कारण एक इप्रेशन बना कि बैंकों में ही हमारा काम है। पर आज ग्रामीण क्षेत्र में है, क्रेडिट को-आपरेटिव, मच्छीमार सहकार, डेरी सहकार, शुगर सहकार जैसे अनेक सहकार क्षेत्रों में सहकार भारती अपना अत्यंत प्रभावी योगदान दे रही है।

सहकार क्षेत्र का राजनीतिकरण हो चुका है, जिसके कारण ‘सहकार’, ‘भ्रष्टाचार’ में परावर्तीत हो रहा है? क्या ऐसा आपको लगता है?
राजनीतिक क्षेत्र में एक धारणा है, जिसका ‘सहकार उसकी सरकार‘। लेकिन यह धारणा गलत है। समाज के हर क्षेत्र में बुरी बातें होती रहती हैं। सहकार क्षेत्र में भी है। जिस दिन आप सहकार क्षेत्र को राजनैतिक बातों से दूर करेंगे तब आप देखेंगे कि सहकार क्षेत्र अपनी ताकद से उभरकर आएगा। आज अत्यंत छोटे फायदों के लिए ये राजनीतिक नेता सहकार क्षेत्र को जकड़ कर रखते हैं। जिस नेता को चुनाव का टिकट नहीं मिलता उसे एकाध सहकारी संस्था पर बिठा देते हैं। सहकार क्षेत्र का एक प्रकार से शोषण हो रहा है। वह रोकना अत्यंत जरूरी है। इन बातों से सदस्यों को जागृत करने हेतु हम एक अभियान चला रहे हैं। २०१७ में मा. लक्ष्मणराव इनामदार की जन्म शताब्दी है। इस वर्ष में सहकार क्षेत्र में जागरण करना यह हमारा कार्यक्रम होगा।

रिजर्व बैंक का सहकारिता क्षेत्र के संदर्भ में दृष्टिकोण कैसा रहा है?
नकारात्मक है। आरबीआई में ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी सहकारीता का अनुभव ही नहीं किया है। गांधी कमेटी, रघुराजन जिस कमेटी के चेयरमन हैं, उसकी रिपोर्ट सहकार को हानि पहुंचाने वाली हैं। रिजर्व बैंक का सहकारिता क्षेत्र की ओर देखने का जो नजरिया है उस पर उसे सवाल पूछने वाला कोई नहीं है इस प्रकार आज की स्थिति है। भारत जैसे देश में अभी भी कई हजार अर्बन सोसायटीज का निर्माण होना समय की जरूरत है। इस स्थिति को आरबीआई संभाल नहीं पा रहा है, मैनेज नहीं कर रहा है। यह उनकी कमजोरी है।रिजर्व बैंक ने जो नॉर्म्स लाए उस संदर्भ में मैं उनका स्वागत करता हूं। उन्होंने जो नॉर्म्स लाए उनके कारण सहकारी बैंकों की क्षमता बढ़ गई। समस्या कहां है, सहकार क्षेत्र का माइक्रो लेवल पर थिंकिंग करते समय आरबीआई की दृष्टि वहां तक नहीं पहुंच रही है। समाज के निचले हिस्से तक सहकार पहुंच रहा है। समाज को उसका लाभ हो रहा है। ऐसे समय में सहकार को बढ़ावा देने के लिए आरबीआई का दृष्टिकोण होना अत्यंत जरूरी है। पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है।

सहकार क्षेत्र के सकारात्मक पक्ष, साथ में नकारात्मक पक्ष के संदर्भ में बताइएगा।
समाज के सभी वर्ग की सहकार आंदोलन में सहभागिता यह सकारात्मक पक्ष है। इसी कारण समाज के उच्च वर्ग से अंतिम वर्ग तक पहुंचने वाली आर्थिक ऊर्जा निर्माण हुई है। सहकार क्षेत्र से लोकतंत्र का प्रचार एवं प्रसार हो रहा है। साथ में कुछ कमियां भी हैं। आज हमारे पास आवश्यक मनुष्य बल की कमी है। हमारे यहां ैॅकैपिटल की कमी है। उसी कारण सहकार के विस्तार में समस्या आ रही है। आज समाज में आर्थिक साक्षरता बढ़ाने की जरूरत है, वह बढ़ जाने पर आर्थिक संवेदना भी बढ़ेगी जिससे आगे चल कर देश की तरक्की में यह विचार उपयोग में आ जाएगा। सहकार भारती आने वाले समय में इस विषय पर बड़ा आंदोलन करने की योजना बना रही है।

आप दो बार सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए हैं। आपके कार्यकाल में संपन्न हुए कार्यों के संदर्भ में बताइएगा।
देखिए, हमारी सोच एक बार या दो बार पद पर नियुक्त होना यह नहीं रही है। और क्षणिक दृष्टीकोण से हम विचार नहीं करते हैं। आज सहकार क्षेत्र में सभी अच्छा चल रहा है ऐसी स्थिति नहीं है। आज सहकार प्रशिक्षण की, अच्छे कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। सहकार क्षेत्र में सकारात्मक वातावरण निर्माण करने की जरूरत है। नई व्यवस्था खड़ी करनी है, कानून के संदर्भ में सजगता लानी है इस व्यापक उद्देश्यों को लेकर हम काम कर रहे हैं। इसमें एक-दो टर्म वाली कोई बात नहीं है। बंगलुरु में संपन्न हुए अखिल भारतीय अधिवेशन में हमने सहकारिता को भविष्य की जरूरतों को सामने रख कर सहकार एजेंडा समाज के सामने रखा है। आने वाले समय में उस पर प्रत्यक्ष कार्य होगा। मेरे दृष्टिकोण से आनेवाले आठ-दस सालों में सहकार भारती आर्थिक क्षेत्र में दीपस्तंभ की तरह काम करेगी। उसके लिए हमें आगे ८-१० साल कठोर प्रयास करने होंगे।

अ. भा. वि. परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता से सहकार भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष यह आपका गौरवशाली प्रवास है। आज जब आप पीछे मुड़ कर देखते हैं तो मन में कौनसी भावना आती है?
आज मैं जो भी कुछ हू, वह विद्यार्थी परिषद के कारण ही हूं। उसी क्षेत्र में काम करते समय मुझे जीवन का उद्देश्य प्राप्त हुआ था। मानो जीवन दृष्टि मिली थी। उसी के आधार पर हम आज खड़े हैं।

सहकारी कार्यकर्ता और सहकारी संस्था से जुड़े पदाधिकारियों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
सहकारिता आर्थिक उद्यम (इकोनॉमिक एंटरप्राइज) है। उससे देश के आर्थिक चिंतन में सहयोग होता है। देश के आर्थिक दृष्टिकोण में गत दस-पंद्रह सालों में तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं। इस परिवर्तन का अध्ययन करना आज अत्यंत जरूरी है। सभी संचालक-कार्यकर्ताओं के लिए अपने आप को समय के साथ अपडेट करना अत्यंत जरूरी है। अपनी संस्था का उद्देश्य और भविष्य की आवश्यक रफ्तार इन दोनों के संदर्भ में निरंतर चिंतन जरूरी है। सहकार क्षेत्र में कार्य करते समय हम मीडिया से दूरी बना कर रहे हैं। उस बात का जो भी अच्छा-बुरा असर है हम उसे महसूस कर रहे हैंै। सहकार क्षेत्र में संपन्न हो रहे सकारात्मक कार्यों को समाज तक ले जाना आज अत्यंत जरूरी है। हमें अपनी सोच को बदलना अत्यंत जरूरी है। मीडिया एवं आवश्यक घटकों से संपर्क बढ़ाने हेतु सहकार क्षेत्र में कार्यकर्ता निर्माण करना जरूरी है। जो सहकार का विषय-चिंतन करके मीडिया से कनेक्ट करें।

 

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