तन और मन का रंजन

पर्यटन के अब कई रूप बन गये हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा इसका एक अंग है। दक्षिण भारत में इस तरह के केंद्र बने हैं, जहां आयुर्वेदिक पध्दति से चिकित्सा की जाती है। मन को सुकून मिलता है और तन तंदुरुस्त बनता हैा

दुनिया भर में लोकप्रिय हुए मेडिकल टूरिज्म का ही एक देशी संस्करण है। इसके अंतर्गत लोग देश भर में स्थित आयुर्वेदिक अस्पतालों या रिसार्टों में इलाज करने या आयुर्वेदिक तौर-तरीकों से स्वास्थ्य-लाभ करने के लिए यात्रा करते हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए बारिश का मौसम यानी मानसून का महीना (जून से सितंबर) आदर्श होता है। क्योंकि इसके लिए शीतल, आर्द्र और धूल-धक्कड़ रहित वातावरण उपयुक्त होता है। इस तरह इसे मानसूनी पर्यटन का महत्वपूर्ण अंग बन गया है।

एक गौर करने वाली बात है कि आयुर्वेदिक इलाज मुहैया करानेवाले ज्यादातर केंद्र दक्षिण भारत के केरल राज्य में स्थित हैं। वह भी इसलिए कि यहां का मौसम आयुर्वेदिक इलाज के लिए सर्वाधिक उपयुक्त पड़ता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों और जड़ी-बूटियों की सप्लाई पर्याप्त मात्रा में यहां उपलब्ध है। केरल के अलावा गोवा में भी यह इलाज उपलब्ध है। ये सुविधा इन राज्यों के आयुर्वेदिक अस्पतालों, आयुर्वेदिक रिसार्टों और अधिकतर पंचतारा होटलों में मुहैया कराते हैं। यदि और नूतन तरीका अपनाना चाहते हैं, तो आप किसी आयुर्वेदिक हाउसबोट भी बुक करा सकते हैं – इस दौरान केरल के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे का भी आनंद उठा सकते हैं। पूरा हाउसबोट एक सप्ताह के लिए बुक कराया जा सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि रिसार्ट और हाउसबोट पर आयुर्वेदिक इलाज अस्पताल से ज्यादा खर्चीला आता है।

देश में मूल रूप दो तरह के आयुर्वेदिक इलाज उपलब्ध हैं: एक पर्यटकों के लिए – इसके अंतर्गत मालिश आदि सेवाएं प्रदान की जाती है। यह पर्यटन केंद्रों मे स्थित रिसार्टों में उपलब्ध है। दूसरा उन लोगों के लिए जो वास्तविक और व्यापक आयुर्वेदिक इलाज कराना चाहते हैं। यह अस्पतालों में उपलब्ध है ।

सर्वश्रेष्ठ अस्पताल: आर्य वैद्य शाला चैरिटेबल संस्थान द्वारा संचालित अस्पताल देश में सर्वोत्तम माने जाते हैं। इसका मुख्य अस्पताल कोटक्कल, केरल में स्थित है। इसके अलावा कोच्चि, दिल्ली और कोलकाता में भी स्थित है।

सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक रिसार्ट: केरल मे स्थित आयुर्वेदिक रिसाटर्र् उच्चकोटि के हैं। इसके अलावा गोवा में कलंगुटे के पास स्थित आयुर्वेदिक नेचुरल हेल्थ सेंटर भी अच्छा है। इसके अलावा मानसून के दौरान ठहरने की सुविधा देने वाले भी कई सेंटर हैं।

पेरियार नेशनल पार्क
केरल में स्थित पेरियार नदी पर बांध बनाकर 1895 में पेरियार नामक कृत्रिम झील का निर्माण किया गया । इसी के चारों तरफ पेरियार नेशनल पार्क स्थित है। यह 780 वर्ग किमी में फैला पहाड़ी घना जंगल है। मानसून में खास तौर से यहां का सुकून दायक प्राकृतिक वातारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। दक्षिण भारत का यह सबसे लोकप्रिय नेशनल पार्क है। यह पार्क हाथियों के लिए काफी जाना जाता है। आप यहां पर हाथियों की पीठ पर बैठकर जंगल की यात्रा करने की सुविधा है। यह केरल के इडुक्कि जिले में है।

हालांकि पेरियार साल के किसी भी महीने पहुंचा जा सकता है, लेकिन मानसून के महीने में यहां की सैर आपके लिए काफी आनंददायी साबित होती है। सप्ताहांत यहां पर काफी भीड़ होती है। हां बारिश में हाथियों का दर्शन दुर्लभ होता है। गरमी के मौसम में पानी की तलाश में बाहर निकलते हैं, सो आसान होता है।

जहां तक पेरियार पहुंचने के माध्यम की बात है, तो यहां के लिए सबसे करीब का हवाई अड्डा मदुरै ( 130 किमी) है और कोच्चि ( 190 किमी) है। रेल के जरिए पहुंचना है तो कोट्टायम स्टेशन (114 किमी) है। पेरियार पार्क में सुबह 6 से शाम के 7 बजे के बीच सैर की जा सकती है। पार्क के अंदर बोट का मजा लिया जा सकता है।

खास बात:
पार्क में शांति कायम रखने के लिए केवल बोट से ही सफारी की इजाजत है। सूर्यास्त के समय झील का सम्मोहन बढ़ जाता है। पेरियार पार्क का भरपूर आनंद उठाना है तो विभिन्न इको पर्यटन गतिविधियों में हिस्सा लें। इसके अंतर्गत गाइड के साथ हाइकिंग, बांबू रैफ्टिंग, बैलगाड़ी पर आसपास के गांवों की सैर, आदिवासी विरासत और रात में जंगल की सैर शामिल है। पेरियार देश के चंद नेशनल पार्कों में है, जो मानसून में पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बोट का सफर पूरे मानसून चलता है। ध्यान रहे कि मानसून में यहां जोंक बहुत निकलते हैं इसलिए मोजे आदि का इंतजाम जरूर करके रखें।

‘चौमहल्ला’
( हैदराबाद स्थित निजामशाही महलों की शान-शौकत और पुराने गौरव को पुन: सहेज दिया गया है। निजामशाही आज भले नहीं रही,मगर तत्कालीन समय में उनकी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि की आभा और उसकी खनक का एहसास इन महलों की सैर से हो जाता है। हैदराबादियों के दिल में गौरव की भावना पैदा करनेवाला यह ऐतिहासिक महल अब पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। आइए हम आपको इस चौमहल्ला की सैर पर ले चलते हैं। )

चौमहल्ला दो शब्दों ,चौ और महल्ला, के योग से बना है; जिसमेेंं ‘चौ’ शब्द का उर्दू में मतलब होता है, चार और ‘महल्ला’ का अर्थ होता है महल । महल का उर्दू में बहुवचन रूप होता है-महल्लत । चौहमहल्ला , चौमहल्लत के रूप में भी जाना जाता है। इस तरह चौमहल्ला का अर्थ हुआ : चार महल।

अब आप जानना चाहेंगे कि चौमहल्ला है क्या ? दरअसल चौहमहल्ला का संबंध हैदराबाद राज्य के निज़ामों से है। यह आसिफ शाही वंश का मुकाम और निज़ामों का सरकारी निवास हुआ करता था। यहीं पर सरकारी मेहमानों और आगंतुकों का स्वागत-सत्कार किया जाता था। सभी तरह के समारोह और निज़ामों का राज्याभिषेक व गवर्नर जनरल आतिथ्य सत्कार यहीं पर आयोजित किया जाता था।

चौहमहल्ला दो प्रांगणों से मिलकर बना है : उत्तरी प्रांगण और दक्षिणी प्रांगण। इनमें भव्य महल,आलीशान खिल्वत ( दरबार हाल), फव्वारे और बगीचे स्थित हैं । चौमहल्ला की हृदयस्थली को खिल्वत मुबारक कह कर पुकारा जाता है। इसके अंतर्गत क्लाक टॉवर,कौंसिल हाल और रोशन बंगला आते हैं। रोशन बंगले का नाम छठें निज़ाम की मां रोशन बेगम के नाम पर रखा गया था। चौमहल्ला के मेन गेट के ऊपर लगी घड़ी लोग प्यार से खिल्वत क्लाक कह कर बुलाते हैं। यह पिछले 250 साल से टिक टिक कर रहा है। एक विशेषज्ञ घड़ी-साज परिवार इस घड़ी पर नजर रखता है। कौंसिल हाल में अद्भुत हस्तलिपियाँ और बहुमूल्य पुस्तकें रखी हुई हैं। यहीं पर निजाम अपने महत्वपूर्ण अधिकारियों और प्रतिष्ठित लोगों के साथ अक्सर मिला करते थे । कहा जाता है कि छठा निजाम रोशन बंगले में ही रहा करता था। चौहमल्ला में चार महल हैं : अफजल महल,माहताब महल, तहनियत महल और आफताब महल।

कहा जाता है कि चौहमहल्ला के निर्माण की शुरुआत सन 1750 में निजाम सलाबत जंग ने की थी और आखिरकार पांचवें निजाम अफजल-उद-आसफ जववी ने 1869 में पूरा करवाया। महल का पूरा एरिया मूलरूप से 45 एकड़ में फैला था,लेकिन अब यह 12 एकड़ में ही बच रहा है।

चौमहल्ला हैदराबाद में चारमिनार के पास स्थित है। चार महलों के इस समूह को तेहरान में स्थित इरान के शाह के महल की प्रतिकृति माना जाता है। इसके दो प्रांगणों में दक्षिण प्रांगण को सबसे पुराना है। इसमें चौमहल्ला स्थित है। महलों में आफताब सबसे भव्य है। उत्तरी प्रागण में मुगल गुंबद और महराब हैं। इस प्रांगण की सबसे बड़ी विशिष्टता यहां स्थित बारा इमाम है- पूरब में कमरों का एक लंबा गलियारा ,जो एक समय प्रशासनिक कमान का केंद्र हुआ करता था। इसके सामने शिशे-अलत है, जिसको कभी आगंतुक अधिकारियों के लिए गेस्टरूम का काम करता था।

पांच सालों की मेहनत के बाद चौमहल्ला का पुनरुद्धार कर उसकी पुरानी आन-बान-शान एक बार फिर से लौटायी गयी। जनवरी 2005 को एक यह आमनागरिकों के लिए खोल दिया गया। इस महल को सुबह 10 बजे से शाम के पाँच बजे के बीच देखा जा सकता है।यह शुक्रवार और राष्ट्रीय अवकाश के दिन बंद रहता है। प्रवेश के लिए शुल्क देना पड़ता है। मगर पर्यटकों को चौमहल्ला को देखने के बाद इसकी पूरी कीमत वसूल हो जाती है।

Leave a Reply