बाबा रामदेव का आंदोलन और संघ स्वयंसेवक


मई के अंतिम सप्ताह से ही समाचार माध्यमों में यह जानकारी आने लगी थी कि काले धन के विरोध में बाबा रामदेव 4 जून से दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठनेवाले हैं। इस समाचार को देखकर और पढ़कर मैंने अपने साथ के पत्रकारों से एक प्रश्न पूछा, ‘‘इस समाचार के उपरांत आगे की खबर क्या होगी?’’ मेरे प्रश्न का आशय उनकी समझ न आने पर ‘क्या पागलों जैसे प्रश्न पूछते हैं?‘, इस तरह का भाव उनके चेहरे पर दिखायी दिया। मैंने उनसे कहा कि बाबा रामदेव का आंदोलन शुरू होने के बाद समाचार आना शुरू होगा कि यह आंदोलन संघ द्वारा प्रायोजित है। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ है।

संघ का हाथ?
तीन जून तक संघ का हाथ होने का समाचार कहीं नहीं आया। उस समय तक केंद्र सरकार के मंत्री बाबा रामदेव से भेंट कर रहे थे; उनसे चर्चा कर रहे थे कि बाबा रामदेव अपना आंदोलन न करें। इसके लिए उन्हें मनाने में जुटे थे। दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव का अनशन शुरू होते ही समाचार आने लगे कि सरकार और बाबा रामदेव के बीच वार्ता विफल हो गयी है। बाबा रामदेव के पीछे संघ का हाथ है और यह आंदोलन संघ द्वारा प्रायोजित है। पाले-पोसे गये पत्रकारों ने बाबा रामदेव के आंदोलन में संघ को घसीट लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालाकृष्ण आडवाणी ने वर्ष 2008 में ही विदेशों में जमा काला धन वापस लाने की मांग की थी। ‘एशियन एज’ ने समाचार छाप दिया कि बाबा रामदेव ने आडवाणी की मांग के समर्थन में अनशन किया है। सरकार के साथ बातचीत के दौरान संघ का नेतृत्व बाबा रामदेव के संपर्क में था। संघ के स्वयंसेवकों को रामलीला मैदान में जाने का निर्देश भी दिया गया था। बाबा रामदेव का संघ के साथ घनिष्ठ संबंध है। ‘गो-ग्राम मगंल यात्रा’ के समापन समारोह में वे नागपुर में उपस्थि थे। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘एशियन एज’ जैसे अंग्रेजी के समाचार पत्रों ने इस तरह के समाचार दिये हैं।

समाचार लिखने और छापने वाले बहुत चतुर हैं, फिर भी इस प्रकार के समाचार छाप कर वे बाबा रामदेव को कठपुतली बना रहे हैं। यह बात इन चतुर लोगों के भेजे में नहीं आयी। किसी अन्य के मुद्दों को लेकर कोई दूसरा व्यक्ति आंदोलन नहीं करता है। इन विद्वान पत्रकारों को इतनी भी अक्ल नहीं है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे की विषयसूची राजीव गांधी, ए.राजा, सुरेश कलमाड़ी और उन सभी मंत्रियों ने तैयार की है, जिनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगातार लगते रहे हैं। भ्रष्टाचार करने वाले राजनेता हैं; आइएएस और आइपीएस अधिकारी हैं; कुछ न्यायाधीश हैं। इन सबने देश को यह विषय दिया है।

प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वर्ष 2011 की प्रतिनिधि सभा में भ्रष्टाचार की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है। प्रतिनिधि सभा ने यह खेद व्यक्त किया है कि प्रधानमंत्री अपने सहयोगियों को बचाने के लिए दौड़ पड़ते हैं और इस बात के लिए आश्चर्य व्यक्त किया है कि सारे प्रमाण उपलब्ध होने पर भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपने देश की छवि बहुत खराब हो गयी है। सत्ता के उच्च पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार की ओर से आंख बंद किये हैं। भ्रष्टाचार का कीड़ा राजसत्ता को नष्ट कर रहा है, इस पर सभा में चिंता व्यक्त की गयी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही सन् 1977 ई. और सन् 1989 ई. में सत्ता परिवर्तन हुआ है; किंतु भ्रष्टाचार रुकता हुआ दिखायी नहीं दे रहा है। ऐसी परिस्थति में मूल्य-आधारित और धर्म के शाश्वत सिद्धांत पर समाज के सभी क्षेत्रों की रचना की जानी चाहिए। मनुष्य का निर्माण करनेवाली, चरित्र का निर्माण करने वाली शिक्षा दी जानी चाहिए। ऐसा आशय इस प्रस्ताव में पेश किया गया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा के प्रस्ताव स्वयंसेवकों का दिशादर्शन करने के लिए होते हैं। ये प्रस्ताव केवल शब्दों के बुलबुले नहीं होते। इसके अनुरूप आचरण करने की अपेक्षा की जाती है। भ्रष्टाचार समाज के समक्ष एक ज्वलंत विषय है। अण्णा हजारे ने लोकपाल विधेयक को लेकर आमरण अनशन शुरू किया। इस अनशन को भ्रष्टाचारियों को छोड़कर देश की पूरी जनता ने समर्थन किया। इसमें संघ के स्वयंसेवक भी शामिल थे। नीति और मूल्यों की रक्षा के लिए यदि किसी ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया हो, तो स्वयंसेवक उसके पीछे खड़े रहेंगे ही। अण्णा हजारे के पश्चात बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के विषय को अधिक विस्तृत करने के लिए अनशन शुरू किया। इस अनशन को संघ के स्वयंसेवकों ने समर्थन दिया और वे इस पूरे आंदोलन में सहभागी बने।

जनता का प्रश्न
भ्रष्टाचार का विरोध किया जाना जनता का विषय है। वास्तव में यह मध्यमवर्गीय लोगों का विषय है और उसमें भी शारीरिक कष्ट उठानेवालों का विषय है। प्रशासकीय भ्रष्टाचार का सर्वाधिक दुष्प्रभाव गरीब जनता को भोगना पड़ता है। उनके लिए दिया जानेवाला पैसा तथा अनाज बीच में ही गायब हो जाता है। भ्रष्टाचार का विरोध जनता का प्रश्न है। समाज के सभी वर्गों का प्रश्न है। देश में एक ऐसा भी वर्ग है, जिसका भ्रष्टाचार से कोई मतलब नहीं है, भ्रष्टाचार उसकी विषय-सूची में नहीं है। इस वर्ग में सब प्रकार के भ्रष्टाचारी, उनके द्वारा पाले-पोसे जा रहे पत्रकार, लेखक, तथाकथित विद्वान आदि शामिल हैं।
संघ बाबा के साथ है। इसका अर्थ है कि संघ पूरे समाज के साथ है। समाज में सभी वर्ग एक जैसे हैं। भ्रष्टाचार मुक्ति का यह आंदोलन सत्ता परिवर्तन का आंदोलन लग सकता है। भाजपा भी ऐसा मान सकती है। सत्तारूढ़ दल को संकट में डालना, उसका फायदा उठाना और सत्तारूढ़ दल को सत्ता से हटाना लोकतंत्र का राजनीतिक खेल है। लोकतांत्रिक राजनीति में यह मान्य है। सभी लोकतांत्रिक देशों में यह खेल खेला जाता है, इसलिए यदि भाजपा इस आंदोलन को सत्ता परिवर्तन का माध्यम मान रही है, तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है।

मुद्दा मात्र सत्ता परिवर्तन नहीं
किंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ऐसी भूमिका हो ही नहीं सकती है। मार्च महीने में संपन्न प्रतिनिधि सभा के प्रस्ताव में यह स्पष्ट कहा गया है कि सत्ता परिवर्तन से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होता है। इसके लिए चरित्र का निर्माण करनेवाली शिक्षा, शाश्वत धर्म की सीख, जीवन-मूल्य के आदर्श का आग्रह आवश्यक है। अनेक बार सत्ता परिवर्तन शरीर के कपड़े बदलने जैसा होता है। संघ का प्रयत्न सभी प्रकार की व्यवस्था से जुड़े लोगों की चरित्र-निर्माण करना है। अर्थात संघ इसमें विश्वास नहीं रखता कि केवल सत्ता का परिवर्तन होने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा।

यदि ऐसा है, तो संघ के स्वयंसेवकों को इस आंदोलन में क्यों सहभागी होना चाहिए, ऐसा प्रश्न उठाया जा सकता है। इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार में लिप्त शासन पर जनता का अंकुश होना चाहिए। राजनेताओं में भय उत्पन्न करना अत्यावश्यक है। यदि हम भ्रष्टाचारी और अनाचारी हो जायेंगे, तो हमारी दशा इंदिरा गांधी जैसी हो जायेगी; हमारी दशा राजीव गांधी की तरह हो जायेगी- इस प्रकार का भय राजनेताओं के मन में जनता ही पैदा ही कर सकती है। अण्णा हजारे अथवा बाबा रामदेव के आंदोलन के रूप में लोकसत्ता उठ खड़ी होती है। उसका प्रभाव उत्पन्न होता है। ऐसे ही भय के कारण बाबा रामदेव के अहिंसक और शांतिपूर्ण सत्याग्रह पर केंद्र सरकार ने मध्यरात्रि में हजारों पुलिस भेज कर आक्रमण किया। चीन के थ्यनमान चौक पर धरने पर बैठे विद्यार्थियों को चीन की सरकार ने मध्यरात्रि में टैंकों से कुचल डाला था। अपने देश में भी शांति के प्रतीक कबूतर को उड़ानेवाले लोग शांतिपूर्ण अनशन कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज करते हैं और आंसूगैस के गोले छोड़ते हैं। दोनों जगहों के राजनेताओं की मानसिकता में कोई अंतर नहीं है। ऐसा पाशविक आचरण वाली सरकार के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ता है। इसका उद्देश्य सरकार को गिराना भले न हो, फिर भी वह अपने ही कर्मों से गिर जाती है। यदि उसका कार्य पुण्य का है, तब तो वह खड़ी रह सकती है; किंतु यदि पाप के कार्यों का भार अधिक होता है, तब वह स्वत: नष्ट हो जाती है। वह अपने ही कर्मों से जीवित रहती है और अपने ही कर्मों से मृत्यु को प्राप्त होती है। सरकार को सत्कर्म के मार्ग पर लाने के लिए ऐसे आंदोलन की जरूरत होती है।

दीर्घकालीन संघर्ष
भ्रष्टाचार के विरुद्ध बाबा रामदेव का आंदोलन भविष्य में कौन-सा रूप ग्रहण करेगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की तरह यह पूरे देश में फैल भी सकता है और कुछ दूसरे आंदोलनों की तरह ठंडा भी पड़ सकता है। आंदोलन खड़ा करना, उसे निरंतर आगे बढ़ाते रहना और निश्चित परिणाम की दिशा में ले जाना आदि एक शास्त्र का विषय है। आंदोलन चलाने के लिए कमर कसी रहनी चाहिए। आंदोलन को दीर्घकाल तक जारी रखना योगबल की कार्य नहीं है। पश्चिम बंगाल की कम्यूनिस्ट सरकार को लोकतांत्रिक पद्धति से उखाड़ फेंकने में ममता बनर्जी को 18 वर्षों तक आंदोलन चलाना पड़ा। ऐसा प्रचंड साहस करना पड़ता है। बाबा रामदेव संपूर्ण देशवासियों की दृष्टि में श्रद्धेय संत हैं। देश भर में उनके लाखों अनुयायी होते हैं, क्योंकि उसमें सबका आध्यात्मिक लगाव होता है, पारिवारिक हित होता है, व्यक्तिगत लाभ-हानि निहित होता है। किसी में भी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तन का ध्येय नहीं होता। ध्येय के बिना निष्ठा नहीं उत्पन्न होती और समर्पण की भावना नहीं जागती। बिना समर्पण के कोई भी आंदोलन लंबे समय तक टिका नहीं रह सकता। इसलिए बाबा रामदेव सहित सभी संतों के अनुयायियों के प्रति परम आदर भाव रखते हुए यह कटु सत्य कहना चाहूंगा कि आध्यात्मिक अनुयायी कोई भी सामाजिक- राजनीतिक परिवर्तन नहीं ला सकते। इसलिए बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन को समाज के हर जागरूक नागरिक को समर्थन देना चाहिए। संघ के स्वयंसेवक उनके पीछे खड़े हैं, साथ ही मन में यह विचार सदैव रखना चाहिए कि बाबा रामदेव का उद्देश्य व्यापक है, उनका ध्येय अच्छा है; किंतु वे जिन अनुयाइयों को साथ लेकर खड़े हैं, उनकी प्राकृतिक मर्यादा सीमित है। यदि बाबा रामदेव कल ध्येय समर्पित कार्यकर्ताओं का समूह तैयार करने का कार्य शुरू करते हैं, तब उनका आंदोलन निश्चित ही खड़ा रहेगा। यह संघर्ष केवल सत्ता परिवर्तन का संघर्ष नहीं है। उन्हें ध्यान देना होगा कि यह व्यवस्था परिवर्तन और मनुष्य के परिवर्तन का आंदोलन भी है। इस दृष्टि से उन्हें दीर्घकालीन योजना तैयार करने का कार्य करना होगा।

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