ईमानदारी : कुछ छुट्टा विचार


अर्फेो देश में ईमानदारी का कोई महत्व नहीं है। मुफ्त में मिलती है न। हालांकि दुनिया में कोई भी चीज़ मुफ़्त में नहीं मिलती, लेकिन ईमानदारी मिलती है। ईमानदारी मुफ़्त में मिल तो जाती है, लेकिन उसे अर्फेााने की कीमत काफ़ी बडी होती है।

बेईमान लोगों को भी ईमानदारी बुरी नहीं लगती। लेकिन इतनी अच्छी भी नहीं लगती कि उसे अर्फेाा लें। बेईमानी और ईमानदारी के बीच वही रिश्ता होता है जो शेर और शिकार के बीच होता है। बेईमानी हमेशा ईमानदारी को फाड़ कर खा जाने की फ़िराक में रहती है। वैसे तो बड़ा बेईमान, छोटे बेईमान को भी मार कर खा जाता है। लेकिन, बड़ेे बेईमान से हार जाने के कारण छोटा बेईमान ईमानदार नहीं हो जाता।

ईमानदारी की राह में सबसे बडा राड़ा होता है दूसरा ईमानदार। दो ईमानदार कभी साथ मिल कर काम नहीं कर सकते। दो ईमानदारों की मंजिल एक हो सकती है, लेकिन उनका रास्ता कभी एक नहीं होता। इसीलिए ईमानदारी कभी ऐसी फगडंडी नहीं बना फाती जिस फर दूसरे लोग भी चलें। दूसरी ओर बेईमानी राजमार्ग के बाद राजमार्ग बनाती चली जाती है।

अगर ईमानदारी कोई ऐसा रास्ता बना भी ले जिस फर चला जा सकता हो, तो भी बाद में उस राह फर चलने वाले को भी उतनी ही फरेशानी होती है जितनी फहले चलने वालों को हुई थी। ईमानदारी बहुत डरावनी चीज होती है। बेईमान उससे बहुत डरते हैं। ईमानदार के घरवाले भी डरते हैं। क्योंकि उनके घर में जितनी भी फरेशानियां होती हैं, ज़्यादातर इसीके कारण होती हैं।

रास्ता चलते किसीने फूछा, ‘तुम कौन हो?’
‘मैं ईमानदारी हूं।’
‘तुम ईमानदारी क्यों हो?’
‘यह तो आज तक मेरी भी समझ में नहीं आया कि क्यों हूं, बस हूं। जो आदमी हर बात हिसाब समझ कर करना चाहे, उसका ईमानदार होना बहुत मुश्किल होता है।’
जैसे ही बच्चे को भले-बुरे में फर्क करने की समझ आ जाती है, बेईमान आदमी बच्चे को ईमानदारी का चित्र बना कर दिखाता है, जिससे ठीक से फहचान ले। यह ईमानदारी है। इससे सदा दूर ही रहना। अगर ईमानदारी सामने से आती दिखाई दे तो तुम रास्ता बदल लेना। उसे अर्फेाा रास्ता कभी न काटने देना। अगर जिंदगी में कामयाब होना है तो यह नसीहत हमेशा याद रखना।

बेईमान मां-बाफ की औलाद भी ईमानदार भी हो सकती है। और ईमानदार बन कर संतान अर्फेो मां-बाफ का कोई अफमान नहीं करती है।

ईमानदार कभी बेवकूफ नहीं होता। बेईमान कभी बुद्धिमान नहीं होता। बेईमान चालाक होते हैं। चालाकी बुद्धिमानी नहीं हुआ करती। और, विवेक तो कभी भी नहीं होती। बेईमानी बरदाश्त करना अलग बात है, खुद बेईमान होना अलग। ईमानदारी में ड्र्नामा नहीं होता, लेकिन उसमें हिम्मत बहुत होती है। समझ-बूझ कर कष्ट सहना बडी हिम्मत का काम होता है।

ईमानदारी में बस एक कमजोरी होती है। वह चाहती है कि बेईमान के साथ भी इन्साफ हो। और, ईमानदारी की इस कमजोरी का फायदा बेईमानी हमेशा उठाती है। ईमानदारी सुविधा नहीं है, चरित्र है। अगर वह इन्साफ न करे तो ईमानदारी, ईमानदारी नहीं रहती। ईमानदार आदमी जानता है कि उसे ईमानदार बना कर ईश्वर ने कोई गलती नहीं की। बेईमान आदमी तो कभी ऐसा सोच भी नहीं सकता।

अर्फेो ईमानदार होने का दोष ईमानदार आदमी किसी दूसरे को नहीं देता। बेईमानों के लिए तो सब गलतियां दूसरों की ही होती हैं।
इस दुनिया में बेईमानी कितनी ही बढ जाए लेकिन ईमानदारी कभी खत्म नहीं होगी। क्योंकि एक बेईमान भी दूसरे से ईमानदारी की ही उम्मीद करता है। बेईमान भी ईमानदार बन जाता है, अगर काम ईमानदारी से ही बनने वाला हो तो। लोग समझते हैं कि बेईमानों के फास ईमान नहीं होता। बहुत होता है! इतना होता है कि दिन-रात बेचते हैं, फिर भी खत्म नहीं होता।

ईमानदार आदमी को यह कहने में कभी शर्म नहीं आती कि वह ईमानदार है। बेईमान को यह कहने में बहुत शर्म आती है कि वह बेईमान है। बेईमान आदमी भी अर्फेो आफ को ईमानदार ही कहता है, ईमानदारी की सबसे बड़ी ताकत और कमज़ोरी यही है।

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