टूर आपरेटर सेवा में कमी का दोषी

अपने परिवार के साथ हम हंसी-खुशी से छुट्टियां बिताने के लिए टूर पर जाते हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि टूर तनाव रहित हो और मजे वाला हो। यदि टूर आपेरटर की लापरवाही से हमें मुश्किलें पैदा होती हैं तो लगता है, कि पूरी छुट्टी बेकार चली गयी। चंद्रशेखर सप्तर्षि और उनकी पत्नी को केसरी टूर्स द्वारा आयोजित कंडक्टेड टूर में इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

केसरी टूर्स ने केन्या, जिंबाब्वे और दक्षिण अफ्रीका के लिए एक कंडक्टेड टूर आयोजित किया था। चंद्रशेखर सप्तर्षि और उनकी पत्नी ने फरवरी, सन 2008 में इस टूर के लिए अपना नाम लिखवाया था। केसरी टूर्स ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह उनके वीजा की व्यवस्था करने के साथ-साथ टूर के लिए जरूरी सभी औपचारिकताओं को पूरा करेगा। यह टूर 26 मई, सन् 2008 से शुरू होने वाला था।

चंद्रशेखर ने टूर शुरू होने से दो दिन पहले केसरी टूर्स से पूछताछ की कि अभी उन्हें यात्रा से संबंधित दस्तावेज क्यों नहीं मिले हैं। केसरी टूर्स की ओर से उन्हें बताया गया कि दस्तावेज कहीं गुम हो गए हैं। उन्हें बताया गया कि टूर शुरू होते समय सहार हवाई अड्डे पर सभी दस्तावेज मिल जाएंगे। हवाई अड्डे पर पहुंचने पर सप्तर्षि दंपति को बताया गया कि अभी तक जिंबाब्वे का वीजा नहीं मिला है। लेकिन केसरी ने सप्तर्षि दंपति को आश्वासन दिया कि यह चिंता की बात नहीं है, क्योंकि टूर पहले केन्या जाएगा और उसके बाद जिंबाब्वे जाने की योजना है तथा जिंबाब्वे का वीजा केन्या में प्राप्त कर लिया जाएगा। चूंकि यह जानकारी सप्तर्षि को अंतिम क्षणों में दी गयी अत: उनके पास टूर आपरेटर में विश्वास रखते हुए टूर शुरू करने के अतिरिक्त दूसरा कोई रास्ता नहीं था।

केन्या पहुंचने के बाद केसरी सप्तर्षि दंपति के लिए जिंबाब्वे का वीजा नहीं प्राप्त कर सके। परिणामस्वरूप सप्तर्षि दंपति जिंबाब्वे की यात्रा नहीं कर सके। उन्हें जोहान्सबर्ग के होटल में ठहरना पड़ा। मुंबई वापस लौटने पर केसरी टूर्स ने सप्तर्षि को 30 हजार रूपये मुआवजा प्रस्तावित किया, लेकिन उन्होंने मुआवजा स्वीकार करने से इंकार कर दिया। सप्तर्षि दंपति ने उपभोक्ता अदालत में सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार की शिकायत दर्ज की। उपभोक्ता अदालत में केसरी टूर्स ने सभी आरोपों से इनकार कर दिया। केसरी ने दावा किया कि उन्होंने टूर शुरू होन से दो दिन पहले सप्तर्षि दंपति से फिर से दस्तावेजों की मांग की थी। क्योंकि उन्होंने जो दस्तावेज पहले दिए थे वे कहीं गुम हो गए थे तथा वीजा के लिए दी गयी अर्जी खारिज हो गयी थी। केसरी टूर्स के मुताबिक टूर शुरू होने के समय सहार हवाई अड्डे पर ये सभी जानकारी सप्तर्षि दंपति को दे दी गयी थी। केसरी टूर्स की दलील थी कि इसके बावजूद सप्तर्षि दंपति ने फिर वीजा के लिए अर्जी नहीं दी। केसरी टूर्स की ओर से यह दावा भी किया गया कि टूर की शर्तों के मुताबिक वीजा की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी केसरी टूर्स की थी ही नहीं। इस तरह केसरी टूर्स ने स्पष्ट कर दिया कि सेवा में कमी या अनुचित व्यापार व्यवहार का प्रश्न उठता ही नहीं है। उन्होंने उपभोक्ता अदालत से निवेदन किया कि सप्तर्षि दंपित की अर्जी खारिज कर दी जाए।

उपभोक्ता अदालत के पीठासीन अधिकारी नलिन मजीठिया और सदस्य भावना पिसल की पीठ ने 5 अप्रैल, सन् 2011 को सुनाए गए अपने फैसले में कहा कि टूर के लिए अपना नाम लिखवाते समय सप्तर्षि दंपित ने केसरी टूर्स को सभी दस्तावेज सौंप दिए थे। दस्तावेज गुम होने की पूरी जिम्मेदारी केसरी टूर्स की थी। सहार हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद ही सप्तर्षि दंपति को जिंबाब्वे का वीजा न मिलने की जानकारी दी गई और उन्हें यह भरोसा दिया गया कि केन्या में जिंबाब्वे के वीजा की व्यवस्था हो जाएगी।

चूंकि केन्या में वीजा की व्यवस्था नहीं हुई, अत: केसरी टूर्स सेवा में कमी के दोषी हैं। उपभोक्ता अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि केसरी टूर्स ने वीजा की औपचारिकताएं पूरी करने की जिम्मेदारी ली थी इसलिए तीनों देशों का वीजा प्राप्त करना उनका कर्तव्य था। उपभोक्ता अदालत ने दो टूक शब्दों में कहा कि केन्या और दक्षिण अफ्रीका के लिए वीजा प्राप्त करना तथा जिंबाब्वे के लिए वीजा न प्राप्त करना सेवा में कमी है। उपभोक्ता अदालत ने आगे कहा कि केसरी टूर्स की लापरवाही के कारण सप्तर्षि दंपति जिंबाब्वे नहीं जा सके, तथा उन्हें जोहान्सबर्ग में होटल में रहना पड़ा। इस खर्च का भुगतान भी सप्तर्षि दंपत्ति को करना पड़ा।

उपभोक्ता अदालत ने केसरी टूर्स को निर्देश दिया कि वह जोहान्सबर्ग में होटल में रहने और खाने के खर्च के तौर पर नौ प्रतिशत ब्याज के साथ 57,743 रुपए सप्तर्षि दंपति को भुगतान करे। उपभोक्ता अदालत ने निर्देश में आगे कहा कि मानसिक परेशानियों के लिए 80 हजार रुपये तथा मुकदमे के खर्च के तौर पर दो हजार रूपये सप्तर्षि दंपति को केसरी टूर्स अदा करे।

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